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सोनभद्र नरसंहार कांड: नहीं हुआ न्याय, नहीं मिला हक़, आदिवासियों के मन पर आज भी अनगिन घाव

सोनभद्र के उभ्भा गांव में हुए नरसंहार की आज दूसरी बरसी है। आज ही के दिन 17 जुलाई 2019 को 112 बीघे ज़मीन के लिए यहां दबंगों ने अंधाधुंध फायरिंग कर 11 आदिवासियों की जान ले ली थी। इस घटना में 25 अन्य घायल हुए थे।
आज भी दर्द से भरे हैं उभ्भा गांव के आदिवासी। नरसंहार कांड की दूसरी बरसी से पहले एक जगह जमा होकर अपना दुख सुना रहे आदिवासी
आज भी दर्द से भरे हैं उभ्भा गांव के आदिवासी। नरसंहार कांड की दूसरी बरसी से पहले एक जगह जमा होकर अपना दुख सुना रहे आदिवासी

दृश्य-एक

21 जुलाई 2019 : उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सोनभद्र के उभ्भा गांव में मारे गए आदिवासियों के दर्द पर मरहम लगाने पहुंचे। अपने सियासी भाषण में कहा-कांग्रेस का फल आदिवासियों को भोगना पड़ा है। नरसंहार करने वालों को सपा नेताओं ने प्रश्रय दिया। आदिवासियों से मिलकर बोले, “घबराओ मत, अब मैं आ गया हूं।” किसी के कंधे, तो किसी के सिर पर हाथ रख के ढांढस बंधाया और विनम्रता से झुककर बुजुर्गों से हाथ जोड़े।  

दृश्य-दो

13 सितंबर 2019: नरसंहार के बाद अपने दूसरे दौरे में उभ्भा पहुंचे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पीड़ितों को न्याय का आश्वासन देते हुए 340 करोड़ के कार्यों का लोकार्पण और शिलान्यास किया। आदिवासियों और गरीब भूमिहीन परिवारों को पट्टे की जमीन देने का आश्वासन दिया। साथ ही आदिवासियों के हितों के लिए थोक में घोषणाएं की। प्रियंका गांधी वाड्रा को 'शहजादी' कहते हुए आरोप जड़ा- “कांग्रेस ने आदिवासी व गरीबों के विकास के लिए कुछ भी नहीं किया।”

अपनों को खोने के ग़म में बिलखती महिलाएं (फाइल फोटो)

हुआ क्या था?

17 जुलाई 2019 को लगभग चार करोड़ रुपये की 112 बीघे जमीन के लिए तत्कालीन ग्राम प्रधान यज्ञदत्त भूर्तिया और उसके समर्थकों ने गोलबंद होकर आदिवासियों पर अंधाधुंध फायरिंग की। इस घटना में 11 लोगों की मौत हो गई और 25 अन्य घायल हो गए।

इस मामले के तूल पकड़ने के बाद दर्जन भर से ज्यादा अधिकारियों पर कार्रवाई हुई। उस समय के डीएम और एसपी हटा दिए गए। इस मामले में प्रमुख सचिव राजस्व रेणुका कुमार की जांच रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने घोरावल के तत्कालीन उप-जिलाधिकारी घोरावल ए.मणिकंडन के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के आदेश दिए। साथ ही इलाकाई पुलिस क्षेत्राधिकारी के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई की संस्तुति की गई।

शुरुआत में जोश दिखाने के बाद भाजपा सरकार खामोश बैठ गई। रेणुका कुमार की संस्तुतियों को योगी सरकार ने अब फाइलों में दबा दिया है। जिन अफसरों के खिलाफ एसआईटी ने कार्रवाई की संस्तुति की थी, उनका आज तक बाल-बांका नहीं हुआ।

अफ़सर की पत्नी पर एक्शन नहीं

सोनभद्र के उभ्भा गांव में भू-माफिया माहेश्वरी प्रसाद नारायण सिन्हा फर्जी संस्था बनाकर सैकड़ों बीघे जमीन के मालिक बन बैठे थे। बाद में सिन्हा ने फर्जी ढंग से बेहद उपजाऊ 94 बीघे जमीन अपनी पत्नी पार्वती देवी के नाम की। बाद में पार्वती ने अपनी बेटी आशा मिश्रा को दे दी और फिर वही जमीन आशा ने अपनी बेटी विनीता शर्मा ( तत्कालीन आईएएस अफसर भानु प्रताप शर्मा की पत्नी) के नाम अवैध ढंग से वसीयत कर दी। कहते हैं, आईएएस लॉबी के दबाव में जिला प्रशासन ने आज तक उस जमीन न तो अपने कब्जे में लिया और न ही उसे किसी आदिवासी को वितरित किया। खतौनी में आज भी उक्त भूखंड पर विनीता शर्मा का नाम अंकित है।

