Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

नागरिकता संशोधन विधेयक के पीछे का असल मक़सद क्या है?

यह किसी भी प्रकार से ‘विदेशी मूल’ के लोगों को बाहर खदेड़ने के लिए नहीं, बल्कि एक समुदाय को निशाने पर लेकर सांप्रदायिक विभाजन की खाई को और गहरे तक पैवस्त करना है।
citizenship bill

मीडिया ख़बरों के अनुसार मंत्रिमंडल ने नागरिक (संशोधन) बिल, 2019 को अपनी मंज़ूरी दे दी है, और इसे संसद के इसी सत्र में पेश किया जाएगा। यह वह विधेयक है जिसे नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन कर इस बात की आधारशिला रखी जाएगी जिसके आधार पर यह निर्धारित होगा कि किस-किस को भारतीय नागरिक के रूप में मान्यता मिलेगी।

हालाँकि नए विधेयक के प्रारूप को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है। लेकिन इसके 2016 वाले पिछले संस्करण से, जिसे इस साल जनवरी में लोकसभा से पारित करवा लिया गया था, लेकिन राज्यसभा में इसे पेश न किये जाने के चलते यह विधेयक यह अपने आप निरस्त हो गया था, इससे हमें इस बात का एहसास है कि इस पिटारे में क्या-क्या चीज़ें शामिल होंगी।

संशोधन विधेयक में प्रभावी प्रावधान यह है : तीनों पड़ोसी देशों से (अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान) सिर्फ़ मुसलमानों को छोड़कर बाक़ी सभी धर्मों के मानने वाले अवैध घुसपैठियों को अब छह साल (पहले के 11 वर्षों के बजाय) देश के भीतर गुज़ारने की एवज में भारतीय नागरिक घोषित किया जा सकेगा। यह मूल अधिनियम की धारा 2 में संशोधन के साथ-साथ धारा 4 में एक अन्य संशोधन में निर्दिष्ट है, जो अधिनियम की तीसरी अनुसूची को परिवर्तित कर देता है।

संशोधन विधेयक यह तर्क प्रस्तुत करता है कि चूँकि विदेशी मूल के लोगों के लिए अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट अधिनियम, 1920 (भारत में प्रवेश के लिए) में बदलाव पहले ही कर दिए गए थे, जिससे केन्द्रीय सरकार को यह अधिकार मिल जाते हैं कि वह भारत के भीतर किसी विदेशी के प्रवेश, गमन और निवास को नियंत्रित कर सके। ये बदलाव मोदी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में 2015 और 2016 के वर्षों में ठीक इसी विवेचना के आधार पर अपनाए थे, जिससे मुसलमानों को 6 साल के भीतर नागरिकता के अधिकार हासिल करने से वंचित किया जा सके।

सरकारी आदेशों में इन नियमों में बदलाव करने में सबसे महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि इसमें अवैध घुसपैठियों के लिए समय सीमा 31 दिसम्बर 2014 तक की दी गई थी। जो लोग इस 6 साल की समय सीमा तक या इससे पहले से भारत में प्रवास कर रहे हैं, उन्हें न तो वापस भेजा जाएगा और ना ही बंदी बनाया जाएगा और वे भारत की नागरिकता हासिल करने के हक़दार होंगे। लेकिन ज़रा ठहरिये, इसमें सभी अवैध घुसपैठिये शामिल नहीं हैं। मुस्लिमों को इसमें से बाहर कर दिया गया है। इसका अर्थ है कि ना सिर्फ़ उन्हें बंदी के तौर पर रखा जा सकता है, और उन्हें निर्वासित किया जा सकता है, बल्कि उन्हें इस बात को भी साबित करना होगा कि (i) वे नागरिकता का अधिकार हासिल करने के लिए आवेदन करने के 12 महीने पहले से भारत निवास कर रहे थे और (ii) उस 12 महीनों से पहले 14 में से कम से कम 11 वर्ष यहाँ गुज़ार चुके हैं।

अब, यही निर्धारित समय सीमा और अधिनियम नागरिकता कानून (संशोधन के बाद) का हिस्सा होने वाले हैं। इसके चलते समूचे देश में और ख़ासकर उत्तर-पूर्व के राज्यों में उहापोह और आक्रोश की स्थिति उठ खड़ी हुई है। लेकिन इन असंतोषों की वजहें अलग-अलग हैं।

