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कटाक्ष: पब्लिक अपना देख ले, सरकार अपना काम कर रही है!

सरकार अपना काम कर रही है। सरकार इस मुश्किल वक्त में लोगों की दवा, आक्सीजन, एंबुलेंस वगैरह से मदद कराने वालों की जांच कर रही है। सरकार प्रधानमंत्री से यह सवाल करने वाले पोस्टर फाड़ रही है कि जब देश के लिए टीके नहीं थे, तो बाहर क्यों भेजे?
कटाक्ष: पब्लिक अपना देख ले, सरकार अपना काम कर रही है!

अब बोलें सरकार कहां हैं, सरकार कहां है करने वाले! बहुत शोर मचा रखा था कि लोग अस्पतालों के दरवाजों पर दम तोड़ रहे हैं, सरकार कहां है। लोग सांस-सांस के लिए तड़प कर दम तोड़ रहे हैं, सरकार कहां है। श्मशानों-कब्रिस्तानों के भरने के बाद, मुर्दे नदियों की तरफ रुख कर रहे हैं, सरकार कहां है। आक्सीजन, दवा, कन्सेंट्रेटर और अस्पतालों में बैड तक ब्लैक में बिक रहे हैं, सरकार कहां है। बंगाल के चुनाव भी हो गए, पर सरकार कहां हैं। बड़े वाले तो बड़े वाले, छोटे वाले भी सरकार कहां हैं? तो अब अच्छी तरह देख लो कि सरकार यहां है! ऐन राजधानी में। और सरकार सिर्फ है नहीं। सरकार अपना काम कर रही है। सरकार इस मुश्किल वक्त में लोगों की दवा, आक्सीजन, एंबुलेंस वगैरह से मदद कराने वालों की जांच कर रही है। सरकार प्रधानमंत्री से यह सवाल करने वाले पोस्टर फाड़ रही है कि जब देश के लिए टीके नहीं थे, तो बाहर क्यों भेजे? सरकार ऐसे देवद्रोही पोस्टर लगाने, छापने, छपवाने वालों को गिरफ्तार कर रही है। और सरकार सिर्फ राजधानी में ही अपना काम नहीं कर रही है। उल्टे अब तो लोग कहने लगे हैं कि दिल्ली जो आज करती है, लखनऊ बीते कल ही कर चुका होता है। यूपी-बिहार के लेवल पर सरकार पूरी मुस्तैदी से मुर्दों से नदियों और नदी तटों की रखवाली कर रही है और मुनादी कर के मुर्दों को चेतावनी दे रही है कि नदी में तैरते पाए गए तो, करोना से जो बच गए उन घरवालों की खैर नहीं।

और अगर छोटा भाई वाली सरकार अपना काम कर रही है, तो मोटा भाई वाली सरकार भी बंगाल से फ्री होने के बाद, कोई हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठी है। वह किसानों को उपदेश देकर, बिना किसी मदद की आस के, हिम्मत हारे बिना कोरोना का मुकाबला करने के लिए, उनका हौसला बढ़ा रही है। बिना रुके बैठकों पर बैठकें कर रही है। दिशा-निर्देश पर दिशा-निर्देश जारी कर रही है। दुनिया भर से आ रही मदद अंधे के हाथ रेबड़ी की तरह बांट रही है, सो अलग। टीके के लिए नाम रजिस्टर करने के प्लेटफार्म से लेकर, सार्टिफिकेट पर फोटो चिपकाने तक के सारे काम भी, बेचारे मोटाभाई वाली सरकार को ही करने पड़ रहे हैं। फिर भी इसका शोर है कि सरकार कहां है! कहां है क्या, सरकार अपना काम कर रही है! बस, कोरोनो से अपने बचने-बचाने का पब्लिक खुद देख ले। आखिर, पब्लिक खुद भी कुछ करेगी या नहीं या सब कुछ सरकार ही करेगी? मोदी जी ने आत्मनिर्भर भारत क्या मजाक के लिए बनाया है!

वैसे मोटा भाई भी समझते हैं कि भारत, आत्मनिर्भर एक दिन में नहीं बन जाएगा। समाजवाद के चक्कर में जो पब्लिक इतने टैम सरकार निर्भर रह ली हो, वह आत्मनिर्भर तो होते-होते ही हो पाएगी। पब्लिक का बस चले तो बचाव के टीके से लेकर, श्मशान तक, सारे इंतजाम सरकार से ही करा ले। पर मोटा भाई वाली सरकार भी हौले-हौले पब्लिक को आत्मनिर्भर बना रही है। अब टीका ही ले लो। सरकार ने अपनी तरफ से तो इसी बार, 70-75 फीसद पब्लिक को आत्मनिर्भर कर दिया। 45 साल से ऊपर के बड़ी उम्र वाले बने रहें सरकार निर्भर, पर नीचे वाले तो आत्मनिर्भर हो गए। कोरोना से बचना है तो, पैसा फैंको और टीका लगवाओ। या दम हो तो छोटी सरकार पर जोर चलाओ और उसी से टीका खरिदवाओ; पर मोटा भाई को अपने नये इंडिया को आत्मनिर्भर बनाने दो।

सब एकदम ठीक जा रहा था, पर एक गलत-फहमी से सब चौपट हो गया। दूसरी लहर ने जब जोर पकड़ा, मोटा भाई ने पिछली साल के ताली-थाली, दिया-बाती उत्सव की तरह, इस बार टीका दिवस की गुहार लगायी। कोरोना ने देखा कि यहां तो टीका लगाकर स्वागत होगा, तो फूल कर कुप्पा हो गया। दूसरी तरफ पब्लिक ने समझा कि इंजेक्शन वाले टीके की पुकार है, सो टीके के लिए टूट पड़ी। उस टीके का टोटा तो पडऩा ही था। बेचारे मोटा भाई के 70 फीसद की आत्मनिर्भरता के एलान से भी काम नहीं चला। उल्टे टोटा और बढ़ गया। अब बेचारे टीका-गुरु को टीके के लिए दुनिया के सामने हाथ फैलाने पड़ रहे हैं। सबक ये कि गोबर और गोमूत्र को छोडक़र और किसी चीज में न्यू  इंडिया जल्दी से आत्मनिर्भर नहीं होने वाला। पर सरकार भी लगी हुई है। वह भी अपना काम कर रही है।

और सरकार अगर अपना काम कर रही है, तो उसके भक्त भी कोई हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठे हुए हैं। माना कि बेचारे भक्त अगर चाहें भी तो आक्सीजन, दवा वगैरह के मामले में किसी की मदद नहीं कर सकते हैं, क्योंकि इससे उनकी सरकार की इमेज खराब होगी कि चंगा सी के एलान के बाद भी सब ठीक नहीं है। पर वे तरह-तरह के काढ़ों की तरह, अपनी दर्शन की डोज से पब्लिक की इम्यूनिटी तो बढ़ा ही सकते हैं। सो उत्तराखंड के कुंभ-पूर्व वाले मुख्यमंत्री, त्रिवेंद्र सिंह ने कोरोना के प्रति जियो और जीने दो का सलूक करने का ज्ञान दिया है।

मनुष्य जो कोरोना के पीछे हाथ धोकर पड़ गया है, यही कोरोना को रूप बदलने को मजबूर कर रहा है। वाइरस भी जीव है, उसे भी जीने का हक है। मनुष्य अगर उसे जीने देगा, तो वाइरस भी न रूप बदलेगा और न मनुष्य का नुकसान करेगा। सच पूछिए तो यही है असली आत्मनिर्भर सोल्यूशन! टीका, आक्सीजन, दवा, बैड, शम्शान-कब्रिस्तान, किसी की हाय-हाय नहीं, किसी की जरूरत ही नहीं। सिर्फ वाइरस के साथ सह-अस्तित्व चाहिए। मोटा भाई जो इधर कुछ दिन से अदृश्य और बहुरूपिया दुश्मन की बात कर रहे हैं, उसका भी कुछ ऐसा ही इशारा तो नहीं है? जब दुश्मन ही अदृश्य और बहुरूपिया है, उससे लडऩे में सरकार का क्या काम है? कोरोना-वोरोना का क्या करना है, पब्लिक अपना खुद देख ले और सरकार को अपना काम करने दे। सरकार को देश-विदेश में मोटा भाई की छवि बचाने के बाद, बैंक-वैंक बेचने के अपने काम भी करने हैं।

(इस व्यंग्य आलेख के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोकलहर के संपादक हैं।)

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