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स्पेशल रिपोर्टः चोर दरवाजे से काशी विश्वनाथ मंदिर में कॉरपोरेट घरानों को घुसाने की तैयारी!

काशी विश्वनाथ धाम परियोजना का ज्यादातर काम पूरा हो चुका है। अब इसे आमदनी का जरिया बनाने की कवायद शुरू कर दी गई है। मंदिर का रेवेन्यु मॉडल विकसित करने के लिए ब्रिटेन की बहुराष्ट्रीय कंपनी अर्न्स्ट एंड यंग को ज़िम्मेदारी सौंपी गई है, जो ख़ुद तमाम आरोपों में घिरी है।
kashi vishwanath

उत्तर प्रदेश के बनारस स्थित काशी विश्वनाथ धाम को कमाई का जरिया बनाने का उपाय ढूंढने की जिम्मेदारी ब्रिटेन की एक कंपनी अर्न्स्ट एंड यंग को सौंपी गई है। ख़बर है कि इस कंपनी के खिलाफ हाल ही अमेरिका में हेराफेरी और गोलमाल का एक बड़ा मामला दर्ज हुआ है। इसी कंपनी को अब विश्वनाथ धाम के सुचारू संचालन, आमदनी के सृजन और रखरखाव का उपाय बताने का ठेका दिया गया है। इसी कंपनी ने साल 2009 में बनारस की बदहाल हो चुकी ट्रैफिक व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए ऐसी दुरुह तरकीबें बताई थीं, जिसे आज तक अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका।

वाराणसी विकास प्राधिकरण ने कंप्रिहैसिव मोविलिटी प्लान बनाने के एवज में अर्न्स्ट एंड यंग को 33.53 लाख रुपये का भुगतान किया था। अर्न्स्ट एंड यंग ने नगर निगम के अफसरों के साथ मिलकर बनारस शहर की तरक्की के लिए कई अन्य योजनाएं बनाई थी जो फिसड्डी साबित हो गई। अब श्री काशी विश्वनाथ धाम का रेवेन्यु मॉडल विकसित करने का ठेका इस कंपनी के हवाले किया गया है।

बनारस के करीब आधा दर्जन मुहल्लों की 316 इमारतों को तोड़कर काशी विश्वनाथ धाम बनाया जा रहा है। ये वो मुहल्ले थे जो दुनिया की प्राचीनतम नगरी काशी की स्थापत्य कला के ऐतिहासिक दस्तावेज माने जाते थे। श्री काशी विश्वनाथ धाम के विस्तार पर नजर डालें तो पता चलता है कि पब्लिक डोमेन में लाए बगैर ही पीएसपी कंपनी ने छोटे-बड़े 50 से अधिक मंदिरों और 2000 से ज्यादा विग्रहों को नेस्तनाबूत कर दिया। आधुनिकता की अंधी दौड़ में तमाम पुरातन गलियां उजाड़ दी गईं जिसे देखने के लिए हर साल लाखों तीर्थयात्री और पर्यटक बनारस आते थे।

काशी विश्वनाथ धाम परियोजना का ठेका गुजरात के अहमदाबाद की कंपनी पीएसपी को दिया गया है। आरोप है कि बनारस के हिन्दू और मुसलमान श्रमिकों ने मंदिरों और इमारतों को तोड़ने से मना कर दिया तो बंगलादेशियों को बुलाकर ऐतिहासिक धरोहरों पर बुलडोजर चला दिया गया। काशी विश्वनाथ मंदिर को धाम बनाने की सनक में कई ऐसे पौराणिक मंदिरों, विग्रहों और ऐतिहासिक इमारतों को जमींदोज कर दिया गया, जहां सदियों से करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी हुई थी।

काशी विश्वनाथ धाम परियोजना का ज्यादातर काम पूरा हो चुका है। अब इसे आमदनी का जरिया बनाने की कवायद शुरू कर दी गई है। मंदिर का रेवेन्यु मॉडल विकसित करने के लिए ब्रिटेन की बहुराष्ट्रीय कंपनी अर्न्स्ट एंड यंग को जिम्मेदारी सौंपी गई है। प्रशासन का दावा है कि यह दुनिया की चार बड़ी पेशेवर कंपनियों में से एक है। अर्न्स्ट एंड यंग ने बीते एक नवंबर 2021 को श्री काशी विश्वनाथ विशेष क्षेत्र विकास बोर्ड के समक्ष एक कार्ययोजना पेश करते हुए दावा किया कि मंदिर की आमदनी में भारी इजाफा हो जाएगा। बिट्रेन की इस कंपनी ने मंदिर परिसर में भीड़ प्रबंधन के लिए आईटी समाधान और सॉफ्टवेयर विकसित करने का भी दावा पेश किया है।

काशी विश्वनाथ धाम परियोजना की कुल लागत करीब 700 करोड़ रुपये है। काशी विश्वनाथ मंदिर को छोड़कर बाकी सभी प्रतिष्ठानों के संचालन व रखरखाव में सहायता के लिए रेवेन्यू मॉडल विकसित करने के लिए अर्न्स्ट एंड यंग जादुई फार्मूला तैयार करेगी। श्री काशी विश्वनाथ विशिष्ट विकास परिषद की बैठक में इस विदेशी कंपनी के नाम पर मुहर लग चुकी है। अर्न्स्ट एंड यंग के साथ प्रशासनिक अफसरों की अगली बैठक 10 नवंबर को होनी है। फिलहाल काशी विश्वनाथ धाम का रेवेन्यु मॉडल विकसित करने के नाम पर ब्रिटेन की कंपनी कितना पैसा लेगी? इसका खुलासा करने के लिए जिम्मेदार प्रशासनिक अफसर तैयार नहीं है।

श्री काशी विश्वनाथ धाम का क्षेत्रफल पांच लाख वर्ग फुट है, जिसमें मंदिर चौक, गेस्ट हाउस, बहुउद्देशीय हॉल, क्लिनिक और धर्मशाला, तीर्थ सुविधा केंद्र, कला दीर्धा, संग्रहालय, कैफेटेरिया के अलावा 70 दुकानें शामिल हैं। शौचालय सहित 23 प्रमुख भवनों का निर्माण किया जा रहा है। मंलायुक्त दीपक अग्रवाल कहते हैं, "विश्वनाथ धाम के संचालन के लिए धन की जरूरत होगी। धन कहां से आएगा और कैसे खर्च होगा, इसका मॉडल अर्न्स्ट एंड यंग कंपनी विकसित करेगी। विश्वनाथ धाम के रखरखाव और सुविधाएं विकसित करने पर हर साल करीब 27 करोड़ की जरूरत पड़ेगी। दुनिया की शीर्ष पेशेवर कंपनी अर्न्स्ट एंड यंग को ढूंढना कोई आसान काम नहीं था। तीन बार टेंडर के बाद हमें यह कंपनी मिल सकी।"

अग्रवाल यह भी कहते हैं, " अर्न्स्ट एंड यंग भीड़ प्रबंधन के लिए एक आईटी समाधान और सॉफ्टवेयर भी विकसित करेगी। मंदिर में प्रवेश करने के लिए लोगों को घंटों कतार में नहीं खड़ा होना पड़ेगा। कंपनी एक ऐसा सॉफ्टवेयर विकसित करेगी जिससे कतार में खड़े होने के बजाय तीर्थयात्री सीधे विश्वनाथ धाम में प्रवेश कर सकेंगे।"