मुस्लिम-विरोधी क़ानून

इन विरोध के पीछे सर्वप्रथम और सबसे महत्वपूर्ण वजह यह है कि नागरिकता संशोधन क़ानून और पूर्व में किये गए अन्य नियमों-अधिनियमों में परिवर्तन द्वारा निर्मित क़ानून से किसी एक विशेष धार्मिक पक्ष, मुस्लिम समुदाय को लक्ष्य कर उनके ख़िलाफ़ खुलेआम भेदभाव की बू आती है। इन पहलुओं पर वैधानिक रूप से तर्क पेश किये गए हैं कि किस प्रकार यह संशोधन, संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है, जिसमें क़ानून के समक्ष सभी को समानता के हक की गारंटी मुहैया है। बेशक, इस अनुच्छेद का यह अर्थ निकाला गया हो कि लोगों के विभिन्न समूहों के बीच कुछ भिन्नता हो सकती है, बशर्ते कि इसके लिए एक उचित स्पष्टीकरण मौजूद हो। लेकिन जहाँ तक 2016 वाले नागरिकता संशोधन विधेयक का प्रश्न है,  इसमें इस तरह का कोई वाजिब स्पष्टीकरण पेश नहीं किया गया था।

नागरिकता संशोधन विधेयक न सिर्फ संविधान के इस आधार स्तंभ प्रदान करने वाली मूल प्रस्तावना का ही उल्लंघन करता है, जो इसके समूचे लोकाचार और सोच को दर्शाता है, और जिसे स्वतंत्रता आन्दोलन की विरासत से हासिल किया गया था, ने उस समूची अवधारणा पर काफ़ी गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। यह इसके राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर से कड़ी से उत्पन्न होता है, जिसे बीजेपी सरकार पूरे देश में लागू कराना चाहती है। आइये देखते हैं किस प्रकार यह कड़ी काम करने वाली है। 

एक बार आपके पास नागरिकता संशोधन विधेयक पारित होकर आ जाए, तो जैसा कि कई लोगों को डर है कि एनआरसी पर चलने वाली प्रक्रिया को असल में देश भर में मुसलमानों को निशाना बनाने के रूप में इस्तेमाल करने में काफ़ी सहूलियत हासिल हो सकेगी। क्योंकि बाक़ी सभी तरह के ‘विदेशी मूल’ के समुदायों को तो पहले से ही नागरिकता संशोधन विधेयक की मदद से सुरक्षित कर लिया गया है। अब सिर्फ़ मुसलमान ही बच जायेंगे जिन्हें ख़ुद को साबित करना होगा कि वे देश में अपने लम्बे समय तक रहने के दस्तावेज़ जुटाएं। अब आप इस बात की कल्पना कैसे कर सकते हैं कि कोई भी इंसान- चाहे वह किसी भी धर्म को मानने वाला हो- इस देश में इस तरह के दस्तावेज़ों को प्रस्तुत करना शुरू कर देगा? लेकिन इस पूरी प्रक्रिया से होगा क्या कि, ये सारे घटनाक्रम ऐसे अवसरों को जन्म देगा जिसमें ग़ुस्से और नफ़रत को भड़काया जा सके, जिसे दूसरा नापसन्द करता हो। जिसका अर्थ है सामाजिक विद्वेष को खड़ा करना और उससे भी भयानक यह है कि यह इतने स्तर तक पहुँच सकता है जो अकल्पनीय है।

उत्तर-पूर्व में अंसतोष की वजहें

उत्तर-पूर्वोत्तर राज्यों में इसको लेकर भय की वजहें कुछ अलग हैं। हालिया एनआरसी की प्रक्रिया में 19 लाख से अधिक लोगों को ‘विदेशी मूल’ के रूप में ‘पहचान’ की गई है, जो 1985 के असम समझौते पर आधारित है जिसकी निर्धारित समय सीमा मार्च 1975 तक थी। इस पूरी प्रक्रिया से जो परिणाम निकल कर सामने आये हैं उसमें पता चला है कि अधिकतर लोग इसमें हिन्दू हैं, जो एनआरसी से बाहर हो गए हैं। इससे संघ परिवार और बीजेपी से जुड़े लोगों को गहरा धक्का पहुँचा है। अब नागरिकता संशोधन विधेयक, इस आघात को दूर करने देने वाला रामबाण नुस्खा सिद्ध होने जा रहा है, क्योंकि इसके जरिये, अब कथित विदेशी मूल के लफड़े से हिन्दू साफ़ तौर पर बच निकल जायेंगे और उन्हें बिना किसी समस्या के भारत में शामिल किया जा सकता है। 

