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जोशीमठ: “ठोस क़दम नहीं उठाए तो तेज़ होगा आंदोलन”, 20 दिन बाद फिर मशाल लिए सड़कों पर आए लोग!

उत्तराखंड के जोशीमठ में एक बार फिर मशाल जुलूस के साथ आंदोलन शुरू हो गया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के आश्वासन पर 20 अप्रैल को 20 दिन के लिए ये आंदोलन स्थगित कर दिया गया था।
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दरकते पहाड़, चौड़ी होती दरारें, भू-धसाव, विस्थापित होते लोग, पुनर्स्थापन के बीच बच्चों के एग्ज़ाम, शादी-ब्याह, किसी नए का दुनिया में आना और किसी बुजुर्ग का दुनिया से रुखसत हो जाना। दिल्ली से दूर उत्तराखंड के जोशीमठ में रहने वाले उन लोगों की ज़िंदगी कैसी चल रही है क्या इसकी परवाह सरकार को है?

जनवरी में उत्तराखंड के जोशीमठ में आपदा की चिंता ने देश-विदेश का ध्यान खींचा, कुछ दिन तक बात सुर्खियों में रही, लेकिन वक़्त के साथ अखबार में लिखी हेडलाइन रद्दी के भाव चली गई। पर जोशीमठ में आपदा के अंदेशे से परेशान वे लोग जो सालों से सरकार और जनता का ध्यान इस तरफ खींचने की कोशिश कर रहे थे, कभी भी चुप नहीं बैठे। एक बार फिर वे लोग हाथों में मशाल लिए सड़क पर उतर आए।

बीती शाम (11 मई) उत्तराखंड के जोशीमठ में 'जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति' के बैनर तले क़रीब साढ़े तीन सौ लोग मशाल जुलूस में शामिल हुए। जबरदस्त नारों के बीच एक बार फिर आंदोलन को शुरू करने का ऐलान कर दिया गया।

इससे पहले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के आश्वासन पर 20 अप्रैल को इस आंदोलन को 20 दिन के लिए स्थगित कर दिया गया था। 'जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति' ने अप्रैल में 11 सूत्री मांगों का ज्ञापन सरकार को सौंपा था, सरकार से मिले आश्वासन के बाद सौ दिन से ज़्यादा चले आंदोलन को 20 अप्रैल को स्थगित कर दिया गया था। हालांकि उसी वक़्त समिति ने कहा था कि अगर उनकी मांगे नहीं मानी गईं तो 11 मई को फिर से आंदोलन शुरू कर दिया जाएगा।

क्या हैं 11 सूत्री मांगे?

1. संपूर्ण जोशीमठ को आपदा प्रभावित घोषित करते हुए प्रभावित वर्गों को हुए नुकसान की भरपाई की जाए। यथा कृषकों, दूध व्यवसायियों, दैनिक मज़दूरों, पर्यटन पर निर्भर लोगों, व्यवसायियों को हुए नुकसान का उचित मुआवज़ा प्रदान किया जाए।

2. जोशीमठ में विस्थापन एवं पुनर्वास हेतु एक स्थाई कार्यालय जल्द शुरू किया जाए।

3. सरकार द्वारा अभी दिए जा रहे भवनों के मुआवज़े की प्रक्रिया को आसान बनाया जाए।

4. स्थानीय निवासियों की सेना में गई भूमि का भुगतान किया जाए, जिससे लोगों को आर्थिक सहायता हो सके।

5. जोशीमठ की आपदा के संदर्भ में देश की शीर्ष आठ संस्थाओं ने सर्वेक्षण/अध्ययन किया है, उनके अध्ययन की रिपोर्ट को शीघ्र सार्वजनिक किया जाए जिससे लोगों में व्याप्त तमाम आशंकाओं का समाधान हो सके।

6. सरकार द्वारा घोषित मुआवज़ा नीति में होम-स्टे को व्यावसायिक श्रेणी से हटाया जाए।

7. जोशीमठ के स्थायीकरण एवं नव निर्माण के कार्यों की मॉनिटरिंग के लिए कमेटी बने, जोशीमठ बचाओ संघर्ष समीति को इस कमेटी में शामिल किया जाए।

8. जोशीमठ में बहुत-सी बेनामी भूमि पर लोग काबिज़ हैं जिससे इस आपदा काल में लोगों के सामने भूमिहीन होने का संकट खड़ा हो गया है। अत: स्थानीय स्तर पर भू-बंदोबस्ती कर लोगों के खातों में भूमि दर्ज की जाए।

