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सावधान!, आईटी-बीपीओ के लिए नैसकॉम के 10 ख़तरनाक प्रस्ताव

इनपर बात करना दो कारणों से प्रासंगिक है-एक, हमें इन्हें मोदी सरकार द्वारा तीन श्रम-विरोधी कोड पारित करने के संदर्भ में देखना चाहिये। अब नैसकॉम इन श्रम कोड्स, जिनमें कुछ बचे-खुचे श्रम-अधिकार रह गए हैं, से भी एक क़दम आगे जाना चाहता है!
आईटी-बीपीओ के लिए नैसकॉम के 10 ख़तरनाक प्रस्ताव
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : गूगल

जब कोरोना और लॉकडाउन की स्थिति में ‘वर्क फ्रॉम होम’ काम का एकमात्र विकल्प या मजबूरी बन गया,  नैसकॉम (NASSCOM) ने, जो कि भारतीय आईटी-बीपीओ उद्योग का चेंबर ऑफ कामर्स है, मई 2020 में सरकार को लेबर कानूनों में परिवर्तन हेतु 10 प्रस्तावों का एक सेट भेजा। इन प्रस्तावों पर कम ही चर्चा हुई, पर जैसा कि हम देखेंगे, ये कर्मचारियों के हितों के खिलाफ हैं। ये प्रस्ताव वर्क फ्रॉम होम (work from home) को सुगम बनाने के नाम पर लाए गए। नैसकॉम क्योंकि उद्योगों का संगठन है, वह कम्पनियों की ही वकालत करेगा। पर भारतीय ज्ञान उद्योग (knowledge industry) के प्रमुख व्यापारिक संगठन के ऐसे निरर्थक प्रस्तावों ने कइयों को चौंका दिया, क्योंकि लगता है नैसकॉम भारतीय श्रम कानूनों और श्रम विधिशास्त्र से पूर्णतया अनभिज्ञ है।

10 में से 6 प्रस्ताव राज्यों के दुकानें और प्रतिष्ठान अधिनियम यानी Shops and Commercial Establishments Act से आईटी क्षेत्र को मुक्त कराने की मांग करते हैं। 4 प्रस्ताव ऐसे हैं जो औद्योगिक रोज़गार स्टैंडिंग ऑर्डर्स अध्यादेश (Industrial Employment (standing orders) Act), 1946, मातृत्व लाभ अधिनियम (maternity benefit act),1961 और ईपीएफ (EPF), ईएसआई (ESI) व पेंशन जैसे सामाजिक सुरक्षा लाभ से जुड़े हैं, जिनसे भी मुक्ति चाहते हैं। भारत में आईटी उद्योग फैक्टरीज़ ऐक्ट (Factories Act) के अंतर्गत नहीं आते, बल्कि वे शॉप्स ऐण्ड कमर्शियल एस्टैब्लिशमेंट्स ऐक्ट (SCEA) के अंतर्गत आते हैं। प्रत्येक राज्य ने अपने SCEA अध्यादेश पारित किये हैं और अलग-अलग राज्यों की आईटी इकाइयां संबंधित राज्य के SCEA द्वारा नियंत्रित होती हैं। नैसकॉम का प्रस्ताव है कि आईटी इकाइयां SCEA की जगह कम्पनी अध्यादेश 2013 द्वारा नियंत्रित हों। क्या नैसकॉम को मालूम नहीं कि कम्पनी अध्यादेश का कार्य स्थितियों या सेवा शर्तों से कोई लेना-देना नहीं है?

इसके अलावा नैसकॉम के पांच और प्रस्ताव हैं जो एससीईए के अलग-अलग प्रावधानों से आईटी उद्योग को मुक्ति दिलाने की बात करते हैं। जबकि मद्रास हाई कोर्ट ने आदेश किया है कि आईटी कर्मी औद्योगिक विवाद अधिनियम के अंतर्गत आते हैं।

नैसकॉम का नौवां प्रस्ताव अधिनियम के धारा नौ ए से मुक्ति की मांग करता है; इस धारा के अनुसार कर्मचारियों व श्रम अधिकारियों को 21 दिन की नोटिस दिये बिना मालिक सेवा शर्तों में कोई परिवर्तन नहीं कर सकते। यह हास्यास्पद है कि उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश तक को नैसकॉम पलटने की मांग कर रहा है; भला ऐसे प्रस्तावों को कर्मचारी या सरकार क्या गंभीरता से ले सकेंगे?

फिर भी इनपर बात करना दो कारणों से प्रासंगिक है-एक, हमें इन्हें मोदी सरकार द्वारा 22 सितंबर 2020 को 3 श्रम-विरोधी कोड पारित करने के संदर्भ में देखना चाहिये। अब नैसकॉम इन श्रम कोड्स (labour Codes), जिनमें कुछ बचे-खुचे श्रम-अधिकार रह गए हैं, से भी एक कदम आगे जाना चाहता है!

10 सितम्बर 2020 को नैसकॉम के पूर्व अध्यक्ष श्री केशव मुरुगेश, ने अपने एक मीडिया साक्षात्कार में पिछले समय में संसद द्वारा पारित किये गये वेतन कोड की खुले तौर पर आलोचना की। वे तब अगले पखवाड़े में पारित होने वाले 3 लेबर कोड्स से आगे बढ़े हुए श्रम कानून परिवर्तन के लिए खुलकर पक्ष-जुटाव करने लगे थे।

दूसरे, इस वित्तीय वर्ष के पहले त्रिमास में 21वीं सदी की महामंदी की शुरुआत हो गई, जिससे 1/4 अर्थव्यवसथा का सफ़ाया हो गया। यह तो केवल हिमशैल का शीर्ष था। उद्योगों के कफ्तान इस महामंदी के बोझ को श्रमिकों व कर्मचारियों के कंधों पर डालकर अपनी ‘रिकवरी’ की राह तलाश रहे हैं। शायद इन प्रस्तावों की यह भी एक महत्वपूर्ण वजह है।

इन प्रस्तावों पर आईटी कर्मियों का ‘फीडबैक’ लेने के लिए न्यूज़क्लिक ने 26 सितम्बर 2020 को आईटी कर्मियों के संगठन, एफआईटीई यानी फेडरेशन ऑफ आईटी एम्प्लाईज़ की अध्यक्ष सुश्री परिमला पंचतचरम द्वारा आहूत ऑनलाइन मीटिंग में नैसकॉम के प्रस्तावों के संभावित प्रभाव पर चर्चा की। विभिन्न शहरों के 14 आईटी कर्मियों ने मीटिंग में हिस्सा लिया। हम नैसकॉम के प्रस्तावों और उनपर इन कर्मचारियों के विचार प्रस्तुत कर रहे हैं:

पहला प्रस्ताव है कि एससीईए के तहत आईटी कम्पनियों के खुलने और बंद होने के समय में ढील दी जानी चाहिये। एसईसीए कहता है कि खुलने व बंद होने का समय पूर्वनिर्धारित हो, पर घंटों के बारे में कुछ नहीं कहता। मालिकों को छूट है कि वे विभिन्न राज्यों में 8-9 घंटे काम के मानदंडों के अनुसार समय खुद तय करें। साथ में, पाली-व्यवस्था यानी शिफ्ट सिस्टम दुकानों और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में पहले से लागू हैं। रात्रि की पाली भी लागू है, यहां तक कि हरियाणा को छोड़कर अन्य राज्यों में महिलाओं के लिए भी। फिर इसपर नैसकॉम इतना हाय-तौबा क्यों मचा रहा है; क्या उसे यह जमीनी हकीकत मालूम नहीं?

दूसरा प्रस्ताव है एसईसीए के उस प्रावधान के बारे में जो एससीईए के वैधनिक काम के घंटे और साप्ताहिक अवकाश से संबंध रखता है। कमचारियों की पसंद या चॉयस के नाम पर नैसकॉम की मांग है काम के घंटों के प्रावधान से मुक्ति। उसके अनुसार ‘‘एक कर्मचारी 6 कार्यदिवसों के लिए 8 घंटे काम पसंद कर सकता है तो दूसरा 4 कार्यदिवसों के लिए 12 घंटे काम पसंद कर सकता है। प्रतिदिन के कार्य-घंटों को थोपना व कार्य-घंटे और ओवरटाइम की सीमा तय करने से कानून वस्तुतः कर्मचारी के अधिकार को छीनता है......’’

यह तो अद्भुत किस्म का दावा है! क्या आईटी उद्योग में काम के घंटे तय करना कर्मचारियों की पसंद से होता है? हर हाल में, क्या दिन भर में अधिकतम कार्य-घंटों की सीमा तय नहीं होनी चाहिये?

