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'मिशन 2024': अब पंजाब भाजपा का नया निशाना?

"पंजाब के लिए भाजपा ने 'रात्रि प्रवास' कार्यक्रम बनाया है। इसके तहत अमित शाह और जेपी नड्डा शहर दर शहर रैलियां करेंगे और पंजाब के ही किसी शहर में रात गुज़ारेंगें।"
Nadda amit shah
फाइल फ़ोटो।

भाजपा का मिशन 2024 शुरू हो चुका है और सत्ता के लिहाज़ से पंजाब उसका नया 'टारगेट' है। उत्तर भारत में पंजाब, जम्मू व कश्मीर तथा लद्दाख ऐसे राज्य हैं, जिन पर शासन करना भाजपा (और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) का बहुत पुराना सपना है। जम्मू, कश्मीर तथा लद्दाख में फिलहाल अनिश्चित काल के लिए राष्ट्रपति शासन लागू है लेकिन वहां की शासन-व्यवस्था सीधे तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की हिदायतों पर चलती है। इसलिए फौरी तौर पर भाजपा का पूरा फोकस पंजाब पर है। इस राज्य में वह बादल परिवार की सरपरस्ती वाले शिरोमणि अकाली दल के साथ गठजोड़ करके सत्ता में आती रही है लेकिन अब कुछ अन्य पंथक संगठनों व बादल दल से टूटे नेताओं द्वारा बनाए गए विभिन्न अकाली दलों के समर्थन से 'संपूर्ण सत्ता' चाहती है। बेशक यह राह आसान नहीं है लेकिन अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा इसे पूरा करने की कवायद में जुट गए हैं।

शिरोमणि अकाली दल से भाजपा का नाता टूट चुका है और इस रिवायती पंथक राजनीतिक संगठन से अलहदा हुए कुछ बड़े नेता भाजपा के साथ हैं। कुछ को साथ लेने की कोशिशें लगातार जारी हैं। नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी वाली भाजपा ने बकायदा एक मिशन के तहत पंजाब कांग्रेस में ज़बरदस्त सेंध लगाई है। कैप्टन अमरिंदर सिंह, तमाम आलोचनाओं के बावजूद राज्य कांग्रेस में सबसे वरिष्ठ, अनुभवी और बड़ा चेहरा थे। इसीलिए पार्टी आलाकमान ने नापसंदगी के बावजूद उन्हें मुख्यमंत्री बनाया था। जबकि मुख्यमंत्री बनने से पहले वह गांधी परिवार और खास तौर पर राहुल गांधी पर कुछ विवादित टिप्पणियां अखबारों में कर चुके थे और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने खुलेआम इसे अनुशासनहीनता बताया था। बावजूद इसके अपनी ताकत के बूते अमरिंदर सर्वोपरि रहे और लगातार साबित किया कि पंजाब कांग्रेस और सरकार के असली 'कैप्टन' वही हैं। आलाकमान की नाराज़गी के बावजूद उन्होंने भाजपा से आए नवजोत सिंह सिद्धू को दरकिनार कर दिया। कई अन्य मामलों में भी उन्हीने हाईकमान की अवहेलना की। वह बहुत पहले से नरेंद्र मोदी और अमित शाह के सीधे संपर्क में थे। खबरें थीं कि भाजपा के दोनों दिग्गजों से वह लगातार संपर्क बनाए हुए थे और अपरोक्ष रूप से केंद्र की कुछ नीतियों का समर्थन भी करते थे। मुख्यमंत्री बनने से पहले भी ऐसे कयास थे कि अगर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बगावत की राह अख्तियार की तो वे सीधे भाजपा की दहलीज़ पर खड़े मिलेंगे।

