Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

‘अगस्त क्रांति’ के दिन मज़दूर-किसानों का ‘भारत बचाओ दिवस’, देशभर में हुए विरोध प्रदर्शन!

इस विरोध प्रदर्शन के लिए 9 अगस्त के दिन को इसलिए चुना गया है क्योंकि इसी दिन 1942 में अंग्रेज़ों के खिलाफ ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की शुरुआत हुई थी। दरअसल ये पिछले कुछ समय से किसानों और मज़दूरों के आंदोलनों की कड़ी में एक और विरोध प्रदर्शन है।
‘अगस्त क्रांति’ के दिन मज़दूर-किसानों का ‘भारत बचाओ दिवस’, देशभर में हुए विरोध प्रदर्शन!

9 अगस्त यानी भारत छोड़ो आंदोलन (अगस्त क्रांति) की 79वीं वर्षगांठ के ऐतिहासिक मौके पर केंद्र व राज्य सरकारों की मज़दूर व किसान विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ देशभर में अलग-अलग जगहों पर बड़ी संख्या में मेहनतकश आम लोग सड़कों पर उतरे। मज़दूरों ने  ‘भारत बचाओ दिवस’ मनाया तो किसानों ने भी “मोदी गद्दी छोड़ो, कॉरपोरेट भारत छोड़ो” का नारा देते हुए इस में बड़ी संख्या में शामिल हुए। इस विरोध प्रदर्शन में दस केंद्रीय ट्रेड यूनियन के साथ ही किसान,नौजवान ,महिला और छात्रों संगठनों ने भी संयुक्त रूप से हिस्सा लिया।

इस विरोध प्रदर्शन के लिए 9 अगस्त के दिन को इसलिए चुना गया है क्योंकि इसी दिन 1942 में अंग्रेज़ों के खिलाफ ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की शुरुआत हुई थी। दरअसल ये पिछले कुछ समय से किसानों और मज़दूरों के आंदोलनों की कड़ी में एक और विरोध प्रदर्शन है।  

आज का यह आंदोलन भी अपने आप में ऐतिहासिक रहा क्योंकि केंद्रीय ट्रेड यूनियनें, किसान संगठन, सार्वजनिक उपक्रमों की कर्मचारी यूनियनें और फ़ेडरेशनें और स्कीम वर्कर्स (आशा, आंगनबाड़ी, मिड डे मील) के साथ ही छात्रों ने भी मोदी सरकार के ख़िलाफ़ हल्ला बोला है। 

इस दौरान बिहार, केरल, बंगाल, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, जम्मू कश्मीर हिमाचल प्रदेश व झारखंड सहित पुरे देश में सैकड़ो हज़ारों मज़दूरों व किसानों ने अपने कार्यस्थलों, ब्लॉक व जिला मुख्यालयों पर केंद्र सरकार की मज़दूर व किसान विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ जोरदार प्रदर्शन किए। इसी कड़ी में सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियन के राष्ट्रीय नेता और छात्र संगठन एसएफआई, नौजवान संगठन डीवाईएफआई सहित दिल्ली विश्विद्द्यालय के शिक्षक दिल्ली के मंडी हाउस पर एकत्रित हुए। ये सभी वहां से संसद मार्च करना चाहते थे परन्तु पुलिस ने इन्हे मंडी हाउस से आगे बढ़ने नहीं दिया।  जिसके बाद इन्होने अपनी जनसभा मंडी हाउस पर ही शुरू कर दी। 

मंडी हाउस में बड़ी संख्या में दिल्ली के कामकाज़ी लोगो पहुंचे। उन्हीं में से एक थी पेशे से घरेलू कामगार 32 वर्षीय प्रतिमा दास, उन्होंने  बताया कि उनको इस प्रदर्शन में आने के लिए अपने घर के मालिक से झूठ बोलना पड़ा है। उन्होंने बताया कि जब मालिक ने उनसे पूछा वह आज सुबह कहां जा रही हैं। दास ने मुस्कुराते हुए बताया कि, "मैंने मालकिन से कहा कि मैं अपने रिश्तेदारों से मिलने जा रहा हूं।"

उनसे कुछ दूरी पर खड़े थे 50 वर्षीय वीरेंद्र शर्मा, जिनकी कहानी इनसे ज्यादा भिन्न नहीं है।  शर्मा राष्ट्रीय राजधानी में  नगर निगम  ठेके पर सफ़ाई का काम कर रहे है। उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया, "मैंने आज छुट्टी ले ली, जिसके लिए मैं अपनी एक दिन की कमाई खो दूंगा।"

दास और शर्मा दोनों उन सैकड़ों कामकाजी लोगों में शामिल थे, जो सोमवार को नई दिल्ली के मंडी हाउस में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और उसकी मज़दूर विरोधी नीतियों के  खिलाफ 'भारत बचाओ' के विरोध मार्च में शामिल होने के लिए आए हुए थे।

इस प्रदर्शन में बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारियों, कारखाने के श्रमिकों, अनौपचारिक श्रमिकों, किसानों, और अन्य का प्रतिनिधित्व करने वाले कई क्षेत्रीय समूहों की भागीदारी देखी गई ।

दास ने न्यूज़क्लिक को बताया, "कोरोना [वायरस] महामारी के बाद जीवन पूरा बदल गया है।" दास के साथ आए अन्य लोगों ने भी इस बात से सहमति जताई, जो सोमवार को स्वरोजगार महिला संघ (सेवा)-दिल्ली इकाई के बैनर तले मंडी हाउस में मौजूद थे।

सेवा दिल्ली की स्थानीय संयोजक सुमन राय ने कहा कि महिला स्ट्रीट वेंडर, घर पर काम करने वाली और घरेलू कामगार सभी आज केवल एक चीज की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन करने आई हैं कि उन्हें उनके श्रम की मान्यता मिले ।

उन्होंने कहा “ये महिलाएं खुद को पंजीकृत करने की मांग कर रही हैं ताकि उनके काम को मान्यता मिले और उन्हें कुछ सामाजिक सुरक्षा मिल सके। अगर हम भारत को आगामी महामारियों से बचाना चाहते हैं, तो पहले इन श्रमिकों की रक्षा की जानी चाहिए।”

शर्मा, उत्तरी दिल्ली  में पिछले 11 वर्षों से सफाई कर्मचारी हैं। वो हिंद मजदूर सभा (एचएमएस) यूनियन के सदस्य भी हैं। उन्होंने  कहा, "हर दिन 12 घंटे तक काम चलता है और फिर भी हम अपने परिवारों के गुजारे के लिए पर्याप्त कमाई नहीं कर पाते हैं।"  

कोरोना से बड़ी संख्या में लोगों के रोजगार पर असर पड़ा है।  उसको लेकर भी कई लोगो ने चिंता ज़ाहिर की। ऐसे ही  41 वर्षीय मनोज कुमार थे, जिन्हें पिछले महीने पूर्वी दिल्ली के झिलमिल औद्योगिक क्षेत्र में एक बिजली के तार निर्माण इकाई से 17 अन्य लोगों के साथ निकाल दिया गया था। क्योंकि कंपनी के मालिक ने इस साल के लॉकडाउन  के बाद कारखाने को बंद करने का फैसला किया था।

सोमवार को दिल्ली के मंडी हाउस में प्रतिभागियों में छात्र और शिक्षक समूह भी शामिल हुए

स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) दिल्ली के सचिव प्रीतिश मेनन ने कहा कि जेएनयू, डीयू और एयूडी के छात्र आज मज़दूरों और किसानों के साथ एकजुटता में आए थे। उन्होंने कहा "हम यह भी मानते हैं कि देश को राष्ट्रीय शिक्षा नीति से बचाने की आवश्यकता है, जो कि हाशिए के समूहों को अच्छी गुणवत्ता की शिक्षा प्राप्त करने से बाहर करने के अलावा और कुछ नहीं है।"  

इसी तरह, संयुक्त फोरम फॉर मूवमेंट ऑन एजुकेशन, शिक्षक संघ के एक छत्र समूह की ओर से मौजूद नंदिता नारायण ने अफसोस जताया कि "एनईपी के माध्यम से भारतीय शिक्षा के व्यावसायीकरण और निजीकरण" के साथ ही शिक्षकों की सेवा शर्तें गंभीर रूप से प्रभावित करेगा।"

उन्होंने कहा "हमें अपने देश की शिक्षा प्रणाली को इस हमले से बचाना चाहिए।"  

10 केंद्रीय ट्रेड यूनियन सोमवार को अपने प्रेस बयान में कहा, “यह विरोध करने के लिए राष्ट्रव्यापी आह्वान था, 2014 से केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के कड़वे अनुभव के कारण यह जरूरी था — इसकी नीतियां मजदूर विरोधी, जन-विरोधी और यहां तक कि राष्ट्र-विरोधी हैं।" उनके दावे के मुताबिक  "देश भर में एक लाख से अधिक स्थानों पर प्रदर्शन हुए।"

ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी) की महासचिव अमरजीत कौर ने न्यूज़क्लिक को बताया कि एक 14-सूत्रीय डिमांड चार्टर है जिसके लिए ट्रेड यूनियन और किसान संगठन आज सड़को पर उतरे हैं।

मंडी हाउस में मौजूद सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) के महासचिव तपन सेन ने न्यूज़क्लिक को बताया कि 'भारत बचाओ' विरोध का उद्देश्य यह संदेश देना था कि अगर मेहनतकश लोगों की आजीविका ख़त्म होगी तो  इस देश में कुछ भी नहीं बचेगा।

सेन ने कहा "इसके खिलाफ हमारा नारा “देश बचाओ, मोदी हटाओ" सार्थक हो जाता है।

मज़दूर संगठन के नेताओं ने कहा कि सरकार कोरोना काल में मज़दूर किसान को राहत देने के बजाय उनके अधिकारों पर हमला कर रही है। देश के  श्रम कानूनों में बदलाव इसी प्रक्रिया का हिस्सा है।

किसान संगठनों ने केंद्र सरकार द्वारा  कृषि उपज, वाणिज्य एवं व्यापार (संवर्धन एवम सुविधा) अधिनियम 2020, मूल्य आश्वासन (बन्दोबस्ती और सुरक्षा) समझौता कृषि सेवा अधिनियम 2020 व आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) 2020 को किसान विरोधी बताया और कहा कि तीन किसान विरोधी कानून लागू कर के किसानों का गला घोंटने का कार्य किया है।

मज़दूर संगठनों के नेता ने कहा कि सरकार देश की जनता के संघर्ष के परिणामस्वरूप वर्ष 1947 में हासिल की गई आज़ादी के बाद जनता के खून-पसीने से बनाए गए बैंक, बीमा, बीएसएनएल, पोस्टल, स्वास्थ्य सेवाओं, रेलवे, कोयला, जल, थल व वायु परिवहन सेवाओं, रक्षा क्षेत्र, बिजली, पानी व लोक निर्माण आदि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को पूंजीपतियों को कौड़ियों के भाव पर बेचने पर उतारू है। ऐसा कर के यह सरकार पूंजीपतियों की मुनाफाखोरी को बढ़ाने के लिए पूरे देश के संसाधनों को बेचना चाहती है। यह सब कर के सरकार देश की आत्मनिर्भरता को खत्म करना चाहती है।

इसी तरह देश के बाकि राज्यों बिहार, हरियाणा, उत्तराखंड, तमिलनाडु ,कर्नाटक, तेलांगाना, हिमचाल, उत्तर प्रदेश सहित तमाम राज्यों में इस तरह के विरोध प्रदर्शन हुए।  

हरियाणा में प्रदर्शन में उतरे सकहीं वर्कर 

हरियाणा में किसान-मज़दूरों ने रोहतक, जींद, करनाल सहित कई जिलों में विरोध प्रदर्शन किया।  इस दौरान डीजल -पैट्रोल  और रसोई जैसे के बढ़ते दामों और बेतहशा बढ़ती महंगाई को लेकर केंद्र और राज्यों सरकार पर हमला बोला।  हरियाणा राज्य देश बीते आठ महीनो से चल रहे किसान आंदोलन का भी गढ़ रहा है।  ऐसे बड़ी संख्या में किसान भी सड़कों पर उतरे थे।  हरियाणा के स्कीम वर्कर भी सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगते हुए इस आंदोलन में शामिल हुए।

हरियाणा के मज़दूर नेता सीटू के राज्य महासचिव जय भगवना ने करनाल में प्रदर्शन में आए स्कीम वर्कर और मज़दूरों को संबोधित करते हुए कहा कि ये सरकार देश की सरकारी कंपनियों को बेचने के साथ ही देश के मज़दूर किसानों को भी उजाड़ने का काम कर रही है।  

हरियाणा किसान सभा के उपाध्यक्ष और संयुक्त किसान मोर्चा  के नेता ने भी रोहतक में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि देश की संसद चलने में हजारों करोड़ लगते हैं, लेकिन हमने उनके पास में ही कुछ हज़ार रूपए में संसद चालकर दिखा दिया और उनसे बेहतर चलाई है।  उन्होंने कहा हमारी एक ही मांग है सरकार तीन काले कृषि कानून वापस ले ले और एमएसपी पर फसल खरीद का गारंटी कानून बना दे।  

हिमाचल प्रदेश: कई ज़िलों में किसान-मज़दूर विरोधी कानूनों को वापिस लेने की मांग पर केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन 

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच व संयुक्त किसान मोर्चा के देशव्यापी आह्वान पर मजदूर संगठन सीटू व हिमाचल किसान सभा ने हिमाचल प्रदेश के जिला व ब्लॉक मुख्यालयों पर जोरदार प्रदर्शन करके भारत बचाओ दिवस मनाया। 

इस दौरान प्रदेश भर में हज़ारों मजदूरों व किसानों ने जोरदार प्रदर्शन किए। ये प्रदर्शन शिमला, रामपुर, रोहड़ू, निरमण्ड, ठियोग, टापरी, सोलन, अर्की,पौंटा साहिब, कुल्लू, आनी, सैंज, बंजार, मंडी, जोगिंद्रनगर, सरकाघाट, बालीचौकी, हमीरपुर, धर्मशाला, चम्बा, ऊना आदि में किए गए। 

शिमला में हुए प्रदर्शन में शामिल लोगों में हिमाचल किसान सभा राज्य महासचिव डॉ ओंकार शाद, सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा, जनवादी महिला समिति राज्य महासचिव फालमा चौहान,डीवाईएफआई राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष बलबीर पराशर, एसएफआई प्रदेश सचिव अमित ठाकुर व दलित शोषण मुक्ति मंच संयोजक जगत राम भी शामिल थे। 

इन्होंने संयुक्त बयान जारी कर कहा, “कोविड महामारी को केंद्र की मोदी सरकार ने पूंजीपतियों के लिए लूट के अवसर में तब्दील कर दिया है। कोरोना काल में किसान विरोधी तीन कृषि कानून, मजदूर विरोधी चार लेबर कोड, बिजली विधेयक 2020, सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण, नई शिक्षा नीति, भारी बेरोजगारी, महिलाओं व दलितों पर बढ़ती हिंसा इसके प्रमुख उदाहरण हैं। सरकार के ये कदम मजदूर, किसान, कर्मचारी, महिला, युवा, छात्र व दलित विरोधी हैं तथा पूंजीपतियों के हित में हैं।”

उन्होंने केंद्र सरकार से किसान व मजदूर विरोधी कानूनों को वापिस लेने की मांग की है। उन्होंने प्रति व्यक्ति 7500 रुपये की आर्थिक मदद, सबको दस किलो राशन, सरकारी डिपुओं में वितरण प्रणाली को मजबूत करने व बढ़ती महंगाई पर रोक लगाने की मांग की है। 

राजस्थान: सीकर शहर में मजदूर-किसानों की विशाल रैली, “जनविरोधी नीतियां बदलो नहीं तो मोदी गद्दी छोड़ो” का नारा बुलंद

