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आज भी हम सूर्य ग्रहण को लेकर चल रहे अंधविश्वासों पर यकीन क्यों करते हैं?

हमारा अतीत ऐसे लोगों की कथाओं से अटा पड़ा है, जिन्होंने पहले से चले आ रहे मिथकों की जगह तार्किकता को तरजीह देकर उसके लिए भारी कीमत चुकाई थी। हमें भी सत्य के मार्ग को चुनने की हिम्मत को दिखाने की जरूरत है।
Still Believe Myth

दिन और रातें, पूरा चाँद और नया चाँद, गर्मियाँ और सर्दियां — ये जो कुछ भी हम देखते हैं, ये सभी पृथ्वी, चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों के गतिमान बने रहने पर निर्भर हैं। सूर्य और चंद्र ग्रहण भी इसी खगोलीय परिघटना की वजह से घटित होते रहते हैं, जिसपर मनुष्य का कोई वश नहीं है।

इतिहास के लिखे जाने की शुरुआत से पहले ही मनुष्यों ने ऐसे ग्रहणों को घटित होते देखा था और इसको लेकर उसने अनेकों धारणाएं बना रखी थीं, जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था। आज जब हमारे पास इस भौतिक जगत के बारे में वैज्ञानिक समझ के आधार पर हर तथ्य के बारे में विस्तारपूर्वक स्पष्टीकरण आसानी से उपलब्ध है, लेकिन इस सबके बावजूद यह दुर्भाग्य है कि उनमें से कई मिथक आज भी प्रचलन में हैं।

‘ग्रहण की लड़ाई’ और इस मिथक का भंडाफोड़:

सूर्य ग्रहण के बारे में पहले-पहल दर्ज की गई भविष्यवाणी को ईशा पूर्व की छठी शताब्दी में खोजा जा सकता है, जब थेल्स ऑफ मिलेटस जोकि सुकरात-पूर्व ग्रीक गणितज्ञ और दार्शनिक थे, ने सूर्य ग्रहण को लेकर पहली भविष्यवाणी की थी। यह ग्रहण 15 साल से जारी युद्ध के अंत का कारण बना, जिसे अंततः "ग्रहण के युद्ध" के तौर पर जाना गया। 28 मई, 585 ईशा पूर्व के दिन मध्य एशिया के मेडेस और लिडियन के बीच हालीस नदी के तट पर जारी इस युद्ध में, जो कि अब मध्य तुर्की में स्थित है को अचानक से बंद करना पड़ा था, जब भरी दुपहरी में ही चारों तरफ घुप्प अँधेरा छा गया था। इसके बारे में यह मान लिया गया कि उनके इस युद्ध की वजह से देवता बेहद क्रुद्ध हो चुके थे। दोनों पक्षों की और से युद्धबंदी की घोषणा कर दी गई थी और इस प्रकार से इस अशांत क्षेत्र में आख़िरकार शांति बहाल हो सकी थी।

ग्रीक इतिहासकार हेरोडोटस ने इस घटना के बारे में लिखा था और दावा किया था कि सूर्य ग्रहण की भविष्यवाणी करने में थेल्स पूरी तरह से सक्षम थे।दुर्भाग्यवश थेल्स ऑफ़ मिलिटस ने इसकी गणना के लिए जिस पद्धति को अपनाया था, आज तक उसके बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं मिल पाई है। लेकिन इस सबके बावजूद यूनान के लोग इसे प्राचीन काल में उनकी वैज्ञानिक और गणितीय प्रगति के जश्न के तौर पर मनाते हैं।

इसमें जो बात मायने रखती है वह यह है कि थेल्स ने ग्रहण से जुडी अनेकों दकियानूसी पौराणिक मान्यताओं को तोड़ने का प्रयास किया था। थेल्स की गणना और भविष्यवाणियों को आज एक नई शुरुआत के तौर पर अंगीकार किया जाता है, जहाँ से इस विश्वास को मान्यता मिलनी शुरू हुई थी कि प्रकृति की गुत्थियों को मनुष्य अपनी मेधा के सहारे सुलझा सकने में कामयाब हो सकता है।

खगोलविद एडमंड हैली ने धूमकेतु हैली के काल-चक्र को लेकर भविष्यवाणी की थी, जिसका नामकरण बाद में उन्हीं के नाम पर कर दिया गया, जिन्होंने 1758 में धूमकेतु की वापसी की सटीक भविष्यवाणी के लिए न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियमों को उपयोग में लाया था। हालाँकि वे इसे दोबारा से देखने के लिए जीवित नहीं रह सके थे। हैली ने इन्हीं सिद्धांतों को उपयोग में लाते हुए 1715 में सूर्य ग्रहण की भविष्यवाणी की थी।

