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15 राज्यों की 57 सीटों पर राज्यसभा चुनाव; कैसे चुने जाते हैं सांसद, यहां समझिए...

देश में अगले महीने राज्यसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में सभी राजनीतिक पार्टियां विधायकों को साधने में जुट गई हैं।
RAJYASABHA

देश में 15 राज्यों की 57 विधानसभा सीटों पर चुनाव का एलान हो चुका है। जैसा कि उम्मीद थी कि इस बार राज्यसभा चुनाव में बड़े उलटफेर देखने को मिल सकते हैं, तो हुआ भी ऐसा ही। राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन के दूसरे दिन ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे कपिल सिब्बल ने सपा का दामन थामकर ये सच साबित कर दिया। सिब्बल ने 25 मई को अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव की मौजूदगी में राज्यसभा के लिए पर्चा दाखिल किया। 

15 राज्यों की 57 विधानसभा सीटों के नतीजे 10 जून को आएंगे, जबकि 31 मई तक पर्चा दाखिल किया जा सकता है। इसी कड़ी में हर राजनीतिक पार्टी अपने छंटे हुए उम्मीदवारों पर दांव खेल रही है। जिसमें उत्तर प्रदेश जैसा बड़ा राज्य आने वाले लोकसभा चुनावों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है।

राज्यसभा चुनाव 2022

·   24 मई को अधिसूचना जारी की गई।

·   31 मई को नामांकन दाखिल करने का आख़िरी दिन।

·   1 मई को नामांकन की स्क्रूटनी की जाएगी।

·   3 जून नामांकन वापस लेने की आख़िरी तारीख।

·   10 जून को सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक मतदान होंगे।

·   10 जून को ही शाम 5 बजे के बाद मतों की गणना होगी।

जिन 15 ज़िलों की 57 सीटों पर चुनाव होने हैं:

·   उत्तर प्रदेश की 11 सीटें

·   महाराष्ट्र की 6 सीटें

·   बिहार की 5 सीटें

·   राजस्थान, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश की 4-4 सीटें

·   तमिलनाडु की 6 सीटें

·   एमपी और ओडिशा की 3-3 सीटें

·   पंजाब, हरियाणा, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, झारखंड की 2-2 सीटें

·   उत्तराखंड की 1 सीट

इन सभी राज्यों में उत्तर प्रदेश और राजस्थान की राज्यसभा सीटों पर मुकाबला काफी रोचक होने जा रहा है। उत्तर प्रदेश की जिन 11 सीटों पर चुनाव है, विधायकों के आंकड़ों को देखते हुए 7 बीजेपी और 3 सपा के खाते में जाना तय है। ऐसे में 11वीं सीट के लिए सपा और बीजेपी के बीच एक दूसरे के खेमे में सेंधमारी की कवायद करनी होगी। वहीं, राजस्थान की चार राज्यसभा सीटों में से दो सीटें कांग्रेस और एक सीट बीजेपी को मिलनी तय है जबकि चौथी सीट के लिए सियासी संग्राम मचेगा।

बात उत्तर प्रदेश राज्यसभा की...

विधानसभा में भाजपा गठबंधन के 273 और सपा गठबंधन के 125 विधायक हैं। जनसत्ता दल लोकतांत्रिक और कांग्रेस के दो-दो और बसपा का एक विधायक है। माना जा रहा है कि जनसत्ता दल के दो विधायकों का समर्थन भाजपा को मिल सकता है और भाजपा 8वीं सीट अपने पाले में कर सकती है। कांग्रेस और बसपा का किसी भी दल से गठबंधन नहीं होने से दोनों दल चुनाव से बाहर रह सकते हैं।

सपा के लिए चुनौती

राज्यसभा चुनाव में सपा के लिए अपने नाराज विधायकों को एकजुट रखना बड़ी चुनौती होगी। राज्यसभा जाने की मंशा रखने वाले पार्टी नेताओं को भी पार्टी में बनाए रखना अखिलेश यादव के लिए एक बड़ी चुनौती है। विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से सपा में शिवपाल और आजम खान की नाराजगी एक बड़ा मुद्दा है। शिवपाल यादव तो सपा पर आजम खान की अनदेखी करने का आरोप तक लगा चुके हैं। विधायकों की बैठक में न बुलाए जाने से भी वह लगातार पार्टी से नाराज चल रहे हैं।

इन नेताओं का कार्यकाल पूरा

यूपी से जिन 11 राज्यसभा सदस्यों के कार्यकाल पूरे हो रहे हैं, उसमें  बीजेपी से जफर इस्लाम, शिव प्रताप शुक्ला, सुरेंद्र सिंह नागर, संजय सेठ और जय प्रकाश निषाद का नाम शामिल है। तो समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता रेवती रमण सिंह, विशंभर प्रसाद निषाद और सुखराम सिंह यादव हैं। बसपा के सतीश चंद्र मिश्रा, अशोक सिद्धार्थ हैं। वहीं कपिल सिब्बल का कार्यकाल भी राज्यसभा से भी समाप्त हो गया और कांग्रेस से भी। हालांकि कपिल सिब्बल अब समाजवादी पार्टी के समर्थन से राज्यसभा जाएंगे।

बात राजस्थान राज्यसभा चुनाव की...