कभी बिजनेस मॉडल नहीं था धर्म

श्री काशी विश्वनाथ धाम में पुरानी मान्यताओं और परंपराओं को मिटाए जाने से बनारस के तमाम साधु-संत और प्रबुद्ध नागरिक बेहद आहत हैं। वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कुमार कहते हैं, " धर्म एक ऐसा कारोबार है जिसका धंधा कभी मंदा नहीं होता। हालांकि दुनिया की सांस्कृतिक राजधानी बनारस में धर्म कभी बिजनेस मॉडल नहीं रहा। मोदी सरकार चोर दरवाजे से विश्वनाथ मंदिर में कॉरपोरेट घरानों को घुसाने की तैयारी है। अभी तक विश्वनाथ मंदिर की ज्यादातर कमाई साधु-संत हासिल कर रहे थे। इस कमाई पर अब कॉरपोरेट की नजर गड़ गई है। इस मुद्दे पर बनारस के लोग सामने नहीं आएंगे तो धीरे-धीरे यहां धर्म एक बड़े उद्योग की शक्ल ले लेगा। इस उद्योग में पैसा लगेगा टैक्सपेयर का और मुनाफा कूटेंगे कॉरपोरेट घराने।"

प्रदीप यह भी कहते हैं, " इससे बड़ा सबूत क्या होगा कि भाजपा सरकार और पूंजीपति घराने मिलकर धर्म और आस्था को बेचने की तैयारी में हैं। मंदिर को कॉरपोरेट घरानों के हाथ में देने से पहले बनारस के धर्म पारायण लोगों, साधु-संत के अलावा काशी के विद्वतजनों की मुकम्मल राय ली जानी चाहिए। विश्वनाथ धाम सिर्फ मंदिर नहीं, आस्था, संस्कृति और परंपरा का हिस्सा हिस्सा है। विश्वनाथ कारिडोर की स्थापना के समय ही यह बात उजागर हो गई थी कि लाखों की कमाई वाले इस मंदिर को देर-सबेर कॉरपोरेट घरानों के हवाले कर दिया जाएगा। वो आशंकाएं अब सच साबित हो रही हैं। पुराने महंतों को विस्थापित करके कॉरपोरेट महंतों को स्थापित करने का खेल शुरू हो गया है। हालांकि इसकी शुरुआत तभी हो गई थी, जब मशहूर लाबिस्ट नीरा राडिया ने विश्वनाथ मंदिर परिसर में चैरिटी हास्पिटल खोला था। राडिया का नाम 2जी स्पेक्ट्रम समेत कई घोटालों में उछला था। महज 15 सालों में वह अरबपति बन गई थीं। नीरा राडिया वो महिला हैं जिसके चलते देश के मशहूर उद्योगपति रतन टाटा को भी कोर्ट में सफाई का सबूत पेश करना पड़ा।"

कैसी है अर्न्स्ट एंड यंग कंपनी?

बनारस के मंदिरों और तीर्थों के कॉरपोरेटीकरण का पहला चरण है ब्रिटेन की कंपनी अर्न्स्ट एंड यंग (ई एंड वाई) को रेवेन्यू मॉडल तैयार करने का ठेका। यह कंपनी कुंभ (प्रयागराज) में भी कसंल्टेंसी का काम कर चुकी है। इस कंपनी की पृष्ठभूमि साफ सुथरी नहीं बताई जाती है। इस पर वित्तीय घोटाले के तमाम आरोप हैं। धोखाधड़ी के आरोप में अमेरिका में मुकदमा चल रहा है। एक दैनिक अखबार के लिए विश्वनाथ धाम की खबरें कवर करने वाले पत्रकार ऋषि झिंगरन कहते हैं, " भविष्य में बनारस के सभी महत्वपूर्ण मंदिरों और तीर्थों का रेवेन्यु मॉडल विकसित करके उसे किसी न किसी कॉरपोरेट को सौंपा जा सकता है। विश्वनाथ धाम का संचालन और देखरेख अब पब्लिक प्राइवेट-पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल पर होगा। चुपके से कोई कॉरपोरेट घराना ढूंढ लिया जाएगा। देर-सबेर यह बता दिया जाएगा कि विश्वनाथ धाम का संचालन कौन सी कंपनी करेगी?"

