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किसानों के हौसले और एकता के आगे झुकती मोदी सरकार!

जो सरकार पहले किसानों को धमकियां दे रही थी वो अब उनको बातचीत का आमंत्रण दे रही है परन्तु किसानों ने साफ कर दिया कि सरकार अपनी भूल सुधारकर तीनों नए कानून वापस ले तभी कोई रास्ता निकल पाएगा।
किसानों के हौसले और एकता के आगे झुकती मोदी सरकार!

"अब जो मोदी सरकार के खिलाफ संघर्ष शुरू हुआ है वो हम खत्म करके ही जाएंगे। मेरी गुड़िया (बेटी) सिर्फ दो दिन की है, मेरे डैडी और मैं दोनों लोग दो ट्रैक्टर लेकर दिल्ली जा रहे हैं। मेरी वाइफ मन्सा में हॉस्पिटल में एडमिट है और बच्ची बीमार है लेकिन फिर भी हम दिल्ली जा रहे है। जब तक सरकार हमारी मांग नहीं मान लेती तब तक हम वापस नहीं जाएंगे।" पंजाब के पिता-पुत्र किसान ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा। ये किसान पंजाब से हरियाणा के सिरसा, फ़तेहाबाद और हिसार होते टिकरी बॉर्डर पहुँच चुके है।

आप सोचिए कोई पिता अपनी दो दिन की बच्ची को छोड़कर संघर्ष के लिए दिल्ली जा रहा है उसके हौसले में कोई कमी नहीं है, वो हर हाल में तीन नए कानून जिन्हें किसान अपना डेथ वॉरन्ट कह रहे हैं उसकी वापसी के लिए लड़ रहे हैं।

किसान के हौसले से पस्त मोदी सरकार

हरियाणा से आए किसान सुरेंद्र ने साफ कहा कि ये आंदोलन हम अपनी फ़सल और नस्ल बचाने के लिए लड़ रहे है इसलिए पीछे हटने का कोई सवाल ही नहीं है। सरकार रास्ते में गड्ढे, पत्थर, गाड़ियां, वाटर कैनन और आंसू गैस तो छोड़िए अगर वो हमारे रास्ते में चट्टान खड़ी कर दे या नहर खोद दे तब भी हम दिल्ली जाएंगे और इस घमंडी मोदी-शाह की सरकार को झुकाएँगे।

जो सरकार पहले किसानों को धमकियां दे रही थी वो अब उनको दिल्ली बुलाकर आमंत्रण दे रही है परन्तु किसानों ने साफ कर दिया कि बात तभी होगी जब सरकार अपनी भूल सुधारकर तीनों नए कानून वापस ले और फिर हमसे बातचीत करे। बीजेपी सरकारों ने पूरी कोशिश करी कि किसान दिल्ली न पहुंचे परन्तु किसान हर बाधा को पार करते हुए अब दिल्ली के तीन बॉर्डर पर पहुंच गए है। एक तरफ किसान ने जहाँ दिल्ली के सिंघु बॉर्डर को बंद कर दिया है, वहीं उन्होंने टिकरी बॉर्डर को भी घेरा हुआ है जबकि शनिवार को यूपी के किसानों ने गाज़ीपुर बॉर्डर को भी घेर लिया है।

जिसके बाद हठ दिखा रही बीजेपी सरकार बैकफुट पर दिखी। पहले गृह मंत्री अमित शाह ने किसानों को दिल्ली आकर बात करने का न्योता दिया। हालाँकि इसके लिए मंत्री जी ने शर्त रखी की किसान उनकी तय जगह और शर्तों पर प्रदर्शन करे जिसे किसानों ने सिरे से नाकार दिया। जिसके बाद अब सरकार बिना किसी शर्त के मंगलवार को पहले दौर की बातचीत के लिए तैयार हो गई है। किसानों को कृषि मंत्री ने विज्ञान भवन आकर बात करने के लिए निमंत्रण भेजा है। परन्तु किसान साफ तौर पर कह रहे हैं उन्हें इस सरकार पर विश्वास नहीं है, वो हमेशा धोखा देती है।

किसानों में इतना गुस्सा क्यों है?

आपको बता दे अक्टूबर 2020 में केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए कृषि व्यापार और वाणिज्य अधिनियम, किसान मूल्य आश्वासन अधिनियम और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम को बिना किसी चर्चा के जबरन पास करा लिया गया था जिसको लेकर किसान संगठन लगातार विरोध जता रहे थे। हालांकि सरकार का दावा था की ये कानून किसान हितैषी है और इससे उनका भला होगा।

परन्तु न्यूज़क्लिक की टीम ने सैकड़ों किसानों से बात की सभी ने एक स्वर में सरकार के इस दावे को खारिज किया और कहा कि ये कानून किसानों की बर्बादी के कानून हैं इससे किसानों की ज़मीन छिन जाएगी और उनका न्यूनतम समर्थन मूल्य भी समाप्त हो जाएगा।

