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नज़रिया : एनआरसी को अरब सागर में फेंक देना चाहिए

एनआरसी देश के लिए पूरी तरह से विभाजनकारी और विघटनकारी है। एनआरसी का सिर्फ़ और सिर्फ़ एक मक़सद हैः भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का रास्ता साफ़ करना...। अजय सिंह का कॉलम 'फ़ुटपाथ'।
NRC

एनआरसी को अरब सागर में फेंक देना चाहिए। इसकी रत्ती भर ज़रूरत नहीं। एनआरसी, यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीज़ंस (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर)। 'एनआरसी आतंकवाद' की चपेट में असम-समेत पूरा देश आने वाला है। (असम में एनआरसी की प्रक्रिया नये सिरे से फिर शुरू होगी।)

एनआरसी देश के लिए पूरी तरह से विभाजनकारी और विघटनकारी है। यह ज़बर्दस्त राजनीतिक अशांति और उथल-पुथल पैदा करेगा, सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर देगा, और कई करोड़ नागरिकों के लिए अपार मुसीबतें व तबाही लायेगा। जैसाकि हम असम में देख चुके हैं। एनआरसी हिंसा और प्रतिहिंसा की संस्कृति को बढ़ावा देगा, जिससे देश में गृहयुद्ध-जैसी स्थिति पैदा हो सकती है।

एनआरसी का सिर्फ़ और सिर्फ़ एक मक़सद हैः भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का रास्ता साफ़ करना। यह हिंदुत्व फ़ासीवादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसकी संचालक शक्ति राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) का राजनीतिक एजेंडा है। इस एजेंडा को अमली जामा पहनाने के लिए केंद्र की भाजपा सरकार और उसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व केंद्रीय गृह मंत्री मंत्री अमित शाह पूरी ताक़त से लगे हैं।

देश की क़रीब 20 करोड़ मुस्लिम आबादी एनआरसी का एकमात्र निशाना है। मुसलमान हमारे देश का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है। उसे चारों तरफ़ से घेर लेने के लिए एनआरसी को समूचे देश में लागू करने की तैयारी चल रही है।

केंद्रीय गृहमंत्री और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने 2 दिसंबर 2019 को झारखंड में चुनावी रैलियों को संबोधित करते हुए घोषणा की कि आगामी आम चुनाव -2024 के पहले तक एनआरसी को समूचे देश में पूरा कर लिया जायेगा। उन्होंने कहा कि ‘अगले आम चुनाव के पहले तक एक-एक घुसपैठिए को निकाल बाहर किया जायेगा।’

अमित शाह ने अखिल-भारतीय स्तर पर एनआरसी को लागू करने की डेडलाइन तय कर दी है। उनकी निगाह में ‘घुसपैठिया’ कौन है, इसे समझ पाना मुश्किल नहीं। वह मुसलमान है। 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान वह ‘घुसपैठियों’ को बार-बार ‘दीमक’ कह चुके हैं।
एनआरसी को पूरे देश में लागू किया जायेगा, इस बात से भारत की मुस्लिम बस्तियों और घरों में गहरी घबराहट और ख़ौफ़ फैल गया है। कौन-से काग़ज़ या दस्तावेज़ जुटायें, जिनसे हम साबित कर सकें कि हम भारत के नागरिक हैं—यह चिंता मुसलमानों को खाये जा रही है। और जिनके पास कोई काग़ज़ नहीं हैं, उनका क्या होगा?

पिछले महीने कर्नाटक की राजधानी बंगलोर में पुलिस ने 59 तथाकथित बंगलादेशी मुसलमानों को गिरफ़्तार किया, जिनके पास अपने निवास के सबूत के तौर पर कोई काग़ज़ नहीं था, और उन्हें लेकर वह हावड़ा (बंगाल) गयी, जहां से उन्हें बाहर (बंगलादेश) भेजा जायेगा। यही हश्र अन्य मुसलमानों का नहीं होगा, इसकी क्या गारंटी! इस वजह से दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र व अन्य जगहों के मुसलमान गहरी चिंता में हैं।

एनआरसी की बुनियाद ही यही है कि मुसलमान ‘दूसरा’ (अदर) या ‘बाहरी’ (आउटसाइडर) है और हिंदू ‘हम’ (वी) या ‘अंदर का’ (इनसाइडर) है। यह धारणा समाज के एक हिस्से को दूसरे हिस्से से ख़िलाफ़ खड़ा कर देती है।

एनआरसी इस तथ्य को जानबूझकर अनदेखा करता है कि लोगों की आवाजाही और आदान-प्रदान से समाज बनते व आकार ग्रहण करते हैं। हमारे देश में बड़े पैमाने पर लोग एक जगह से दूसरी जगह गये हैं और बस गये हैं। एनआरसी इनमें से सिर्फ़ मुसलमानों को चिह्नित कर उन्हें निष्कासित करना चाहता है।

एनआरसी को दफ़न कर देना चाहिए। इसने लोगों में गहरी चिंता और डर पैदा कर दिया है।

(लेखक वरिष्ठ कवि और पत्रकार हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।)

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