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गहरा रहा है स्टार्टअप संकट

जैसे ही कोविड-19 के संक्रमण ने देश को ग्रसित कर लिया, बहुत से स्टार्टअप भी आईसीयू में जाने की हालत में हो गए।
स्टार्टअप संकट
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : IndianWeb2

16 जनवरी, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मादी ने ‘स्टार्टअप इंडिया’ स्कीम को लॉन्च किया। तब से चार वर्ष बीतने के बाद भी इस साल जनवरी में मोदी सरकार ने इस योजना की भारी सफलता का दावा किया है। 4 मार्च, 2020 को वाणिज्य व उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने लोकसभा में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि इस स्कीम के चालू होने के बाद से 26 फरवरी 2020 तक आंतरिक व्यापार एवं उद्योग संवर्द्धन विभाग (डीपीआईआईटी) द्वारा 20,017 स्टार्टअप्स को मान्यता दी जा चुकी है। यह आंकड़ा तो प्रभावशाली लगा, और अर्थव्यवस्था की बिगड़ती हालत को देखते हुए हमें उल्लसित करने वाला प्रतीत होता है। पर यह उत्साह क्षणिक है। जैसे ही कोविड-19 के संक्रमण ने देश को ग्रसित कर लिया, बहुत से स्टार्टअप भी आईसीयू में जाने की हालत में हो गए।

जुलाई 2020 के प्रथम सप्ताह में फिक्की और इंडियन एंजेल नेटवर्क (नई कम्पनियों में निवेशकों का एक नेटवर्क, जिन्हें एंजेल निवेशक कहते हैं) ने मिलकर 250 स्टार्टअप्स का एक सैम्पल सर्वे किया और उनकी रिपोर्ट के कुछ तथ्य सचमुच हैरान करने वाले हैं:

* 12 प्रतिशत स्टार्टअप्स बंद हो चुके हैं

* सर्वे किये गए स्टार्टअप्स में से 70 प्रतिशत ने कहा कि उनका कारोबार कोविड-19 और लॉकडाउन के कारण बाधित हुआ है

* इन स्टार्टअप्स में से केवल 22 प्रतिशत के पास अपनी कम्पनियों के लिए 3-6 माह का निश्चित लागत खर्च निकालने हेतु नकद भंडार उपलब्ध था

* करीब 30 प्रतिशत कम्पनियों ने कहा कि यदि लॉकडाउन अधिक लम्बा चला तो वे अपने कर्मचारियों की छंटनी (ले ऑफ) करेंगे

* सर्वे किये गए स्टार्टअप्स का 43 प्रतिशत हिस्सा अप्रैल-जून 2020 की अवधि में 20-40 प्रतिशत वेतन कटौती कर चुका है

* जहां तक निवेश की बात है, केवल 8 प्रतिशत स्टार्टअप्स को कोविड-पूर्व समय में हस्ताक्षर किये गए सौदों के हिसाब से फंड प्राप्त हुए थे। 33 प्रतिशत स्टार्टअप्स ने बताया कि निवेशकों ने निवेश के निर्णय को स्थगित कर दिया है और 10 प्रतिशत ने कहा कि उनके सौदे खारिज कर दिये गए थे

* 250  स्टार्टअप्स के अलावा, 61 इन्क्यूबेटरों और निवेशकों ने भी सर्वे में हिस्सा लिया

* 96 प्रतिशत निवेशकों ने बताया कि कोविड-19 की वजह से स्टार्टअप्स में निवेश प्रभावित हुआ है

* इसके अलावा, 92 प्रतिशत निवेशकों ने कहा कि अगले 6 महीनों तक स्टार्टअप निवेश कम रहेगा

निवेशकों के लिए स्पष्ट हो गया है कि स्टार्टअप्स एक बड़े संकट की ओर बढ़ रहे हैं; इसलिए वे सचेत हो गए हैं। इस वजह से फंडिंग में कमी आई है। पहले तो जब मंदी का दौर चल रहा था, स्टार्टअप्स का ही एक ऐसा क्षेत्र था जहां निवेश फंड व परिसंपत्ति प्रबंधन कम्पनियां निवेश को लाभकारी मान रही थीं। स्टार्टअप्स को लेकर इतना हो-हल्ला था कि कई एंजेल निवेशक स्टार्टअप्स में निवेश करने के लिए तत्पर हुए। अब वे सब रूढ़िवादी से बन गए हैं और अपने निवेश के निर्णयों को टाल चुके हैं। स्टार्टअप फंडिंग में मार्च 2020 में 50 प्रतिशत की गिरावट आई।

वेंचर इंटेलिजेंस, जो एक स्टार्टअप डाटा ट्रैकर है, के अनुसार भारतीय स्टार्टअप्स ने मार्च 2020 में 34 सौदों से 354 मिलियन डॉलर की उगाही की थी, जोकि फरवरी में 46 सौदों से कमाए गए 714 मिलियन डॉलर का आधा से भी कम था। मार्च 2019 में उद्यम पूंजीपतियों से स्टार्टअप्स ने जो 794 मिलियन डॉलर की उगाही की थी, उसकी तुलना में यह 56 प्रतिशत गिरावट दर्शा रहा था। डाटा के अनुसार इस कैलेंडर वर्ष के प्रथम त्रिमास में स्टार्टअप्स ने 126 सौदों से 1.74 अरब डॉलर की उगाही की, जोकि पिछले वर्ष के इसी त्रिमास से 22 प्रतिशत कम था। यह जानना महत्वपूर्ण है कि यह अधिकांशतः लॉकडाउन शुरू होने से पहले की स्थिति है।

लॉकडाउन के दौर में फंडिंग का संकुचन और भी बढ़ गया। डाटा संचित करने वाले ‘टै्रक्सन’ के अनुसार 79 बीज अवस्था सौदे या ‘लॉन्च स्टेज डील’, जिनकी कीमत 47 मिलियन डालर थी, अप्रैल के आरंभ से 5 जून के बीच बंद हो गईं, जबकि पिछले वर्ष अप्रैल-जून के बीच 154.5 मिलियन डॉलर कीमत के 188 सौदे किये गए थे; यानी लॉकडाउन के दौर में एक-तिहाई तक की गिरावट हुई! यह चिंताजनक स्थिति है, पर सरकार पूरी तरह से उदासीन है और इसे समस्या के रूप में देखती ही नहीं।

मसलन, वित्त मंत्री द्वारा घोषित आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम में स्टार्टअप्स के लिए कुछ भी नहीं था। जो एमएसएमईज़ के लिए 3 लाख करोड़ की ताज़ा क्रेडिट योजना निर्मलाजी ने घोषित की, वह अधिकांशतः स्टार्टअप्स पर लागू नहीं होती। ये केवल उनके लिए है जो बैंकों के कर्जदार हैं, उनके लिए नहीं जिन्हें ताज़ा लोन की जरूरत है। बहुत से टेक-स्टार्टअप स्वयं की फंडिंग (boot-strapping) पर निर्भर हैं और वे संकट के इस दौर में ऐसी योजना का लाभ नहीं ले सकते।

बंगलुरु, जिसे भारत के ‘‘स्टार्टअप कैपिटल’’ के रूप में जाना जाता है, कोविड संक्रमण के दौर में सबसे भारी धक्का सह रहा है। अब वह भारत के स्टार्टअप हब के रूप में अपना प्रथम स्थान खो चुका है और अब एनसीआर क्षेत्र, यानी गुड़गांव-दिल्ली-नोएडा उसका स्थान ले चुका है। पर टेक-स्टार्टअप्स का संकेंद्रण एनसीआर क्षेत्र में नहीं, बल्कि बंगलुरु में है।

उद्योगपति मोहनदास पाई का कहना है कि बंगलुरु के पास देश का सर्वश्रेष्ठ टेक-टैलेंट है- 1 लाख पीएचडी और स्नातकोत्तर ‘टेकीज़’ हैं। इस शहर में 20 लाख तकनीकी कार्यशक्ति है। 2010 और 2016 के बीच बंगलुरु के स्टार्टअप्स ने 10.47 अरब डॉलर की उगाही की थी। फिर पिछले 4 सालों में यह 20.1 अरब डॉलर हो गया। इतनी मजबूत स्थिति के बावजूद, पिछले 10 वर्षों में एनसीआर क्षेत्र, 7000 स्टार्टअप्स का गौरव लेकर 5234 स्टार्टअप वाले बंगलुरु से कहीं आगे निकल गया है; इससे यही पता चलता है कि भारत के टेक-राजधानी में स्टार्टअप उद्योग की हालत ख़स्ता हो चुकी है।