9. बेघर हुए प्रभावितों के स्थाई विस्थापन पुनर्वास की उचित व्यवस्था न होने तक कम से कम साल भर तक वैकल्पिक व्यवस्था की जाए।

10. तपोवन विष्णुगढ़ जल विद्युत परियोजना की निर्मात्री NTPC कंपनी के साथ हुए 2010 के समझौते को लागू किया जाए।

11. तपोवन विष्णुगढ़ परियोजना एवं हेलंग मारवाड़ी बाईपास पर स्थाई रोक लगे।

इस बीच जोशीमठ के कई इलाकों की दरार चौड़ी होने की ख़बर मिली, साथ ही कई मीडिया रिपोर्ट में उन जगहों पर भी दरारें दिखाई दीं जिन्हें 'सेफ ज़ोन' बताया जा रहा था। 'जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति' के संयोजक लगातार अपने सोशल मीडिया अकाउंट से नई दरारों के बारे में बताते रहे, दिखाते रहे। यात्रा और टूरिस्ट सीजन के बीच जोशीमठ कितना सुरक्षित है ये एक बड़ा सवाल है।

किन हालात में आंदोलन दोबारा शुरू किया गया इसपर हमने 'जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति' के संयोजक अतुल सती से फोन पर बात की।

सवाल: आपको फिर से आंदोलन क्यों शुरू करना पड़ा?

जवाब: लिखित में आश्वासन मिलने पर हमने आंदोलन स्थगित कर दिया था लेकिन ये कह कर किया था कि अगर 20 दिन में कोई ठोस, ज़मीनी कार्रवाई नहीं होती तो हम अपना आंदोलन फिर से शुरू करेंगे। 20 दिन में 11 मांगों में से किसी एक बिंदु पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। यहां तक की मुख्यमंत्री ने DM को आदेश दिया था कि एक कमेटी बनाएं जिसमें 'जोशीमठ संघर्ष समिति' के लोगों को भी शामिल करें और वो कमेटी सरकार के पास प्रस्ताव भेजे। कमेटी बनाना तो दूर DM साहब फोन उठाने को तैयार नहीं हैं, बात करने को तैयार नहीं हैं। कोई भी कार्रवाई नहीं होने के जवाब में हमने मशाल जुलूस निकाला और ये चेतावनी दी है कि अगर हफ़्तेभर में कुछ नहीं हुआ तो हम फिर से अपने आंदोलन को तेज़ करेंगे, मशाल जुलूस निकालेंगे"

साभार: अतुल सती के फेसबुक पेज से 

सवाल: मीडिया रिपोर्ट्स में नई दरारों का ज़िक्र किया जा रहा है, पिछले 20 दिनों में जोशीमठ के हालात कैसे रहे?

जवाब: नए घरों में लगातार दरारें आ रही हैं, उन जगहों पर दरारें आ रही हैं जहां पहले नहीं थीं। जो सड़क धंस गई थी, जिसकी मरम्मत कर दी गई थी वो फिर से धंसने लगी है, जगह-जगह दरक रही है। अभी बद्रीनाथ रोड पर तीन दिन पहले दरार थी मैंने ट्वीट किया तो आज वहां दीवार बना रहे हैं लेकिन वो दीवार टिकने वाली नहीं है क्योंकि ज़मीन के नीचे कैविटी बन गई है, वो लगातार धंस रहा है उसका कोई इलाज नहीं है। बरसात का मौसम सामने है इस बीच बेमौसम बरसात भी हुई इन सब के दौरान सरकार को जो करना चाहिए था वो नहीं किया।

अतुल सती बताते हैं कि यहां एक लंबी सरकारी प्रक्रिया के तहत काम होना है लेकिन जिस रफ़्तार से काम हो रहा है वो चिंताजनक है। वे कहते हैं कि "बजट का आवंटन, टेंडर पास होना और उसके बाद काम शुरू होना एक लंबी प्रक्रिया है, ऐसा न हो कि जब तक काम शुरू हो तब तक जोशीमठ नीचे धंस जाए, सरकार का काम बहुत ही धीमी रफ़्तार से हो रहा है आज रैपिड एक्शन फोर्स वालों को भेजा गया है वे जांच कर रहे हैं ये सब देखकर ऐसा लगता है कि जो होना चाहिए वो नहीं हो रहा है और जो हो रहा है उसकी अभी ज़रूरत नहीं है।"

सवाल: यात्रा चल रही है, आगे टूरिस्ट सीज़न है, आपको लगता है कि प्रशासन वाकई किसी बड़ी लापरवाही की तरफ बढ़ रहा है?