सोनभद्र में आदिवासियों के अधिवक्ता नित्यानंद द्विवेदी के मुताबिक, ज़मीन को ग्राम सभा की ज़मीन के तौर पर दर्ज करना, उसे सोसाइटी को सौंपना और फिर उसकी ख़रीद-बिक्री करना ये सब कुछ अवैध था लेकिन ऐसा होता रहा। इसके पीछे वजह ये थी कि ये पूरा 'खेल' महज़ कुछ लोगों और स्थानीय अधिकारियों के बीच सीमित रहा। ज़मीन पर खेती करने वाले आदिवासियों को इसके बारे में कुछ पता नहीं था। वो तो ख़ुद को ज़मीन का मालिक समझ कर खेती करते चले आ रहे थे। लेकिन जब प्रधान ने ज़मीन ख़रीदकर उस पर कब्ज़ा करना चाहा तो इतना बड़ा विवाद हो गया। इस जमीन का नामांतरण खारिज करने में सोनभद्र के मौजूदा कलेक्टर बच रहे हैं। इस मामले में योगी सरकार और जिला प्रशासन की भूमिका सवालों के घेरे में आती जा रही है।

उभ्भा गांव के आदिवासी, जिनका कहना है कि सरकार उनके साथ छल कर रही है।

आदिवासियों को इस बात का रंज है कि मुख्यमंत्री अपने वादे पर खरे नहीं उतरे। उनके हितों के लिए संघर्ष करने वाले रामराज गोंड कहते हैं, “सोनभद्र के अफसरों ने फर्जी संस्था बनाकर ग्राम सभा की जमीन हथियाने वालों से प्रशासन ने करीब 850 बीघा जमीन तो छीन ली, लेकिन ऑल इंडिया बैंकिंग बोर्ड ब्यूरो के तत्कालीन चेयरमैन भानु प्रताप शर्मा (पूर्व आईएएस) की पत्नी श्रीमती विनीता शर्मा के नाम फर्जी ढंग से दर्ज की गई जमीन जस की तस है। यह जमीन करीब 94 बीघा है। बेहद उपजाऊ इस जमीन पर उभ्भा गांव के आदिवासी दशकों से खेती-किसानी कर रहे थे। घोरावल तहसील के मौजूदा एसडीएम के यहां जमीन का मामला विचाराधीन है, लेकिन वह निर्णय लेने के बजाए टाल-मटोल कर रहे हैं। सीएम योगी ने सभी आदिवासियों को जमीनों का पट्टा देने का ऐलान किया था, लेकिन करीब तीस लोगों को एक इंच जमीन नही मिल पाई है।”

कहां है आवासीय विद्यालय?

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ऐलान के बाद भी आदिवासियों के बच्चों के लिए दीनदयाल उपाध्याय आश्रम पद्धति आवासीय विद्यालय की स्थापना आज तक नहीं हो पाई है। दो साल गुजर जाने के बावजूद अब तक न तो आश्रम पद्धति विद्यालय की नींव रखी जा सकी है और न ही पुलिस चौकी भवन के लिए कोई काम शुरू हो पाया है। पुलिस चौकी भवन के लिए भूमि पूजन जरूर हो चुका है। आश्रम पद्धति विद्यालय के लिए आज तक कोई सार्थक पहल नहीं हो सकी है।  दिलचस्प बात यह है कि प्रशासन ने आवासीय विद्यालय के लिए जमीन तो आवंटित कर दी है, लेकिन योगी सरकार ने धन ही नहीं भेजा।

उभ्भा नरसंहार कांड में मारे गए अशोक की पत्नी पुष्पा और सुखवंती के भतीजे सुमेर कहते हैं, “योगी बाबा ने दस बीघे जमीन देने का वादा किया था, लेकिन पट्टा दिया सिर्फ सात बीघे का। हमारे परिजनों का सामूहिक कत्ल करने वाले दबंगों ने पुलिस प्रशासन से मिलकर गांव के करीब 85 लोगों के खिलाफ मारपीट और बलवा करने का जो फर्जी मामला दर्ज कराया था, वह जस का तस है। योगी ने केस तत्काल खत्म कराने का ऐलान किया था, लेकिन अभी भी गांव भर के लोगों को अदालतों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं।”