जैसे कि आपको मालूम है कि राजस्थान की 4 राज्यसभा सीटों पर चुनाव होने हैं। और चारों पर ही भाजपा का कब्ज़ा है। लेकिन अब यहां विधायकों के लिहाज़ से दो सीटों पर कांग्रेस तो एक सीट पर भाजपा सुरक्षित नज़र आ रही है। लेकिन दोनों ही पार्टियां चौथी सीट को जीतने के लिए जुगत में लग गई हैं। क्योंकि कांग्रेस हो या भाजपा चौथी सीट जीतने के लिए निर्दलीय, बीटीपी, आरएलपी, और माकपा के सदस्यों के समर्थन की ज़रूरत पड़ेगी ही।

हालांकि, निर्दलीय के समर्थन से कांग्रेस का पलड़ा फिलहाल बारी दिख रहा है। राजस्थान में कांग्रेस के 108, भाजपा के 71, निर्दलीय 13, आरएलपी 3, बीटीपी 2, माकपा 2 और आरएलडी के पास एक विधायक है। राजस्थान में राज्यसभी की एक सीट के लिए 51 विधायकों का समर्थन चाहिए। इस लिहाज़ से कांग्रेस अपने अतिरिक्त वोटों के साथ-साथ निर्दलीय और अन्य छोटी पार्टियों का समर्थन जुटा लेती है तो तीसरी सीट पर काबिज़ हो सकती है। ये कहना ग़लत नहीं होगा कि आख़िरी समय में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत उलटफेर करने में माहिर हैं। इस लिहाज़ से भाजपा को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।

उत्तर प्रदेश और राजस्थान के अलावा बाकी राज्यों में भी राज्यसभा चुनावों के लिए कड़ी टक्कर होने की उम्मीद है, हालांकि ज्यादातर जगहों पर एकतरफा विधायक होने से भाजपा की जीत लगभग तय मानी जा रही है।

अब राज्यसभा और राज्यसभा चुनाव के बारे में जानते हैं...

संविधान के मुताबिक, राज्यसभा में सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 निर्धारित की गई है, जिसमे 238 सदस्यों के लिए चुनाव का प्रावधान है जबकि 12 सदस्य राष्ट्रपति नॉमिनेट करते हैं। जिन सदस्यों को राष्ट्रपति नॉमिनेट करते हैं वो कला, खेल, संगीत जैसे क्षेत्रों से होते हैं।  हर दो साल में से एक तिहाई सदस्यों का कार्यकाल खत्म भी होता है, जिसके बाद उनकी सीटों के लिए चुनाव होता है, इसका मतलब है कि प्रत्येक दो साल पर राज्यसभा के एक तिहाई सदस्य बदलते हैं न कि यह सदन भंग होता है। यानी राज्यसभा हमेशा बनी रहती है।

अलग होती है चुनावी प्रक्रिया

राज्यसभा चुनाव की प्रक्रिया लोकसभा और विधानसभा चुनाव से अलग है। क्योंकि उसके सदस्य का कार्यकाल 6 साल का होता है। लोकसभा चुनाव में आम आदमी वोट करते हैं लेकिन राज्यसभा चुनाव के लिए आम आदमी वोट नहीं कर सकता है, इसके लिए जनता द्वारा चुने गए जन प्रतिनिधि यानी विधायक ही इस चुनाव में हिस्सा लेते हैं। और राज्यसभा चुनावों के नतीजों के लिए एक फार्मूला भी तय किया गया है।

किसी राज्य की राज्यसभा की खाली सीटों में 1 जोड़कर उससे कुल विधानसभा सीटों को विभाजित किया जाता है यानी भाग दिया जाता है। जो भी संख्या निकलकर आती है उसमें 1 जोड़ दिया जाता है। जैसे अभी उत्तर प्रदेश में 11 सीटें खाली हैं और यहां कुल विधायक हैं 403 । अब समझिए....

·   खाली राज्यसभा सीटों की संख्या 11, अब इसमें एक जोड़ना होगा, हो गया 12.... (11+1=12) 

·   अब 12 से विधायकों की संख्या यानी 403 को भाग दिया जाएगा, तो नतीजा आएगा 33.58... (403/12=33.58)

·   भाग देने पर आई संख्या 33.58 में 1 जोड़ दिया जाएगा, तो आएगा 34.58... (33.58+1=34.58)

·   यानी ये कह सकते हैं कि यूपी राज्यसभा चुनाव जीतने के लिए एक सदस्य को औसतन 35 विधायकों का समर्थन चाहिए।

ख़ैर.. आने वाले राज्यसभा चुनाव उत्तर प्रदेश और राजस्थान में बेहद दिलचस्प होने वाले हैं। जिसके लिए फिलहाल सभी राजनीतिक पार्टियां अपना पूरा ज़ोर लगा रही हैँ।

 

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