झिंगरन कहते हैं, " दुनिया के प्रतिष्ठित तीर्थ स्थल के प्रबंधन के लिए पब्लिक ट्रस्ट बनाकर उसमें काशी के विद्वतजनों और कर्मकांड के अनुभवी विद्वानों को रखकर इस मंदिर का दायित्व सौंपा जाना चाहिए। मंदिर के प्रबंधन को किसी कंपनी अथवा कॉरपोरेट के प्रबंधन की तरह टेंडर निकाल कर सौंपा जाना, बाबा विश्वनाथ के भक्तों के अलावा सनातन धर्म का अपमान है।"

सर्च इंजन गूगल पर अर्न्स्ट एंड यंग के 'कारनामों' की तमाम कहानियां हैं जिसे कोई भी पढ़ सकता है। आरोप है कि इसने अमेरिका के एक हेल्थकेयर कंपनी के निवेशकों की ऑडिट में धोखाधड़ी की। 22 जुलाई 2021 को, बिजनेस स्टैंडर्ड ने इस बाबत विस्तार से एक खोजी रिपोर्ट प्रकाशित की है। अर्न्स्ट एंड यंग पर आरोप है कि, इसने एनएमसी हेल्थ कंपनी के लिए, जो ऑडिटिंग या लेखा परीक्षा की है, उसमें इसने एनएमसी के कर्मचारियों और अधिकारियों से मिलकर फर्जी ऑडिट रिपोर्ट तैयार की है। फर्जी ऑडिटिंग में, एनएमसी के निवेशकों से, छह साल की धोखाधड़ी को जानबूझकर कर छिपाया है। ऑडिटर्स ने, जानबूझकर हजारों संदिग्ध लेनदेन को नजरअंदाज किया और ऑडिटिंग में जमकर हेराफेरी की। एनएमसी के एक बड़े शेयर होल्डर्स रघुराम शेट्टी ने आरोप लगाया है कि अर्न्स्ट एंड यंग ने जानबूझकर हजारों संदिग्ध लेनदेन को नजरअंदाज करते हुए ऑडिटिंग में धोखाधड़ी की है। शेट्टी ने इस कंपनी के खिलाफ दर्ज मुकदमें में सात बिलियन डॉलर की मांग की है। आरोप है कि ब्रिटेन की कंपनी ने निवेशकों को 10 बिलियन डॉलर से अधिक का नुकसान पहुंचाया है।

अर्न्स्ट एंड यंग पर साल 2013 और 2019 के बीच फर्जी चालान बनाने और कई वजूद खो चुकी कंपनियों की माली हालत जानबूझकर कर बेहतर बताने के आरोप हैं। शेट्टी ने इस बाबत साक्ष्य भी पेश किया है। एनएमसी को, पिछले साल अप्रैल में लंदन की एक अदालत ने, प्रशासन की निगरानी में डाल दिया था, क्योंकि इस हेल्थकेयर कम्पनी में अनेक वित्तीय गड़बड़ियों का अंदेशा हुआ था। धोखाधड़ी के इन आरोपों के कारण, इस कंपनी के शेयर 2019 के अंत में, तेजी से और गिरने लग गए। इससे शेट्टी को काफी नुकसान हुआ था। शेट्टी के मुताबिक अर्न्स्ट एंड यंग ने एनएमसी के साथ जुड़ी कंपनियों का ऑडिट किया, लेकिन उसके वित्तीय आंकड़ों पर सवाल कभी नहीं उठाया। बिना जांचे-परखे ऑडिट सर्टिफिकेट जारी कर दिया।

साल 2004 में भी अर्नस्ट एंड यंग को एक ऑडिट क्लाइंट, पीपुलसॉफ्ट के मामले में दंडित किया गया था। बाद में अर्न्स्ट एंड यंग के साथ सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाली कंपनियों को छह साल के लिए ऑडिट क्लाइंट के रूप में स्वीकार करने पर पाबंदी लगा दी गई थी। अप्रैल 2020 में लंदन हाईकोर्ट ने दुबई गोल्ड ऑडिट में अर्न्स्ट एंड यंग पर अनैतिक कदाचार के लिए 11 मिलियन डालर का जुर्माना लगाया था। इस कंपनी के घपलों और घोटालों की लंबी फेहरिस्त विकीपीडिया पर मौजूद है, जिसे कोई भी पढ़ सकता है।