पूर्व ग्राम प्रधान बहादुर सिंह गोंड और घायल कमलावती के पति रामपति सरकार से सवाल करते हैं,  “हमारे पास न तो रोजगार है और न नौकरी। पढ़े-लिखे बच्चे भी घूम रहे हैं। कोरोना काल में दुश्वारियां झेलनी पड़ी और अब भी रोटी-प्याज खाकर दिन काटने पड़ रहे हैं। योगी जी ने हमें ढेरों सपने दिखाए और तमाम वादे किए, लेकिन ज्यादतर अधूरे ही रह गए।” उभ्भा गांव की सीता देवी, अतवरिया और सुकुवरिया कहती हैं, “उम्मीद थी कि योगी बाबा झूठ नहीं बोलेंगे। नरसंहार में हम अपने परिजनों को खो चुके हैं, लेकिन वादे के मुताबिक हमें आवास और विधवा पेंशन तक नहीं मिली।”

नरसंहार कांड में मारे गए रामसुंदर की पत्नी सितवा देवी और एक अन्य मृतक की पत्नी शिवकुमारी को पेंशन की दरकार है। वो कहती हैं, “हम अफसरों को अर्जी देते-देते थक गए हैं। योगी ने हर आदिवासी परिवार को 10 बीघे जमीन का वचन दिया था, लेकिन साढ़े सात बीघे जमीन मिली। इससे ज्यादा जमीन पर हम पहले से ही खेती-किसानी कर रहे थे।”

उभ्भा गांव की पगडंडी नापते मिले रामआसरे कहते हैं, “हमसे मत पूछिए हमारा हाल। कोई काम नहीं। धान की नर्सरी सूख गई है। खेती का काम भी बंद है। कोटे के राशन से सिर्फ एक वक्त का खाना ही नसीब हो रहा है। गांव के नजदीक मूर्तिया बंधी है, मगर उसका फाटक टूट गया है। बंधी से निकलने वाली नहर बदहाल है। सिंचाई विभाग लगान तो वसूल कर रहा है, लेकिन बंधी के फाटकों को दुरुस्त करने में रुचि नहीं दिखा रहा है।”

आदिवासी जयराम को इस बात का खौफ है कि जेल से छूटने के बाद दबंग पूर्व ग्राम प्रधान यज्ञदत्त भूर्तिया उनसे जरूर बदला लेगा। वो बताते हैं, “कृषि कानून के खिलाफ प्रदर्शन के बाद गांव के कुछ लोग जेल भेजे गए थे। पहले से ही जेल में बंद मुख्य अभियुक्त यज्ञदत्त भूर्तिया ने हम सभी को सबक सिखाने के लिए धमकी दी थी। तभी से समूचा गांव दहशत में है।”

हालांकि प्रदेश सरकार की तरफ से मृतक आश्रितों को विभिन्न मदों में करीब 18.50 लाख रुपये, घायलों को आठ-आठ लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी गई है। ज्यादतर परिवार को जमीन का पट्टा, आवास, शौचालय, बिजली आदि सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं। दीगर बात है गांव में लगा आरओ प्लांट अब बंद हो चुका है। गांव में पानी की टंकी भी शो-पीस बनी हुई है। सिर्फ दो-तीन नलों से ही पानी आता है।

भोथरी हो गई धार

उभ्भा नरसंहार कांड के बाद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जितनी दिलचस्पी दिखाई थी, उसकी धार की नौकरशाही ने अब भोथरी कर दी है। मुख्यमंत्री के निर्देश पर यूपी के ईमानदार आईपीएस अफसर जे.रविंद्र गौड़ के नेतृत्व में नरसंहार और जमीन के खेल की गहन छानबीन करने के लिए एसआईटी गठित की गई थी। एसआईटी ने कड़ी मेहनत के बाद 29 फरवरी 2020 को अपनी जांच रिपोर्ट शासन को सौंप दी। करीब साढ़े तीन सौ पन्नों की यह रिपोर्ट अब धूल फांक रही है। इस मामले में तत्कालीन डीएम और एसडीएम पर भूमाफिया को संरक्षण देने का खुला आरोप साबित किया गया है, लेकिन समूचे मामले पर नौकरशाही ने पर्दा डाल दिया है। अगर सरकार एसआईटी की जांच पर कार्रवाई करती है तो सूबे के करीब आधा दर्जन आईएएस अफसरों और उनके परिजनों पर गाज गिर सकती है।

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष लल्लू सिंह अब खुलेआम आरोप लगा रहे हैं, “ दो साल पहले उभ्भा में योगी ने ड्रामा किया था। उन्होंने आदिवासियों को न्याय नहीं दिलाया। लखनऊ के हजरतगंज थाने में जिन अफसरों समेत 28 लोगों के खिलाफ रपट दर्ज की गई थी, वो भी घपले-घोटालों की भेंट चढ़ गई। मुख्यमंत्री उभ्भा जरूर गए, लेकिन उन्होंने नरसंहार कांड पर पर्दा डाला और आदिवासियों की भावनाओं से खेला। मकसद पूरा हो गया तो उन्हें जीवन भर सिसकने के लिए छोड़ दिया। आदिवासियों के न तो मुकदमें खत्म हुए और न ही दोषी अफसर जेल भेजे गए। जबकि योगी ने उभ्भा में दहाड़ लगाई थी कि नरसंहार के जिम्मेदार लोग कतई नहीं बचेंगे। यकीनी तौर पर कह सकता हूं कि भाजपा सरकार सिर्फ झूठ और फरेब के दम पर चल रही है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी उभ्भा नहीं गई होतीं तो आदिवासियों को फूटी कौड़ी नहीं मिलती।”

कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने अपनी ओर से उभ्भा नरसंहार में मारे गए आदिवासियों से आश्रितों को दस-दस लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी थी। सपा की तरफ से भी मृतक आश्रितों को एक-एक लाख व घायलों को 50-50 हजार रुपये की सहायता दी गई थी। उभ्भा गांव के आदिवासी गुहार लगा रहे हैं कि उन्हें सिर्फ आधा-अधूरा न्याय मिल पाया है। आदिवासी जयश्याम कहते हैं, “नरसंहार कांड की पटकथा तो अफसरों ने लिखी थी। योगी सरकार ने आखिर उनके खिलाफ आज तक कोई एक्शन क्यों नहीं लिया?”

शोपीस बनी पानी की टंकी

उभ्भा गांव में सूखे पानी के नल

न क़ानून, न रोज़गार

सोनभद्र के ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर बिवायी फटे पैरों से मवेशियों को हांकते युवा और शाम ढलते ही घुप्प अंधेरे के दृश्य बेहद दुखदायी और परेशान करने वाले नजर आते हैं। उभ्भा पहुंचने के बाद पता चलता है कि नरसंहार के दो साल गुजर जाने के बावजूद सोनभद्र के आदिवासी इलाकों में क़ानून व्यवस्था और रोजगार आज भी सपना है। मध्यप्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ और बिहार की सीमा सटे सोनभद्र की हालत यह है कि अब यहां थोड़ा सा भी विकास आदिवासियों को बहुत भाता है। नरसंहार कांड के बाद सोनभद्र और उभ्भा में कुछ ज्यादा नहीं बदला है। बदला है तो सिर्फ इतना कि आदिवासियों की अगुवाई करते हुए रामराज गोंड सोनभद्र जिले में कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए हैं।

जमीन के लिए बीस साल पुराने संघर्ष का ताप सिर्फ उभ्भा ही नहीं, सोनभद्र और चंदौली के नौगढ़ के तमाम गांवों में आदिवासियों के चेहरे पर साफ़-साफ़ दिखाई देता है। आदिवासियों से मिलने के बाद लगता है जैसे वे हुक्मरानों से पूछ रहे हों कि देश की तरक्की के नाम पर उन्हें अभी और कितना बलिदान देना पड़ेगा? पूर्वांचल में नेताओं की जमात को लगता है कि धनुर्धारी आदिवासी भील भोला और सरल है। वो जल्दी प्रभावित हो सकता है। वो गुणा-भाग नहीं करता। ये उसकी अच्छाई की शक्ति है। वो महत्वाकांक्षी नहीं है। वो गोंद, कत्था और शहद जैसी वनोपज की दुनिया में बेफ़िक़्री से रहता है। उसकी तमन्नाओं का संसार छोटा है। राजनीतिक दल इसे अपने लिए मुफ़ीद मानते हैं। शायद इसीलिए हर समय सियासी दल गाहे-बगाहे आदिवासियों का दिल जीतने का यत्न करते रहते हैं।

आदिवासियों की जिंदगी बदलने के लिए लंबे समय से मुहिम में जुटीं श्रुति नागवंशी कहती हैं, “कुछ महीने बाद यूपी में विधानसभा चुनाव की मुनादी हो जाएगी। आदिवासियों पर सियासत करने वाले नेताओं का दिल तभी आता है जब चुनाव नजदीक होता है। सोनभद्र के आदिवासियों की ज़िंदगी में झांकने की कोशिश आज तक नहीं हुई। समाज का यह तबका तो आज भी नाम के लिए ही नागरिक है।”

कम नहीं हुआ आदिवासियों का दर्द

सोनभद्र के वरिष्ठ पत्रकार राहुल श्रीवास्तव कहते हैं, “उभ्भा जनसंहार कांड के बाद आदिवासी समाज के प्रति नेताओं का प्यार उमड़ना अचरज की बात नहीं है। हर काल में ये अनुराग चुनावी मुनादी के बाद गाढ़ा हो जाता है। लेकिन आदिवासियों का जीवन जस का तस रहता है। रियासतकाल में भील ही राजाओं का राजतिलक करते थे। वक़्त बदला, देश आज़ाद हुआ और नेता सत्ता में आ गए। मगर धनुर्धर भीलों की भूमिका में कोई बदलाव नहीं आया। पहले वे राजाओं का राजतिलक करते थे, अब नेताओं का। लेकिन आदिवासी अब भी वहीं है जहां पहले था।”

सोनभद्र नरसंहार कांड के दो बरस गुजर जाने के बावजूद आदिवासियों के घाव पूरी तरह नहीं भरे हैं। इनके मन पर कई घाव ऐसे हैं जो सत्ताधीशों को नहीं दिख रहे हैं। मानवाधिकार के लिए काम करने वाले एक्टिविस्ट डॉ. लेनिन रघुवंशी कहते हैं, “विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर होने वाले विमर्श में आदिवासियों की घटती संख्या पर चिंता सिरे से गायब दिखती है। दुनिया की आबादी बढ़ना बहुत चिंताजनक है तो आदिवासियों की आबादी घटना भी कम फिक्र की बात नहीं है।”

रघुवंशी यह भी कहते हैं, “दुनिया तो बस यही जानती है कि मौजूदा समय में आदिवासियों, वनवासियों और दलितों के बीच जो धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा, रीति और रिवाज हैं वे सभी प्रभु श्रीराम की देन है। श्रीराम भी वनवासी ही थे। उन्होंने वन में रहकर संपूर्ण वनवासी समाज को एक दूसरे से जोड़ा और उनको सभ्य एवं धार्मिक तरीके से रहना सिखाया। बदले में श्रीराम को जो प्यार मिला वह सर्वविदित है। लोक-संस्कृति और ग्रंथों में जो कहानी लिखी है उसके मुताबिक राम आज इसीलिए जिंदा हैं कि वो ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने धार्मिक आधार पर संपूर्ण अखंड भारत के दलित और आदिवासियों को एकजुट कर दिया था। आदिवासियों को भरमाने के लिए तमाम हिन्दूवादी संगठन उनके प्रति अनुराग तो दिखाते हैं, लेकिन वर्ण व्यवस्था में इन्हें सबसे निचला पायदान भी देते हैं। भाजपा सरीखे सियासी दल आजकल आदिवासियों को क्यों हिंदू बताते घूम रहे हैं?  अंदरखाने में झांकेंगे तो जवाब मिलता है- सिर्फ और सिर्फ वोट के लिए। नेताओं को पता है कि मौजूदा दौर में आदिवासियों की 10 करोड़ की सघन आबादी सियासत का रूख बदलने की भूमिका में है।”

सोनभद्र के ज्यादातर आदिवासियों की जिंदगी आज भी गुलामों जैसी है। इनके बच्चों के लिए न शिक्षा की कोई पुख्ता व्यवस्था है, न ही इनके लिए दवा-इलाज और शुद्ध पेयजल है। पहले कांग्रेस इनका उपयोग करती थी और अब भाजपा कर रही है। सोनभद्र के आदिवासियों पर बेहतरीन रपटें लिखने वाले पत्रकार राजीव मौर्य कहते हैं, “उभ्भा नरसंहार कांड के बाद से यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आदिवासियों की बदहाली के लिए पूर्व की कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। ठीक उसी तरह जैसे देश की हर समस्या के लिए पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह, कांग्रेस और नेहरू को जिम्मेवार ठहराते हैं। अब यह फिक्स मैच बन चुका है। सत्ता में बैठे लोग अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहते हैं। अब तो मीडिया की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। आदिवासियों के हितों से अनजान यूपी के पूर्वांचल की मीडिया कहीं जज और तो कहीं डाकिए की भूमिका में नजर आती है। आदिवासी इलाकों में तो वह पत्रकारिता से अधिक वकालत लगी है, जिसके चलते समाज का आखिरी आदमी न्याय के लिए तड़प रहा है।”

सभी फोटो- विजय विनीत

(लेखक वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं।)      

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