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बीएचयू प्रशासन और छात्रों के बीच गतिरोध बरक़रार, हॉस्टल खाली करने से इंकार

बीएचयू में हॉस्टल मामले को लेकर छात्र और प्रशासन एक बार फिर आमने-सामने हैं। जहां प्रशासन सभी मौजूदा छात्रों को एक साथ दूसरे हॉस्टल भेजने की तैयारी में लगा है वहीं छात्रों ने कोरोना के बढ़ते संक्रमण और उचित व्यवस्था के आभाव में अपना वर्तमान कमरा छोड़ कर दूसरी किसी भी जगह जाने से इंकार कर दिया है।
BHU

“जिस छात्रावास में प्रशासन हमें शिफ्ट कर रहा है, वहां न तो पानी की उचित व्यवस्था है न ही शौचालय और वाईफाई की। वहां पहले से ही 100 लोगों की एनडीआरएफ की टीम रह रही है, ऐसे में प्रशासन हमें इतने लोगों के बीच कौन सी सुरक्षा प्रदान करना चाहती है, पता नहीं?”

ये कथन बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के हॉस्टल में रहने वाले छात्रों का है, जिन्हें फिलहाल प्रशासन द्वारा एक अन्य हॉस्टल में शिफ्ट किया जा रहा है। छात्रों का कहना है कि प्रशासन लगातार उन पर कमरा खाली करने के लिए दबाव बना रहा है, जो इस कोरोना संकट के समय में प्रताड़ना जैसा है। ऐसे में अगर किसी छात्र को कुछ हो जाता है तो इसकी जिम्मेदारी बीएचयू प्रशासन की होगी।

क्या है पूरा मामला?

कोरोना के बढ़ते संक्रमण और लॉकडाउन के बीच बीएचयू प्रशासन द्वारा कथित तौर पर जबरन हॉस्टल खाली करवाने और छात्रावास में तालाबंदी के खिलाफ कल यानी 21 मई को छात्र हॉस्टल के बाहर धरने पर बैठ गए। जिसके बाद तमाम दबाव के बीच प्रशासन का एक नया आदेश सामने आया, जिसमें कहा गया कि जो छात्र यहां रहना चाहते हैं, उन्हें एक दूसरे हॉस्टल में शिफ्ट करना होगा।

छात्रों का कहना है कि जब उन लोगों ने इस आदेश के संबंध में चीफ प्रॉक्टर से सवाल किया तो वे बिना कोई ठोस कारण बताए “तुम लोग सवाल बहुत करते हो” कहकर वहां से निकल गए।

ये पढ़ें: बीएचयू: छात्रावास में लगा तालाजबरन हॉस्टल खाली कराने के ख़िलाफ़ छात्रों का धरना!

क्या कहना है प्रशासन का?

छात्रों को दूसरे हॉस्टल में शिफ्ट करवाने और वहां मौजूद व्यवस्थाओं के संबंध में जब न्यूज़क्लिक ने बीएचयू के पीआरओ (पब्लिक रिलेशन ऑफिसर) डॉ. राजेश सिंह से बात की तो उनका साफ तौर पर कहना था कि किसी भी छात्र के साथ कोई जबरदस्ती नहीं की जा रही। छात्रों को प्रेमपूर्वक निवेदन किया गया कि वे दूसरा हॉस्टल जो कि विश्वविद्यालय का नया हॉस्टल है वहां शिफ्ट कर लें, जिससे बाकी हॉस्टलों में मेंटेनेंस का काम करवाया जा सके।

डॉ. राजेश आगे कहते हैं, “कोरोना लॉकडाउन पता नहीं कितने दिन चलेगा, ऐसे में हमें सभी बच्चों के स्वास्थ्य की चिंता है। इसलिए हम लोग बड़े प्यार से उन्हें समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि वे समय रहते कोरोना के खतरे को देखते हुए विश्वविद्यालय की उचित व्यवस्था के तहत अपने घरों को लौट जाए। हम छात्रों की सभी सुविधाओं का ध्यान रख रहे हैं, उनकी हर संभव मदद का प्रयास किया जा रहा है।”

छात्र क्यों विरोध कर रहे हैं?

