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बाघजान: तेल के कुंए में आग के साल भर बाद भी मुआवज़ा न मिलने से तनाव गहराया 

मुआवजे के तौर पर अब तक कुल 102.59 करोड़ रूपये भुगतान किया जा चुका है, जबकि स्थानीय लोगों का दावा है कि कई प्रभावित परिवारों की अनदेखी की गई है। 
बाघजान: तेल के कुंए में आग के साल भर बाद भी मुआवज़ा न मिलने से तनाव गहराया 
फाइल चित्र।

नई दिल्ली: असम में बाघजन तेल कुएं की आपदा की घटना के एक साल से भी अधिक समय बीत जाने के बाद भी सरकार के द्वारा प्रभावित लोगों के मुआवजे के दावों का निपटान कर पाने में विफलता के कारण स्थानीय आबादी के बीच में असंतोष लगातार बढ़ता जा रहा है। सार्वजनिक क्षेत्र की प्रमुख कंपनी आयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल), जो अब-बंद पड़े हुए तेल कुएं का मालिक है— जहाँ जून 2020 में एक अग्नि-विस्फोट के कारण भीषण आग लग गई थी— उसने अब तक मुआवजे के तौर पर विभिन्न श्रेणियों के तहत प्रभावित परिवारों को 103 करोड़ रूपये का मुआवजा ही जारी किया है।

24 जुलाई को तिनसुकिया जिले में बाघजन और उसके आसपास की स्थानीय आबादी का एक वर्ग जो मुआवजे की बकाया राशि का निपटान न किये जाने के कारण नाराज था, की पुलिस के साथ तब झड़प हो गई जब ओआईएल अधिकारियों ने बंद पड़े साईट से उपकरण हटाने की कोशिश की। इस झड़प में स्थानीय लोगों और पुलिसकर्मी दोनों को ही चोटें आई हैं। स्थानीय लोगों का दावा है कि न सिर्फ मुआवजे की राशियाँ बेहद मामूली हैं, बल्कि दुर्घटना से प्रभावित लोगों की आजीविका को बहाल करने के लिए भी अभी तक कुछ नहीं किया गया है। वहीँ दूसरी ओर, ओआईएल ने दावा किया है कि मुआवजे की राशि को अक्षरशः नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के दिशानिर्देशों के मुताबिक जारी कर दिया जा चुका है।

बाघजन के पास गोरियाटिंग गाँव के जोयंत चोराक ने बताया, “मेरा घर तेल के कुएं से दो किलोमीटर से भी कम दूरी पर स्थित है। आग फैलने पर अधिकारियों ने हमारे परिवार को एक राहत शिवर में स्थानांतरित कर दिया था, लेकिन कुछ दिनों के बाद ही हमें इसे खाली कर देने के लिए कहा गया। जब हमने शिविर खाली किये तो उन्होंने हमें 15,000 रूपये यह कहते हुए थमाए, कि यह रकम किराये, खाद्यान और अन्य आपूर्तियों के लिए हैं उन्होंने हमें आश्वस्त किया था कि अतिरिक्त मुआवजे का भुगतान बाद में किया जायेगा, लेकिन अब तक कुछ भी नहीं मिला है।”

बाघजन तेल कुएं के दो किलोमीटर के घेरे के भीतर के एक अन्य गाँव नोतनगाँव के निरंता गोहैन ने न्यूज़क्लिक को बताया कि जब उनके परिवार को एक राहत शिविर को खाली करने के लिए कहा गया, जिसमें उन्हें स्थानांतरित किया गया था, तब उन्हें 25,000 रूपये का भुगतान किया गया था।

गोहैन का कहना था “केवल 612 परिवारों को ही अधिक मुआवजे के लिए चुना गया है। जबकि दूसरी तरफ सरकारी अधिकारियों ने तकरीबन 10,000 लोगों को राहत शिविरों में रखा था। इसका अर्थ है कि 10,000 या शायद इससे भी अधिक लोग दुर्घटना से प्रभावित थे। तो ऐसा क्यों है कि सिर्फ 612 परिवारों को ही अधिक मुआवजा पाने के लिए चुना गया है?”

स्थानीय लोगों के दावे, ओआईएल के द्वारा एनजीटी को मुहैय्या कराये गए आंकड़ों को चुनौती देते हैं। ओआईएल के मुताबिक, उन सभी परिवारों को जिन्हें राहत शिविरों में स्थानांतरित किया गया था, जब उन्होंने अस्थायी आश्रयों को छोड़ा तो उनमें से हर एक को 50,000 रूपये की राशि का भुगतान किया गया था। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी ने अपने दावे में आगे कहा है कि राहत शिविरों के रखरखाव में उसके द्वारा 11 करोड़ रूपये खर्च किये गये थे।  

