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सदमे में हैं कश्मीरी : अनुच्छेद 370 रहित कश्मीर के एक साल पूरे होने पर तारिगामी का नज़रिया

2019 में बीजेपी ने अंतत: वह चीज़ हासिल करने में कामयाबी पाई, जिसकी चाहत आरएसएस को पिछले 66 साल से थी। बीजेपी अनुच्छेद 370 को हटाकर जम्मू में सांप्रदायिक मतभेदों को गहरा करना चाहती है, ताकि मतदाताओं का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करवाया जा सके।
सदमे में हैं कश्मीरी

मोहम्मद युसुफ तारिगामी ने चार अगस्त को मुझसे कहा, 'जम्मू कश्मीर के लोग अब भी सदमे में हैं।' 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर के लोग धोखे का दिन बताते हैं। आखिर 5 अगस्त 2019 को क्या हुआ था? इस दिन बिना किसी चेतावनी के मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 हटाने की घोषणा की थी, साथ में प्रदेश को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांट दिया, जिससे प्रशासन सीधे दिल्ली के हाथों में आ गया। तारिगामी ने आगे कहा कि "हम किसी तरह अपने आप को थामे हुए हैं। लोग हर तरफ से परेशानी में हैं। राजनीतिक गतिविधियों पर रोक लगी हुई है। सरकार चिथड़ों में बंटी हुई है और सुरक्षा स्थितियां बदतर हुई जा रही हैं।"

तारिगामी, जम्मू और कश्मीर में कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट) के नेता हैं। जब विधानसभा का निरसन नहीं किया गया था, उसके पहले वे विधानसभा के एक चुने हुए सदस्य थे। तारिगामी भी सरकार के फैसले से दुख में हैं और उतने ही विद्रोही भी नज़र आते हैं। कश्मीर के लोगों के साथ जो किया गया, उसमें थोड़ा-बहुत विलाप कर चुप नहीं बैठा जा सकता। लेकिन एक व्यक्ति जिसने अपनी पूरी उम्र अन्याय के खिलाफ और समता के लिए लड़ते हुए निकाल दी, ऐसा असंभव है कि उसके ऊपर निराशा घर कर जाए।

महामारी का साया

कोरोना वायरस महामारी ने पूरे भारत को संकट में डाल दिया है। अब भारत दुनिया के सबसे ज़्यादा प्रभावित देशों में से एक हो गया है। इसकी एक बड़ी वजह सरकार की अक्षमता है, जिसने भारत के स्वास्थ्य ढांचे को कमजोर कर दिया और वायरस के आने के पहले जरूरी तैयारियां नहीं कीं। ऊपर से बेहद नुकसानदेह तरीके से पूरे देश को शटडॉउन कर दिया और वायरस की रोकथाम के लिए ठीक ढंग से ना तो टेस्टिंग की और ना ही ट्रेसिंग की।

जम्मू-कश्मीर के 1।25 करोड़ लोग महामारी की चलते फंसे हुए हैं। इंटरनेट की पहुंच ना देकर उन्हें आभासी नज़रबंदी में रखा हुआ है। इस इलाके पर तब थोड़े वक़्त के लिए ध्यान गया, जब चीन और भारतीय सैनिकों के बीच जून में गलवान घाटी में टकराव हुआ। लेकिन अब वह नज़रे भी वहां से हट चुकी हैं। जम्मू-कश्मीर के लोगों को फिर नज़रंदाज किया जाने लगा है।  

नागपुर की तरफ नज़र

अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से एक साल गुजर चुका है, लेकिन हमने जो हालात सोचे थे, वैसे हालात नहीं बने हैं। तारिगामी ने मुझे बताया, "नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही कश्मीर में बेहद कड़ी कार्रवाई की जा रही है। मोदी ने कश्मीर का संवेदनशील मुद्दा नागपुर में गाड़ दिया है।" इसका मतलब है कि नागपुर स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संगठन के एक समर्पित कार्यकर्ता मोदी कश्मीर पर नागपुर से निर्देश लेते हैं। बल्कि भारत में जारी राजनीतिक रुझान के उलट, आरएसएस ने इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन (1947) के खिलाफ़ कैंपेन किया, जिसके ज़रिए कश्मीर भारतीय संघ में शामिल हुआ था। 1953 में आरएसएस और इसके साथियों ने जम्मू और कश्मीर प्रजा परिषद का गठन किया और राज्य के "पूर्ण विलय" के लिए आंदोलन चलाना शुरू किया। इसका मतलब उस दर्जे को ख़त्म करना था, जिसके ज़रिए अनुच्छेद 370 का विशेष प्रावधान जोड़ा गया था।

2019 में बीजेपी ने वही किया, जो आरएसएस 66 साल पहले करना चाहती थी। अब बीजेपी अनुच्छेद 370 को हटाकर "जम्मू में धार्मिक मतभेदों को बढ़ाकर मतदाताओं का ध्रुवीकरण करना चाहती है।" इसी तनाव का इस्तेमाल बीजेपी पूरे देश में सांप्रदायिकता फैलाने के लिए कर रही है। यह पुरानी रणनीतियां हैं, जिनका संबंध आरएसएस की स्थापना और उसके संकीर्ण भारत के दृष्टिकोण में हैं।

नागरिकों से विषय तक का सफर

जम्मू-कश्मीर के नागरिक 1956 में तब भारत के नागरिक बने, जब राज्य ने अपना संविधान अंगीकार किया और खुद को भारत का "एक अभिन्न हिस्सा" करार दिया। लेकिन विलय पर कुछ दूसरे दबाव भी थे। आरएसएस इसे चुनौती दे रहा था, नई दिल्ली द्वारा राजनीतिक हस्तक्षेपों की वजह से राज्य की राजनीति की स्वतंत्रता कम होती गई। इसके बाद राज्य में सशस्त्र बलों की तैनाती कर दी गई, जिनकी संख्या करीब सात लाख है।

