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हिंदुत्व की तुलना बोको हरम और ISIS से न करें तो फिर किससे करें?

सलमान खुर्शीद की किताब 'सनराइज ओवर अयोध्या’ को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने विवाद खड़ा कर दिया है।
salman khurshid book

कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद की किताब 'सनराइज ओवर अयोध्या’ (Sunrise Over Ayodhya-Nationhood In Our Time) को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने विवाद खड़ा कर दिया है। किताब में बाबरी मस्जिद बनाम राम जन्मभूमि विवाद, उस पर हुई लंबी मुकदमेबाजी और अंत में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की विस्तार से चर्चा की गई है और फैसले को देश के मौजूदा हालात के मद्देनजर उचित बताया गया है। 

सलमान खुर्शीद ने किताब की भूमिका में लिखा है: ''आज जो हालात देश में हैं, उसमें यह फैसला मरहम लगाने का रास्ता है कि फिर ऐसे विवाद पैदा न हों। हिंदुत्व के समर्थक इस फैसले को अपनी जीत, अपने गौरव के तौर पर देखेंगे मगर न्याय के संदर्भ में जीवन कई विसंगतियों से भरा हुआ है। हमें इन विसंगतियों के साथ ही आगे बढ़ने की जरूरत है। मेरी यह किताब सुप्रीम कोर्ट के फैसले को विवेकपूर्ण ढंग से देखने-समझने की कोशिश है। हालांकि कई लोगों को लगता है कि यह फैसला सही नहीं है। लेकिन यदि समाज में एकता कायम रहती है तो मैं मानूंगा कि मेरा किताब लिखने का मकसद सही था और मैं कामयाब रहा।’’

सलमान खुर्शीद की 364 पेज की यह किताब पूरी तरह अयोध्या विवाद और उस पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर केंद्रित है। इसमें विभिन्न धर्मों और खासकर हिंदू यानी सनातन धर्म के बारे में भी चर्चा की गई है। यानी सलमान खुर्शीद ने काफी अध्ययन और शोध के बाद यह किताब लिखी है। अंदाजा तो यह था कि इस किताब के आने के बाद वे लोग और वे राजनीतिक दल इस किताब के लिए और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को महिमामंडित करने के लिए सलमान खुर्शीद की आलोचना करेंगे, जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के भी आलोचक रहे हैं। लेकिन हो बिल्कुल उलटा रहा है। फैसले के आलोचक तो कुछ नहीं कह रहे हैं लेकिन फैसले पर जश्न मनाने वाली राजनीतिक जमात ने अपने खास अंदाज में सलमान खुर्शीद को निशाने पर ले लिया है। 

किताब के 'द सैफ्रन स्काई’ (The Saffron Sky) नामक अध्याय में हिंदू धर्म की प्राचीनता और उसकी विशेषताओं का जिक्र करते हुए सलमान खुर्शीद ने लिखा है कि हिंदुत्व की विचारधारा इस धर्म के मूल स्वरूप को नष्ट कर रही है और इस विचारधारा के राजनीतिक संगठन बोको हरम और आईएसआईएस जैसे आतंकवादी जमातों जैसे हैं। बस इसी एक वाक्य को लेकर भाजपा और उसके बगल बच्चा संगठनों ने हंगामा शुरू कर दिया है। दरअसल उन्हें सलमान खुर्शीद के रूप में एक मनचाहा टारगेट मिल गया है- एक तो कांग्रेसी और वह भी मुसलमान। और क्या चाहिए? 

कुछ महीनों बाद उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव होना है, जिसे लेकर अयोध्या, मथुरा और काशी के साथ ही जिन्ना, तालिबान, पाकिस्तान आदि के नाम पर माहौल गरमाने का खेल पहले ही शुरू हो चुका है। इसी कड़ी में अब सलमान खुर्शीद और उनकी किताब को भी शामिल कर लिया गया है। यदि यह सब नहीं हुआ तो महंगाई, भ्रष्टाचार, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, बढ़ते अपराध आदि पर बात होगी, जो बहुत भारी पड़ेगी। भाजपा नेताओं के सुर में सुर मिलाते हुए कांग्रेस के कुछ लिजलिजे नेता भी अपने-अपने कारणों से हिंदुत्ववादी बिग्रेड के सुर में सुर मिलाते हुए सलमान खुर्शीद लानत-मलामत कर रहे हैं। हालांकि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने वर्धा में अपनी पार्टी के एक कार्यक्रम में सलमान खुर्शीद की किताब का जिक्र किए बगैर कहा कि हिंदू और हिंदुत्व दोनों अलग-अलग है। हिंदू धर्म किसी दूसरे धर्म के लोगों को सताने की बात नहीं करता है, लेकिन हिंदुत्व यही काम करता है। 

