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मॉनसून सत्र: असल मुद्दों से भटकाने में सरकार फिर कामयाब!

लोकसभा और राज्यसभा में सवाल कौन करता है? ज़ाहिर है सांसद लेकिन ज्यादातर बाहर निकाल दिए गए हैं। यानी सरकार के पास जनता से जुड़े मुद्दों का जवाब नहीं है।
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देश के 543 लोकसभा क्षेत्रों में रहने वाले 130 करोड़ से ज्यादा हिंदुस्तानी अपना-अपना नेता इसलिए नहीं चुनते कि वो पांच सालों तक बैठकर सिर्फ सत्ता की मलाई खाए, बल्कि इसलिए चुनते हैं, ताकि वो सदन में जाए और सरकार के सामने अपने क्षेत्र की परेशानियों के बारे में बात करे, उसका हल निकाले।

शायद यही कारण है कि इस देश ने इस सदन(लोकसभा और राज्यसभा) को लोकतंत्र के मंदिर की भी संज्ञा दी है, क्योंकि यहां जनता-जनार्दन के सुख-दुख की बात होती है। लेकिन दुर्भाग्य है कि लोकतंत्र भूलकर तानाशाही के नशे में मग्न सरकार जनता के वोटों के मूल्य को धूल के बराबर समझ रही है, और उन्हें बेवजह के हंगामे से गुमनामी के किसी रेगिस्तान में दफन करती चली जा रही है।

देश की मौजूदा सरकार अच्छे से जानती है  कि उसकी नीतियों के कारण देश की जो हालत हुई है, उसका जवाब दे पाना सदन में इतना आसान नहीं होगा। फिर चाहे महंगाई का मुद्दा हो, बेरोज़गारी हो, अग्निपथ स्कीम के ज़रिए देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो, स्वास्थ्य व्यवस्थाओं का लगातार बिखरता ढांचा हो, देश में बढ़ रही भुखमरी हो, देश की गिरती अर्थव्यवस्था हो, डॉलर के सामने टूटता रुपया हो या और भी बहुत सी वजह।  जवाब से बचने का सबसे बढ़िया ज़रिया यही है कि सांसदों को निलंबित कर दिया जाए।

आपको बता दें कि सदन शुरु हुए 8 दिन से ज्यादा हो चुके हैं और इतने ही दिनों में दोनों सदनों के 27 सांसदों को निलंबित किया जा चुका है। जिसमें चार लोकसभा सांसद पहले ही निलंबित कर दिए गए थे, और बाद में बाद में थोड़े-थोड़े कर 23 सांसद राज्यसभा से भी निलंबित कर दिए गए।

हालांकि सभी निलंबित सासंद संसद परिसर में ही बनी गांधी प्रतिमा के पास डटे हुए हैं और रात भी वहीं गुज़ारते हैं, ताकि उनका दिन-रात वाला विरोध दर्ज किया जा सके।

आपको बता दें कि सदन शुरु होने के बाद राज्यसभा में जब विपक्षी सांसद महंगाई को लेकर चर्चा की मांग करते हुए नारेबाज़ी कर रहे थे, तब तब उप सभापति हरिवंश ने सभी पर कार्रवाई की चेतावनी दी थी। लेकिन सांसदों के नहीं मानने पर उप सभापति ने टीएमसी के सात, डीएमके के छह, टीआरएस के तीन, सीपीएम के दो और सीपीआई के एक सांसद समेत 19 सांसदों को एक सप्ताह के लिए निलंबित कर दिया था। बाद में और चार सांसद निलंबित किए गए।

इससे पहले लोकसभा के चार विपक्षी सांसदों को पूरे मानसून सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया था। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि सर्वदलीय बैठक में मिलजुल कर संसद का कामकाज चलने देने पर सहमति बनी थी, लेकिन विपक्ष ही हंगामा कर चर्चा से बचा रहा है।

जबकि महंगाई पर चर्चा को लेकर पीयूष गोयल ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के कोरोना होना का हवाला दिया था।