लगभग साल भर पहले जब उन्हें मुख्यमंत्री की गद्दी से हटाया गया तो कैप्टन अमरिंदर सिंह को इसपर कोई हैरानी नहीं हुई। वह उस विधायक दल की बैठक में भी नहीं गए जिसमें सूबे के मुख्यमंत्री को बदले जाने पर विचार-विमर्श होना था। कुछ पुख्ता जानकारियों के मुताबिक उन्हें पहले ही आगाह किया जा चूका था कि उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाया जा रहा है और कांग्रेस आलाकमान बखूबी जान चुका है कि वह भाजपा के संपर्क में हैं। पहले-पहल कैप्टन ने इससे साफ इनकार किया लेकिन फिर कांग्रेस से अलग होकर अपनी अलग पार्टी का गठन कर लिया और भाजपा से गठजोड़ करके चुनाव लड़ा। हालांकि इसका कोई तात्कालिक लाभ दोनों में से किसी को भी नहीं मिला, इसकी एक वजह यह भी थी कि बेहद कम समय के अंतराल में ये सब कुछ हुआ और आम आदमी पार्टी तथा शिरोमणि अकाली दल सहित कांग्रेस के आक्रामक आरोपों ने अपना असर दिखाया कि कैप्टन ने किसान आंदोलन के दौरान भाजपा के बिचौलिए की भूमिका निभाई थी। दूसरा ये कि आम आदमी पार्टी की पंजाब में चली आंधी के आगे तमाम अन्य पार्टियां लगभग पस्त साबित हुईं। कैप्टन और उनकी पार्टी का पूरी तरह सूपड़ा साफ हो गया और भाजपा महज़ दो सीटों तक सीमित होकर रह गई। करीब नौ महीने पहले भाजपा ने पंजाब की बाबत, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कहने पर मंथन बैठक की और उसमें लक्ष्य तय किया कि अब पंजाब को सत्ता के लिहाज़ से नया टारगेट बनाया जाए। भाजपा नीतिकार अच्छे से जानते हैं कि बगैर सिख समर्थन के वह पंजाब में कुछ हासिल नहीं कर सकती। नतीजतन इस पुरानी नीति ने गति पकड़ी कि ज़्यादा से ज़्यादा सिखों को भाजपा में लाया जाए। उसी कड़ी में पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी पार्टी को तिलांजली देते हुए खुद को अपने पूरे परिवार के साथ भाजपाई बना लिया। भाजपा ने उन्हें तथा राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखने वाली उनकी बेटी जयइंदर कौर को भी पूरा महत्व देते हुए सम्मानजनक पदों से नवाज़ा। कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ-साथ, उनके समर्थक और कांग्रेस के कुछ बड़े जनाधार वाले वरिष्ठ नेताओं ने भी भाजपा का दामन थाम लिया। सर्वविदित है कि कैप्टन सहित तमाम दलबदलू कांग्रेसी 'आश्वासनों के रथ' पर सवार होकर भाजपाई रंग में रंगे हैं। खुद को जन्मजात कांग्रेसी बताने वाले सुनील कुमार जाखड़ भी अपने साथियों को लेकर भाजपा में चले गए। उनको इसलिए भी अहमियत दी गई क्योंकि इनमें से ज़्यादातर सिख थे। भाजपा से बहुत पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, ज़मीनी स्तर पर सिखों को अपने साथ जोड़ने की कवायद करता रहा है लेकिन बड़ी कामयाबी हासिल नहीं हुई।

'कोशिश' आरएसएस के लिए एक ज़िंदा शब्द है। शिरोमणि अकाली दल के साथ भाजपा का ढाई दशक पहले समझौता हुआ था। लेकिन संघ अपनी राह पर चलता रहा। उसने सिखों में अपनी पैठ बनाने की कोशिशों में कोई कसर नहीं छोड़ी। जिलों में 'शाखाओं' को और भी ज़्यादा पुख्ता किया। फिर कस्बों की राह पकड़ी और अंततः गांव तक पहुंच गया। यह सब आंतरिक प्रचार के बलबूते किया गया। मीडिया से लेकर राज्य की एजेंसियों तक को जब भनक लगी तब तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गांव की ओर जाने वाली चिट्ठी ने मोबाइल का रूप ले लिया। फिर जाकर बादलों को होश आया और खुद को सिखों का कथित अभिभावक और प्रवक्ता बताने वाले शिरोमणि अकाली दल ने नागपुर संपर्क करके इस पर ऐतराज़ जताया और इस मुहिम को रोकने की गुज़ारिश की। आरएसएस ज़्यादातर गुप्त एजेंडों पर चलती रही है। बादलों और अन्य सिख संस्थाओं की नाराज़गी मीडिया में आई तो संघ का अभियान भी फौरी तौर पर थम गया लेकिन रुका नहीं। प्रकाश सिंह बादल की अगुवाई वाली गठजोड़ सरकार के वक्त राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख ने पंजाब के जितने दौरे किए, उससे पहले किसी भी प्रमुख ने इस राज्य की इतनी यात्राएं नहीं की थीं। उनके दौरों को कभी निजी तो कभी संगठन के काम से जुड़ा बताया गया। जबकि अपने दौरों के दरमियान संघ प्रमुख विभिन्न डेरेदारों से खुलकर मिलते रहे। अलबत्ता एजेंडा कभी जगज़ाहिर नहीं हुआ।