भाजपा यानी हिंदुत्ववादी ब्रिगेड ने हमेशा की तरह हिंदू धर्म के साथ हिंदुत्व को गड्डमड्ड करते हुए और अपने को पूरे हिंदू समाज का ठेकेदार मानते हुए राहुल गांधी और खासकर सलमान खुर्शीद के खिलाफ कड़े तेवर अपना लिए हैं। दिल्ली सहित कई शहरों में सलमान खुर्शीद के खिलाफ मुकदमे दर्ज करा दिए गए हैं। 

सवाल उठता है कि सलमान खुर्शीद का आईएसआईएस और बोको हरम से हिंदुत्व की तुलना करना क्या वाकई गलत है? क्या हिंदू धर्म का पर्याय या समानार्थी है हिंदुत्व? किसी भी हिंदू धर्मग्रंथ में हिंदुत्व शब्द और यहां तक कि हिंदू शब्द का जिक्र भी नहीं आया है। बीसवीं सदी के सबसे बड़े हिंदू संन्यासी और वैदिक या सनतान धर्म के निर्विवाद व्याख्याकार विवेकानंद ने भी कभी हिंदुत्व शब्द का इस्तेमाल नहीं किया।

दरअसल यह एक स्थापित तथ्य है कि हिंदुत्व एक राजनीतिक विचारधारा है, जिसका प्रतिपादन विनायक दामोदर सावरकर ने 1923 में किया था और बताया था कि हिंदू कौन है। गौरतलब है कि सावरकर पूरी तरह नास्तिक थे, लिहाजा उन्होंने खुद स्पष्ट किया था कि हिंदुत्व एक राजनीतिक विचारधारा है और इसका हिंदू धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने 'हिंदुत्व’ नामक अपनी पुस्तक में कहा था कि जिनकी पितृभूमि और पुण्यभूमि सप्त सिंधु यानी हिंदुस्तान में हो, वही हिंदू है और हिंदू राष्ट्र में रहने का अधिकारी है।

सावरकर ने अपनी इसी विचारधारा के आधार पर 1937 में हिंदू महासभा के अहमदाबाद अधिवेशन मे औपचारिक तौर पर द्विराष्ट्रवाद का सिद्धांत पेश किया था और कहा था कि हिंदू और मुसलमान दो पृथक राष्ट्र हैं जो कभी साथ नहीं रह सकते। मुस्लिम, ईसाई और कम्युनिस्ट को हिंदुत्व का दुश्मन मानते हुए सावरकर का लक्ष्य हिंदुओं का सैन्यीकरण करना था। दिलचस्प तथ्य यह भी है कि आरएसएस आज भले ही सावरकर को अपना मानता हो, मगर सावरकर ने आरएसएस को कभी अपना नहीं माना। गोहत्या, धार्मिक कर्मकांड और जातिगत छूआछूत को लेकर आरएसएस से उनके गंभीर मतभेद थे।

जो भी हो, कुल मिलाकर स्वतंत्र भारत या राष्ट्रीय आंदोलन का विचार सावरकर की 'हिंदुत्व’ की अवधारणा को पूरी तरह खारिज करता है। महात्मा गांधी से लेकर नेहरू, सरदार पटेल, आंबेडकर और लोहिया तक ने 'हिंदूराष्ट्र’के विचार को खारिज ही नहीं किया बल्कि इसकी तीखी आलोचना भी की।

राष्ट्रीय आंदोलन के नायकों के विचारों की रोशनी में देखते हुए पूछा जाना चाहिए कि सलमान खुर्शीद ने हिंदुत्व के बारे में क्या गलत कहा है? क्या उन्होंने बोको हरम और आईएसआईएस से हिंदुत्व की अनुचित तुलना की है? अगर अनुचित है तो फिर हिंदुत्व की तुलना किस कट्टरपंथी संगठन से की जानी चाहिए?

मुस्लिम बुद्धिजीवियों और राजनेताओं पर हिंदुत्ववादी बिग्रेड का अक्सर आरोप रहता है कि वे इस्लामी कट्टरपंथ या आतंकवाद की आलोचना नहीं करते। लेकिन यहां तो सलमान खुर्शीद ने सीधे-सीधे बोको हरम और आईएसआईएस को कट्टरपंथी और आतंकवादी करार दिया है। अगर वे हिंदुत्व की तुलना फासिस्ट या हिटलरवादी विचारधारा से करते, तब भी उनकी आलोचना होती और कहा जाता कि उन्होंने मुसलमान होने की वजह से इस्लामी आतंकवाद का जिक्र नहीं किया। इसलिए सलमान खुर्शीद ने तो बोको हरम और आईएसआईएस का नाम लेकर अपने साहस और उदारता का परिचय दिया है। उन्होंने हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के कट्टरपंथियों को रेखांकित किया है।