लेकिन इस सवाल ने उत्तर-पूर्व के अन्य जातीय समूहों के बीच गुस्से और गंभीर असंतोष को जन्म दे दिया है क्योंकि वे भयभीत हैं कि अब समूचे असम समझौते की मूल भावना को धता बताकर उन सभी हिन्दू आप्रवासियों को उत्तर पूर्व में बसने की अनुमति मिल जाएगी, और जिस बात के लिए इतनी लड़ाई लड़ी गई थी, वह समस्या जस की तस बनी रहेगी।

दूसरे शब्दों में कहें तो उत्तर-पूर्व इन आप्रवासियों को हिन्दू और मुस्लिमों के खाँचे में इनके बँटवारे के नजरिये को मानने को हर्गिज़ तैयार नहीं है। उनकी माँग है कि 1975 की दी गई सीमा के बाद जो भी अप्रवासी हैं, उन सभी को बाहर का रास्ता दिखाया जाए। याद रखें: नागरिक संशोधन विधेयक सभी ग़ैर-मुस्लिमों के लिए तिथि को 2014 से 6 साल पहले तक खिसका सकता है, जो 2008 है और मुस्लिमों के लिए 2014 से 11 साल पहले तक।

मुद्दों से भटकाने वाली सीएबी/एनआरसी की भूमिका 

इस पूरे नागरिकता संशोधन विधेयक/नागरिकता रजिस्टर अभियान के समान उतना ही महत्वपूर्ण एक दूसरा पहलू भी मौजूद है जिसे भगवा ब्रिगेड द्वारा मैनेज किया जा रहा है। ये दोनों प्रस्तावित क़ानून देश में बढ़ती बेरोज़गारी, मंदी, बढ़ती हुई क़ीमतों, किसानों के संकट, श्रम क़ानूनों में किये जा रहे प्रतिक्रियावादी बदलावों जिसके ज़रिये मज़दूरों के अधिकारों का गला घोंटने और छंटनी जैसे अन्य मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने का काम कर रहे हैं। विस्फोटक आर्थिक संकट को संभालने में नाकाम  मोदी सरकार ने, ख़ासकर अपने दूसरे कार्यकाल में, ऐसे ढेर सारे क़दमों को उठाने का काम किया है जिससे देश सांप्रदायिक रंग में सरोबार किया जा सके और लोग सांप्रदायिक आधार पर सोचने पर मशगूल रहे। इससे जहाँ एक तरफ़ सरकार को मूल समस्याओं से पैदा होने वाले ग़ुस्से से राहत मिलती रहेगी, वहीँ यह मुद्दा हिंदू राष्ट्र के निर्माण के आरएसएस के एजेंडे को भी आगे बढ़ाने का काम करता है।

मोदी सरकार की हालिया कार्रवाई ने संघ परिवार के बहुप्रतीक्षित मुद्दों को प्रमुखता से उठाने का काम किया है, जिसमें जम्मू-कश्मीर की विशेष हैसियत को निरस्त कर पूरे इलाक़े को एक सैन्य कारगर में तब्दील करना शामिल है। इसके साथ ही नागरिकता संशोधन विधेयक और एनआरसी और अयोध्या मसले को हल करने के बारे में भी उसका दावा है। इन सभी उपायों से कुछ हद तक चुनावी फ़ायदा उठाया जा सकता है,  हालाँकि हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा को मुहँ की खानी पड़ी है और पश्चिम बंगाल के उपचुनावों के परिणामों ने इसे भी संदेहास्पद बना दिया है।

हालाँकि देश को गहरे विभाजन और संघर्ष में धकेलने के लिए नीतियों का पूरा फ़लक तैयार कर दिया गया है। वे अपनी इस योजना में सफल होंगे या नहीं यह अभी भविष्य की गर्त में है, क्योंकि आम लोगों का प्रतिरोध और संघर्ष भी भारी उर्जावान गति से आगे बढ़ रहा है। आने वाले दिनों में, श्रमिकों की एक विशाल हड़ताल 8-9 जनवरी में होने जा रही है और उसी दौरान सैकड़ों किसान संगठनों द्वारा आहूत ग्रामीण बंद को भी अंजाम दिया जाना है। लड़ाई अभी ख़त्म नहीं हुई है।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

What is the Real Intention Behind CAB and the Future Pan-Indian NRC?

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest