ज्यूडिशियल इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधारः दावे और सच्चाई
प्रधानमंत्री ऑफिस के ऑफिशियल ट्विटर हैंडल से भारत में न्याय व्यवस्था और लोगों तक इसकी पहुंच के बारे में एक ट्वीट किया गया। ट्वीट में प्रधानमंत्री के हवाले से दावा किया गया है और लिखा है कि “किसी भी समाज के लिए ज्यूडिशियल सिस्टम तक एक्सेस जितना ज़रूरी है, उतना ही ज़रूरी जस्टिस डिलीवरी भी है। इसमें एक अहम योगदान ज्यूडिशियल इंफ्रास्ट्रक्चर का भी होता है। पिछले आठ वर्षों में देश के इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिए तेज गति से कार्य हुआ है”।
किसी भी समाज के लिए Judicial system तक access जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी justice delivery भी है।
इसमें एक अहम योगदान judicial infrastructure का भी होता है।
पिछले आठ वर्षों में देश के judicial infrastructure को मजबूत करने के लिए तेज गति से काम हुआ है: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) July 30, 2022
लेकिन सवाल उठता है कि क्या सचमुच ज्यूडिशियल इंफ्रास्ट्रक्चर में तेज गति से सुधार हुआ है? जस्टिस डिलिवरी की क्या स्थिति है?ज्यूडिशियल सिस्टम तक लोगों की एक्सेस की क्या स्थिति है?
इन सब सवालों का जवाब जानने के लिए हमें दो बातों पर गौर करना पड़ेगा। पहला ये कि देश में तमाम कोर्टों में कितने जज हैं और दूसरा कि देश में कुल पेंडिंग केस कितने हैं? ये दोनों जानकारी देश में न्याय व्यवस्था की तस्वीर को स्पष्ट कर देंगी। तो आइये पड़ताल करते हैं।
हाईकोर्ट व ज़िला स्तरीय न्यायालयों में जजों की नियुक्तियों की स्थिति
गौरतलब है कि वर्ष 2013 में चीफ जस्टिस और राज्यों के मुख्यमंत्रियों की एक कांफ्रेस हुई थी। जिसमें निर्णय लिया गया था कि 22 जुलाई 2022 तक उच्च न्यायलयों में जजों की संख्या में 25% की बढ़ोतरी की जाएगी। यानी इस हिसाब से जुलाई 2022 तक 226 जजों की नियुक्ति होनी थी। लेकिन इन आठ सालों में अब तक मात्र 202 जजों की ही नियुक्तियां की गई हैं। यानी 2013 में लिया गया फैसला अब तक भी पूरी तरह लागू नहीं हुआ है।
ये भी ध्यान रखने की ज़रूरत है कि मात्र नियुक्तियों के आंकड़े से ही मामले को नहीं समझा जा सकता बल्कि ये भी देखना होता है कि इस दौरान सैंक्शन्ड पदों की स्थिति क्या है? क्या उनमें भी बढ़ोतरी हुई है?
उदाहरण को तौर पर वर्ष 2013 में स्थानीय अदालतों में जजों के कुल 19,518 सैंक्शन्ड पद थे जिसकी एवज़ में मात्र 15,115 पदों पर ही नियुक्ति की गई थी। वर्ष 2022 में सैंक्शन्ड पदों की संख्या बढ़कर 24,631 हो गई जिनमें से 19,289 पद ही भरे गए हैं। यानी वर्ष 2013 में 4,403 पद खाली पड़े थे और वर्ष 2022 में रिक्त पदों की संख्या 5,342 है। ये आंकड़ा स्पष्ट बता रहा है कि स्थिति बेहतर नहीं हुई बल्कि बदतर ही हुई है।
स्थानीय अदालतों में तकरीबन 22% पद खाली पड़े हैं। 28जुलाई 2022 को कानून एवं न्याय मंत्री किरन रिजिजू नें राज्यसभा में अपने लिखित जवाब में ये आंकड़े प्रस्तुत किए है।
देश के उच्च न्यायालयों की स्थिति भी ऐसी ही है।अगर दादरा एवं नगर हवेली, लक्षद्वीप और चंडीगढ़ को छोड़ दें तो देश के किसी भी हाइकोर्ट में जजों की पूरी संख्या नहीं है। प्रत्येक उच्च न्यायालय में जजों की नियुक्ति की स्थिति जानने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।
पेंडिंग केसों की स्थिति
न्याय व्यवस्था की स्थिति को समझने के लिए ये समझना भी ज़रूरी है कि देश में एक साल में कितने केस कोर्ट में दायर किये जाते हैं, कितने केस साल में निपटाये जाते हैं और कितने केस पेंडिंग रहते हैं। वर्ष 2021 में सिर्फ देश के हाइकोर्टों में ही 17,37,701 केस फाइल किए गये। जिनमें से 14,41,136 केस ही निपटाये गये। अकेले वर्ष 2021 के पेंडिंग केसों की संख्या 2,96,565 है। प्रत्येक हाइकोर्ट में केसों की स्थिति का ब्यौरा आप इस लिंक पर देख सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट में 72,062 केस, हाई कोर्टों में 59,45,709 और ज़िला आदि कोर्टों में 4,19,79,353 केस लंबित पड़े हैं। अगर तीनों को जोड़ लें तो देश में कुल 4,79,97,124 केस पेंडिंग हैं।
अगर हम ऊपर दिये गये आंकड़ों के हिसाब से देखें तो देश में न्यायव्यवस्था की स्थिति काफी डरावनी है। पेंडिंग केसों की संख्या करोड़ों में हैं और देश के किसी भी हाइकोर्ट और स्थानीय कोर्ट में पूरा स्टाफ नहीं है। देश के जिस भी नागरिक का कोर्ट से पाला पड़ा है वो “तारीख़ पे तारीख़” डॉयलाग का मतलब खूब समझता है।
स्पष्ट है कि पेंडिंग केसों के अंबार के पीछे जजों, अन्य स्टाफ और इंफ्रास्ट्रक्चर की भारी कमी है। कोर्टों में जजों और सुनवाई के लिए हॉल आदि की कमी की वजह से कोर्ट मामलों को समय पर निपटाने में सक्षम नहीं है। परिणामस्वरूप केस में तारीख़ पे तारीख़ मिलती रहती है और हर साल पेंडिग केसों की संख्या का अंबार लगता रहता है। लेकिन दुर्भाग्य की स्थिति ये है कि एक तरफ तो देश के कानून एवं न्याय मंत्री ये डरावने आंकड़े रखते हैं तो दूसरी तरफ देश के प्रधानमंत्री सच्चाई से आंखें मूंदकर ज्यूडिशियल इंफ्रास्ट्रक्चर की मज़बूती का दावा कर रहे हैं।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं।)
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