वास्तव में यह कर्मचारी की पसंद का मामला नहीं है, जैसा कि नैसकॉम दावा कर रहा है; बल्कि इससे आईटी कम्पनियों के मालिकों को आज़ादी मिलेगी कि वे अपनी कम्पनियों को शोषक-अड्डों की भांति चलाएं, जहां श्रमिक गुलाम होते हैं और सामंती संबंधों का बोलबाला होता है।

तीसरा प्रस्ताव एसईसीए में विद्यमान स्वास्थ्य व सुरक्षा संबंधी प्रावधानों को खत्म करवाने की बात करता है। उनका तर्क है कि ये प्रावधान केवल कार्यस्थल के लिए प्रासंगिक हैं, न ही वर्क फ्रॉम होम के लिए। श्री कुमारस्वामी, जो चेन्नई के प्रमुख श्रम अधिवक्ता और ट्रेड यूनियन नेता हैं, ने न्यूज़क्लिक को बताया कि मुख्य बात कर्मचारी के रोजगार की है, रोजगार के स्थान की नहीं; स्थान तो इत्तेफाक की बात है।’’ प्रबंधन काम के घंटो के दौरान कर्मचारी को चोट या बीमारी के इलाज अथवा मुआवजे के लिए उत्तरदायी होता है, कार्यस्थल कहीं भी हो।

बहरहाल नैसकॉम उसी दस्तावेज में दावा कर रहा है कि अगले 3-5 वर्षों के अंदर आईटी उद्योग का 60 प्रतिशत काम और आईटीई का काम वर्क फ्रॉम होम मॉडल पर चलेगा। इसके मायने हैं कि कार्यशक्ति का एक बड़ा हिस्सा भी कार्यस्थल पर आएगा। फिर रिमोट कार्य करने वालों को भी समय-समय पर ऑफिस बुलाया जाएगा। तब कानून में परिवर्तन की जरूरत क्यों है? क्या वर्क फ्राम होम मॉडल के लागू होने से कार्यस्थल पूरी तरह खत्म हो जाएंगे? क्या स्वास्थ्य और सुरक्षा के कानूनी प्रावधान अपने आप निष्प्रभावी हो जाएंगे, जबकि कर्मचारियों का महज एक हिस्सा ही लॉकडाउन की मजबूरी के चलते वर्क फ्रॉम होम के तहत काम कर रहा है?

चौथा प्रस्ताव है कि आईटी इकाइयों को एससीईए के तहत पंजीकरण करने से पूर्णतया मुक्त कर दिया जाए, जो हमने पहले भी बताया। क्या किसी इकाई का पंजीकरण केवल श्रमिकों के कार्यस्थल से संबंधित है? दरअसल कार्यस्थल से काम करना अथवा घर से काम करना सेवा शर्तों को नियंत्रित करने वाले प्रावधानों, मस्लन रोजगार के घंटे, किसी जवान व्यक्ति के काम के घंटे, ओवरटाइम काम और वेतन अथवा प्रतिदिन काम के घंटे को किसी तरह प्रभावित नहीं करते। यह इसलिए प्रासंगिक है कि कुछ बड़े आईटी फर्म घर से काम कर रहे कर्मचारियों को आराम करने, खाना खाने, चाय पीने और यहां तक कि नित क्रिया के लिए पर्याप्त समय नहीं देते। कार्य संयोजन के नाम पर ऊंचे पदों पर बैठे लोगों के साथ ऑनलाइन मीटिंगों का अनंन्त सिलसिला चलता ही रहता है। कई महिलाओं को तो घर में कामगार महिला रखनी पड़ती है, जिसकी पगार अपनी जेब से देना होता है। साप्ताहिक अवकाश तो अनिवार्य है, भले ही कर्मचारी कहीं से काम करे क्योंकि उसकी अवधारणा ऐतिहासिक रूप से इसलिए पैदा हुई कि 6 दिन लगातार काम करने के बाद आराम की जरूरत होती है ताकि कर्मी अगले 6 दिनों के लिए अपनी ऊर्जा को पुनर्जीवित कर सके। क्या यह प्रावधान कम्प्यूटर कहां रखा है इस बात से तय होगा? आश्चर्य है कि नैसकॉम साप्ताहिक अवकाश के वैधानिक प्रावधान को पूरी तरह समाप्त करने का प्रस्ताव बेहिचक सरकार के समक्ष रख रहा है!

पांचवा प्रस्ताव हाजिरी रजिस्टर भरवाने, अंदर आने और बाहर जाने संबंधी रजिस्टर रखने आदि जैसे कई किस्म के अनुपालनों को समाप्त करने की मांग करता है। यह अनुचित मांग है। आखिर वर्क फ्रॉम होम से इस प्रावधान को हटाने का क्या वास्ता है? कर्मचारी यदि घर से काम करता है तो क्या वह काम पर हाजिर नहीं होता; क्या उसे कार्यवश कहीं भेजा जाए तो वह दर्ज नहीं होना चाहिये? क्या नैसकॉम गारंटी दे सकता है कि वर्क फ्रॉम होम करने वालों को काम के सिलसिले में किसी क्लाइंट या कस्टमर अथवा किसी संस्थान में भेजा ही नहीं जाएगा, जिसकी वजह से यातायात का समय और काम के घंटे दर्ज करना अनिवार्य हो? यदि यात्रा के दौरान किसी के साथ दुर्घटना होती है, तो कानूनी रूप से कौन उत्तरदायी होगा?

छठा प्रस्ताव है कि आईटी कर्मियों के लिए एम्लाइज़ कम्पेंसेशन ऐक्ट (Employees’ Compensaton Act) लागू न हो, क्योंकि यदि घर से काम करने के बीच किसी कर्मचारी के साथ दुर्घटना होती है या उसे चोट आती है तो यह न्यायसंगत नहीं होगा कि मालिक को जिम्मेदार ठहराया जाए।

अब सवाल उठता है कि अधिक काम के दबाव, मानसिक तनाव या कार्य के दौरान मैनेजरों द्वारा धौंस-धमकी (bullying) की वजह से यदि कर्मचारी अस्वस्थ हो जाता है तो क्या यह व्यावसायिक स्वास्थ्य का मामला नहीं बनता? यद्यपि भारत में वर्कप्लेस बुल्लींग पर कोई विशेष कानून नहीं है, अब न्यायालय वरिष्ठ लोगों द्वारा कार्यस्थल पर उत्पीड़न के केस औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत स्वीकार कर रहे हैं।

हैदराबाद के एक आईटी वर्कर ने मैनेजर द्वारा उत्पीड़न के चलते आत्महत्या कर ली थी; मैनेजर आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध के लिए काफी समय जेल में रहने के बाद जमानत पर छूटा। आईटी क्षेत्र में यह कानूनी कार्यवाही के लिए बड़ा मुद्दा बन रहा है। शायद यही कारण है कि नैसकॉम ऐसे किसी कानूनी प्रावधान को हटाना चाहता है, जिसमें कुशल कर्मचारियों के सिर पर सवार अकुशल नैकरशाहों की तानाशाह कार्यशैली के लिए सज़ा की गुंजाइश हो।

सतवां प्रस्ताव है कि औद्योगिक रोजगार (स्टैंडिंग ऑर्डर) अध्यादेश 1946 के प्रावधानों से मुक्ति मिले, जो कुछ राज्यों में व्यावसायिक संस्थानों के लिए भी लागू कर दिये गए थे, पर जिन्हें हाल में पारित औद्योगिक विवाद पर लेबर कोड में शामिल नहीं किया गया। यह स्टैंडिंग ऑर्डर ओद्योगिक संबंध, गलत व्यवहार, अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए प्रक्रियाएं व कर्मचारियों की शिकायतों से संबंधित हैं। क्या मालिक-कर्मचारी संबंध अनियंत्रित हो सकते हैं? क्या इसकी वजह से मुकदमेबाज़ी भयानक रूप बढ़ नहीं जाएगी? नैसकॉम न्यायालयों के लिए इतना बड़ा सिरदर्द क्यों पैदा करना चाहता है?

आठवां प्रस्ताव मांग करता है कि स्तनपान कराने के लिए अवकाश, क्रेश सुविधा आदि, जो मातृत्व लाभ, 1961 के तहत आते हैं, से उद्योग को मुक्ति दिलाई जाए। इस औद्योगिक संस्थान को इतना भी नहीं समझ आता कि वर्क फ्रॉम होम से देखभाल के काम समाप्त नहीं हो जाते न ही कर्मचारियों की अपने बच्चों के प्रति जिम्मेदारी खत्म हो जाती, बल्कि घर के बीमार-बुजुर्गों की देखभाल का काम भी जुड़ जाता है। नैसकॉम ने कामगारिनों को लगाने के बारे में जिक्र तो किया है पर उसका पगार देने या क्रेश के लिए व्यय की प्रतिपूर्ति का कोई विस्तृत प्रस्ताव नहीं रखा है।

