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लॉकडाउन से परेशान किसानों पर बारिश का क़हर

लॉकडाउन के कारण खेतों में खड़ी फसलों को काटने में देरी हो रही है और खेतों में कटी फसलों के पड़े रहने के दरम्यान मध्यप्रदेश के अधिकांश जिलों में तेज आंधी और बारिश हुई है।
किसानों पर बारिश का क़हर

मध्यप्रदेश के किसानों के लिए यह सबसे बुरा समय है। पिछले साल अतिवर्षा से मध्यप्रदेश की खरीफ फसलों का भारी नुकसान हुआ था। इस साल रबी सीजन में किसानों को उम्मीद थी कि पिछले साल हुए नुकसान की कुछ भरपाई हो जाएगी, लेकिन कोरोना के कारण देशव्यापी लॉकडाउन और बेमौसम आंधी-बारिश के बाद किसानों के हालात बिगड़ गए हैं। इस दुःख की घड़ी में उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। खेतों में बारिश से गिर गई फसलों और भींग चुकी कटी फसलों को देखने के सिवा उन्हें फिलहाल कुछ सूझ नहीं रहा है।

मौसम विभाग के अनुसार मध्यप्रदेश में बुधवार और गुरूवार-शुक्रवार रात को हुई बारिश 2006 के बाद मार्च में हुई सबसे ज्यादा बारिश है। बारिश का सबसे ज्यादा असर पश्चिमी मध्यप्रदेश में पड़ा है। कई जगहों पर ओले भी गिरे हैं। पिछले साल मध्यप्रदेश में मानसून लंबे समय तक सक्रिय था, जिसकी वजह से पूरी फसलें बर्बाद हो गई थी। मानसून का लंबा चलने की वजह से किसानों को रबी फसल की बुवाई में देरी करनी पड़ी। अक्टूबर के बजाय अधिकांश किसानों ने नवंबर और दिसंबर के शुरुआती समय में रबी की फसलों की बुवाई की। इस वजह से मार्च के शुरुआत में फसल कटने के बजाय अधिकांश किसानों की फसलें अभी खेतों में ही खड़ी हैं।

होली बाद कई जगहों पर कटाई शुरू हो गई थी। लेकिन 20 मार्च की जनता कर्फ्यू के बाद से ही प्रदेश में सारे काम ठप्प पड़ गए। इसका बड़ा असर खेती-किसानी पर भी पड़ा। प्रदेश में फसलों की कटाई हार्वेस्टर से होती है। पंजाब और हरियाणा से वाले हार्वेस्टर रास्ते में ही रोक दिए गए, यद्यपि बाद में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हार्वेस्टरों को नहीं रोका जाए। लेकिन स्थिति संभलने से पहले बेमौसम बारिश ने फसलों को बुरी तरह से नुकसान पहुंचा दिया। कई किसानों के गहाई के लिए रखी हुई फसलें भींग गई हैं। खड़ी फसलें बारिश व हवाओं से गिर गई हैं।

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सीहोर जिले के मुंगावली गांव के छोटे किसान कमलेश राठौर का कहना है, ‘‘दो दिनों की बारिश ने खड़ी फसलों को नुकसान पहुंचाया है। हमारे जैसे छोटे किसान फसलों की गहाई मशीनों से नहीं करवा पाते। कोरोना के कारण मजदूर नहीं मिल रहे हैं, जिससे फसल न कट रही है और न ही उसकी गहाई हो रही है। फसलों से हुए नुकसान को देखने के लिए कोई सरकारी कर्मचारी गांव में नहीं आया। पूरे इलाके के किसान परेशान हैं।’’ सीहोर और रायसेन जिले में कार्यरत सामाजिक कार्यकर्ता राकेश रतन सिंह का कहना है, ‘‘भोपाल से होशंगाबाद के बीच के इलाके में बारिश के बाद किसान अपने खेतों की भीगी फसलों को देख रहे हैं। उन्हें अभी यह सूझ नहीं रहा है कि वे क्या करें? न मशीनें हैं और न ही मजदूर। सभी घरों में बंद हैं। किसानों को यह चिंता सता रही है कि वे कर्ज किस तरह चुकाएंगे। फसलों की गुणवत्ता खराब होने से उनकी फसलों की कीमत भी नहीं मिलेगी।’’