आइंस्टीन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत - जिसमें उन्होंने घोषणा की थी कि गुरुत्वाकर्षण केवल सूर्य के द्वारा वस्तुओं को खींचना भर नहीं है, जैसा कि न्यूटन के दर्शन में सिद्ध किया गया है। बल्कि यह है कि सूर्य ठीक उसी प्रकार से अंतरिक्ष की वक्रता को मोड़ता है जैसे कि कोई भारी वस्तु ट्रेम्पोलिन में करता है। उनके इस सिद्धांत के अनुसार अन्य तारों से निकल रहे प्रकाश जिसे सूर्य से होकर गुजरना पड़ता है उसे दो बार मुड़कर निकलना पड़ता है जैसा कि न्यूटनियन सिद्धांत ने पूर्व में इसका अंदाजा लगाया था।

आइंस्टीन के सिद्धांत के परीक्षण में वर्ष 1919 के पूर्ण सूर्य ग्रहण का भी सहारा लिया गया था। खगोलशास्त्री एडमंड एलिंगटन और उनकी टीम ने सूर्य ग्रहण से प्राप्त आंकड़ों का मूल्यांकन किया था और उसके नतीजे न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित हुए थे। तत्पश्चात आइंस्टीन के सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत को प्राथमिक तौर पर मान्यता मिली और इसके बाद तो इसे दुनिया भर में प्रसिद्धि मिली।

इसके बावजूद व्यापक स्तर पर मिथकों की मौजूदगी और उनकी हकीकत:

यहां तक कि स्कूल की पाठ्य पुस्तकों तक में हमें सिखाया जाता है कि किस प्रकार से सूर्य ग्रहण घटित होता है। उन पाठ्यपुस्तकों को एकबार यदि जल्दी से स्मरण करें तो हम याद कर सकते हैं कि सूर्य ग्रहण तब होता है, जब चन्द्रमा अपनी निरंतर गति के दौरान सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाता है।

कई प्रचलित मान्यताओं में से एक सर्वप्रमुख धारणा यह है कि पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान उससे निकलने वाली किरणें बेहद नुकसानदायक होती हैं। परमाणु सम्मिश्रण की वजह से सूर्य प्रकाश का उत्सर्जन करता है। सूर्य ग्रहण के दौरान सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्रमा के आ जाने से वह सूर्य से आने वाले प्रकाश को रोक देता है। इसके चलते न तो चंद्रमा और न ही पृथ्वी किसी मौलिक परिवर्तन के दौर से गुजरती है।

नासा के अनुसार- “पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान जब चंद्रमा का बिम्ब पूरी तरह से सूर्य को ढक लेता है, तो शानदार कोरोना सिर्फ विद्युत चुम्बकीय विकिरण को ही उत्सर्जित करता है, हालांकि कभी-कभी उसमें हरे रंग की रोशनी भी नजर आ सकती है। सदियों से वैज्ञानिकों ने इस विकिरण पर शोध किया है। सूर्य के स्वयं के प्रकाश की तुलना में लाखों गुना क्षीण होने से कोरोनल प्रकाश में ऐसा कुछ नहीं होता जो 15 करोड़ किलोमीटर अंतरिक्ष की दूरी को लांघ सके और हमारे इस घने वायुमंडल को छेदकर हम सबके अंधेपन का कारण बन सके।

हालांकि यदि आप सूर्य को उसकी समग्रता से पहले देखते हैं तो आप शानदार सूर्य की सतह की एक झलक देख सकेंगे और इससे आपकी रेटिना को नुकसान हो सकता है। हालांकि विशिष्ट मानवीय सहज वृत्ति ही कुछ इस प्रकार की है कि किसी भी गंभीर दुर्घटना से पहले ही मनुष्य अपनी नजरें उससे फेर लेता है।"

इसी तरह यह आम धारणा कि सूर्य ग्रहण के दौरान भोजन विषाक्त हो जाता है और जो महिलाएं गर्भवती होती हैं उन्हें और उनके भ्रूण को इससे नुकसान पहुँचता है, ये सभी व्यापक तौर व्याप्त भ्रांतियां बिना किसी वैज्ञानिक आधार के अभी भी जनमानस में गहरी पैठ बनाए हुई हैं।

अनंतकाल से मनुष्यों में किसी भी प्राकृतिक परिघटना को या तो घातक मानने या उसे एक पौराणिक भूतिया कहानी से जोड़ने की स्वाभाविक प्रवृत्ति  रही है। लेकिन साथ ही साथ इन मिथकों के भंडाफोड़ के लिए प्राचीन काल से ही कोशिशें भी लगातार जारी रहीं, और इस प्रकार से भविष्य के लिए एक ठोस आधार निर्मित किया जा सका था। कईयों को उनकी इस तर्कसंगतता की अनवरत कोशिशों की एवज में भारी कीमत भी चुकानी पड़ी है। हमें इन दकियानूसी पौराणिक मान्यताओं या तर्कसंगतता के मार्ग द्वारा पेश किए गए दावों के बीच में से किसी एक को चुनना ही होगा।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस लेख को भी आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं-

Why do we Still Believe Myths around Solar Eclipses?

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