सोशल डिस्टेंसिंग का संकट

दूसरे हॉस्टल में शिफ्ट करने को लेकर जब न्यूज़क्लिक ने छात्रों की समस्या जाननी चाही तो उनका सीध तौर पर ये कहना था कि अभी जिन अलग-अलग छात्रावासों में छात्र रह रहे हैं, वहां प्रत्येक परिसर में 100-200 कमरे हैं, जिनमें करीब 20 से 40 छात्र रह रहे हैं, जो कि स्वास्थ्य विभाग के दिशा-निर्देशों के अनुकूल है यानी सोशल डिस्टेंसिंग का सही पालन हो रहा है। लेकिन प्रशासन जिस हॉस्टल में भेज रहा है वहां कमरों में 100 लोग पहले ही एनडीआरएफ टीम के रुके हुए हैं। ऊपर से छात्रों को भी बिना उचित व्यवस्था के वहां रखा जा रहा है, जो खतरे से खाली नहीं है।

सैनिटाइजेशन और साफ़-सफ़ाई का डर

इस फैसले का विरोध कर रहे छात्र राज अभिषेक बताते हैं, “हम सभी छात्रों ने बीते दो महीनों में खुद के कॉन्ट्रीब्युशन से हॉस्टल में सैनिटाइजेशन और तमाम सफाई एवं स्वास्थ्य सुविधाओँ का इंतज़ाम किया है। किसी भी बाहरी व्यक्ति का छात्रावास में आना मना है। ऐसे में हम लोग खुद को अपने हॉस्टल में सुरक्षित महसूस करते हैं। प्रशासन जहां शिफ्ट करवाना चाहता है, वहां फिलहाल कोई उचित व्यवस्था नहीं है, ऐसे में अगर कोई संक्रमित हो गया तो, उसका जिम्मेदार कौन होगा?”

पानी और शौचालय की सही व्यवस्था न होना

एक अन्य छात्र का कहना है कि प्रशासन ने रात को करीब तीन हॉस्टल के छात्रों को जबरन शिफ्ट करवा दिया, जबकि बाकि बचे हॉस्टल के छात्रों पर भी लगातार दबाव बनाया जा रहा है। लेकिन कई छात्र ऐसी किसी जगह नहीं जाना चाहते जहां न रहने की सही व्यवस्था है न ही पानी और शौचालय की। इसलिए कुछ छात्र अभी भी अपने ही हॉस्टल में रह रहे हैं। प्रशासन का आदेश आया था कि आज सुबह सभी से कमरा खाली करवा लिया जाएगा, लेकिन फिलहाल अभी तक कोई आया नहीं है।

हालांकि बीएचयू के पीआरओ का कहना है कि जिस हॉस्टल में छात्रों को भेजा जा रहा है, वहां सभी सुविधाएं हैं और एनडीआरएफ की टीम भी वहां से शिफ्ट हो रही है। बावजूद इसके किसी छात्र पर कोई दबाव नहीं बनाया जा रहा है।

छात्रों का आरोप है कि विश्विद्यालय प्रशासन लगातार नए-नए बहाने बना कर छात्रों को हॉस्टल से निकालने की कोशिश कर रहा है। उनके खिलाफ मीडिया और बाहर समाज मे भ्रामक खबरे प्रसारित करवा रहा है। जबकि छात्रों की केवल एक ही मांग है कि उन्हें शांतिपूर्वक छात्रावासों में रहने दिया जाए।

छात्रों द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि छात्रावास ख़ाली करवाने के पीछे प्रशासन के पास कोई ठोस कारण नहीं है, कभी एमएचआरडी और जिलाधिकारी के आदेश तो कभी मरम्मत का बहाना बनाया जा रहा है।

प्रशासन के तर्कों पर छात्रों का जवाब

छात्रों के मुताबिक, पिछले 2 महीनों से प्रशासन की तरफ से कोई भी व्यवस्था परिसर या परिसर के बाहर रह रहे छात्रों के लिए नहीं की गई। उन्हें भूखे प्यासे उनकी स्थिति पर छोड़ दिया गया था। लॉकडाउन के बीच यह पहला संवाद प्रशासन का छात्रों से हॉस्टल ख़ाली करवाने के नोटिस से हुआ।