बनारस में भी खेल कर चुकी है ईवाई

बनारसियों के सपनों को हकीकत में बदलने का लालीपाप लेकर अर्न्स्ट एंड यंग साल 2008-09 में बनारस आई। बनारस की बदहाल ट्रैफिक व्यवस्था को दुरुश्त करने के लिए वाराणसी विकास प्राधिकरण के साथ करार किया और तमाम ऐसी योजनाएं गढ़ डाली जो इस शहर में संभव ही नहीं थीं। कंपनी ने जो काम्प्रिहैंसिव मोबिलिटी प्लान बनाया था उससे बनारस की ट्रैफिक व्यवस्था में अभूतपूर्व सुधार का दावा किया गया था। शहर में तीन तरह के रिंग रोड और प्रमुख सड़कों के चौड़ीकरण के सुझाव दिए गए थे। कंपनी ने सर्वे के बाद 219 पेज की रिपोर्ट सौंपी थी। मोटे तौर पर शहर में मोनो रेल, हैवी रेल और लाइट रेल ट्रांजिट का सुझाव दिया गया है। नेटवर्क पाथ के लिए डीएलडब्ल्यू, रामनगर, कचहरी वाया लहरतारा-लंका तक के मार्ग को चिह्नित किया गया था। लंका से पहड़िया, रथयात्रा से साजन तिराहा होते हुए कचहरी तक के मार्ग को भी चिह्नित किया गया था।

इनर रिंग रोड, मिडिल रिंग रोड व आउटर रिंग रोड बनाने का सुझाव दिया गया था। इनर रिंग रोड में बीएचयू से आदमपुर तक, बीएचयू से डीएलडब्ल्यू, लहरतारा होते हुए कैंट, चौकाघाट, मालवीय ब्रिज, पड़ाव, रामनगर, सामने घाट तक की 26 किमी की सड़क को जोड़ने की बात कही गई थी। अस्सी से सोनारपुरा, गोदौलिया-मैदागिन-मच्छोदरी से लगायत कैंट-पड़ाव, लहरतारा-बीएचयू, कैंट-लंका, मोहनसराय-कैंट, कैंट-लहुराबीर, वरुणापुल-अंधरापुल, पड़ाव-रामनगर, हुकुलगंज-पांडेयपुर रोड को चौड़ा करने का प्रस्ताव था। कंपनी ने कैंट रेलवे स्टेशन, मैदागिन, गोदौलिया और पांडेयपुर में सब वे बनाने का सुझाव दिया था। अर्न्स्ट एंड यंग के फार्मूले को अमलीजामा पहनाया गया होता तो आधे बनारस का वजूद ही मिट गया होता।

अर्न्स्ट एंड यंग ने बनारस की स्थापत्य और पौराणिकता को ताख पर रखकर कई अहम फार्मूले पेश किया और बाद में वीडीए से 33.53 लाख रुपये का भुगतान लेकर चंपत हो गई। वीडीए के बाद नगर निगम के अफसरों ने भी इस कंपनी से कई योजनाएं बनाई, उसे मोटा पैसा दिया और कमीशन लेकर चले गए। अर्न्स्ट एंड यंग द्वारा सुझाए गए तमाम फार्मूले सरकारी अफसरों की अलमारियों की शोभा बढ़ा रहे हैं।

काशी में आस्था का कॉरपोरेटाइजेशन

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय राय कहते हैं, "जालसाज कंपनी को काशी विश्वनाथ मंदिर के प्रबंधन से जोड़ा जाना आपत्तिजनक है। तीर्थ और आस्था के कोर्पोरेटाइजेशन और बाजारीकरण पर बनारस का हर प्रबुद्ध नागरिक हैरत में है। काशी विश्वनाथ धाम के नाम पर अक्षयबट, शनिदेव मंदिर, नकुलेश्वर मंदिर, गणेश मंदिर, अविमुक्तेश्वर आदि प्राचीन मंदिरों और विग्रहों को जिस निर्दयता और अनास्था के साथ नेस्तनाबूत किया गया है उसे बनारस कभी नहीं भूल पाएगा। प्राचीन मंदिरों और उनके पुराने पाश्चात्य को नष्ट करने के लिए पिछले तीन-चार सालों से मुहिम चलाई जा रही है। सरकार की नीति और नीयत से साफ पता चलता है कि बनारस के तीर्थो के कॉरपोरेटाइजेशन का दौर शुरू हो गया है। भारत में आज तक हम कोई ऐसा ट्रस्ट नहीं ढूंढ पाए जो बाबा विश्वनाथ धाम की सेवा पूजा कर सके।"

अजय राय यह भी कहते हैं, "पक्के महाल कि काशिका संस्कृति को जिस तरह से ध्वस्त किया गया है उस तरह का अनर्थ, काशी में अब से पहले कभी नहीं हुआ। यह सब कॉरपोरेटीकरण के बड़े एक षड्यंत्र का हिस्सा है। दुनिया में किसी भी धर्म के मुख्य तीर्थ और मंदिर की व्यवस्था को कभी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप पर दिया नहीं दिया गया था। भाजपा सरकार के अधर्मी नेता वोट को धर्म के नाम पर मांगते हैं और आचरण ठीक उसके विपरीत करते हैं। "

हरिद्वार स्थित हर की पैड़ी की तर्ज पर बनाए जा रहे काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण से पहले ही मोदी-योगी की यह परियोजना विवादों के घेरे में आ गई थी। ऐतिहासिक अक्षयवट हनुमान मंदिर को एक महीने पहले तोड़ दिया गया, जबकि रजिस्ट्री में इस बात का साफ उल्लेख किया गया था कि इस मंदिर के स्वरूप के साथ छेड़छाड़ नहीं किया जाएगा। विश्व में सिर्फ तीन ही अक्षयवट थे-काशी, गया और प्रयाग में। अक्षयवट सरीखे काशी खंड के ऐतिहासिक मंदिरों को जमींदोज करने में तनिक भी देर नहीं की गई। ढहाए गए कई मंदिर तो हजारों साल पुराने थे। अक्षय हनुमान मंदिर का इतिहास तो काशी विश्वनाथ मंदिर से भी कई सौ साल पुराना था।

विश्वनाथ कारिडोर के नाम पर ब्रह्मेश्वर की मूर्ति, नकुलेश्वर महादेव, द्रोपदादित्य, भगवान कल्की का मंदिर, शंकराचार्य द्वारा स्थापित सरस्वती मंदिर तो तोड़ दिया गया। मणिकर्णिका घाट पर स्वर्गद्वारेश्वर महादेव, बद्रीनाथ मंदिर और शिव कचहरी आदि का अस्तित्व मिटाया जा चुका है। ग्रहों के राजा शनिदेव का मंदिर, पंचमुखी गणेश मंदिर तोड़ दिया गया। संतों की कई समाधियों का अता-पता नहीं है। ऐतिहासिक कारमाइकल लाइब्रेरी, गोयनका लाइब्रेरी, देवकी नंदन खत्री आवास का अस्तित्व हमेशा के लिए मिटाया जा चुका है। पुरानी लाइब्रेरियों की तमाम पांडुलिपियां भी गायब हैं।

बाबा विश्वनाथ में गहरी आस्था रखने वाले मुन्ना पाठक इस बात से नाराज हैं कि भारत माता का जयकारा लगाने वालों ने उनके मंदिर को भी नहीं बख्शा। वह कहते हैं, " पुतली वाला शिवाला को गायब करके वहां वीवीआईपी के लिए आलीशान इमारत खड़ी कर दी गई। ऐतिहासिक द्रोपदी कूप को पाटकर उसका अस्तित्व मिटा दिया। परिसर में करीब दौ सौ कूपों को पाटा गया है। नीम, पीपल और बरगद के 12 विशाल पेड़ों की बलि ले ली गई है। ये सभी पेड़ छल पूर्वक गिराए गए। कॉरिडोर की सीमा में आने वाले जिन इमारतों को तोड़ा गया है उनका इतिहास 100 सालों से ज्यादा पुराना था, जबकि अब से पहले बनारस के पक्का महाल की संरचना कई सौ सालों से नहीं बदली थी।"

