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नीर भरी दुख की बदली : चित्रकार कुमुद शर्मा 

एक स्मृति : कुमुद शर्मा  बिहार की प्रथम महिला चित्रकार थीं । जिन्होने आधुनिक कला शैली में बहुत सारे चित्र बनाए। उन्हें कई पुरस्कार मिले। उनका साहस और संघर्ष प्रेरक है।
चित्रकार कुमुद शर्मा 

आदरणीय कुमुद शर्मा का नाम आते ही स्मृति मुझे मेरे छात्र जीवन में ले जाती है। उजली साड़ी में एक शालीन ममतामयी चित्रकार। अक्सर कला एवं शिल्प महाविद्यालय पटना में होने वाले आयोजनों में जरूर मौजूद रहती थीं  । उनके कला संबंधी वक्तव्य में अक्सर यह दुख उद्घाटित होता था कि एक समय में  इसी कला महाविद्यालय में उनका दाखिला नहीं हुआ था।

भारतीय समाज में  शुरू  से ही लड़कियों में बचपन से ही सुरूचि सम्पन्न,, कला प्रवीण,संगीत एवं काव्य अनुरागी  होने की आकांक्षा डाली जाती थी ।जिसका  मुख्य प्रयोजन उनके विवाह की योग्यता से जुड़ा हुआ होता   है। अतः  घरों में ही वे आलंकारिक और उपयोगी कला सृजन करती थीं। शिल्पकार ,चित्रकार पुरूष ही होते थे। वस्त्र आदि पर अलंकरण ज्यादातर पुरूष ही करते थे। महिलायें सहायक  के तौर  पर  काम करती थीं । अतः पटना शिल्प महाविद्यालय में भी शुरुआत में  लड़कियों का दाखिला नहीं होता था। 

कुमुद शर्मा का जन्म 1926 में पटना में हुआ था । उस समय जबकि लड़कियों को ज्यादा पढ़ाया नहीं जाता था ।कुमुद शर्मा इंटरमीडिएट थीं। प्रबल इच्छा के बावजूद वे ललित कला में अकादमिक शिक्षा नहीं ले पाईं । जबकि शांति निकेतन में  लड़कियां भी कला शिक्षा लेतीं थीं। इसके बावजूद उन्होंने पटना कलम के बड़े चित्रकार ईश्वरी प्रसाद से चित्रकला सीखी । वे बड़े कलाकारों जैसे राजा रवि वर्मा और पटना कलम  के चित्रों का अनुकरण करने लगीं।

1941 में  हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार नलिन विलोचन शर्मा से उनकी शादी हुई। घर में साहित्यकारों  का जमावड़ा लगा रहता था ।

हिन्दी साहित्य में ‘नकेन के प्रपद्य’ नाम से चर्चित  एक काव्य आंदोलन शुरू हुआ । जिसमें मुख्य रूप से नरेश मेहता,केसरी प्रसाद और नलिन विलोचन शर्मा स्वयं थे।यह एक प्रकार से छंद मुक्त  शैली में प्रबंध काव्य एवं आख्यान काव्य, पद्य माध्यम में लिखने     हेतु,पद्धति के रूप में किया गया । नरेश   मेहता का ‘महा प्रस्थान’ काव्य संग्रह इस प्रपद्य श्रृंखला का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है । 

कुमुद शर्मा को साहित्य संगत तो मिला परन्तु पारिवारिक दायित्वों के कारण उनका कला सृजन निरंतर कायम नहीं रह पाया था। एक बार नन्द लाल बोस उनके घर आये थे,जिन्हें कुमुद शर्मा द्वारा बनाए बुद्ध के जीवन से संबंधित लघुचित्र बहुत पसन्द आये।

नलिन विलोचन का साथ उन्हें बहुत समय तक नहीं मिल पाया ।दुर्भाग्यवश 1961 में नलिन विलोचन की मृत्यु हो गई । कुमुद जी का जीवन दुखमय हो गया। उनकी कला ने ही उन्हें इस सदमें से उबारा। लंबे समय बाद कुमुद जी  पुन:कला की ओर उन्मुख हुईं।

चित्रकला कुमुद जी के दुख-सुख की अभिव्यक्ति का माध्यम बन गया । उनके चित्रों के मुख्य विषय भी समाज में  महिलाओं की उपेक्षित स्थिति, उनपर होने वाले अत्याचार और उनकी गहन पीड़ा एवं  दुख पर आधारित हो गये। 

 उनके चित्रों की कई एकल और समूह प्रदर्शनी हुई । जैसे श्रीधराणी आर्ट गैलरी; नई दिल्ली , पटना ,नेपाल आदि जगहों पर उनके चित्र प्रदर्शित हुए।  वे एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी जानी गईं ।  बच्चों से उन्हें विशेष लगाव था। रत्नावली  विद्या मंदिर की वे प्राचार्या थीं । उन्होंने बच्चों के कई नाटकों का लेखन व मंचन भी किया ।   जिसमें से कई  आकाशवाणी  से प्रसारित हुए ।

 वे युवा कलाकारों के प्रति भी संवेदनशील थी । तभी तो बिहार के कई कलाकारों  को आर्थिक मदद की और उन्हें स्टूडियो सुविधा दी।

 परंतु हमारे समाज की विडंबना यही है की कलाकार जबतक जीवित रहते हैं  उसकी कलाकृतियां और वह ज्यादातर हाशिए पर ही रहते हैं। आज कुमुद  शर्मा के नाम पर बिहार की कलाकार पुरस्कृत होती रहती हैं । लेकिन कुमुद शर्मा जीते जी, ‘’मैं नीर भरी दुख की बदली बनी रहीं।“

कुमुद शर्मा के दुख का अंदाजा मुझे तब हुआ जब मैं बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में चित्रकला से स्नातकोत्तर की शिक्षा ले रही थी।    

 पटना की ब्रिटिश लायब्रेरी (जो अब बंद हो चुकी है )की एक विथिका में उनके चित्रों की एकल प्रदर्शनी चल रही थी ।अखबार में पढ़कर मैं प्रदर्शनी में पहुंची। अब  तक कला पुस्तकों के अध्ययन से मुझे कला संबंधी जानकारी थोड़ी बहुत हो गई थी।मुझे उनके सभी चित्र बहुत सुन्दर और बहुत प्रभावपूर्ण लगें ।  खासकर एक भू दृश्य चित्र जो तैल रंगों में था । वह कुछ प्रभाववादी शैली में था और उसमें कला संबंधी सभी नियमों का पालन था और चित्रकार की मौलिकता भी बरकरार थी। कुमुद जी स्वयं वहां मौजूद थीं। मुझे रहा नहीं गया मैं उनके पास गई। मैंने उनसे कहा आपके चित्र बहुत सुन्दर हैं । वे व्यथित होकर बोलीं ।‘अभी -अभी एक युवा कलाकार जिसे मैंने अपने घर शरण दिया था मुझे डांट कर गया कि आपको पेंटिंग नहीं बनाने आती’। यह बहुत खराब बर्ताव था एक बुजुर्ग महिला कलाकार के प्रति ।  (जिसकी  मैंने भी समूह में भर्त्सना की )

मैंने उन्हें विश्वास दिलाया कि “आप बहुत अच्छे चित्र बनाती हैं”और बताया कि, “जिन युवा कलाकारों ने  उनकी कला शैली  की   आलोचना  की है वे  खुद अभी नौसिखिया हैं”। फिर तो कुमुद  जी से बहुत सी बातें हुई।उन्होंने मुझे  अपने यहाँ खाने पर आमंत्रित किया । मैं  उनके  घर गई । वो बेटे और   बहु वाली होने के बावजूद अकेले रह रहीं   थीं  । उन्होंने मुझे बताया कि वे बीमार पड़ती थीं  तो चिकित्सक फीस के बदले उनकी पेंटिंग  ले जाते थे।   उसी दिन  वे मेरे पिता और मां से भी मिलीं । बाद में मुझे उनके मृत्यु की अप्रत्याशित  दुखद सूचना मिली । 

कुमुद शर्मा  बिहार की प्रथम महिला चित्रकार थीं । जिन्होने आधुनिक कला शैली में बहुत सारे चित्र बनाए । उन्हें कई पुरस्कार मिले।उनका साहस और संघर्ष प्रेरक है। उनपर बहुत कम लिखा गया है। बहुत कोशिशों के बावजूद मैं उनकी छवि या उनके चित्रों की छवि (तस्वीर)  नहीं प्राप्त कर  सकी। कुछ लोगों के पास थी परन्तु वे उपलब्ध नहीं करा सके । 

(लेखिका डॉ. मंजु प्रसाद एक चित्रकार हैं। आप इन दिनों लखनऊ में रहकर पेंटिंग के अलावा ‘हिन्दी में कला लेखन’ क्षेत्र में सक्रिय हैं।)

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