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नागरिक सत्याग्रह: पदयात्रियों को फिर किया गया गिरफ्तार, फतेहपुर छोड़ने का दबाव

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में पुलिस ने आठ सत्याग्रहियों को शुक्रवार 6 मार्च को गिरफ्तार कर फिर जेल भेज दिया है।
Nagrik Sattyagrah

गोरखपुर के चौरीचौरा से दिल्ली के राजघाट तक महात्मा गांधी का शांति संदेश लेकर निकली नागरिक सत्याग्रह पदयात्रा की टीम एक बार फिर उत्तर प्रदेश पुलिस के निशाने पर है। पुलिस ने आठ सत्याग्रहियों को शुक्रवार 6 मार्च फतेहपुर से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। जहां पुलिस प्रशासन लगातार इन सत्याग्रहियों पर फतेहपुर छोड़ने का दवाब बना रहा है, वहीं सत्याग्रही अपनी यात्रा अपने पूर्व निर्धारित रूट से जारी रखने पर डटे हुए हैं।

बीएचयू के छात्र और पदयात्री राज अभिषेक ने न्यूज़क्लिक को बताया, 'हम लोगों के फतेहपुर पहुंचने के साथ ही पुलिस लगातार इसे छोड़ने का दबाव बना रही थी। 5 मार्च की रात को हमारी घेराबंदी कर हमें हिरासत में ले लिया गया, इसके 24 घंटे बाद 8 सत्याग्रहियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। प्रशासन निजी मुचलके और शर्तोंं पर छोड़ने की बात कर रहा है लेकिन हम बिना शर्त रिहाई के लिए अडिग हैं।'

इससे पहले गिरफ्तार हुए सत्याग्रही प्रियेश पांडे ने कहा, ‘हम फतेहपुर के आंबेडकर पार्क में सर्वधर्म प्रार्थना सभा करना चाहते थे लेकिन पुलिस हमें इसकी इज़ाजत नहीं दे रही। हमें लगातार धारा 144 और कानून व्यवस्था का हवाला दिया जा रहा है लेकिन हम गांधी के देश में अमन और शांति का संदेश लेकर निकले हैं। भला हम लोगों से शांति कैसे भंग हो रही है। हमने अपनी यात्रा की सूचना पहले से प्रशासन को दे रखी है, इसके बावजूद हमें रोका जा रहा है। आखिर कुछ लोगों के शांतिपूर्ण चलने से क्या समस्या है, ऐसे तो पुलिस कहीं भी किसी को बिना किसी कारण गिरफ्तार करके जेल भेज देगी।'

इस संबंध में कोतवाली पुलिस ने मीडिया को बताया कि नागरिक सत्याग्रह पदयात्रा में शामिल आठ लोगों को धारा 144 के उल्लंघन के आरोप में नउवाबाग हाईवे से गिरफ्तार किया गया है। पुलिस ने इन सभी को सीआरपीसी के तहत चालान कर कोर्ट में पेश कर दिया है।

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अभी तक क्या-क्या हुआ

- 2 फरवरी 2020 को नागरिक सत्याग्रह पदयात्रा की शुरुआत चौरी-चौरा के शहीद स्मारक से हुई थी। यात्रा का प्रथम चरण 16 फरवरी 2020 को बनारस में सम्पन्न होना तय था।

- 11 फरवरी को लगभग 200 किमी की यात्रा करके सत्याग्रही गाजीपुर पहुंचे, यहां पुलिस ने कानून व्यवस्था का हवाला देते हुए 10 सत्याग्रहियोंं को गिरफ्तार कर लिया।

-12 फरवरी को इनकी ज़मानत के लिए एसडीएम ने अजीबो-गरीब शर्तें रखीं। इसके बाद 13 फरवरी से इन सत्याग्रहियों ने जेल में भूख हड़ताल शुरू कर दी, जेल से भारतवासियों के नाम खत लिखा।

-15 फरवरी को इन लोगों के समर्थन में उपवास पर बैठे लोगों को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था।

-16 फरवरी की शाम पुलिस ने सत्याग्रहियों को जेल से ज़मानत पर रिहा कर दिया।

-17 फरवरी की सुबह सत्याग्रहियों ने फिर से यात्रा शुरू की। पुलिस ने इनके समूह के 5-6 लोगों को हिरासत में ले लिया और कानून व्यवस्था का हवाला देते हुए इन्हें गाजीपुर जिले से बाहर बनारस ले जाने लगी।

- 20 फरवरी को 20 दिनों की 287 किमी की पदयात्रा के बाद सत्याग्रहियों का पहला चरण बनारस में समाप्त हुआ।

-24 फरवरी को इस यात्रा के दूसरे चरण बनारस से कानपुर की शुरुआत हुई।

-5 मार्च को इन सत्याग्रहियों को पुलिस ने फतेहपुर से दोबारा गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है।

लगातार बन रहा था दबाव

सत्याग्रही विकास सिंह के अनुसार, ‘नागरिक सत्याग्रह पदयात्रियों पर पुलिस लगातार दवाब बना रही थी, हमारी जगह-जगह घेराबंदी की जा रही थी। हम गांधी-आंबेडकर के देश में शांतिपूर्वक अमन, सौहार्द और भाईचारे का संदेश लेकर देश के लोगों के बीच जा रहे हैं। 70-80 सालों में जो संदेश मानवता को लेकर थे, वह आज के प्रशासन की नजर में अशांति व माहौल बिगाड़ने वाले बन गए हैं। देश वाकई बदल रहा है। हम आज अपने देश में अमन, शांति की बात भी नहीं कर सकते हैं, नेता खुलेआम दंगा और हिंसा की भाषा बोल रहे हैं, उन्हें सिक्योरिटी दी जा रही है और हमें जेल भेजा जा रहा है।'

यात्रा में शामिल कई कार्यकर्ताओं ने बताया कि ये यात्रा छात्रों, सामाजिक कार्यकर्ताओं की साझी कोशिश से शुरू हुई है। इसका मकसद समाज मे बढ़ रही असहिष्णुता, हिंसा, घृणा और कट्टरता के ख़िलाफ़ भाईचारा, प्रेम, सद्भाव और सहिष्णुता की अपील है। भला इससे किसी प्रदेश की शांति को क्या ही खतरा है।

गौरतलब है कि सत्याग्रही अपनी पदयात्रा के दौरान हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में लोगों के बीच संवाद कर रहे हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी जैसी बुनियादी सुविधाओं पर सवाल उठा रहे हैं। इनकी गिरफ्तारी के पीछे प्रशासन का तर्क है कि इस यात्रा से राज्य की शांति व्यवस्था भंग हो रही है। लेकिन सत्याग्रहियों का योगी सरकार और प्रशासन पर सीधा आरोप है कि प्रदेश में बार-बार धारा 144 का अन्यायपूर्ण इस्तेमाल कर शांतिपूर्ण लोगों को जेल में डाला जा रहा है। सवाल है कि आखिर 10 शांतिपूर्ण लोगों से समाज को ऐसा क्या खतरा है? गांधी का शांति का संदेश आखिर पुलिस क्यों रोकना चाहती है?

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