मुन्ना पाठक यह भी बताते हैं, "विश्वनाथ मंदिर का मूल स्वरूप शिव पंचायतन शैली में बना था। उसके चारो शिखरों को तोड़ दिया गया है। साथ ही उन भवनों को भी जिनमें रह-रहे लोग पांच या छह पीढ़ियों पहले यहां आकर बसे थे। कॉरिडोर के निर्माण में हमारी बसी-बसाई बस्ती को उजाड़ दिया है। काशी विद्वत परिषद की भूमिका भी अब सवालों के घेरे में है। इस संस्था के लोग सरकार से पुरस्कार पाने के लिए इस कदर लालायित हैं कि उन्हें धर्म और अधर्म का मतलब समझ में नहीं आ रहा है। इन्हें इस बात से भी कोई सरोकार नहीं है कि खंडित मूर्तियों और विग्रहों का होगा क्या?"

कौन लूट ले गया ऐतिहासिक धरोहरें

काशी विश्वनाथ में गहरी आस्था रखने वाले लोगों ने कई नया सवाल खड़ा किया है। काशी में सदियों से यह प्रचलित प्रथा रही है कि मकान बनवाते समय उसकी नींव में सोने-चांदी के आभूषणों के अलावा रत्न भी डाले जाते हैं। काशी विश्वनाथ कारिडोर की खुदाई के दौरान कहीं सोने-चांदी की मूर्तियों और हीरे-जवाहरात का न मिलना बड़ा संदेह पैदा करता है। बनारस के सभी संत-महात्माओं का मानना है कि ऐसा हो ही नहीं सकता कि विश्वनाथ मंदिर परिसर के आसपास भवन बने हों और निर्माण के समय नींव में सोने चांदी की मूर्तियां व जवाहरात आदि न डाले गए हों। पहले कोई भी मंदिर, विग्रह और भवन बनवाए जाते थे तो नींव में देवी-देवताओं की स्वर्ण-रजत प्रतिमाएं और कीमती रत्न जरूर रखे जाते थे।

विश्वनाथ मंदिर में नियमित दर्शन-पूजन करने वाले दर्शनार्थी अजय शर्मा कहते हैं, "काशी विश्वनाथ धाम के निर्माण के दौरान पुरातात्विक धरोहरों की खुलेआम लूट हुई है। संभव है कि खुदाई में निकले खजाने भी लूट लिए गए हों और कुछ पुरातन मूर्तियां तस्करों के खजाने के हिस्से बन गए हों। विश्वनाथ मंदिर के फर्श पर चांदी के जो सिक्के लगे थे, वो भी गायब हैं। मंदिर प्रशासन क्यों नहीं बता रहा है कि यह सब कुछ कहां गायब हो गया?

सामाजिक कार्यकर्ता विकास मल्होत्रा कहते हैं," विश्वनाथ कारिडोर के निर्णाण में लगी कंपनी पीएसपी का ताल्लुक केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से है। यह कंपनी इलाकाई लोगों की बात सुनती ही नहीं है। जब बनारस के हिन्दू और मुसलमान मजदूरों ने विश्वनाथ धाम में ऐतिहासिक मंदिरों और विग्रहों को तोड़ने से इनकार कर दिया तो यह कंपनी बंगलादेशी श्रमिकों को ले आई। सब कुछ अपनी मर्जी से किया। किसी की सुनी तक नहीं।"