हिंदुत्वादियों या आरएसएस के कुछ आलोचकों का कहना है कि बोको हरम और आईएसआईएस से हिंदुत्व की तुलना करके सलमान खुर्शीद ने थोड़ी अति कर दी है, जो कि उचित नहीं है। उनकी दलील है कि हमारे यहां हिंदुत्ववादी ताकतें एक लोकतांत्रिक और संवैधानिक प्रक्रिया के तहत सत्ता में हैं। केंद्र सहित कई राज्यों में उनकी सरकार है, जबकि बोको हरम और आईएसआईएस अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित संगठन हैं। लेकिन ऐसी दलील देने वाले यह क्यों भूल जाते हैं कि हिंदुत्व के सबसे बड़े प्रवक्ता आरएसएस पर भी उसकी उग्रवादी और विभाजनकारी गतिविधियों के चलते आजाद भारत में तीन बार प्रतिबंध लग चुका है। अमेरिका और यूरोपीय देशों के कई थिंक टैंक और मीडिया संस्थान आरएसएस और भाजपा को एक अतिवादी और हिंदू राष्ट्रवादी संगठन मानते हैं और उसकी गतिविधियों की आलोचना करते हैं।

यह भी नहीं भूलना चाहिए कि आजाद भारत में सबसे बडी आतंकवादी घटना महात्मा गांधी की नृशंस हत्या के रूप में घटित हुई थी, जिसे हिंदुत्ववादियों ने ही अंजाम दिया था। यह भी जगजाहिर है कि गांधी के हत्यारों और हत्याकांड के सूत्रधार रहे उन हिंदुत्वादियों को महिमामंडित करने का काम पिछले छह-सात साल से कौन लोग कर रहे हैं और किसकी शह पर कर रहे हैं।

पिछले तीन दशकों के दौरान ओडिशा, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में चर्चों, पादरियों और ननों पर हमले स्पष्ट तौर पर हिंदुत्ववादी संगठनों ने किए हैं। ओडिशा में बूढ़े पादरी ग्राहम स्टैंस और उसके बच्चों को जिंदा जलाने वाला दारा सिंह नामक व्यक्ति तो घोषित रूप से आरएसएस का कार्यकर्ता और बजंरग दल का पदाधिकारी था।

इसी सिलसिले में गुजरात का जिक्र करना भी लाजिमी है, जहां इसी सदी के शुरुआती दौर में वहां 'क्रिया की प्रतिक्रिया’ के नाम पर मुसलमानों का संगठित कत्लेआम हुआ था और उसी दौरान मुस्लिम समुदाय की कई गर्भवती स्त्रियों के गर्भ पर लातें मार-मार कर उनकी और उनके गर्भस्थ शिशुओं की हत्या कर उनके शव त्रिशूल पर टांग कर लहराए गए थे। वह कृत्य किस तरह के मानव धर्म या राष्ट्रभक्ति से प्रेरित था? उसी हिंसा में एक सौ अधिक लोगों की हत्या के लिए जिम्मेदार बाबू बजंरगी को क्या आतंकवादी नहीं माना जाएगा, जो गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का करीबी सहयोगी हुआ करता था और जिसे अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुना रखी है। 

यूपीए सरकार के दौर में मालेगांव, अजमेर और समझौता एक्सप्रेस में बम के धमाके करने के आरोपी तो आरएसएस द्वारा प्रमाणित हिंदू ही हैं और उनमें से एक प्रज्ञा ठाकुर अब संसद की सदस्य है और अपनी कथित बीमारी के नाम पर जेल से बाहर जमानत पर है। अल्पसंख्यक समुदाय की औरतों को कब्र से निकाल कर उनके साथ बलात्कार करने का सार्वजनिक सभा में ऐलान करने, गोली मारो....और...काटे जाएंगे जैसे हिंसक नारे लगाने और सड़कों पर त्रिशूल, तलवार और तमंचे लहराने वालों को आतंकवादी नहीं तो क्या कहेंगे? 

जिस तरह बोको हरम, आईएसआईएस और तालिबान जैसे संगठन इसलाम के नाम पर लोगों की हत्या करते हैं? उसी तर्ज पर हमारे यहां हिंदुत्ववादी भी पिछले छह सात सालों से मुसलमानों, दलितों, बुद्धिजीवियों और लेखकों पर हिंसक हमले कर रहे हैं, उनकी हत्याएं कर रहे हैं। नरेंद्र दाभोलकर, एमएम कलबुर्गी, गोविंद पानसरे, गौरी लंकेश जैसे जनपक्षधर साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों के हत्यारे कौन हैं और क्यों आज तक कानून की पकड़ से दूर हैं? हिंदुत्व के नाम पर खुलेआम हिंसा का तांडव हो रहा है। मॉब लिंचिंग में 'जय श्रीराम’ 'भारत माता की जय’ और 'वंदे मातरम’ के नारे लगाने के लिए बाध्य किया जाता है। मंदिर में घुसने, घोड़ी पर बैठने और गांव के कुएं से पानी भरने पर दलितों की पिटाई होती है। गोहत्या गो का आरोप लगा कर मुसलमानों को मारे जाने की कई घटनाएं हाल के वर्षों में हो चुकी हैं। इस समय त्रिपुरा में सरकार के संरक्षण में मुसलमानों हिंसक हमले हो रहे हैं और उनके घरों में आग लगाई जा रही है। यह सारी घटनाएं आतंकवाद नहीं हैं तो फिर क्या हैं?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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