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लॉकडाउन का एक महीना: संक्रमण पर रोक और कृषि व कारोबार को रफ़्तार देना है चुनौती

कोरोना वायरस से लड़ने के लिए लागू किए गए देशव्यापी लॉकडाउन का एक महीना पूरा हो गया है। इस एक महीने में हम संक्रमण को पूरी तरह से रोक नहीं पाए हैं, बस हालात को बेकाबू होने से बचा लिया है।
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Image courtesy: DW

कोरोना से लड़ाई में लॉकडाउन की बड़ी भूमिका है। देश में लॉकडाउन के लागू होने का एक महीना पूरा हो गया है। अगर इस एक महीने पर निगाह डालें तो कुछ बेहतर बातें भी हुई हैं तो वहीं बहुत सारी ऐसी भी घटनाएं हुई हैं जो निंदनीय हैं। हालांकि इससे इतर एक महीने में हम संक्रमण को रोक नहीं पाए हैं, बस उसकी रफ्तार को घटाने में सफल रहे हैं। इसके चलते हालात बेकाबू नहीं हुए हैं लेकिन इसी के साथ ही तमाम तरह की चुनौतियां लोगों और सरकार के सामने मुंह बाए खड़ी हैं।

सबसे पहले इस एक महीने के दौरान कई जगह बेवजह की अफरातफरी दिखी। प्रवासी मजदूरों का बड़ी संख्या में पलायन हुआ। कई जगहों पर अनुशासनहीनता भी दिखी। कुछ हिंसा की घटनाएं हुईं। डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों पर हमले हुए। सोशल मीडिया पर नफरती संदेशों की बाढ़ आ गई। कई जगहों पर पुलिसिया अत्याचार की घटनाएं सामने आईं। राज्य और केंद्र सरकारों के तंत्र की विफलता भी साफ साफ नजर आई।  

दूसरी ओर लॉकडाउन के लागू किए जाने का परिणाम यह सामने आया कि हमने कोरोना संक्रमण के दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ने की रफ्तार पर रोक लगा दी। ऐसे समय में जब यूरोप और अमेरिका के विकसित देश इस वायरस से बेहाल नजर आ रहे हैं तो उनके मुकाबले हमारे देश में हालात नियंत्रण में है।

लॉकडाउन का दूसरा दौर अब भी जारी है। अगले कुछ दिनों में यह भी समाप्त हो जाएगा। फिर शायद सरकार के लिए पूर्ण लॉकडाउन को पूरे देश में लागू किया जाना संभव भी न रहे। साथ ही यह खतरा टल जाएगा इसकी संभावना भी नजर नहीं आ रही है। ऐसे में सरकार के सामने अब ढेरों चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं।

यह बात अब बिल्कुल साफ हो गई है कि सिर्फ लॉकडाउन से इस वायरस पर जीत हासिल नहीं की जा सकती है। इसके लिए एकमात्र विकल्प है ज्यादा से ज्यादा लोगों का टेस्ट किया जाय। सरकार द्वारा टेस्ट करने की रफ्तार में इजाफा किया गया है लेकिन देश की जनसंख्या को देखते हुए यह बहुत कम लगता है। ऐसे में सरकार के सामने इस समय सबसे बड़ी चुनौती ज्यादा से ज्यादा लोगों के टेस्ट की है।

इसके साथ ही बड़ी संख्या में लोग लॉकडाउन के चलते फंसे हुए हैं। केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, गैरसरकारी और धार्मिक संस्थाओं के मदद के बावजूद भी बड़ी संख्या में लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिल पा रहा है। साथ ही बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर घर जाने को लेकर बेकरार है। ऐसे में सबको भोजन मुहैया कराना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।

इसके अलावा लॉकडाउन को अंतहीन समय तक लागू करके नहीं रखा जा सकता है। सरकार को इसमें छूट देनी पड़ेगी। सबसे पहले कारोबारी गतिविधियों को शुरू कराना होना। भले ही यह सीमित दायरे में हो। अर्थव्यवस्था को दोबारा रफ्तार देने के लिए यह बहुत ही जरूरी है। ऐसे में देश में आर्थिक गतिविधियां शुरू हों यह सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है।

इसी तरह इस साल रबी फसल के रिकॉर्ड उत्पादन की संभावना है लेकिन भविष्य फिर भी अनिश्वित नजर आ रहा है। क्योंकि फसल कटाई और खेतों तथा बाजार में उनके प्रबंधन के लिए मशीन और श्रमिक अब भी कम है। सरकार ने कृषि क्षेत्र को लॉकडाउन के दौरान भी पर्याप्त ढील दी है लेकिन हालात अब भी सामान्य नहीं हो पाए हैं। ऐसे में अगले एक दो महीने में खरीफ की फसल की तैयारी भी किसानों को करनी है। देश की जनता को कम से कम भोजन की उपलब्धता बनी रहे इसके लिए सरकार को इस क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान दिए जाने की जरूरत है।

सरकार द्वारा इस साल बड़ी मात्रा में अनाज खरीद इसलिए भी आवश्यक है ताकि वह किसानों को बिचौलियों के उत्पीड़न से बचा पाए और उन्हें उपज के लिए कम से कम न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल पाए। साथ ही बड़ी संख्या में लॉकडाउन से प्रभावित हुए लोगों को पर्याप्त खाद्यान्न आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए सरकारी गोदाम भरे रहें।

फिलहाल सरकार की अब भी पहली प्राथमिकता संक्रमण के प्रसार को रोकना है लेकिन उसके चलते बाकी चुनौतियां से मुंह मोड़ लेना फायदे का सौदा नहीं है। केंद्र और राज्यों की सरकारों को परस्पर समन्वय से इस लड़ाई में जीत हासिल करना होगा।

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