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प्रधानमंत्री केयर्स फंड: मोदी का प्रचार या किसी घोटाले का नक्शा?

किसी भी तरह की आपदा वाली परिस्थिति से निपटने के लिए प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (पीएमएनआरएफ) पहले से काम कर रहा है। ऐसे में पीएम केयर्स फंड की क्या आवश्यकता थी? इसका अब तक कोई ठोस और संतोषजनक जवाब नहीं मिला है।
प्रधानमंत्री केयर्स फंड
Image courtesy: Pratidhvani

उस समाज का रोजाना का जीवन खोखला हो चुका होता है जिसमें गरीबों की मदद अमीरों की दया पर निर्भर करती है। गरीबी हर रोज हमारी आंखों के सामने चलती रहती है लेकिन हम उस तरफ नहीं देखते लेकिन जैसे ही कोई आपदा आती है तो जर्जर हो चुकी सरकारों और मीडिया द्वारा किसी फैशन की तरह गरीबी को आँखों के सामने दिखाया जाता है।

इस फैशन से अमीरों के मन में दया पैदा की जाती है। प्रधानमंत्री केयर्स फंड बनाया जाता है। सरकार इस तरह से उद्घोष करती है कि दया दिखाए जाए, पैसा दिया जाए ताकि गरीबों की मदद की जा सके। वही सरकार जिसकी नीतियों में हर समय गरीब ही केंद्र में होते हैं। फिर अक्षय कुमार और अडानी जैसे लोग इस केयर फंड में लाखों जमा करते हैं, जो करोड़ों कमाते हैं। मजेदार यह है कि जिनकी वजह से करोड़ों कमाते हैं, उन्हें पास जीने लायक पैसा तक नहीं होता।

फिर भी यह बात भले ठीक लगे कि कोरोना वायरस जैसी परेशानी में सब लोग इकठ्ठा होकर मदद करे लेकिन यह गलत है कि यह तक समझने की कोशिश न की जाए कि प्रधानमंत्री केयर्स फंड क्या है? क्या आपदा के लिए पहले से कोई दूसरा फंड मौजूद नहीं था। अगर मौजूद था तो उसका इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया? नया फंड क्यों बना दिया गया?

गौरतलब है कि सरकार ने COVID-19 महामारी से पैदा हुए किसी भी तरह के आपातकालीन या संकटपूर्ण स्थिति से निपटने हेतु ‘आपात स्थितियों में प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और राहत कोष (Prime Minister’s Citizen Assistance and Relief in Emergency Situations Fund)’ बनाया।  

प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो की वेबसाइट कहती है कि PM-CARES Fund एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट (Public Charitable Trust) है। जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री है। अन्य सदस्यों के तौर पर रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री शामिल हैं। इस फंड में चाहे जितना मर्जी उतना योगदान किया जा सकता है। इसकी कोई लिमिट नहीं तय की गयी है। इस फंड में दी जाने वाली दान राशि पर धारा 80 (जी) के तहत आयकर से छूट दी जाएगी। बाद में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और कॉरपोरेट मंत्रालय ने यह भी साफ़ किया कि अगर कंपनियां पैसा देंगी तो इन्हें कंपनियों की सीएसआर के मद में शामिल किया जाएगा।

इससे अधिक इस फंड के बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं है। यह पता नहीं है कि इस फंड में आये पैसे के खर्च की जाँच कौन करेगा? क्या सरकार की हर खातों की तरह इसकी भी जाँच की जायेगी।  

क्या नियंत्रक एंव महालेखा परीक्षक या कैग को इसकी जांच की अधिकारिता मिली है? सरकारी काम है, सब लोग इसमें पैसा डालेंगे। इसलिए यह भी जानना जरूरी है कि सरकार और नगारिक बीच इसका कैसा रिश्ता होगा। जिसकी व्याख्या इससे जुड़े वैधानिक प्रावधानों में की जाती है। इसकी व्याख्या नहीं है। कल को हो सकता है कि उतना पैसा खर्च न हो जितना इसमें जमा किया जा रहा है तो सरकार इस पैसे का कहाँ उपयोग करेगी? ऐसे बहुत सारे जरूरी सवालों का जवाब नहीं है।

इसके साथ एक बड़ा सवाल यह भी खड़ा किया जा रहा है कि जब पहले से प्रधानमंत्री राहत कोष की व्यवस्था थी तो नया फंड बनाने की जरूरत क्यों हुई? इसका अभी तक कोई सॉलिड जवाब नहीं मिला है। पाकिस्तान से आने वाले लोगों की मदद करने के लिये जनवरी, 1948 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की अपील पर जनता के अंशदान से प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की स्थापना की गई थी।

प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की धनराशि का इस्तेमाल बाढ़, चक्रवात और भूकंप आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं में मारे गए लोगों के परिजनों तथा बड़ी दुर्घटनाओं एवं दंगों के पीड़ितों को तत्काल राहत पहुँचाने के लिये किया जाता है। इसके अलावा, हृदय शल्य-चिकित्सा, गुर्दा प्रत्यारोपण, कैंसर आदि के उपचार के लिये भी इस कोष से सहायता दी जाती है।

इस कोष के पैसे को आयकर अधिनियम के तहत एक ट्रस्ट के रूप में माना जाता है और इसका प्रबंधन प्रधानमंत्री या नॉमिनेटेड अधिकारियों द्वारा राष्ट्रीय जरूरतों के लिये किया जाता है। इस कोष में भी अगर पैसा जमा किया जाता है तो आयकर से छूट मिलती है। इस तरह से  आप समझ सकते हैं कि प्रधानमंत्री राहत कोष का बकायदे नियम कानून है। इसलिए इसका इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया।

प्रधानमंत्री राहत कोष के मुताबिक साल 2009-10 से साल 2018-19 के बीच इस फंड में कुल 4713.57 करोड़ रुपये प्राप्त हुए थे, लेकिन इस दौरान इसमें से सिर्फ 2524.77 करोड़ रुपये ही खर्च किए जा सके। इसमें से वित्त वर्ष 2014-15 से 2018-19 के बीच पीएमएनआरएफ में कुल 3383.92 करोड़ रुपये मिले थे, इसमें से इन पांच सालों में सिर्फ 1594.87 करोड़ रुपये ही खर्च किए जा सके हैं। यानी भाजपा के पिछले पांच साल के दौर में तकरीबन 50 फीसदी भी खर्चा नहीं हुआ।  

इस फंड का इस्तेमाल कोरोना वायरस से लड़ने के लिए किया जाता तो दो फायदे होते। पहला बची हुई शेष राशि का इस्तेमाल कोरोना में होता। दूसरा, आपदा से जुड़े सरकारी आय और खर्च का एक ही अकाउंट होता। भ्रष्टाचार की गुंजाइश कम होती। सरकारी भ्र्ष्टाचार ऐसे ही तरीकों से होता है, जिसके बारें में किसी को कानों-कान खबर नहीं चलती। सवाल तो उठता है कि प्रधानमंत्री राहत कोष का पैसा कोष में है भी या नहीं या दूसरे जगह खर्च हो गया है केवल खातों में जिक्र है।

डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत भारत में 21 दिनों की लॉकडाउन का ऐलान किया गया। डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत भी नेशनल डिजास्टर रिलीफ फंड और स्टेट डिजास्टर रिलीफ फंड की व्यवस्था की जाती है। इसमें भी हर साल बजट से पैसे देने का प्रावधान किया जाता है। इस साल के बजट में स्टेट डिजास्टर रिलीफ फंड के लिए तकरीबन 30 हजार की व्यवस्था की गयी है। इन खातों की जांच करने का अधिकार कैग को भी हैं।

अब सोचने वाली बात है कि अगर पहले ही आपदा के लिए जरूरी खाते मौजूद हैं। उसमे फंड दिया जाता रहा है तो जनता से इसमें ही फंड क्यों नहीं माना गया। क्या यह प्रधानमंत्री का एक और विज्ञापन है या जनता से मदद के नाम पर किया तैयार किया घोटाले का एक और नक्शा?

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