Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

इतवार की कविता : आप अंधे, गूंगे, बहरे हैं...

नागरिकता क़ानून का विरोध कर रहे नागरिकों को धर्म के आधार पर बाँटने की राजनीति हो रही है। इस नफ़रत के दौर में हम आपके बीच साझा कर रहे हैं शहबाज़ रिज़वी की नज़्म "हम मिट्टी से बने हैं साथी..."
shaheen bagh

नागरिकता क़ानून का विरोध कर रहे नागरिकों को धर्म के आधार पर बाँटने की राजनीति हो रही है। इस बंटवारे के बीच एक धर्म विशेष के नागरिकों पर लगातार आघात किये जा रहे हैं। इस नफ़रत के दौर में हम आपके बीच साझा कर रहे हैं शाहबाज़ रिज़वी की नज़्म

"हम मिट्टी से बने हैं साथी..."

हम मिट्टी से बने हैं साथी

सारी दुनिया अपना घर है

पहाड़ हैं जितने भाई हैं अपने

और नदियां सब बहने हैं

पर आपको कौन समझाए 

कि आप

अंधे, गूँगे, बहरे हैं

 

सेहरा सेहरा प्यास है अपनी

जंगल जंगल अपना कुआँ है

बस्ती बस्ती नाम है अपना

सरहद सरहद अपना मकां है

गलियाँ गलियाँ आँख है अपनी

और धरती पर ठहरे हैं

पर आपको कौन समझाए

कि आप

अँधे, गूँगे, बहरे हैं

 

आँखों आँखों ख़्वाब है अपना

सुब्ह शाम चमकीली है

चेहरा चेहरा दुःख है अपना

होंठों पर रंगोली है

दिन में सूरज रात में चंदा

अपने लिए ही चलते हैं

पर आपको कौन समझाए

कि आप

अँधे, गूँगे, बहरे हैं

 

शहबाज़ रिज़वी

इसे भी पढ़े : इतवार की कविता : साहिर लुधियानवी की नज़्म 26 जनवरी

इसे भी पढ़े : कोई तो काग़ज़ होगा…!

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest