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कटाक्ष: हथकड़ियों का डंका!

हम तो कहते हैं मोदी जी अगले हफ्ते तो ट्रम्प जी से मिलने जा ही रहे हैं, लौटते टैम अपने साथ सौ-डेढ़ सौ प्रवासी भारतीयों को तो साथ ला ही सकते हैं। हथकड़ी-बेड़ी का झगड़ा भी नहीं और बचत की बचत।
Migrants
फ़ोटो साभार : सोशल मीडिया

एक बात माननी पड़ेगी कि मोदी जी जो खुद कहते हैं वह तो जरूर करते ही करते हैं, वह और भी पक्के से करते हैं, जो भक्त कहते हैं कि मोदी जी कर देंगे। बताइए, मोदी जी ने अपने मुंह से कभी कहा था कि देश तो देश, विदेश तक से घर वापसी कराएंगे। बस वह तो सिर्फ भक्तों और भक्तिनों ने कहा था कि कुछ भी हो जाए, मोदी जी वापस ले आएंगे। वॉर रुकवानी पड़ी तो वॉर रुकवा कर लाएंगे, पर मोदी जी घर वापस ले आएंगे। और मोदी जी ले आए। अमरीका से, भारतीय बंदों को वाापस ले आए। 

माना कि मोदी जी की पार्टी ही घर वापसी कराने वाली पार्टी है। पर पार्टी की नीति को फिर भी मोदी जी की तरह पर्सनल कमिटेंट कौन बनाता है, और वह भी अपने मुंह से कहे बिना। पर मोदी है, तो कुछ भी मुमकिन है। 104 की घर वापसी हो चुकी है। सुना है अठारह हजार घर वापसी की लाइन में लगे हैं। डीयर फ्रैंड डोनाल्ड से लड़-झगड़ कर मोदी जी कुल सवा सात लाख तक का गुंताड़ा बैठा चुके हैं। इब्तिदा ए इश्क है विपक्ष रोता है क्या, आगे-आगे देखना होता है क्या!

पर थैंक्यू की छोड़ो, विपक्षी तो नाक कटने का शोर मचा रहे हैं। नाक भी, भारत उर्फ इंडिया की। हमें कोई बताएगा कि इसमें नाक कटने-कटाने वाली बात कहां से आ गयी। हिंदुस्तानी थे, जो अमरीका के दरवाजे पर पकड़ा गए, चोरी से भीतर घुसे या घुसने की कोशिश करते हुए। ट्रम्प जी ने पकड़कर वापस भेज दिया, वह भी हाथ के हाथ। जनवरी के आखिरी हफ्ते में पकड़ा और फरवरी के पहले हफ्ते में वापस भेज दिया। 

मुस्तैदी हो तो ट्रम्प की जैसी हो। बेशक, यह फ्रैंड ट्रम्प का नजरिया है। पर फ्रैंड मोदी की नजर से भी इसमें कुछ भी गलत नहीं है। मोदी के विदेश मंत्री, जयशंकर ने एकदम सही कहा; सब कुछ ही तो नियमानुसार हुआ है। और विपक्ष वाले जो अब हिंदुस्तानियों को पकडक़र वापस भेजे जाने का शोर मचा रहे हैं, तब कहां मुंह में दही जमा कर बैठ गए थे, जब मनमोहन सिंह के टैम में ऐसे ही अमरीका के दरवाजे से पकड़कर हिंदुस्तानी वापस भेजे गए थे। हिंदुस्तानी ऐसे ही पकडक़र पहले भी भेजे जाते रहे हैं। पिछले पंद्रह साल में पूरे अठारह हजार भेजे गए हैं। इस साल तो सिर्फ एक सौ चार भेजे गए हैं। आगे और भी भेजे जाते रहेंगे। हिंदुस्तानी ऐसे ही पकड़कर आगे भी भेजे जाते रहेंगे। ये मोदी की गारंटी है।

हर चीज में खामखां में नाक फंसाने वाले अगर इसमें नाक कटने की शिकायत कर रहे हैं, तो इसमें मोदी जी क्या कर सकते हैं? विदेशी संबंधों के मामले में तो वैसे भी किसी को नाक फंसानी ही नहीं चाहिए। फिर अगर किसी से नाक कटाने की शिकायत बनती भी है, तो इन बंदों से शिकायत बनती है। इन्हें जरूरत क्या थी अमरीका जाने की और बिना कागजों के उनके घर में घुसने की। मोदी जी ने यहां अमृत काल का फुल इंतजाम किया है। अयोध्या में भव्य राम मंदिर का उद्घाटन किया है। योगी जी ने यूपी में करीब-करीब राम राज्य ला दिया है। गुजरात में तो राम राज्य मोदी जी खुद अपने कर-कमलों से 2002 में ही ले आए थे। भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था बन चुका है। भारत को विश्व गुरु का आसन मिल चुका है। पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बस बनने ही वाले हैं, आज नहीं तो कल।

जिधर भी देखो, गर्व ही गर्व छाया हुआ है। सबसे बढ़कर सनातनी होने का गर्व। कोविड में गंगा शववाहिनी बन गयी तब भी और कुंभ में शव-वाहिनी बनते-बनते रह गयी, तब भी। फिर ये बंदे गए ही क्यों दूसरे के दरवाजे पर नौकरी मांगने। मोदी जी तो ऐसा इंडिया बनाने में लगे हैं, जहां वीज़ा के लिए सारी दुनिया लाइन लगाएगी। योगी जी ऐसा यूपी बनाने में जुटे हैं, जहां अमरीका समेत सारी दुनिया नौकरी खोजने आएगी। और ये नादीदे उन्हीं अमरीकियों के दरवाजे पर पहुंच गए और वह भी बिना कागज के। क्या ये 2087 में भारत के विकसित देश बनने तक इंतजार नहीं कर सकते थे, जल्दबाज कहीं के। विश्व गुरु की नाक कटवा दी! हरियाणा वालों ने सही किया, जो हवाई अड्डे पर उतरते ही इन बंदों को सीधे कैदी वाहन में भेज दिया। ऐसे एंटी-नेशनलों की जगह तो जेल में ही है; अमेरिकी जेल में न सही, हिंदुस्तानी जेल में सही। जेल-जेल मौसेरे भाई!

और ये विरोधी हथकड़ी-बेड़ी डाले जाने पर तिल का ताड़ और राई का पहाड़ क्यों बना रहे हैं? हथकड़ी-बेड़ी डालने से क्या होता है? अमरीकी कोई पैदल चलाकर नहीं लाए हैं, बाकायदा अपने जहाज से छोड़कर गए हैं। पर यहां तो भाई लोगों को फौजी जहाज से भी दिक्कत है। कह रहे हैं कि यह तो आतंकवादियों जैसा सलूक है। प्रवासी थे, फिर उनके साथ आतंकवादियों जैसा सलूक क्यों किया गया? और घुमा-फिराकर ठीकरा वही मोदी जी के सिर पर; मोदी जी ने ऐसा कैसे होने दिया? ट्रम्प तो डीयर फ्रेंड था, उसका तो पिछली बार अमरीका में जाकर चुनाव प्रचार भी किया था, उसने हिंदुस्तानियों के साथ ऐसा कैसे होने दिया? और यह भी कि जब कोलंबिया ने, मैक्सिको ने, ब्राजील ने, वेनेजुएला ने, ट्रम्प को फौजी जहाज से अपने नागरिकों को इस तरह पहुंचाकर अपना अपमान नहीं करने दिया, तो मोदी जी ने भारत का अपमान क्यों होने दिया? सिंपल है, मुफ्त हवाई यात्रा के लिए। सारा खर्चा अमरीकियों ने किया है, इंडिया की गांठ से एक कौड़ी नहीं लगी है। हम तो कहते हैं मोदी जी अगले हफ्ते तो ट्रम्प जी से मिलने जा ही रहे हैं, लौटते टैम अपने साथ सौ-डेढ़ सौ प्रवासी भारतीयों को तो साथ ला ही सकते हैं। हथकड़ी-बेड़ी का झगड़ा भी नहीं और बचत की बचत। कम से कम विरोधियों को नाक कटने-कटवाने का शोर मचाने का मौका नहीं मिलेगा। बल्कि एक और काम हो सकता था। मोदी जी वापसी पर उनके फौजी जहाज से ही चले जाते। सारी आलोचनाएं भी ध्वस्त और बचत ही बचत।

आखिर में एक बात और। हथकड़ी-बेड़ी डालकर और फौजी जहाज से भारतीयों के भेजे जाने पर, मोदी जी को ज्यादा झेंपने-वेंपने की जरूरत नहीं है। बेशक, भारतीयों के साथ यह पहली बार हुआ है। बेशक, भारतीयों के साथ ही यह सबसे पहले हुआ है। पर यह शर्म की नहीं गर्व की बात है। आखिर, विश्व गुरु भी तो हम ही हैं। जो भी नया होगा, सबसे पहले हमारे साथ ही तो होगा। किसी का डंका यूं ही थोड़े ही बज जाता है! डंका बजवाने के लिए कुछ न कुछ क़ुरबानी तो देनी ही पड़ती है। 

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं।)

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