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भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, रूस की जनता ने कहा- जनविरोधी शासकों का नाश हो

ब्राजील की राजधानी ब्राजीलिया में दो दिन तक चले पीपुल्स ब्रिक्स ने जन विरोधी, साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ने का ऐलान किया।
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ब्राजीलिया: ब्राजील की राजधानी ब्राजीलिया में दो दिन तक चले पीपुल्स ब्रिक्स ने जन विरोधी, साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ने का ऐलान किया। पांच देशों के समूह-भारत, रूस, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और चीन में से सिर्फ चीन के प्रतिनिधियों की कमी खली, लेकिन नेपाल सहित बाकी देशों के नेतृत्व ने उपस्थिति दर्ज करके उसे पूरा कर दिया।

यह फैसला किया गया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साम्राज्यवादी विरोधी सप्ताह बनाया जाएगा, ताकि जनसंगठनों को एक साथ मिलकर जनविरोधी नीतियों और दोहन के खिलाफ आवाज बुलंद करने का प्लेटफार्म मिल सके। ब्राजील के बड़े वामपंथी नेता और पूर्व राष्ट्रपति लूला को 580 दिन जेल में रखने के बाद ब्राजील की अदालत ने पीपुल्स ब्रिक्स के ठीक पहले रिहा कर दिया और इससे भी सम्मेलन में नई जान आई। लूला के समर्थन में बड़ी संख्या में लोग जमा हुए थे।
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11 और 12 नवंबर को हुए इस पीपुल्स ब्रिक्स में 9 देशों के 60 संगठनों, यूनियनों और राजनीतिक पार्टियों ने शिरकत की। गौरतलब है कि पीपुल्स ब्रिक्स राष्ट्राध्यक्षों के मुख्य ब्रिक्स से एक दिन पहले समाप्त हुआ और इसमें जो मांगपत्र पारित हुआ उसे भेजा गया।

पीपुल्स ब्रिक्स में एक मत से लातिन अमेरिकी देश बोलिविया में अमेरिकी इशारे पर किये गये सत्ता तख्ता पलट का कड़ा विरोध किया गया। बोलिविया के राष्ट्रपति इवो मोरालिस को जिस तरह से सैन्य दबाव में हटाया गया उसने बोलिविया सहित तमाम लातिन अमेरिकी देशों में बैचेनी पैदा की है।
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लातिन अमेरिका के कई देशों में वाम-प्रगतिशील सरकारें लंबे समय से अमेरिकी साम्राज्यवादी साजिशों के निशाने पर हैं। वेनेजुएला, क्यूबा और बोलिविया में लंबे समय से इसे लेकर रस्सा-कसी चल रही है। इसलिए अमेरिकी मंसूबों के खिलाफ लातिन अमेरिका में गहरा आक्रोश है, जिसकी प्रतिध्वनि पीपुल्स ब्रिक्स में साफ सुनाई दी।

दो दिनों तक चार सत्रों में चले पीपुल्स ब्रिक्स में साम्राज्यवाद की चुनौतियों पर बहस से लेकर विकल्प के रास्तों को तलाशने तक पर गहरी-जीवंत बहस हुई। पीपुल्स ब्रिक्स की तैयारी समिति ने बहुत सोच समझकर इस सम्मेलन का आयोजन ब्राजील की संसद के भीतर रखा, ताकि सत्ता के बिलकुल रूबरू खड़े होकर जनता की मांगों को रखा जाए।
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दो दिन के इस सम्मेलन में बड़ी संख्या में ब्राजील के सांसदों ने शिरकत की, अपना समर्थन दिया। इनमें प्रमुख थे—पाउलो पेमिनाता, जो वर्कस पार्टी के नेता है, जैनद्रिया फेघाले, जो ब्राजील की कम्युनिस्ट पार्टी के नेता हैं, और सदन में विपक्ष के नेता भी है। ब्राजील के सबसे बड़े शहर—अमेज़न के पूर्व मेयर और सोशलिज्म फ्रीडम पार्टी के नेता एडमिलसन रोडरिक, एलेक्सेंद्रा पादिलहा, वर्कस पार्टी के नेता और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री, मारिया ड रोसारियो—जो मानवाधिकार मंत्री रह चुकी है और सदन की सदस्य हैं— सहित अनेक नेताओं ने पीपुल्स ब्रिक्स को समर्थन दिया। कई देशों के राजदूत भी सम्मेलन को समर्थन देने पहुंचे, जिसमें क्यूबा, वेनेजुएला, ओनदूगा और निकारागुआ प्रमुख थे।  

सम्मेलन में बोलिविया में हुए सत्ता तख्त पलट के खिलाफ खड़े होने का फैसला लिया गया। इसके तहत 12 नवंबर को बोलिविया की एम्बेसी पहुंच कर वहां की जनता के साथ तमाम सदस्यों ने एकजुटता जताई। जिस अंतरराष्ट्रीय एकता की बात सत्रों में चल रही थी, उसे सम्मेलन के दौरान ही क्रियान्वित किया गया। बोलिविया के राजदूत ने भी पीपुल्स ब्रिक्स के फैसले का स्वागत किया और कहा कि देश की जनता को इस समर्थन की जरूरत है। वहां से वापस आकर फिर सम्मेलन की कार्रवाई शुरू की गई।
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आखिरी सत्र में भविष्य के गठबंधनों की रूपरेखा बनाई गई और आंदोलनों का बड़े पैमाने पर अंतरराष्ट्रीय स्तर से सहयोग करने का फैसला किया गया। संदेश साफ था कि पूंजीवाद अपने सबसे बड़े संकट के दौर से गुजर रहा है। अर्थव्यवस्थाएं डूब रही हैं, नौकरियों का अभाव है, पेंशन और सामाजिक सुरक्षा में कटौती हो रही है, पर्यावरण का क्षय है और पूंजी की लूट बेलगाम हो गई है। इसके खिलाफ बड़े पैमाने पर गोलबंदी जरूरी है। आंदोलनों को साझा करना जरूरी है।

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