नौवां प्रस्ताव मांग करता है कि रोजगार की शर्तों को संशोधित करके अल्प-समय के कार्य, पार्ट टाइम कार्य और रिमोट कार्य अदि लागू करने से पहले 21 दिनों की पूर्व नोटिस का प्रावधान समाप्त कर दिया जाए। कुल मिलाकर नैसकॉम यह चाहता है कि पूरी व्यवस्था को गिग अर्थव्यवस्था की ओर परिवर्तित कर दिया जाए-ये हद दर्जे की बेशर्मी है! वह अधिकार चाहता है कि मनमाने तरीके से वह कर्मचारियों को बिना किसी औपचारिक पूर्व-सूचना के गिग वर्कर में तब्दील कर दे। आईटी कर्मियों के साथ दैनिक मजदूरों जैसा व्यवहार होगा और उन्हें जब मर्जी काम पर बुलाया जाएगा या सेवानिवृत्त कर दिया जाएगा, जैसे ऑन-काल श्रमिकों (on-call workers) के साथ किया जाता है। समस्त प्रस्तावों में से यह कर्मचारियों के लिए सबसे घातक है क्योंकि यह केवल सेवा शर्तों और लाभों को नहीं बदलता बल्कि काम के चरित्र को ही पूरी तरह परिवर्तित करता है।

इसे पढ़ें : गिग वर्करों पर कैसा रहा लॉकडाउन का प्रभाव?

आखिरी, यानी दसवां प्रस्ताव है कि आईटी कर्मियों के लिए मालिकों की ओर से सामाजिक सुरक्षा की जिम्मेदारी को समाप्त कर दिया जाए ताकि आईटी वर्कर गिग वर्कर बन जाएं। न ही पीएफ हो न ग्रेचुइटी, न ईएसआई या स्वास्थ्य बीमा, न नियमित पेंशन हो। नैसकॉम का कहना है कि पेंशन के लिए वर्कर नए पेंशन स्कीम को ले सकते हैं; खैर, नये पेंशन स्कीम का ऑप्शन पहले से ही कर्मचारियों के लिए खुला है। जबकि सरकार ने बारंबार स्पष्ट किया है कि प्राइवेट कर्मचारियों के लिए एनपीएस अनिवार्य नहीं, स्वेच्छापूर्ण है, नैसकॉम उसे अनिवार्य बनाकर मालिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने और वैधानिक रूप से निर्धारित राशि देने की जिम्मेदारी से बरी करना चाहता है।

मीटिंग में भाग ले रहे श्री सतीश ने बताया कि इसके बावजूद कि इतने श्रम कानून मौजूद हैं, कानून की धज्जियां उड़ाई जाती हैं-गैर-कानूनी तरीके से अधिक समय तक काम कराना, छंटनी, काम न होने के नाम पर घर बैठा देना और वेतन में कटौति आम हो गया है। श्री स्रीहरि ने कहा कि आईटी उद्योग का संकट मुख्यतः उनके द्वारा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के निचले स्तर के कॉन्ट्रैक्ट सोर्सिंग (low-end contract sourcing jobs) वाले काम करने की वजह से है। उनका कहना था कि इस संकट का समाधान कौशल बढ़ाने (skill upgradation) में है, मज़दूर-विरोधी काले कानूनों की संख्या बढ़ाने में नहीं। श्री मुथूकुमार ने बताया कि टैलेंट की कमी के दौर में छंटनी करने और पुनः कौशल बिना बढ़ाए गिग अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण करने से व्यक्तिगत टैलेंट्स (individual talents) को कम्पनी में रोका नहीं जा सकेगा।

नैसकॉम जैसे एक औद्योगिक संस्था से अधिक परिपक्वता की आशा की जाती है। श्री कुमारस्वामी ने कहा कि ‘‘घर वो जगह होती है जहां आराम और मनोरंजन किया जाता है; वह हमेशा के लिए कार्यस्थल नहीं बन सकता। अभी जो वर्क फ्रॉम होम का दौर चल रहा है, वह कर्मचारियों पर थोपी गई एक मजबूरी की स्थिति की वजह से है।’’ यद्यपि हम यह मान सकते हैं कि कर्मचारियों का एक हिस्सा बंगलुरु जैसे शहर में ट्रैफिक जैम (traffic jam)की वजह से यातायात की दिक्कतों से बचने के लिए घर से काम करना पसंद करेगा, साथ ही परिवार के साथ समय बिताना पसंद करेगा, उन्हें कालांतर में समझ आएगा कि काम और आराम का फर्क मिटता जा रहा है। 8 घंटे काम और 8 घंटे मनोरंजन की जगह हर समय काम का नियम बनता जा रहा है। इस तरह, जब कर्मचारी का मनोबल गिरेगा तो क्या आईटी क्षेत्र बढ़ते आर्थिक संकट से बचकर रिकवर कर सकेगा और उच्च विकास (high growth) की ओर वापस आ सकेगा? इसलिए, उद्योग के नेतृत्व को ऐसे निरर्थक प्रस्ताव लाने के लिए शर्मिंदगी महसूस होनी चाहिये!

(लेखक आर्थिक और श्रम मामलों के जानकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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