जवाब: लापरवाही तो एक छोटा शब्द है, देश के प्रमुख आठ संस्थानों ने जोशीमठ के बारे में अध्ययन किया और 10 फरवरी को रिपोर्ट NDMA (National Disaster Management Authority) के पास चली गई। सरकार के पास वो रिपोर्ट है लेकिन उसे जारी नहीं किया जा रहा है, हमें और यात्रा पर आने वाले लोगों को नहीं बताया जा रहा है कि जोशीमठ सुरक्षित है कि नहीं, इस वक़्त यात्रा करना सुरक्षित है कि नहीं। बरसात आने पर, भूकंप आने पर जोशीमठ की क्या स्थिति होगी ये किसी को नहीं पता लेकिन सरकार को पता है, पर वो किसी को नहीं बता रही, पब्लिक डॉक्यूमेंट को जनता को बताया जाना चाहिए लेकिन अंधेरे में रखा जा रहा है तो इसे लापरवाही नहीं साज़िश कह सकते हैं।

आपदा से बचने के लिए एक लंबा संघर्ष, आंदोलन चल रहा है, लेकिन अगर कोई त्रासदी आती है तो क्या तस्वीर होगी ये कोई नहीं जानता। अध्ययन के बाद एक रिपोर्ट सरकार के पास है लेकिन उस रिपोर्ट को कब जारी किया जाएगा, किस बात का इंतज़ार किया जा रहा है ये एक बड़ा सवाल है।

चौड़ी होती दरार की दहशत ने लोगों को अपने पुश्तैनी घरों को छोड़कर अपने ही शहर, गांव में विस्थापित बना दिया, इन लोगों को वो जगह कब नसीब होगी जिसे ये एक बार फिर से अपने घर के नाम से पुकार सकेंगे, इसका जवाब सिर्फ़ सरकार दे सकती है। इस संभावित आपदा का मानवीय पक्ष बेहद उदासी भरा है। और इसी से जुड़ा सवाल हमने अतुल सती से किया :

सवाल: लोगों की जिंदगी कैसी चल रही है? इस संभावित आपदा के मानवीय पक्ष को आप कैसे देख रहे हैं?

जवाब: सारी लड़ाई ही मानवीय पहलू को लेकर है, हमारा सारा संघर्ष ही उसी के लिए है जिसे हम मानवीय त्रासदी कहते हैं। अभी बच्चों के हाई स्कूल, इंटर के एग्ज़ाम हो रहे थे, वे होटल के कमरों में रह रहे थे। एक-एक कमरे में पांच-पांच लोग रह रहे थे, लाइट नहीं है, मौसम इतना ख़राब था, होटल के कमरों में ख़ास व्यवस्था नहीं थी ऐसे में कैसे बच्चों ने पढ़ाई की होगी? लोगों की शादियां कैंसल हो रही है। यहां एक होटल वाले के बेटी की शादी थी, इन हालात की वजह से शादी को कैंसल करना पड़ा, बहुत सारी घटनाएं हैं, यहां त्रासदी कई तरह की, कई स्तर की है और हर एक आदमी के साथ अलग-अलग तरह की है।

घर इंसान को सबसे महफूज़ जगह का एहसास कराता है लेकिन जोशीमठ में जिन घरों में दरार दिख रही हैं वे उनके घरों से होते हुए दिलों से गुज़र रही हैं। विस्थापित हुए लोगों के सामने ज़िंदगी शून्य से शुरू करने की स्थिति बन गई है। ऐसे में सरकार आश्वासन देकर भी अगर ध्यान ने दे तो उनके पास क्या रास्ता बचता है? ऐसे में हमने अतुल सती से पूछा कि आगे की रणनीति क्या होगी?....इसपर उनका जवाब था, “आगे जैसे-जैसे सरकार के एक्शन होंगे, वैसे हमारे रिएक्शन होंगे। अगर सरकार ने ठोस क़दम नहीं उठाया तो आंदोलन और तेज़ होगा, हमारे पास क्या चारा है? हम संघर्ष कर सकते हैं, आंदोलन कर सकते हैं और वही करेंगे।”

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