आपको बता दें कि मॉनसून के इस सत्र में लोकसभा और राज्यसभा के भीतर हल्ला होने का कारण बेहद राजनीतिक भी है। दरअसल सत्र शुरु होने से पहले ही केंद्र सरकार की ओर से एक एडवाइजरी जारी की गई थी कि सदन में कोई धरना प्रदर्शन, नारेबाज़ी या तख्तियां लेकर हंगामा नहीं होगा। साथ ही सरकार की ओर से दिशा-निर्देश की एक पुस्तिका भी जारी की गई थी जिसमें कुछ असंसदीय शब्दों को शामिल किया गया था। इसमें भ्रष्टाचार, तानाशाही, जुमलेबाज़ जैसे शब्द शामिल थे। हालांकि अपनी सरकार रहते हुए कांग्रेस भी ऐसे शब्दों पर रोक लगा चुकी है लेकिन अनुरोध के तौर पर जबकि मोदी सरकार ने इसपर कड़ा रुख अख्तियार किया है। यही कारण है कि विपक्ष ख़ुद को किसी भी तरह से कमज़ोर दिखाना नहीं चाहता है। और दूसरी चीज़ ये कि भाजपा के पिछले आठ सालों के काम को देखें तो विपक्ष ने झूठ बोलने का आरोप लगाते हुए जुमलेबाज़ और भ्रष्टाचारी जैसे शब्दों से घेरा है। जिसे सरकार असंसदीय घोषित कर दिया।

यानी कुल मिलाकर जहां सरकार अपनी शक्तियों का इस्तेमाल कर विपक्षियों के हाथ-पैर के साथ मुंह को भी बांधने का प्लान बना रही है, तो विपक्ष है कि उन्हीं बंधे हुए हाथ पैरों को खोलने और दबे हुए मुंह से बोलने के लिए छटपटा रहा है ताकि सरकार के भीतर उसकी छवि कमज़ोर न पड़े। यही बात शायद सरकार को पसंद नहीं आ रही है।

ये कहना ग़लत नहीं होगा कि इस मॉनसून सत्र में विपक्ष ने जिस तरह से हो हल्ला किया है, सरकार बैकफुट पर ज़रूर दिखी है। क्योंकि जनता के मुद्दों को लेकर एक भी दिन चर्चा नहीं हुई। यही कारण है कि जब कांग्रेस के नेता और नेता प्रतिपक्ष अधीर रंजन चौधरी के मुंह से राष्ट्रपति के लिए तथाकथित ग़लत शब्द निकले, तो भाजपा ने इस मौके को गंवाया नहीं और कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी से बिना किसी शर्त माफी मांगने की मांग कर दी।

अधीर रंजन चौधरी के इस बयान पर पूरी भाजपा एकमुश्त हो गई और संसद से सड़क तक माफी मांगवाने के लिए सोनिया गांधी को चेतावनी देने लगी। इसमें हैरान करने वाली बात ये कि जो निर्मला सीतारमण महंगाई पर चर्चा करने के लिए बीमार थीं, वो सोनिया गांधी के ख़िलाफ नारेबाज़ी करने के वक्त सदन में पहुंच गई। जिसका मतलब साफ है कि सरकार जवाब देने से बच रही है।

इन सब के अलावा संसद के दो दिन तो सोनिया गांधी से ईडी में पूछताछ के कारण चले गए। एक ओर ईडी, नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया गांधी से पूछताछ कर रही थी, तो दूसरी तरफ राहुल गांधी समेत कांग्रेस के सभी दिग्गज सड़कों पर डटे हुए थे। विजय चौक घेर लिया गया, संसद तक मार्च करने की कोशिश की गई और लोकसभा-राज्यसभा में कांग्रेस सांसदों ने बदले की राजनीतिक जैसे नारे लगाए।

अगर इस मानसून सत्र में हो रहे निलंबन और स्थगन की कार्यवाही को व्यापक रूप में देखें तो यह दिखता है कि भाजपा ने ऐसा तानाशाही रवैया अपनाया है संसदीय कार्यवाही अपना अर्थ खोते जा रही है। सरकार जो बिल पारित कराना चाहती है वो करा रही है, क्योंकि चर्चा का अभी तक माहौल बनने ही नहीं दिया गया है। जब बिल पारित कराने से पहले चर्चा ही न हो तो संसद के सत्र का अर्थ क्या रह जाता है। आपको बता दें कि इस मॉनसून सत्र में कुल 32 बिल पेश किए जाने हैं, जिसमें कुछ सरकार पास करा चुकी है और बचे हुए करा लेगी, जबकि विपक्ष सिर्फ चिल्लाता रह जाएगा।

हालांकि संसद को सुचारू और शांति से चलाने के लिए बकायदा बिजनेस एडवाइज़री कमेटी है, जो हर सोमवार बैठक करती है। ताकि पक्ष और विपक्ष आपस में तय कर सकें कि इन-इन मुद्दों पर शांति से चर्चा होगी, इसके बावजूद अगर चर्चा नहीं हो पार रही है, तो दोष किसका होगा? अकूत बहुमत लेकर बैठी भाजपा का या विपक्ष के जायज विरोध का?

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