पर एनसीआर क्षेत्र भी संकट से परे नहीं है। जबकि 2015 में यहां 1,657 स्टार्टअप स्थापित किये गए थे, 2018 तक आते-आते यह संख्या गिरकर 420 हो गई। 2019 के प्रथम छह महीनों में केवल 142 स्टार्टअप्स को फंडिंग प्राप्त हुआ था। इससे समझ में आता है कि स्टार्टअप संकट सार्वभौम है और वह केवल कोविड-19 की वजह से नहीं पैदा हुआ।

हम कह सकते हैं कि लॉकडाउन के कारण संकट अधिक गहरा गया है। गूगल कम्युनिटी मोबिलिटी रिपोर्ट दर्शाती है कि भारत में लोगों के कार्यस्थल तक सफर करने में भी 35 प्रतिशत की कमी आई है। आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इसका स्टार्टअप्स पर कैसा प्रभाव पड़ा होगा और आम तौर पर उन उद्योगों और सेवाओं पर भी क्या असर हुआ होगा, जिनपर यह स्टार्टअप-अर्थव्यवस्था निर्भर रहती है। सबसे बुरी स्थिति है तमिलनाडु और तेलंगाना जैसे राज्यों की, जहां सामान्यतः लॉकडाउन खुलने के बाद भी अंबात्तुर जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में लॉकडाउन जारी रहा।

अम्बात्तुर इंडस्ट्रियल एस्टेट मैनुफैक्चरर्स ऐसोसिएशन ने एक बयान में राज्य सरकार के निर्णय का विरोध किया है क्योंकि एक ऐसे औद्योगिक क्षेत्र में, जहां 4 लाख लोग काम करते हैं, केवल 319 कार-पास जारी किये गए और किसी प्रकार की सार्वजनिक यातायात व्यवस्था की अनुमति नहीं थी। यहां यह बताना आवश्यक है कि अम्बात्तुर का एक दौर में de-industrialization, यानी विऔद्योगिकरण हुआ था, जिसके कारण कई औद्योगिक प्लॉट खाली हुए थे और इन्हें स्टार्टअप्स के मालिकों ने खरीदा था ताकि वे अपनी इकाइयां लगा सकें। इनकी हालत अब बदतर हो गई।

प्रकृति का नियम है कि बड़ी मछलियां छोटी मछलियों को खा जाती हैं। यही स्टार्टअप्स की दुनिया के लिए भी सही है। परिभाषा के अनुसार पिछले 10 वर्षों में किसी भी स्टार्टअप का आवर्त या टर्नओवर 100 करोड़ से अधिक नहीं होना चाहिये; तभी डीपीआईआईटी उसे मान्यता देती। बड़े कॉरपोरेट घराने और निवेशक या तो स्टार्टअप्स में निवेश कर रहे हैं या उन्हें लोन दे रहे हैं और कालांतर में उनपर आधिपत्य जमा ले रहे हैं। यहां तक कि जो स्टार्टअप्स एक हद तक स्वायत्त हैं, उनके लिए भी बराबरी का माहौल नहीं है और पावर रिलेशन्स के मामले में वे समान नहीं होते। दरअसल स्टार्टअप्स अक्सर बड़े कॉरपोरेट के जूनियर पार्टनर होते हैं और औद्योगिक सप्लाई चेन में उनके लिए सोर्सिंग का काम करते हैं।

पी आर एस मणि, जिन्होंने हिंदुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड के मुख्य प्रबंधक के पद से इस्तीफा दिया था और एक ऐरोनॉटिकल बहुराष्ट्रीय कम्पनी के निदेशक पद को छोड़कर अपना स्टार्टअप शुरू किया, अपने विविध अनुभव से बताते हैं कि स्टार्टअप शरू करते समय बड़े कॉरपोरेट ‘रिस्क-शेयरिंगग’ के नाम पर सीड कैपिटल या शुरुआती पूंजी लगाते हैं जो काफी कम होती है। बाकी पूंजी स्टार्टअप मालिक को लगाना होता है। पर जब घाटा लगता है तो वे स्टार्टअप की मदद नहीं करते और उन्हीं को पूरा नुकसान उठाना पड़ता है। यह कुछ ऐसा है कि चित हम जीते और पट भी तुम हारे। उन्होंने कहा कि बंगलुरु में बड़े कॉरपोरेट जितने आर्थिक रूप से कमज़ोर स्टार्टअप्स को छीन रहे हैं, उतनों को ही बेरहमी से त्याग भी रहे हैं। उन्होंने कहा कि फिर भी, कॉरपोरेट संकट का यह प्रमुख कारण नहीं है; उनके संकट और विकराल हैं।

हमेशा की भांति कर्मचारियों को ही संकट का खमियाजा भुगतना पड़ता है। आज का जुमला है ‘लागत में कटौती’। इसके मायने हैं कार्यशक्ति घटाओ। 25 अप्रैल 2020 की एक नामी बिज़नेस दैनिक की ख़बर के अनुसार 600 कम्पनियों ने मार्च 2020 में अपनी कार्यशक्ति कम की। इनमें थे-ओयो, ब्लैकबक, भारतपे, ऐको, फैब होटेल्स, ज़ोलो स्टेज़, ट्रीबो, उड़ान, और होमलेन। इसके अलावा बाउन्स, लिवस्पेस, ऐग्रोस्टार, बुकमाईशो और ड्रूम ने वेतन कटौती की; यह बिग.जाब्स के आंकड़े हैं। वेतन कटौती 15 प्रतिशत से लेकर 50-70 प्रतिशत तक है।

91स्प्रिंगबोर्ड (Springboard) और ग्रोफर्स ने अपने कई कर्मचारियों को ‘बेंच पर’ कर दिया है। भारतीय श्रम कानून में थोड़े समय की छुट्टी यानी फरलो (furlough) के लिए कोई स्थान नहीं है। ‘फरलो’ के मायने हैं कि कर्मचारी को काम नहीं दिया जाएगा और उसे बिना वेतन घर भेज दिया जाएगा ताकि जब पुनः काम आए तो उसे बुलवा लिया जाए। ‘लेऑफ’ में 50 प्रतिशत वेतन मुआवजे के बतौर दिया जाता है। यद्यपि ‘फरलो’ गैरकानूनी है, देश के अधिकांश स्टार्टअप हब इसे लागू करते हैं। यदि 1 मार्च 2020 को स्टार्टअप्स की कुल कार्यशक्ति 3,37,000 थी, एक तिहाई को भी काम न मिले तो यह भारी संख्या होगी। बंगलुरु जैसे शहर में, जहां 2017 के आई टी उद्योग संकट में भी कोई गंभीर समस्या नहीं थी, ऐसी परिघटना से बड़ा सामाजिक संकट पैदा हो सकता है।

मैक्रो इकनॉमिक्स के नज़रिये से देखें तो हमारे देश की जीडीपी में स्टार्टअप्स का योगदान काफी छोटा है। पर यदि आप समझें कि अधिकतर टेक-स्टार्टअप्स प्रौद्योगिकी नवपरिवर्तन (technological innovation) पर आधारित हैं और इस बाबत वे टेक-उद्योग के आगामी विकास और अधुनिकीकरण के अग्रदूत होते हैं, इसलिए उनकी भूमिका अहम है। अब समय आ गया है कि सरकार स्टार्टअप क्षेत्र के लिए एक विशिष्ट समर्पित क्रेडिट स्कीम लाए।

कुछ स्टार्टअप मालिकों ने न्यूज़क्लिक से कहा कि ताजा़ क्रेडिट (fresh credit) की जगह ब्याज परिदान (interest subvention) और लोन मुक्ति के विस्तार यानी एक्सटेंशन ऑफ लोन ऐमोर्टाइज़ेशन से उन्हें अधिक मदद मिलेगी। क्योंकि आय कर मुक्ति केवल 3 साल के लिए थी, जो स्टार्टअप 2017 में शुरू किये गए उन्हें अब कोई लाभ नहीं मिलेगा। वे जीएसटी और अन्य सब्सिडियों (subsidies) में छूट चाहते हैं। प्रारंभिक दौर की मदद के बाद भी सरकार को व्यवस्था करनी चाहिये कि संघर्ष कर रहे स्टार्टअप्स को तकनीकी और मार्केटिंग सहयोग मिले। उन्हें कुछ ऐसे प्रतिबंध लगाने चाहिये जिससे स्टार्टअप्स की दुनिया में बड़ी मछलियां छोटी को निगल न जाएं। वरना भारतीय स्टार्टअप्स की नाटकीय कहानी का समय के साथ दुखद अंत ही होगा। 

(लेखक श्रम और आर्थिक मामलों के जानकार हैं।)

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