केंद्र सरकार की किसान मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ आज भारी संख्या में आम लोगों ने राजस्थान के सीकर शहर में रैली निकालकर कलेक्ट्रेट पर आम सभा का आयोजन किया।

किसान सभा, सीआईटीयू,खेत मजदूर यूनियन, जनवादी नौजवान सभा व जनवादी महिला समिति के आह्वान पर आज दोपहर किशनसिंह ढाका स्मृति भवन से जुलूस रवाना हुआ।

कृषि के तीनों कानून व मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं को रद्द करो, फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की कानूनी गारंटी दो, रोजगार दो और महंगाई पर रोक लगाओ जैसे गगनभेदी नारों के साथ विशाल जुलूस कल्याण सर्किल,गर्ल्स कॉलेज, तापड़िया बगीची होते हुए जिला कलेक्ट्रेट पर पहुंचकर आमसभा में बदल गया।

सभा को संबोधित करते हुए किसान सभा के जिला महामंत्री सागर खाचरिया ने कहा कि आठ महीने से लाखों किसान दिल्ली के बॉर्डर पर बैठे हुए हैं, लेकिन मोदी सरकार संसद सत्र चलने और तमाम विपक्षी दलों की मांग के बावजूद हठधर्मिता अपनाए हुए है।उन्होंने कहा कि आज पूरे जिले में सभी उपखंड कार्यालय पर प्रदर्शन किए जा रहे हैं और अब शाहजहांपुर बॉर्डर के मोर्चे को और मजबूत बनाया जाएगा।

सीटू राज्य सचिव बृजसुंदर जांगिड़ ने कहा कि मोदी सरकार बनाने का नहीं बेचने का काम कर रही है। देश के तमाम महत्वपूर्ण सार्वजनिक उद्योगों का नीजीकरण किया जा रहा है। रेलवे, बैंक, एयरलाइंस, बीएसएनएल के बाद अब देश की जनता की गाढ़ी कमाई रखने वाले बीमा क्षेत्र का निजीकरण कर दिया गया है।

देश की सुरक्षा से जुड़ी हुई हथियार बनाने वाले कारखानों के निजीकरण के प्रतिरोध में हड़ताल करने वालों पर एक लाख का जुर्माना व एक साल की कैद की सजा जैसे कानून बनाए जा रहे हैं।

सभा को भवन निर्माण मजदूर यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष भगवान सिंह बगड़िया,खेत मजदूर यूनियन के रामरतन बगड़िया, नौजवान सभा के सत्यजीत भींचर, एसएफआई जिलाध्यक्ष विजेंद्र ढाका, एटक के नेता व पूर्व तहसीलदार ऊंकार मुंड, इंटक जिलाध्यक्ष रणवीर सिंह, जनवादी महिला समिति जिलाध्यक्ष सरोज ढाका, किसान नेता मंगल सिंह मांडोता सहित अन्य नेताओं ने संबोधित किया।

सभा के बाद 12 सूत्री मांग पत्र राष्ट्रपति के नाम प्रतिनिधिमंडल ने सरकार के नुमाइंदों को सौंपा।

छत्तीसगढ़: जलाई गई कृषि कानूनों की प्रतियां, खाद-बीज की कमी-कालाबाज़ारी और आदिवासियों पर राजकीय दमन का भी विरोध

संयुक्त किसान मोर्चा, अखिल भारतीय किसान संघर्ष समिति और विभिन्न ट्रेड यूनियन संगठनों के आह्वान पर आज 9 अगस्त को पूरे छत्तीसगढ़ में भी 'भारत बचाओ, कॉर्पोरेट भगाओ' के नारे के साथ आंदोलन हुआ। यह आंदोलन कॉर्पोरेटपरस्त तीन किसान विरोधी कानूनों तथा मजदूर विरोधी श्रम संहिता को वापस लेने, फसल की सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने और किसानों की पूरी फसल की सरकारी खरीदी का कानून बनाने, बिजली कानून में जन विरोधी संशोधनों को वापस लेने, छत्तीसगढ़ में खाद-बीज-दवाई की कमी और बाजार में इसकी कालाबाज़ारी पर रोक लगाने, बिजली दरों में की गई वृद्धि वापस लेने के लिए आयोजित किया गया।

इसमें आदिवासियों पर हो रहे राज्य प्रायोजित दमन तथा विस्थापन पर रोक लगाने तथा इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों को सजा देने, प्रदेश के कोयला खदानों की नीलामी पर रोक लगाने, वनाधिकार कानून, पेसा और 5वीं अनुसूची के प्रावधान लागू करने, मनरेगा में 200 दिन काम देने, आयकर दायरे से बाहर हर परिवार को प्रति माह 7500 रुपये की नगद मदद करने तथा प्रति व्यक्ति हर माह 10 किलो अनाज सहित राशन किट मुफ्त देने की मांग भी शामिल थी।

छत्तीसगढ़ किसान सभा के प्रदेश अध्यक्ष संजय पराते ने बताया कि आदिवासी एकता महासभा के साथ मिलकर किसान सभा ने प्रदेश के अधिकांश जगहों पर स्वतंत्र रूप से, तो कुछ जगहों पर ट्रेड यूनियनों के साथ मिलकर धरना और प्रदर्शन आयोजित किये गए तथा अनेकों जगहों पर किसान-मजदूर विरोधी कृषि कानूनों और श्रम संहिता की प्रतियां जलाई गई। 

उन्होंने आगे बताया कि उनकी इस कार्रवाई को मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी सहित सभी वामपंथी पार्टियों का भी समर्थन प्राप्त था और वामपंथी कार्यकर्ता भी इन आंदोलनों में शामिल हुए। रायपुर, कोरबा, सरगुजा, सूरजपुर, रायगढ़, जांजगीर, बस्तर, बिलासपुर, मरवाही, कांकेर, राजनांदगांव, धमतरी सहित 20 से ज्यादा जिलों में ये आंदोलन आयोजित किये गए। संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से पूर्व सांसद हन्नान मोल्ला ने सफल विरोध कार्रवाई आयोजित करने के लिए प्रदेश की आम जनता और मजदूर-किसानों को बधाई दी है।

छत्तीसगरक्ष किसान सभा के महासचिव ऋषि गुप्ता  ने कहा कि मोदी सरकार ने जिस तरह संसदीय प्रक्रिया को ताक पर रख कर और देश के किसानों व राज्यों से बिना विचार-विमर्श किये तीन कृषि कानून बनाये हैं। उन्होंने कहा, “ये कानून अपनी ही खेती पर किसानों को कॉरपोरेटों का गुलाम बनाने का कानून है। इन कानूनों के कारण निकट भविष्य में देश की खाद्यान्न आत्म-निर्भरता ख़त्म हो जाएगी, क्योंकि जब सरकारी खरीद रूक जायेगी, तो इसके भंडारण और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था भी समाप्त हो जायेगी। इसका सबसे बड़ा नुकसान देश के गरीबों, भूमिहीन खेत मजदूरों और सीमांत व लघु किसानों को उठाना पड़ेगा। इसलिए इन कानूनों की वापसी तक छत्तीसगढ़ में भी आंदोलन जारी रहेगा।”

इस आंदोलन के जरिये राज्य की कांग्रेस सरकार की आदिवासी विरोधी नीतियों का भी विरोध किया गया। किसान सभा नेताओं ने कहा कि प्रदेश में कॉरपोरेटों द्वारा जल-जंगल-जमीन की लूट को आसान बनाने के लिए उन्हें अपनी भूमि से विस्थापित करने की नीति अपनाई जा रही है। प्रदेश के 17 कोयला खदानों की नीलामी से और बस्तर में नक्सलियों से निपटने के नाम पर आदिवासियों के संवैधानिक प्रावधानों को ताक पर रखकर उन पर गोलियां चलाये जाने से उनकेए नीतियां स्पष्ट रूप से उजागर हैं। 

देशभर में मज़दूर-किसानों के प्रदर्शन की झलकियां :-

उत्तराखण्ड

नोएडा

बिहार  

महाराष्ट्र

तमिलनाडु

कर्नाटक

तेलंगाना

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest