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मुसलमानों पर नरम पड़े प्रधानमंत्री! सियासी मायने क्या हैं?

भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पार्टी के प्रवक्ताओं को मुसलमानों के ख़िलाफ़ टिप्पणी करने से बचने की सलाह दी है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि उन्होंने ये बात आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र कही है।
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फाइल फ़ोटो। फ़ोटो साभार : हिंदुस्तान टाइम्स

धूल खा चुके शब्दों को साफ़ कर कब जनता के बीच परोसना है, ये हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बख़ूबी आता है...। क़ब्रिस्तान और श्मशान पर चुनाव लड़ने में हीरो, देश में फैले दंगों पर एक शब्द बोलने में ज़ीरो, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अचानक मुसलमानों की सुध आ गई, और चिंता होने लगी। इतनी चिंता कि टीवी चैनल्स पर बैठकर पूरा दिन ज़हर उगलने वाले अपनी पार्टी के प्रवक्ताओं को नसीहत दे डाली, कि उन्हें ग़लत बयानबाज़ी करने से बचना चाहिए। मुसलमानों के बीच जाना चाहिए, उनसे मिलना चाहिए।

ख़ैर... हमें समझना होगा कि राजनीति और राजनेताओं की एक-एक सांस में विपक्षियों के ख़िलाफ साज़िश और उन्हें हराने के लिए पैंतरे होते हैं, कहने का मतलब ये है कि अचानक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ह्रदय परिवर्तन भी इसी का एक हिस्सा हो सकता है, जिसके मायने बहुत हैं।

अचानक हुए इस ह्रदय परिवर्तन से निकलने वाले शब्दों को ऐसे गिनिए... छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, त्रिपुरा, मेघालय, नगालैंड, मिजोरम और तेलंगाना।

और इन सबकी मंज़िल है साल 2024 लोकसभा चुनाव और प्रधानमंत्री की कुर्सी।

जैसा कि सभी को मालूम है कि बीते पांच सालों में या यूं कहें कि मोदी 2.0 सरकार में सीएए-एनआरसी प्रदर्शन, मुसलमानों के ख़िलाफ ग़लत बयानबाज़ी, प्रवक्ताओं का खुलकर मुसलमानों के ख़िलाफ ज़हर उगलना, बुल्डोज़र के ज़रिए मुसलमानों का घर गिराना जैसे तमाम वो दंश जो भाजपा से मुसलमान वोटों को दूर कर सकता है।

फिर प्रधानमंत्री बख़ूबी जानते हैं कि जिस तरह से कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा पूरे देश में घूमकर वोटों को इकट्ठा कर रही है, इससे हताश बैठे मुस्लिम मतदाता फिर से कांग्रेस की ओर रुख कर सकते हैं, जिसका नुक़सान उन्हें उठाना पड़ सकता है।

सबसे पहले पढ़िए कि प्रधानमंत्री ने कार्यकारिणी बैठक में क्या कहा...

‘’प्रधानमंत्री मोदी ने पार्टी के नेताओं को मुस्लिम समाज से मेलजोल बढ़ाने और ग़लत बयानबाज़ी न करने की भी बात कही, उन्होंने कहा कि बोहरा, पसमंदा और पढ़े लिखे मुस्लिमों तक भी हमें सरकार की नीतियां लेकर जानी हैं। हमें समाज के सभी अंगों से जुड़ना है और उसे अपने साथ जोड़ना है।‘’

प्रधानमंत्री के इस पूरे बयान में मुस्लिमों के साथ मेलजोल बढ़ाने और ग़लत बयानबाज़ी के साथ बोहरा और पसमंदा मुसलमानों पर ग़ौर करिए।

आने वाले दिनों में एक फिल्म रिलीज़ होने वाली है ‘पठान’ जिसका एक गाना ‘बेशर्म रंग’ पहले ही रिलीज़ होकर विवादों का केंद्र बन चुका है। इस विवाद की जड़ को अगर खोदेंगे तो एक नाम निकलकर आएगा ‘नरोत्तम मिश्रा’।

जो मध्यप्रदेश सरकार में गृह मंत्री हैं। ‘बेशर्म रंग’ गाना रिलीज़ होते ही इन्होंने अभिनेत्री दीपिका पादुकोण द्वारा पहनी गई बिकनी पर सवाल खड़े कर दिए। इसलिए क्योंकि दीपिका की बिकनी का रंग नारंगी था, जिसे धर्म के ठेकेदार भगवा बताते हैं, और अपने अनुसार कहीं भी देखकर इसे धर्म से जोड़ देते हैं फिर विवाद खड़ा करते हैं और सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश करते हैं। इस बार धर्म की ठेकेदारी का ज़िम्मा उठाया था नरोत्तम मिश्र ने।

एक और हैं जिन्हें साध्वी प्रज्ञा कहते हैं... जिन्होंने फिल्म को लेकर तो धर्म की ठेकेदारी की ही, साथ में हिंदुओं को घर में तेज़ चाकू रखने की सलाह दे डाली, ताकि लव जेहाद का जवाब दिया जा सके।

अभी एक और हैं... नूपुर शर्मा, इन्होंने एक टीवी चैनल पर बैठकर ऐसी बात कह दी कि पूरे देश में दंगे शुरु हो गए। लेकिन मजाल है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक शब्द भी बोले हों।

नूपुर शर्मा का बयान सिर्फ़ भारत के भीतर ही नहीं बल्कि उन इस्लामिक देशों को भी चुभ गया, जहां प्रधानमंत्री अपनी बहुत इज़्ज़त का दावा करते हैं। सभी देशों ने नूपुर शर्मा के बयान और भाजपा की निंदा की। इतना ही नहीं ईरान, क़तर और कुवैत ने तो भारतीय राजदूतों को जवाब के लिए तलब भी कर लिया। लेकिन यहां तक भी मजाल है कि प्रधानमंत्री एक शब्द बोले हों।

किसी विशेष धर्म के ख़िलाफ़ भाजपा नेताओं द्वारा दिए गए बयानों की पूरी फ़िहरिस्त है, जिसे गिनना बहुत मुश्किल है, लेकिन समझने वाली बात ये है कि सरकार के क़रीब चार साल बीत जाने के बाद प्रधानमंत्री तब मेलजोल की बात करते हैं जब चुनावों आने वाले हैं।

बोहरा-पसमंदा मुसलमानों से भाजपा को क्या फ़ायद?

इसके लिए पहले ये समझना ज़रूरी है कि ये कौन से मुसलमान होते हैं? बात अगर बोहरा मुसलमानों की करें तो ये शिया या सुन्नी कोई भी हो सकते हैं। देश में क़रीब 25 लाख आबादी वाले बोहरा मुसलमान वो हैं जो काफी पढ़े-लिखे हैं, बोहरा समुदाय के ज़्यादातर मुसलमान व्यापारी हैं। भारत में ज़्यादातर दाऊदी बोहरा हैं जो महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश में बसे हुए हैं। पाकिस्तान के सिंध प्रांत के अलावा ये ब्रिटेन, अमेरिका, दुबई, ईराक, यमन और सऊदी अरब में भी बड़ी संख्या में है। आंकड़े बताते हैं कि गुजरात में ज़्यादातर दाऊदी बोहरा समुदाय भाजपा को वोट देते रहे हैं।

ऐसे ही पसमंदा मुसलमानों को यूं समझते हैं। कहा जाता है कि भारत में रहने वाले मुसलमानों में 15 फ़ीसदी उच्च वर्ग के माने जाते हैं, जिन्हें अशरफ कहते हैं। इनके अलावा बाक़ी 85 फ़ीसदी अरजाल, अजलाफ मुस्लिम पिछड़े हैं। इन्हें पसमांदा भी कहा जाता है। आंकड़े बताते हैं कि पसमांदा मुसलमानों की हालत समाज में बहुत अच्छी नहीं है। ऐसे मुसलमान आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक हर तरह से पिछड़े और दबे हुए हैं।

अब बोहरा और पसमंदा से भाजपा कैसे फ़ायदा लेना चाहती है? तो उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा, बिहार में आरजेडी और जेडीयू, पश्चिम बंगाल में टीएमसी, महाराष्ट्र में एनसीपी के खाते में मुसलमान वोट पड़ते हैं। इसी तरह दक्षिण भारत में भी भाजपा के ख़िलाफ़ मज़बूती से खड़ी होने वाली पार्टी को मुसलमानों का वोट जाता है। इसके अलावा पूरे भारत में कांग्रेस का वोटर भी बहुत बड़ी संख्या में मुस्लिम है। अब ऐसी स्थिति में अगर भाजपा पसमंदा मुसलमानों (जो आर्थिक तौर पर तंग हैं) तक अपनी योजनाओं का लालच देने में सफल हो जाती है, या फिर मौजूदा नीतियों से उन्हें जोड़ने में कामयाब हो पाती है, तो विपक्षियों के लिए समस्या खड़ी हो सकती है।

इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि जो अशरफ यानी 15 प्रतिशत मुस्लिम उच्च वर्ग के हैं, उनकी भागीदारी ही राजनीतिक दलों में होती है, जबकि पसमंदा मुसलमानों को प्रतिनिधित्व करने से दूर रखा जाता है, तो ये कोई बड़ी बात नहीं कि आने वाले वक़्त में भाजपा ख़ुद को लचीला बनाए और पसमंदा मुसलमानों को पार्टी में प्रतिनिधित्व करने का मौका दे।

ऐसे में ये कोई बड़ी बात नहीं है कि भाजपा चुनाव आते-आते पसमंदा मुसलमानों की तीनों मांगों पर मुहर लगा दे... वो तीन मांग हैं:

पहली मांग पसमंदा मुसलमान को सरकार शेड्यूल्ड कास्ट का दर्जा दे।

दूसरी मांग पसमंदा मुसलमानों के लोगों के साथ सामाजिक और प्रशासनिक स्तर पर अन्याय बंद हो।