श्रीनगर के जिलाधिकारी- डॉ शाहिद इकबाल चौधरी ने विरोध प्रदर्शन के अनुमानों के चलते 4 अगस्त और 5 अगस्त को श्रीनगर में कर्फ्यू की घोषणा की है। नोटिस में कहा गया है कि ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि सरकार का मानना है कि 'अलगाववादी और पाक प्रायोजित समूह 5 अगस्त, 2020 को काला दिवस मनाने की योजना बना रहे हैं।' इसके लिए सबूत जरूरी नहीं हैं। संवैधानिक तौर पर दिया गया विरोध करने का अधिकार कश्मीर में छीन लिया गया है। तारिगामी इसे बेहद निराश करने वाला बताते हैं।

तारिगामी कहते हैं, "ऐसा लगता है कि लोगों के अधिकार कोई मायने ही नहीं रखते। प्रेस को दबा दिया गया है, जो भी राजनेता मोदी सरकार से अलग राजनीतिक रुझान रखता है, उसे या तो पब्लिक सेफ्टी एक्ट में हिरासत में ले लिया जाता है, या फिर उसे नज़रबंद कर दिया जाता है। मासूम नागरिकों, पत्रकारों और छात्रों के खिलाफ़ आंतकनिरोधी कानूनों के इस्तेमाल से नागरिकों को एक विषय में बदल दिया गया है। हम रोष भरी नाउम्मीदी के दौर में हैं।"

जुलाई, 2020 में द फोरम ऑफ ह्यूमन राइट्स इन जम्मू एंड कश्मीर ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें अनुमान लगाया गया कि पिछले 11 महीनों में प्रदेश की अर्थव्यवस्था में 40,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। हर वर्ग संघर्ष कर रहा है, लेकिन सबसे ज़्यादा बुरा प्रभाव अंसगठित श्रमशक्ति, किसानों, शिल्पियों, छोटे व्यापारियों और पर्यटन, हस्तशिल्प के साथ-साथ यातायात पर निर्भर रहने वालों पर पड़ा है। लोगों को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

तारिगामी बताते हैं, "सबसे मुश्किल जिंदा रहना है। आपको इन कठिन स्थितियों में भी जिंदा रहना होगा, जबकि यह परिस्थितियों जीवन जीने की स्थितियों को नकार देती हैं।" 5 अगस्त, 2019 से कम से कम 4।56 लाख लोगों को अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा है। किसानों को 6000 एकड़ की परती ज़मीन खोनी पड़ी है, जिन्हें उद्योग धंधे लगाने के लिए किसानों से लिया गया है।

भारत में खपत होने वाले कुल सेवों में से 75 फ़ीसदी कश्मीर में पैदा होते हैं, इनका सालाना राजस्व करीब़ 8,000 करोड़ रुपये है। करीब़ 35 लाख लोगों को इसमें रोज़गार मिलता है, यह कश्मीर घाटी की आधी आबादी है। इतनी बड़ी आबादी के इस धंधे पर निर्भर होने के बावजूद कश्मीर में हुई कार्रवाई से इसे ख़त्म किया जा रहा है।

पेड़ों पर सेव सड़ रहे हैं, जबकि कारखाने चुप हैं।

असुरक्षा

मोदी सरकार ने कहा था कि केंद्रशासित प्रदेशों वाले नए तंत्र और सीधे दिल्ली से प्रशासित होने के चलते इलाके में सुरक्षा व्यवस्था ज़्यादा कड़ी हो जाएगी। लेकिन तथ्य कुछ उल्टी तस्वीर ही बयां करते हैं। जनवरी से जून, 2020 के बीच, भारत-पाकिस्तान में सीमा उल्लंघन की 2,300 घटनाएं हुईं, जबकि इसी अवधि में पिछले साल, जब अनुच्छेद 370 को नहीं हटाया गया था, तब 1,321 घटनाएं ही हुई थीं।

नरेंद्र मोदी की सरकार के पास साफ़ सांस्थानिक नज़रिया नहीं है। तारिगामी कहते हैं, "सरकार अवाधारमात्मक अव्यवस्था से ग्रसित है।" केंद्र सरकार ने राज्य में किसी भी तरह के विमर्श के बिना अनुच्छेद 370 को हटाने का फ़ैसला ले लिया। फिर एक ऐसा मूलनिवासी कानून पारित किया जिससे स्थानीय आबादी दूर होती गई। केवल 2G इंटरनेट को अनुमति देकर राज्य को लॉकडाउन कर दिया। राजनेताओं को हिरासत में ले लिया गया, अब नई दिल्ली के पास स्थानीय लोगों से बातचीत का कोई राजनीतिक तरीका नहीं बचा। चीन और पाकिस्तान के साथ सीमाएं अब हॉटस्पॉट बन चुकी हैं। अब भी आर्थिक स्थिति को वापस पटरी पर लाने की कोई योजना नहीं है।

आज सिर्फ एक ही अवधारणा इनके लिए मायने रखती है और वह "सांप्रदायिक ध्रुवीकरण" है। तारिगामी कहते हैं, "सरकार अपनी ऊर्जा लोगों में धर्म और क्षेत्र के नाम पर बंटवारा पैदा करने में इस्तेमाल कर रही है।" 1925 में अपनी स्थापना के बाद से आरएसएस अब तक यही कर रही है। इसके नतीज़े "गंभीर और अकल्पनीय" होंगे।

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

People of Kashmir Are Living in Shock: Tarigami Reflects on the Year Without Article 370

 

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