पंजाब से आये किसान लक्खा सिंह कहते हैं कि अरे भाई आप बताओ अगर ये कानून हमारे फ़ायदे के हैं तो क्या हमारा दिमाग फिर गया है जो हम इस ठंड में अपने घर से दूर सड़कों पर पुलिस की पानी की मार और गोली झेल रहे हैं। अगर सरकार को लगता है की ये बिल फायदे के हैं तो यहां (प्रदर्शन स्थल) पर आये और हमे समझा दे की इस बिल के क्या फायदे हैं।

जब हमने किसानों से एमएसपी को लेकर सवाल किया और वर्तमान के हालात को लेकर सवाल किया तो हरियाणा से आए किसानो के समूह ने कहा अभी जब एमएसपी की गारंटी है फिर भी किसानो को घाटा हो रहा है तो आप सोचिए अगर यह भी छीन लिया गया तो हमारे पास क्या रास्ता होगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि आप बिहार के किसानो को देखिए वहां 2006 में सरकारी मंडी खत्म कर दी गई आज वहां किसान अपना धान 800 से 1000 रुपये बेचने पर मजबूर है जबकि पंजाब और हरियाणा के किसानों को 1400 से 1900 तक का दाम मिल रहा है। हमारे यहां अभी एमएसपी पर खरीद 70% से अधिक है जबकि बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में मात्र 6% है। इसका असर हम वहां के किसानों पर देख सकते हैं वहां का किसान दो वक्त की रोटी के लिए भी मोहताज़ है, इसी कारण वहां से बड़ी संख्या में किसान और उनके बच्चे पलायन करके हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में 6000 से 10000 तक में काम करने के लिए मारे-मारे फिरते हैं, जबकि आज भी संकट के बावजूद हमारे यहां के किसान उनसे बेहतर स्थति में हैं और सरकार अब ऐसा काम कर रही है कि हमें भी किसानी छोड़ पूंजीपतियों की गुलामी करनी पड़ेगी जो हमे कतई मंजूर नहीं है।

नए क़ानून से किसानों को एमएसपी जाने का डर

कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान आने वाले समय में न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था समाप्त होने को लेकर चिंता जता रहे हैं। उन्हें यह आशंका भी है कि इन कानूनों से वे निजी कंपनियों के चंगुल में फंस जाएंगे।

यहां सिंघु बॉर्डर पर एक प्रदर्शनकारी किसान रणवीर सिंह ने कहा, ‘‘मैंने एपीएमसी (कृषि उपज बाजार समिति) मंडी में लगभग 125 क्विंटल खरीफ धान बेचा है और अपने बैंक खाते में एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) का भुगतान प्राप्त किया है। लेकिन क्या गारंटी है कि अगर मंडियों के बाहर इस तरह के व्यापार की अनुमति रही तो यह (एमएसपी की व्यवस्था) जारी रहेगी। यही हमारी चिंता है।’’

पंजाब के तरनतारन जिले के शहबाजपुर गांव के प्रधान 44 वर्षीय रणवीर सिंह उन्हें डर है कि यह एमएसपी व्यवस्था को ध्वस्त कर देगा और अगली पीढ़ी के किसानों को निजी कंपनियों के शोषण के फंदे में डाल देगा।

उन्होंने कहा, ‘‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि हम एमएसपी प्राप्त कर रहे हैं। लेकिन हमें यकीन नहीं है कि हम इसे 4-5 साल बाद भी प्राप्त कर पायेंगे। यह लड़ाई अगली पीढ़ी के किसानों के हितों की रक्षा के लिए है।’’

किसानों के समक्ष मंडियों के बाहर व्यापार करने के लिए नए कानूनों के तहत कई विकल्प दिए गए हैं, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि यह केवल मौजूदा सरकार की एपीएमसी मंडी प्रणाली को कमज़ोर करेगा।

उन्होंने कहा, ‘‘सरकारी स्कूलों और अस्पतालों की तरह, नए कृषि कानून केवल हमारी मंडियों को कमज़ोर करेंगे। हम जानते हैं कि मंडियां खत्म नहीं होंगी, लेकिन अगले कुछ वर्षों में निजी कारोबारियों का प्रवेश, मंडी व्यवस्था को ही खत्म कर देगा।’’

पटियाला के 60 वर्षीय एक अन्य किसान बख्शीश सिंह ने कहा, ‘‘हम केंद्र से केवल एक आश्वासन की मांग कर रहे हैं कि यदि हम मंडी के बाहर अपनी उपज बेचते हैं तो अडानी और अंबानी जैसे उद्योगपतियों की कंपनियां एमएसपी से नीचे खरीद नहीं करेंगी।’’

उन्होंने यह भी कहा कि निजी कंपनियों के प्रवेश ने शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य सेवा तक कई सरकारी क्षेत्रों को कमजोर कर दिया है। निजी अस्पतालों में गरीबों का इलाज मुश्किल है।

विरोध प्रदर्शन में भाग लेने दिल्ली आये अमृतसर जिले के बाथू चक गाँव के एक अन्य किसान बलविंदर सिंह का मानना है कि केंद्र सरकार द्वारा किसानों के साथ जिस तरह से व्यवहार किया जाता है, वह विश्वास नहीं जगाता चाहे सरकार दावा करे कि ये सारे कानून किसान समुदाय के हित में हैं।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, चालू खरीफ सत्र में अब तक सरकार की धान खरीद 18.60 प्रतिशत बढ़कर 316.93 लाख टन हो गई है। जिसमें से अकेले पंजाब ने 202.74 लाख टन का योगदान दिया है जो कुल खरीद का 63.97 प्रतिशत हिस्सा है।

सरकार की वायदा खिलाफी से गुस्से में है किसान

बीजेपी ने अपने चुनाव अभियानों में किसानों से बड़े वादें किए थे, जिसमे उन्होंने फ़सल के दो गुने दाम, स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने और उनकी बेहतरी के कई वादे किये थे। परन्तु आज किसानों का कहना है कि सरकार किसानों के बेहतरी के बजाए उन्हें और गर्त में डालने का काम कर रही है।

उत्तर प्रदेश के किसान अभी अपने जत्थे के साथ दिल्ली के गाज़ीपुर बॉर्डर पर बैठे हुए हैं और उन्होंने भी टिकरी और सिंधु बॉर्डर की तरह अपना डेरा डाल दिया है। उनमें सहारनपुर से आए किसान धर्मेंद्र ने कहा कि चुनावों में सरकार ने हमसे कहा था कि वो गन्ना किसानों का बकाया 7 दिनों में दे देगी लेकिन अभी पिछले साल का बकाया नहीं मिल रहा इसके साथ ही यूपी की बीजेपी सरकार बाकी देश के अन्य राज्यों के मुकाबले दोगुना बिजली का बिल वसूल रही है।

एक सवाल जो किसान संगठन इस विरोध प्रदर्शन में पूछ रहे हैं कि मोदी जी ये बात बताइए की आपसे इन क़ानूनो की मांग किस किसान ने की थी। किसान समन्वय समिति के सदस्य जगमोहन सिंह ने ने साफ तौर पर कहा ये जो तीन कृषि विधेयक हैं वो किसानों के लिए डेथ वॉरन्ट है क्योंकि इससे किसानो को उनकी फसल के दाम तो नहीं मिलेंगे बल्कि उनकी ज़मीन और छीन ली जाएंगी। उन्होंने साफ किया कि इन कानूनों के वापस हुए बिना कोई भी बातचीत संभव नहीं है, आज भी किसानों को मात्र कुछ फसलों के लिए एमएसपी मिलती है जबकि 20 से अधिक ऐसी फसल हैं जिनका समर्थन मूल्य नहीं मिलता है।

टिकरी बॉर्डर पर प्रदर्शन में शामिल सुखविंदर सिंह ने कहा कि किसान दिल्ली की सीमाओं पर अपना प्रदर्शन जारी रखेंगे क्योंकि वे बुराड़ी मैदान नहीं जाना चाहते।

सिंह ने कहा, ‘‘कम से कम छह महीने तक रहने के लिए हमारे पास पर्याप्त राशन है। हम बुराड़ी नहीं जाना चाहते। यदि हम यहां से जाएंगे तो केवल जंतर-मंतर जाएंगे। हम किसी और जगह प्रदर्शन नहीं करेंगे।’’

उन्होंने कहा कि वे केंद्र से बातचीत को तैयार हैं, लेकिन यदि बातचीत से कोई समाधान नहीं निकलता है तो वे दिल्ली की तरफ जा रहे सभी मार्गों को अवरुद्ध कर देंगे।

सिंह ने कहा, ‘‘हम यहां (टिकरी बॉर्डर) से तब तक नहीं जाएंगे जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं हो जातीं। हम ठंड का सामना करने को तैयार हैं, हम आगे किसी भी चुनौती का सामना करने को तैयार हैं।’’

पटियाला जिले से दिल्ली आने वाले 60 वर्षीय जगवीर सिंह ने कहा,‘‘हम यहां शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर रहे हैं। हमें विरोध करने का अधिकार है चाहे अच्छा या बुरा। हम गुंडे नहीं हैं जो कुछ मंत्री हमारे बारे में कह रहे हैं। हम केंद्र सरकार द्वारा कानूनों को निरस्त करने के बाद ही गृहनगर लौटेंगे।”

अधिकतर प्रदर्शनकारी किसान केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए सभी तीन नए कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं। किसानों ने यह भी दावा किया कि वे अपनी इच्छा से विरोध कर रहे हैं न कि कोई राजनीतिक दलों ने उन्हें ऐसा करने के लिये कहा है।

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