तीसरी मांग राजनीतिक स्तर पर हर दलों में पसमंदा समाज के लोगों के प्रतिनिधित्व को बढ़ाया जाए ताकि इस समुदाय के ज़्यादा लोग संसद और विधानसभा पहुंचे।

एक रिपोर्ट बताती है कि 1947 से लेकर 14वीं लोकसभा तक कुल 7,500 सांसद बने, जिनमें से 400 मुस्लिम थे। हैरानी की बात ये है कि इनमें से 340 सांसद अशरफ यानी उच्च मुस्लिम जाति के थे और सिर्फ़ 60 मुस्लिम सांसद पसमांदा समाज से रहे हैं।

इसी तरह बोहरा समाज को जोड़ना भी पसमंदा समाज से जुड़ा मामला है, राजनीतिक विशेषज्ञ कहते हैं कि भले ही हिंदुओं की तरह मुसलमानों में जातियां बंटी हों, लेकिन मुसलमान तबक़ा हमेशा एकजुट होकर वोट करता है, और ऐसे में अगर भाजपा पसमंदा मुसलमानों को मना ली तो बोहरा समाज का वोट मिलना भी पार्टी के लिए आसान हो जाएगा।

अब सवाल ये है कि जब हिंदुत्व वाला कार्ड भाजपा के लिए बिल्कुल सटीक चल रहा है तो मुस्लिम वोटों की क्या ज़रूरत पड़ गई?

ऐसे में उन पांच राज्यों पर नज़र डालना बेहद ज़रूरी है जो उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, झारखंड और असम हैं।

इन पांच राज्यों को मिलाकर ही 180 लोकसभा सीटें हैं, और देश के मुसलमानों की कुल आबादी का बड़ा हिस्सा भी यहीं है, साथ में पसमंदा मुसलमान भी सबसे ज़्यादा इन्हीं राज्यों में बसते हैं, ऐसे में 2024 के लिहाज़ से बेहद ज़रूरी हो जाता है। हालांकि दक्षिण भारत के तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों में भी पसमांदा मुस्लिमों की अच्छी-ख़ासी आबादी है।

संघ का भी फुल सपोर्ट

2024 लोकसभा की तैयारी में सिर्फ़ भाजपा ही मुसलमानों को रिझाने में नहीं जुटी, बल्कि दूसरी लॉबी संघ भी मुसलमानों की पिछलग्गू बनी हुई है। इसके लिए हाल ही में दिए गए संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर नज़र डालते हैं?

सबसे पहले इसी साल 11 जनवरी को दिए गए बयान को देखिए जिसमें भागवत कहते हैं कि ‘’इस्लाम को देश में कोई ख़तरा नहीं है, लेकिन उन्हें 'हम बड़े हैं' का भाव छोड़ना पड़ेगा।‘’

दूसरा बयान 2 जून 2022 को उन्होंने दिया जिसमें कहा, "ज्ञानवापी एक इतिहास है, हम इसे बदल नहीं सकते। हमें रोज़ एक मस्जिद में शिवलिंग क्यों देखना है? झगड़ा क्यों बढ़ाना है? हिंदू कभी मुस्लिमों के विरुद्ध नहीं सोचता है। मुस्लिमों के पूर्वज भी हिंदू थे।"

मोहन भागवत के ऐसे ही और भी बयान हैं, एक तो राम मंदिर को लेकर भी है, जो 9 नवंबर 2019 को दिया गया था, भागवत कहते हैं, "राम जन्मभूमि से संघ किन्हीं कारणों से अपवाद स्वरूप जुड़ा था, जो फैसला आने के बाद ख़त्म हो गया है। राम मंदिर के बाद अब हम कोई आंदोलन नहीं करेंगे। कोई मुद्दा उठा तो हम मिल-जुलकर मामला सुलझाएंगे’’

भागवत के बयानों पर आम भाषा में कहें तो ‘’जब सब ख़त्म कर दिया तब भाईचारा दिखा रहे हैं’’। इसके अलावा इसके पीछे जो सबसे बड़ा कारण है वो ये कि साल 2025 में संघ का 100 बरस पूरा हो जाएगा, और यही एक मौक़ा होगा भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने का। ऐसा करने के लिए संघ को केंद्र में भाजपा की ज़रूरत होगी। यही कारण है कि भाजपा किसी भी तरह का वोट छोड़ना नहीं चाहती, चाहे वो हिंदुओं का हो या मुसलमानों का जिसके लिए संघ पिछले कई सालों से काम पर लग चुका है।

यानी कार्यकारिणी में नरेंद्र मोदी द्वारा दिया गया भाषण तयशुदा था। इसके अलावा राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने जिस तरह से सभी धर्मों को एक साथ जोड़कर क़दम से क़दम मिलाया है, कहीं न कहीं इसने भी भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मजबूर किया है मुसलमानों के ख़िलाफ़ अपने प्रवक्ताओं को समझाने के लिए।

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