वरिष्ठ पत्रकार अमितेश पांडेय कहते हैं कि मोदी सरकार का गुणगान करते हुए ईवाई ने अपने आर्थिक साम्राज्य को काफी बढ़ा लिया है। वह बताते हैं, "देश-दुनिया के लोग बनारस में धर्म और आस्था की गलियों व गलियारों में घूमने आते हैं। एंटिक चीजों को तोड़ दिया गया। विश्वनाथ कारिडोर का एक द्वार मणिकर्णिका घाट पर बनाया गया है। जिस स्थान पर मुर्दे जलाए जाते हैं उसके कुछ कदम पहले लोग अब गंगा में डुबकी लगाया करेंगे। देश-दुनिया के लोग बनारस में धर्म और आस्था की गलियों व गलियारों में एंटिक चीजों को देखने और घूमने आते थे, जिन्हें अब तोड़ दिया गया है। विश्वनाथ कारिडोर का एक द्वार मणिकर्णिका घाट पर बनाया गया है। जिस स्थान पर मुर्दे जलाए जाते हैं उसके कुछ कदम पहले लोग अब गंगा में डुबकी लगाया करेंगे।"

अमितेश बताते हैं कि अर्न्स्ट एंड यंग भारत में सालों से मोदी सरकार की कॉरपोरेट नीतियों की तारीफ करती आ रही है। जिस समय मोदी सरकार ने नोटबंदी के बाद 500 व 1000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर किया था उस समय अर्न्‍स्ट एंड यंग (ईवाई) ने एक फर्जी सर्वेक्षण पेश करते हुए दावा किया था कि नोटबंदी से दीर्घकालिक स्तर पर भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने और कालेधन को भारत लाने में मदद मिलेगी। अर्न्‍स्ट एंड यंग का यह दावा पूरी तरह सतही और फर्जी साबित हुआ। इसी साल 25 मार्च 2021 को अर्न्‍स्ट एंड यंग ने रिलायंस इंडस्‍ट्रीज (आरआईएल) के सीएमडी मुकेश अंबानी को अर्नस्‍ट एंड यंग एंटरप्रन्‍योर ऑफ द ईयर अवार्ड से नवाजा था। इस मौके पर अंबानी ने कहा साफ तौर पर कहा था भारत में मौजूदा दौर में उद्यमियों के लिए अवसरों की सुनामी दिखाई दे रही है। अंबानी के बयान से यह पता चलता है कि देश में एक ऐसा काकस काम कर रहा है जो सिर्फ एक-दूसरे का हित साध रहा है।

वीआईपी ट्रीटमेंट चाहिए तो देना होगा शुल्क

काशी विश्वनाथ कारिडोर में मंदिर परिसर के अलावा मंदिर चौली, यात्री सुविधा केंद्र, तीन प्रवेश द्वार, भोगशाला, गेस्ट हाउस, स्प्रिच्वल बुक स्टोर, मुमुक्षु भवन, वाराणसी गैलरी, सिटी म्युजियम, वैदिक केंद्र, मल्टी परपज हाल, टूरिस्ट फैसिलिएट सेंटर, जलपान केंद्र बनाए गए हैं। मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. सुनील कुमार वर्मा दावा करते हैं कि आम श्रद्धालुओं से कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा, लेकिन मंदिर दर्शन के लिए किसी को वीआईपी ट्रीटमेंट चाहिए तो शुल्क देना ही होगा।

काशी विश्वनाथ धाम के प्रवक्ता इन बातों को बेबुनियाद बताते हैं कि मंदिरों के खुदाई में सोने-चादी के सिस्के और जवाहरात मिले रहे होंगे। उनके मुताबिक, "मौके पर पुलिस और एलआईयू के अफसर हर वक्त तैनात रहते हैं। कहीं कुछ निकला होता तो छुपाया नहीं जा सकता था। कॉरिडोर बनने से पक्का महाल दो हिस्सों में बंट गया है, यह कपोलकल्पित बातें हैं। विश्वनाथ कॉरिडोर शुरू होते ही सभी गलियां आपस में जुड़ जाएंगी और खंडित मूर्तियां के स्थान पर नई मूर्तियां लगवा दी जाएंगी।"

(विजय विनीत बनारस स्थित वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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