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मोदी सरकार ने मध्यप्रदेश के आदिवासी कोष में की 22% की कटौती, पीएम किसान सम्मान निधि योजना में कर दिया डाइवर्ट

यह मामला तब सामने में आया जब एमपी के बालाघाट से भाजपा के एक सांसद, ढाल सिंह बिशेन ने पिछले पांच वर्षों में आदिवासियों के कल्याण हेतु मध्य प्रदेश को आवंटित की गई राशि पर एक सवाल दायर किया।
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भोपाल: हाल ही में, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्ववाली केंद्र सरकार ने मध्य प्रदेश में आदिवासियों के विकास के लिए व्यापक स्तर पर जनसंपर्क अभियान संचालित किया था। और वहीँ दूसरी तरफ, इसके द्वारा 2017-18 की तुलना में आदिवासी विकास के लिए राज्य को आवंटित बजट में 937 करोड़ रूपये से अधिक की कटौती भी कर दी गई थी।

2019 में जब केंद्र सरकार ने पीएम किसान सम्मान योजना (पीएमकेएसवाई) की शुरुआत की थी, तो उस दौरान केंद्र सरकार ने इस योजना के लिए निर्धारित आदिवासी कल्याण में से एक महत्वपूर्ण हिस्से को डाइवर्ट कर दिया था।

यह मामला तब प्रकाश में आया जब एमपी के बालाघाट से भाजपा के सांसद ढाल सिंह बिसेन ने पिछले पांच वर्षों के दौरान आदिवासी कल्याण के लिए मध्यप्रदेश को आवंटित राशि की मालूमात के लिए एक सवाल दायर किया। इस अ-तारांकित प्रश्न संख्या 158 के उत्तर में, पिछले माह 29 नवंबर को केंद्र सरकार ने बताया कि इसने 2020-21 में मध्यप्रदेश को 3207 करोड़ रूपये प्रदान किये थे, जो कि 2017-18 के बजट से 22.56% कम है। मौजूदा वित्तीय वर्ष के अर्ध-वार्षिक बजट में इस फंड में और भी कटौती कर इसे 1,718 करोड़ रूपये कर दिया गया है।

केंद्र सरकार द्वारा आदिवासी कल्याण के लिए मध्यप्रदेश को जारी की गई धनराशि  

स्रोत: एसटीसीएमआईएस.जीओवी.इन, संख्या करोड़ में 

जबकि मोदी सरकार ने आदिवासी कल्याण बजट में कटौती कर इसे पीएमकेएसवाई स्कीम में स्थानांतरित कर दिया था। पीएमकेएसवाई के अनुसार, देश के प्रत्येक पंजीकृत किसान को तीन किश्तों में कुल 6,000 रूपये मिलेंगे। इसका नतीजा यह हुआ कि 2019-20 में केंद्र ने आदिवासी किसानों के लिए आरक्षित फंड में से 628 करोड़ रुपयों को पीएमकेएसवाई में डाइवर्ट कर दिया, वहीँ 2020-21 में 1042 करोड़ रूपये और 2021-22 में अभी तक 767 करोड़ रूपये डाइवर्ट किये जा चुके हैं। मध्यप्रदेश में पीएमकेएसवाई के तहत 90 लाख से अधिक किसान पंजीकृत हैं।

सेंटर फॉर बजट एंड गवर्नेंस एकाउंटेबिलिटी (सीबीजीए), नई दिल्ली में रिसर्च लीड, डॉ. नीलाचल आचार्य के बताया कि केंद्र सरकार राज्यों के अनुसूचित जाति/जनजाति या अल्पसंख्यक जैसे विशेष समुदाय की जनसंख्या के आधार पर बजट का आवंटन करती है - जिसे जनसंख्या के अनुपात के मुताबिक आनुपातिक बजट कहा जाता है। 

आचार्य के अनुसार, “यदि 2017-18 में एमपी का आदिवासी कल्याण बजट 4,144 करोड़ रूपये था तो इसे कम करने के बजाय इसे वृद्धिशील बजटीय प्रावधान के तहत बढ़ाना चाहिए था।”

आदिवासी कल्याण निधि के पीएमकेएसवाई में डायवर्जन पर टिप्पणी करते हुए आचार्य ने कहा, “यह राज्यों की भूमिका को दरकिनार कर देने का उत्कृष्ट नमूना है। केंद्र के द्वारा राज्यों को धनराशि का आवंटन किया जाता है, फिर राज्यों के द्वारा इसे लाभार्थियों को वितरित किया जाता है। किंतु अब तो केंद्र सरकार सीधे-सीधे राज्य के मामलों में हस्तक्षेप कर रही है, जो कि देश के संघीय ढाँचे पर हमला है।”

कई बार के प्रयासों के बावजूद, आदिवासी कल्याण मंत्री मीना सिंह, आदिवासी विभाग की प्रमुख सचिव पल्लवी जैन गोविल और आदिवासी विभाग के आयुक्त संजीव सिंह टिप्पणियों के लिए उपलब्ध नहीं हो सके।

भाजपा का आदिवासी तक पहुँच कार्यक्रम और फण्ड की स्थिति 

2018-19 में कांग्रेस के 15 महीनों के कार्यकाल को यदि छोड़ दें तो, भाजपा पिछले 2003 से मध्यप्रदेश की सत्ता पर काबिज है। न सिर्फ मध्यप्रदेश में बल्कि छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी विधानसभा चुनावों में खासतौर पर आदिवासी सीटों पर हुए कांटे की टक्कर में मिली पराजय के बाद भाजपा ने बड़े पैमाने पर आदिवासियों तक पहुँच बनाने के कार्यक्रम को आरंभ किया है। 2018 के चुनावों में, कुल 47 आरक्षित एसटी सीटों में से भाजपा सिर्फ 16 सीटें जीत पाने में सफल रही, जबकि 2013 के विधानसभा चुनावों में इसे यहाँ से 31 सीटें हासिल हुई थीं। मध्यप्रदेश में विधानसभा की कुल 230 सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं, और वर्ष 2008 में, भगवा पार्टी ने यहाँ से 29 सीटें जीती थीं। 

मध्यप्रदेश के 21% से अधिक आदिवासी मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए भाजपा के नेतृत्ववाली केंद्र सरकार ने हाल ही में 15 नवंबर को आदिवासी गौरव दिवस के तौर पर घोषित किया है, और मध्यप्रदेश में आदिवासियों के लिए संग्राहलयों को स्थापित करने और रेलवे स्टेशनों और कालेजों के नाम बदलकर आदिवासी प्रतीकों के नाम पर रखने की घोषणा की है।

केंद्र सरकार के अलावा, मध्यप्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने लंबे समय से लंबित पंचायतों (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 को लागू करने की घोषणा की है, जिसके पश्चात आदिवासियों के बीच में मुख्य पेय के तौर पर विरासत में प्राप्त महुए की शराब का वैधीकरण करने के साथ-साथ आदिवासियों के खिलाफ छोटे-मोटे दर्ज मामलों को वापस लेने का फैसला लिया है। इसके साथ ही सरकार ने सभी 89 आदिवासी ब्लॉकों में पीडीएस राशन की होम डिलीवरी भी शुरू कर दी है।

लेकिन हकीकत में देखें तो पीएम आवास योजना के तहत आदिवासियों के लिए घर बनाने वाले फंड में 2017-18 की तुलना में 2020-21 में 50% तक की कटौती कर दी गई। इसी प्रकार स्वच्छ भारत मिशन( ग्रामीण) के तहत आदिवासी तालुकाओं के लिए फंड को 222 करोड़ रूपये से घटाकर 78 करोड़ रूपये कर दिया गया है। केंद्र सरकार की ओर से बालाघाट के भाजपा सांसद ढाल सिंह बिशेन को 44 पृष्ठ के जवाबी रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि, विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों के विकास के लिए आरक्षित धनराशि, आदिवासी विकास एवं राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 275 (1) के तहत अनुदानों में भारी कटौती कर दी गई है। 

भारत सरकार द्वारा आदिवासियों के लिए प्रमुख योजनाओं की धनराशि में की गई कटौती  

संख्या करोड़ में 

आदिवासी कांग्रेसी विधायक एवं जय आदिवासी युवा शक्ति के संयोजक हीरालाल अलावा के मुताबिक आदिवासी कल्याण बजट में भारी कटौती पूरी तरह से स्पष्ट है क्योंकि आदिवासी इलाकों में स्कूल और स्वास्थ्य केंद्र लगभग निष्क्रिय पड़े हैं। 

अलावा ने बताया, “नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने में आदिवासियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, लेकिन उन्होंने अपने उद्योगपति मित्रों को आदिवासियों की जमीनों को बेच देने के विकल्प को चुना है। जो भूमि संविधान की अनुसूची 5 के तहत आती है उसे न सिर्फ मध्यप्रदेश में बल्कि समूचे देश भर में आदिवासियों से छीनकर या तो वन विभाग, बाघ अभयारण्य को सुपुर्द कर दिया गया है या खनन के लिए आवंटित कर दिया गया है।”

जहाँ तक मध्य प्रदेश का प्रश्न है, जहाँ पर भाजपा 17 वर्षों से भी अधिक समय से सत्ता पर काबिज है, पर उनका कहना था, “केंद्र सरकार द्वारा आदिवासी उप-योजना के लिए दिए गए करीब 100 करोड़ रूपये को 2018-19 में इंदौर मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए डाइवर्ट कर दिया गया था। 15 नवंबर को भोपाल में प्रधानमंत्री मोदी की भव्य रैली के आयोजन के लिए आदिवासी कल्याण के 13 करोड़ रूपये से अधिक की धनराशि का इस्तेमाल कर दिया गया।” उन्होंने बताया कि इसके अलावा, 47 अनुसूचित जनजाति की सीटों में से, आदिवासी मतदाताओं ने 2008 में भाजपा को 29 विधायक दिए थे और 2013 के विधानसभा चुनावों में 31 सीटें दी थीं। इसके बावजदू, भगवा पार्टी आदिवासी तालुकाओं में सड़कें तक नहीं बना सकी और अब लोगों के घर-घर जाकर पीडीएस का राशन पहुंचाने की नौटंकी कर रही है।

राज्य के पूर्व गृह मंत्री बाला बच्चन ने ध्यान आकर्षित किया कि विदिशा मेडिकल कालेज में आदिवासी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित सीटों को सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को दे दिया गया।

फ़ोन पर बच्चन का कहना था, “भाजपा ने सिर्फ आदिवासी समुदाय को धोखा देने का काम किया है। नतीजतन, मध्य प्रदेश में आदिवासियों का पलायन तेजी से बढ़ रहा है।”

नीति आयोग की हालिया रैंकिंग रिपोर्ट में मध्यप्रदेश के अलीराजपुर, झाबुआ और बड़वानी जैसे आदवासी बहुल जिलों को देश के सबसे गरीब जिलों में से एक के तौर पर दर्शाया गया है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Modi Govt cut 22% Tribal Funds of Madhya Pradesh, Diverted to PM Kisan Samman Nidhi Yojana

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