*  हॉस्टल में प्रशासन के तरफ से कोई सुविधा न छात्रों को मिल रही थी न किसी सुविधा की मांग है। इस महामारी में सफ़ाई जैसे संवेदनशील मुद्दे को भी प्रशासन ने नज़रंदाज़ किया। छात्र खुद ही हॉस्टल के फर्श, अपने कमरे एवं शौचालय की सफाई कर रहे हैं। यहां तक कि छात्रावासों में बढ़ी हुई घास भी छात्र ही काट रहे हैं। सैनिटाइजर एवं मास्क की उपलब्धता भी छात्रों ने आपस मे चंदा कर के किया है।

2 महीने से मेस बंद है, जिसको लेकर प्रशासन बयानबाज़ी कर रहा है कि उन्होंने सभी छात्रों के खाने की व्यवस्था अस्पताल परिसर में स्थित अन्नपूर्णा भोजनालय में किया था, ध्यान रहे कोरोना वार्ड भी उसी अस्पताल में है। प्रशासन ने ऐसी कोई व्यवस्था यहां के छात्रों के लिए नहीं की और इनका बयान ही खुद में गैर जिम्मेदाराना है कि उन्होंने खाने की व्यवस्था अस्पताल परिसर में की है। जबकि वास्तविकता में सभी छात्र ख़ुद ही अपने खाने की व्यवस्था कर रहे हैं।

* ह्यूमन रिसोर्स के मामले में सिर्फ एक गार्ड हॉस्टल में तैनात है जो कि हॉस्टल बंद होने की स्थिति में भी यहीं रहते हैं। अन्य किसी भी ह्यूमन रिसोर्स का सहयोग प्रशासन की ओर से नहीं रहा है।

सभी छात्रावासों में छात्रों ने खुद ही स्वास्थ्य विभाग एवं भारत सरकार के कोरोना नियंत्रण गाइडलाइंस का पूर्णतः पालन किया है, सोशल डिस्टेनिसिंग का पालन छात्रावास में अक्षरतः हो रहा है।

प्रशासन के सबसे ताज़ा बयान के मुताबिक हॉस्टल खाली कराने का कारण हॉस्टल की रूटीन रेनोवेशन है जो कि तभी संभव है जब सभी कमरे खाली हो और उसमें कोई सामान न हो। अभी जबकि हर कमरे बंद है और उन कमरों के निवासी छात्र अपने घर पर हैं, ऐसे में हर कमरे का ताला तोड़ कर उसकी मरम्मत कराने का फैसला बचकाना एवं शर्मनाक है।

* अभी वर्तमान की स्थिति में हर छात्र ख़ुद को सबसे ज्यादा सुरक्षित अपने कमरे के अंदर पा रहा रहा है, और यहाँ से बाहर जाने को किसी भी स्थिति मे तैयार नहीं है।

* विश्वविद्यालय प्रशासन का छात्रों से जबरदस्ती हॉस्टल खाली कराए जाने का निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अपील का खुला मजाक है। ऐसी महामारी के डर वाले दौर में छात्रों को बाहर निकाल देने से इसका असर डेलीकेसी में रह रहे छात्रों के ऊपर भी बहुत बुरी तरह से पड़ेगा। मकान मालिक उन्हें जबरन बाहर निकालने लगेंगे यह कहकर कि विश्वविद्यालय ने अपने हॉस्टल तक खाली करवा दिए हैं ऐसी अवस्था में आप हमारा मकान खाली कर दो नहीं तो हमें संक्रमण का खतरा होगा। 

गौरतलब है कि छात्रों के अनुसार बीएचयू प्रशासन की ओर से मंगलवार, 19 मई को यूजीसी और एमएचआरडी की गाइडलाइन्स का हवाला देते हुए छात्रों को 48 घंटे के भीतर हॉस्टल खाली करने का नोटिस थमा दिया गया। जब उन्होंने इसे मानने से इंकार कर दिया, तब 48 घंटे बाद प्रॉक्टोरियल बोर्ड ने हॉस्टल के सभी कमरों ताला लगा दिया। जिसके बाद छात्र बाहर धरने पर बैठ गए। जिसके बाद प्रशासन बैकफुट पर आ गया और उसे मज़बूरन छात्रों के लिए दूसरे हॉस्टल में रुकने का नया आदेश जारी करना पड़ा। हालांकि कुछ छात्र इसके लिए राज़ी नहीं हैं और वो अपने हॉस्टल में ही सुरक्षित रहना चाहते हैं।

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