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बिलक़ीस के गुनहगारों की रिहाई के विरोध में बनारस में मार्च और हस्ताक्षर अभियान

बिलक़ीस बानो के गुनहगारों की रिहाई न्याय व्यवस्था पर बड़ा सवालिया निशान है। क्या इस देश में किसी समुदाय विशेष का होना अपराध है? क्या किसी मुजरिम का किसी विशेष समुदाय से होने पर उसके गुनाह माफ़ हो जाता है?
BHU

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में रविवार की शाम साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलक़ीस बानो के साथ गैंगरेप करने वाले की रिहाई का महिलाओं ने कड़ा विरोध किया। जॉइंट ऐक्शन कमेटी बीएचयू और दखल संगठन के नेतृत्व में स्टूडेंट्स व एक्टविस्टों ने बीएचयू गेट से लंका रविदास चौराहे तक मार्च निकाला और पर्चे बांटे। साथ ही बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) गेट पर बिलक़ीस बानो के समर्थन में हस्ताक्षर अभियान चलाया। रेपिस्ट्स की रिहाई के बाद से पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस की प्रबुद्ध महिलाओं और स्टूडेंट्स गुस्से में, जिसके चलते यह मामला काफी गरम है।

हस्ताक्षर अभियान के दौरान बीएचयू गेट पर हुई सभा में एक्टिविस्ट डॉ. मुनिजा रफीक खान ने बिलक़ीस बानों पर हुए अत्याचार पर विस्तार से प्रकाश डाला और कहा, "गुजरात दंगे के समय बिलक़ीस के साथ भाजपा समर्थित अपराधियों ने गैंगरेप किया और परिवार के कई लोगों को मार डाला। यह हिंसक घटना उस समय हुई थी जब 27 फरवरी 2002 को गुजरात के साबरमती ट्रेन में आगजनी के बाद दंगे भड़क उठे थे। पूरा गुजरात सांप्रदायिक दंगे की चपेट में आ गया था। जिस समय बिलक़ीस बानो के साथ रेप किया गया था उस समय वह गर्भवती थीं। बिलक़ीस बानो ने न्याय के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी थी। आखिर में साल 2008 में 11 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, लेकिन 15 अगस्त को सभी रेपिस्ट्स जेल से रिहा कर दिए गए।"

अन्याय की पटकथा लिख रही भाजपा

डॉ. मुनिजा ने कहा, "एक तरफ भाजपा सरकार आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रही है, दूसरी ओर अन्याय की पटकथा लिख रही है। भारत कैसा देश हो गया है जहां आजीवन कारवास की सजा भुगतने वाले अपराधी छोड़ दिए जाते हैं और वो जब अपने घर लौटते हैं तो उनके स्वागत में आरएसएस और भाजपा के लोग जलसे आयोजित करने में जुट जाते हैं। अमृत महोत्सव मनाने के लिए एक तरफ केंद्र सरकार देश भर में कैंपेन चला रही है और करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाए जा रहे हैं, दूसरी तरफ आजादी के जिन मूल्यों के खातिर हमारे पूर्वजों ने अपनी कुर्बानी दी थी, उन्हें रसातल में मिलाया जा रहा है। बिलक़ीस का रेप करने वालों को सजा सुनाने वाले जज भी दोषियों की रिहाई से हैरान होंगे। किसी भी महिला के लिए न्याय इस तरह कैसे समाप्त हो सकता है? बिलक़ीस बानो को देश की सर्वोच्च अदालतों के अलावा सिस्टम पर भरोसा था। रेपिस्टों की सजा के बाद उनके जख्म धीरे-धीरे भर रहे थे और वह मैं जीना सीख रही थी। दोषियों को रिहा करके सरकार ने बिलक़ीस की शांति छीन ली है और उनके विश्वास को हिला दिया है।"