प्रसंगवश, माझा में पंजाब का सबसे शक्तिशाली डेरा है। इसके अनुयायियों की संख्या लाखों में है। लगभग चार साल पहले मौजूदा संघ प्रमुख मोहन भागवत मालवा के जिला मानसा आए थे। मानसा पंजाब का एक उपेक्षित-सा जिला है। हाल ही में उसे तब सुर्खियां हासिल हुईं, जब गायक सिद्धू मूसेवाला का गैंगस्टर समूह ने सरेआम कत्ल कर दिया। मूसा गाँव गांव जिला मानसा में है। मानसा जिले का खुफिया तंत्र और प्रशासनिक महकमा सदा सुस्त रहा है। मोहन भागवत ने तब कुछ अहम फैसलों के लिए इसी जिले का चयन इसलिए किया था। गौरतलब है कि तब माझा के उस वक्त के पंजाब के सबसे बड़े डेरे के मुखिया अपने जेट विमान से विशेष रूप से मोहन भगवत से मिलने गए थे। क्यों? यह आज तक स्पष्ट नहीं हुआ। उसके बाद भी दोनों शख्सियतें कई बार मिलीं और अब भी मुलाकातों का सिलसिला जारी है। इसके पीछे की मंशा कोई नहीं जानता, केवल अंदाज़े लगाए जा सकते हैं। पंजाब में डेरों की भरमार है और उन्हें मानने वाले सिखों और हिंदुओं के वोट कई जगह निर्णायक भूमिका में रहते हैं। यही वजह है कि भाजपा इन्हें साधने में जुटी है। फिलहाल आलम यह है कि 'मिशन पंजाब' के तहत ही नामवर सिख चेहरों को भाजपा ने केंद्रीय समिति में लिया। जो धार्मिक गतिविधियां महज़ सिख पंथक संगठनों तक सीमित थीं उनमें भाजपा बड़ी सूक्ष्मता के साथ दाखिल हुई। ताकि यह 'दखलअंदाज़ी' न लगे। जानकारों के मुताबिक सन 2000 के मुकाबले अब यानी 2023 में पंजाब के अंदर भाजपा सदस्यों में आश्चर्यजनक रूप से इजाफा हुआ है और इनमें सिख एक बड़ी तादाद में हैं। जानकार तो यहां तक कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेमन से किसानों के आगे संघ की हिदायत पर ही झुके।

सर्वविदित है कि पंजाब में किसानी सिखों के हाथों में है जिस कारण भी इस पहलू पर गौर किया गया। प्रधानमंत्री 'अन्नदाता' को संतुष्ट करने की बात तो दोहराते हैं लेकिन उन 700 किसानों का कभी ज़िक्र तक नहीं करते जिनकी इस आंदोलन के दौरान मौत हुईं। भाजपा का कोई भी नेता उन किसानों की भी चर्चा नहीं करता जिन पर हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में मुकदमे बनाए गए। जिनमें कई अभी भी गैर ज़मानती धाराओं के तहत जेलों में बंद हैं। खैर, चूंकि पंजाब भाजपा का नया टारगेट है, इसलिए मिशन पंजाब की कमान गृहमंत्री अमित शाह और अध्यक्ष जेपी नड्डा के हाथों में है। पंजाब के लिए भाजपा ने 'रात्रि प्रवास' कार्यक्रम बनाया है। इसके तहत अमित शाह और जेपी नड्डा शहर दर शहर रैलियां करेंगे और पंजाब के ही किसी शहर में रात गुज़ारेंगें। यह सिलसिला संभवत: 29 जनवरी से शुरू होने जा रहा है, राहुल गांधी की बहुचर्चित ''भारत जोड़ो यात्रा'’ के पूरा होने के ठीक 10 दिन बाद। हालांकि आधिकारिक रूप से इसकी पुष्टि अबतक नहीं की गई है लेकिन ये तय है कि भाजपा का पंजाब में 'रात्रि प्रवास' कार्यक्रम जल्द शुरू होगा। इसके लिए जोरो शोरों से तैयारियां जारी हैं। सूबे में भाजपा का चेहरा-मोहरा बदला है, खासतौर पर कैप्टन अमरिंदर सिंह और कुछ अन्य वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं का भाजपा आगमन के बाद। पार्टी 2024 के लोकसभा चुनावों को अग्निपरीक्षा मानकर चल रही है। कुल सीटों में से नौ पर भाजपा लोकसभा चुनाव नहीं लड़ती थी क्योंकि ये सीटें शिरोमणि अकाली दल के हिस्से आती थीं। भाजपा की ताज़ा घोषणा है कि वह तमाम सीटों पर अपने बूते लड़ेगी। हालांकि भविष्य के नतीजे ही बताएंगे कि आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा के नए टारगेट पंजाब में उसे कितनी कामयाबी मिलती है?

( लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार निजी हैं )

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