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के राज्य सचिव जसविंदर सिंह का कहना है, ‘‘किसान दोहरी मार झेल रहे हैं। एक ओर कटाई के लिए खेत मजदूर नहीं मिल रहे हैं, तो दूसरी ओर लॉकडाउन के कारण खेत मजदूर घरों में कैद हैं व मजदूरी के लिए तरस रहे हैं। प्रदेश में सत्ता पर कब्जा के लिए चली उठापटक के कारण पूरी तरह से सरकार का गठन नहीं हो पाया है। प्रदेश में न तो राजस्व मंत्री है और न ही कृषि मंत्री, ऐसे में खेती-किसानी के मसले को देखने का ध्यान प्रशासन को नहीं है। कोरोना के कारण प्रदेश की दूसरी समस्याएं विकराल होती जा रही हैं। बर्बाद फसलों के सर्वे एवं मुआवजे की कोई घोषणा नहीं हुई हैं। सर्वे नहीं होने से किसानों को बीमा का लाभ भी नहीं मिल पाएगा।

लॉकडाउन के कारण खेतों में चार से ज्यादा मजदूर लगाने की अनुमति नहीं है, ऐसे ऊहापोह में किसानी ठप्प है। जिन किसानों की फसलें कट गई हैं, उनके साथ मंडियों में लूट हो रही है। चना, मसूर और गेहूं के लिए तय न्यूनतम समर्थन मूल्य से 30-40 फीसदी कम कीमत किसानों को दी जा रही है।’’

इस संदर्भ में किसान संघर्ष समिति के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. सुनीलम् ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को एक खुला पत्र लिखा है। पत्र में लिखा है, ‘‘जब कांग्रेस की सरकार थी और प्रदेश में अतिवृष्टि हुई थी तब आपने घुटने तक पानी में खड़े होकर फसलों का मुआवजा तथा फसल बीमा देने की मांग मुख्यमंत्री कमलनाथ से की थी। अब फिर रबी की खड़ी फसल अतिवृष्टि से बर्बाद हो रही है। ऐसी स्थिति में सभी पीड़ित किसानों को 10 हज़ार रुपए की अंतरिम राहत राशि प्रदान की जाए। क्रॉप-कटिंग सर्वे किसानों के परामर्श से किया जाए। सर्वे की रिपोर्ट बनने के तुरंत बाद किसान को (व्हाट्सअप के माध्यम से) उपलब्ध कराई जाए।

फसल बीमा के क्लेम को प्रोसेस करने वाले कर्मचारी का फोन नंबर संबंधित किसान को मैसेज के जरिये उपलब्ध कराई जाए। आप यह सुनिश्चित करें कि एक माह के भीतर फसल बीमा कंपनी द्वारा मुआवजा राशि किसान के खाते में डाल दिया जाए। बड़ी संख्या में ऐसे किसान हैं जिनका फसल बीमा नहीं हैं। ऐसे किसानों को भी फसल खराब होने के कारण एक मुश्त मुआवजा दी जानी चाहिए। किसानों का कर्ज माफ कर उन्हें नए कर्जे लेने की सुविधा तुरंत उपलब्ध करानी चाहिए।’’ इसके साथ ही उन्होंने खेतीहर मजदूरों को भी राहत दिए जाने की मांग की है।

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पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी एक ट्विट कर मुख्यमंत्री से किसानों को राहत दिए जाने की मांग की है। उन्होंने लिखा है, ‘‘प्रदेश के कई हिस्सों में अचानक हुई बारिश व आंधी से किसान भाइयों की फ़सलों को काफ़ी नुक़सान हुआ है। यह उन पर दोहरी मार है। मैं, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से मांग करता हूं कि संकट के इस दौर में किसान भाइयों के हित में तत्काल आवश्यक निर्णय ले व उनकी हरसंभव मदद करें।’’ किसानों के लिए इस दुःख की घड़ी में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ओर से किसी राहत के बजाय सिर्फ आश्वासन ही मिल पाया है। मुख्यमंत्री ने कहा है, ‘‘कोरोना संकट के साथ ही इन दिनों हुई बारिश तथा कहीं-कहीं ओलावृष्टि से फसलों को हुए नुकसान से किसानों पर दोहरी मार पड़ी है। मैं तुरंत आपके बीच नहीं पहुंच पा रहा हूं, परंतु सरकार आपके साथ है। संकट की इस घड़ी में सरकार आपकी हरसंभव मदद करेगी।’’

इस मुश्किल घड़ी में किसान अकेले पड़ गए हैं। हर सरकार खेती को लाभ का धंधा बनाने का नारा देती आ रही है, लेकिन किसान लगातार कर्ज में फंसते जा रहे हैं। उन्हें न तो उचित मुआवजा मिल पा रहा है और न ही फसलों की सही कीमत। प्रकृति की इस मार के बाद अंततः किसानों की उम्मीद भरी निगाहें सरकार की ओर ही हैं।

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