डॉ. मुनीजा ने यह भी कहा, "हत्या और बलात्कार के दोषियों को सजा पूरी करने से पहले रिहा करने से महिलाओं के प्रति अत्याचार करने वाले पुरुषों के मन में (दंडित किए जाने का) डर खत्म हो जाएगा। गुजरात सरकार का यह कदम केंद्रीय गृह मंत्रालय के उस सर्कुलर का उल्लंघन था जो 10 जून, 2022 को सभी राज्यों के लिए जारी किया गया था। इससे भी बड़ा आश्चर्य है कि दोषियों की रिहाई के बावजूद ज्यादा शोर-शराबा नहीं हुआ। हम इस मामले में बिलक़ीस बानो और उसके परिवार के साथ खड़े हैं और मांग करते हैं कि सरकार इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करे और 2002 के गुजरात दंगों को पीड़ितों को इंसाफ दे। हर छोटी-बड़ी बात पर हंगामा करने वाला कथित मुख्यधारा का मीडिया, एकदम खामोश है। टीवी चैनलों के एंकर जो चिल्ला-चिल्लाकर शोर मचाते हैं वहां भी सन्नाटा है। महिलाओं के सम्मान और हर गैर जरूरी मुद्दे को उछालने में माहिर टीवी ऐंकर, लगता है इस खबर को जानते ही नहीं। हम मांग करते हैं कि न्याय व्यवस्था में महिलाओं के विश्वास को बहाल किया जाए। साथ ही सभी 11 दोषियों की सजा माफ करने के फैसले को तत्काल वापस लेते हुए उन्हें सुनाई गई उम्र कैद की सजा पूरी करने के लिए फिर से जेल भेजा जाए।"

उठने लगा न्याय से भरोसा

बीएचयू की ज्वाइंट एक्शन कमेटी की डॉ. इंदु पांडेय ने बिलक़ीस बानो के साथ हुए अत्याचार की घटना को रेखांकित करते हुए कहा, "तीन मार्च 2002 को हथियारबंद दंगाई बिलक़ीस के घर में घुस गए और पांच माह की गर्भवती बिलक़ीस के साथ सामूहिक बलात्कार किया। दंगाइयों ने तीन साल की बच्ची का सिर दीवाल पर पटककर उसकी हत्या कर दी थी। परिवार की कई अन्य महिलाओं के साथ भी बलात्कार किया गया। परिवार के 17 सदस्यों में से 7 की हत्या की गई। मानवाधिकार आयोग और सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद 2008 में सभी 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा हुई, लेकिन आश्चर्यजनक तरीके से इसी 15 अगस्त को सभी दोषियों को रिहा कर दिया गया। भाजपा सरकार के इस कदम से देश भर की प्रबुद्ध महिलाएं आहत हैं और उनका न्याय से भरोसा उठने लगा है।"

बिलक़ीस मामले में सरकार का कदम उसके बहुसंख्यकवादी एजेंडे की आलोचना करते हुए डॉ. इन्दु ने कहा, "बलत्कारियों की रिहाई के बाद भाजपा नेताओं द्वारा प्रशंसा किया जाना शर्मनाक है। सांप्रदायिक नफरत भारत के लिए एक गंभीर चुनौती है। हम देख रहे हैं कि भाजपा सरकार अपने सांप्रदायिक एजेंडे को स्थापित करने के लिए अपनी संस्थाओं का इस्तेमाल भारत के लोगों की सेवा करने के बजाय किस तरह से कर रही है। हम सांप्रदायिक नफरत, हिंसा और जनविरोधी नीतियों की राजनीति को खारिज करते हैं। हम बिलक़ीस बानो के लिए न्याय चाहते हैं और सभी 11 अपराधियों की समयपूर्ण रिहाई का फैसला वापस लेने की मांग करते हैं।"

रिहाई के हक़दार नहीं हत्यारे व बलात्कारी

महिलाओं और ट्रांसजेंडर पर होने वाली हिंसा के खिलाफ मुहिम चलाने वाली संस्था दखल संगठन की नीति ने साल 2002 के गुजरात दंगों के केंद्र में रहने वाले इस मामले में दोषियों को सजा में छूट दिए जाने पर कहा, "यह बेहद कठिन और शक्तिशाली बाधाओं से मुकाबला करते हुए 2002 के भयावह अपराधों में सजा सुनिश्चित करना की कठोर कानूनी लड़ाई के लिए एक गंभीर झटका है। यह जघन्य बलात्कार और हत्या का मामला है। सिर्फ 2002 के दंगों के दोषियों को ही क्यों रिहा किया गया। भारत की जेलों में हजारों कैदी ऐसे हैं जिन्होंने अपनी सजा पूरी कर ली है, लेकिन लेकिन उन्हें रिहा नहीं किया जा रहा है। दंगे के बलात्कारी और हत्यारे किसी भी सूरत में रिहाई के हकदार नहीं हैं। इस मामले में केंद्र सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए।"

सभा को संबोधित करते हुए मैत्री ने कहा, "एक तरफ 15 अगस्त 2022 को लालकिले के प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नारी सम्मान और उनके उत्थान की बात कही थी और उसके दूसरे दिन गुजरात की भाजपा सरकार ने बिलक़ीस बानों के बलात्कारियों को रिहा कर दिया। अपराधियों को प्री-मेच्योर रिलीज कमेटी ने रिहा कराया, जिसमें गुजरात के कई भाजपा विधायक, नगर सेवक और आरएसएस के कार्यकर्ता शामिल थे। भाजपा और आरएसएस के लोगों ने बलात्कारियों को माला पहनाकर स्वागत किया। बिलक़ीस बानो के गुनहगारों की रिहाई न्याय व्यवस्था पर बड़ा सवालिया निशान है। क्या इस देश में किसी समुदाय विशेष का होना अपराध है? क्या किसी मुजरिम का किसी विशेष समुदाय से होने पर उसके गुनाह माफ़ हो जाता है? ऐसी घटनाए हमारी समृद्ध विरासत पर धब्बा हैं। भाजपा शासन में हर दिन समानता, न्याय और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को कुचला जा रहा है और सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि यह सब सरकार के संरक्षण में किया जा रहा है।"

सांप्रदायिक नीतियों को प्रमोट कर रही भाजपा

आंदोलन के दौरान गुजरात में बिलकिस बानो के दोषियों का 'स्वागत' किए जाने पर तल्ख टिप्पणी करते हुए एक्टिविस्ट एकता शेखर ने न्यूज़क्लिक से कहा, "देश में यह पहले से ही तय था कि जिनका आचरण अच्छा होगा, उन्हें ही 15 अगस्त को छोड़ा जाएगा। रेप और मर्डर के मामले रियायत नहीं दी जाती थी। उन्हीं 11 लोगों को छोड़ा गया जो बिलक़ीस बानो के परिवार की हत्या और बलात्कार के दोषी थे। ऐसे जघन्य मामलों में छोड़ना दर्शाता है कि अगर हमारी सांप्रदायिक नीतियों को प्रमोट करता है तो उसे न सिर्फ छोड़ा जाएगा, बल्कि फूल-माला पहनाकर स्वागत भी किया जाएगा। बनारस में कैमरे लगाए जा रहे हैं, लेकिन जब सुरक्षा ऐसे ही मिल रही है तो इन्हें लगाने की जरूरत क्या जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना की है।"

यह कैसा है आज़ादी महोत्सव?

एकता ने कहा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लोगों से महिलाओं का सम्मान करने का आह्वान 'मात्र शब्द' है, जबकि गुजरात सरकार का फैसला 'कार्रवाई' है। मोदी के लोगों से महिलाओं का सम्मान करने के आह्वान के कुछ घंटे बाद उनकी चुनी हुई गुजरात सरकार सामूहिक दुष्कर्म के दोषियों को आजादी के अमृत महोत्सव के दिन गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो केस के अभियुक्तों को रिहा कर दिया। इस मामले में भाजपा की मानसिकता दिखाई उजागर होती है। कुछ लोग अभी भी मोदी के मुंह से निकली हुई बातों को गंभीरता से लेते हैं क्योंकि वे लाल किले से नारी सुरक्षा, नारी सम्मान, नारी शक्ति, अच्छे-अच्छे शब्द इस्तेमाल करते हैं। इसके कुछ ही घंटों के बाद गुजरात की भाजपा सरकार हत्या और बलात्कार के दोषियों को रिहा कर देती है। भाजपा के लोग उनकी आरती भी उतार रहे हैं और तिलक भी लगा रहे हैं। सरकार का आखिर ये कैसा अमृत महोत्सव है? प्रधानमंत्री की कथनी और करनी में कितना अंतर है? अब मोदी पर भला कौन भरोसा करेगा? वह देश को कुछ और कहते हैं और फोन उठाकर अपनी राज्य सरकारों को कुछ और कहते हैं।"

एक्टिविस्ट रामजनम ने भी बलात्कारियों की रिहाई पर सवाल उठाए और कहा, "गुजरात सरकार के पास अपनी रिहाई नीति का ही उपोयग कर इन 11 हत्यारों और बलात्कारियों की रिहाई की अपील खारिज की जा सकती थी। भाजपा सरकार को रिहाई की नीति लागू करने से पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जो अपराध हुआ था उसका क्या सिर्फ किसी एक व्यक्ति पर असर पड़ा था या फिर समाज का बड़ा हिस्सा इससे प्रभावित हुआ था। नसकर केस और केंद्रीय गृह मंत्रालय की गाइडलाइंस में पर्याप्त तौर पर स्पष्ट था, जिसके आधार पर दोषियों को रिहा नहीं किया जाना चाहिए था। यह एकदम समझ से परे और तर्क के विपरीत है कि जिन लोगों ने तीन महिलाओं का बलात्कार किया, तीन और छह साल के बच्चों की हत्या की, उन लोगों को किसी भी नीति के तहत कैसे रिहा किया जा सकता है? "

सामाजिक, महिला एवं मानवाधिकार सक्रियतावादी धनंजय त्रिपाठी ने कहा, "सामूहिक बलात्कार और हत्या के दोषी 11 लोगों की सजा माफ करने से उन हर बलात्कार पीड़िता पर हतोत्साहित करने वाला प्रभाव पड़ेगा, जिन्हें न्याय व्यवस्था पर भरोसा करने, न्याय की मांग करने और विश्वास करने को कहा गया है। हत्या और बलात्कार के इन दोषियों को सजा पूरी करने से पहले रिहा करने से महिलाओं के प्रति अत्याचार करने वाले सभी पुरुषों के मन में (दंडित किये जाने का) भय कम हो जाएगा। कोर्ट आर्डर के बाद फैसला बदला जाना अन्यायपूर्ण घटना है। अपराधियों को छोड़कर उनका सम्मान और महिमामंडन करना गलत है। हम मांग करते हैं कि न्याय व्यवस्था में महिलाओं के विश्वास को बहाल किया जाए और सजा माफ करने के फैसले को तत्काल वापस लेते हुए उन्हें जेल भेजा जाए। दोषियों को छोड़ने वाली कमेटी पर सीबीआई जांच और कार्रवाई की जानी चाहिए।"

हस्ताक्षर अभियान और मार्च में एकता, विजेता, वंदना, चंदा, प्रतिमा, साक्षी, आर्शिया, मृदुला मंगलम, उमाश्री, जयंत, अनुज, इंद्रजीत राज अभिषेक, अर्जुन, शिव, बिना, शिवांगी, शबनम, काजल, दीक्षा, प्रिया के अलावा लंका गुमटी व्यवसायी कल्याण समिति के अध्यक्ष चिंतामणि सेठ, रवि शेखर, धनंजय सहित बड़ी संख्या में युवा, छात्र, महिलाएं और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए।

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