बाघजन क्षेत्र में स्थानीय लोगों में बड़े पैमाने पर असंतोष व्याप्त है क्योंकि तेल कुएं में हुए अग्नि विस्फोट और आग लगने से हुए नुकसान के कारण अधिक मुआवजे के हकदार परिवारों का कोई ठोस आकलन नहीं हो पाया है। स्थानीय ग्रामीणों, ओआईएल प्रबंधन और तिनसुकिया जिला प्रशासन के बीच हुई कई दौर की त्रिपक्षीय बैठकों के बाद भी ज्यादा मुआवजे के दावों और शिकायतों का समाधान नहीं हो पाया है।

तिनसुकिया जिला प्रशासन ने 173 परिवारों में से प्रत्येक को 25 लाख रूपये के मुआवजे, और 439 परिवारों के लिए प्रत्येक को 20 लाख रूपये की राशि पाने का हकदार पाया था। बाघजन दुर्घटना से होने वाले नुकसान का आकलन करने और मुआवजे के लिए पात्र परिवारों की पहचान करने के लिए एनजीटी द्वारा गठित एक आठ-सदस्यीय विशेषज्ञ पैनल ने प्रस्ताव पर सहमति जताई थी। लेकिन ओआईएल ने इस तंत्र को सिर्फ 600 परिवारों के लिए स्वीकारा, और उसमें भी कम मुआवजे की राशि के साथ – 161 परिवारों में से प्रत्येक के लिए 15 लाख रूपये और 439 परिवारों में से प्रत्येक के लिए 10 लाख रूपये की राशि निर्धारित की।

इससे पहले, जुलाई 2020 में एनजीटी को सौंपी गई एक रिपोर्ट में, निकाय की एक्सपर्ट कमेटी ने खुद ही तीन श्रेणियों में अंतरिम मुआवजे का भुगतान करने की सिफारिश की थी: जो क्रमशः 25 लाख रूपये, 10 लाख रूपये और 2.5 लाख रूपये उन व्यक्तियों को दिए जाने तय किये गए थे जिनके घर इस दुर्घटना में पूरी तरह से ध्वस्त हो गये थे, गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गये थे और आंशिक तौर पर क्षतिग्रस्त थे, जिससे जिन्दगी और स्वास्थ्य को भारी नुकसान पहुंचा था, आजीविका का नुकसान, खेती योग्य भूमि, पशुधन और खड़ी फसलों, बागवानी एवं मत्स्य पालन को नुकसान पहुंचा था। इसके अलावा, इस मुआवजे को, जैसा कि कमेटी द्वारा तय किया गया था, 45 दिनों के भीतर चुकता कर दिया जाना था।

विशेस रूप से, अधिक मुआवजा पाने के हकदार सभी परिवार अकेले बाघजन में ही स्थित हैं, जबकि आस-पास के गांवों के स्थानीय लोगों, जिनमें गोरियाटिंग, हाथीबात, मोटापुंग और गोटोंग में रहने वाले लोगों ने भी दुर्घटना से उनकी आजीविका को हुए नुकसान का दावा किया है। ट्रिब्यूनल ने प्रामाणिक आंकड़े के अभाव के कारण खुद को मुआवजे के निर्धारण पर किसी भी और फैसले में आगे शामिल होने से अलग कर लिया था।

ट्रिब्यूनल ने इस वर्ष फरवरी माह में बाघजन मामले में अपने अंतिम फैसले में कहा था “जहाँ कुछ अनुमानों के आधार पर भी छोटे-मोटे स्तर के मुआवजे का भुगतान करने के लिए निर्देशित किया जा सकता है, किंतु अधिक मुआवजे के दावों के लिए नुकसान के सुबूत के आधार पर निर्णय की आवश्यकता होती है। जैसाकि पहले ही देखा जा चुका है कि उपर्युक्त आंकड़ों के अभाव में, हम ओआईएल द्वारा पहले से जितनी राशि चुकता कर दी गई है, या स्वीकृत राशि से अधिक के मुआवजे के दावों के निर्धारण को तय करने की स्थिति में नहीं हैं।”

इस बीच, ओआईएल ने प्रभावित परिवारों की संख्या या उनमें से प्रत्येक को जो धनराशि मुआवजे के तौर पर चुकता की गई है, के निर्धारण के बारे में अपनी स्वंय की किसी भी भूमिका से इंकार किया है। वहीँ दूसरी तरफ, हाइड्रोकार्बन अन्वेषण संस्था ने दावा किया है कि बंद पड़े तेल के कुएं से उसे अपने उपकरण हटाने की जरूरत है क्योंकि ठेकेदारों को इसके बदले में किराये का भुगतान करने के कारण उसे नुकसान उठाना पड़ रहा है। 24 जुलाई को उपकरण निकालने की प्रक्रिया के दौरान अशांति फ़ैल गई थी।

ओआईएल प्रवक्ता त्रिदिव हजारिका के अनुसार “बाघजन दुर्घटना से प्रभावित परिवारों की पहचान करने की जिम्मेदारी के साथ-साथ उन्हें उचित मुआवजे की राशि का भुगतान करने की जिम्मेदारी हमारे उपर नहीं है, बल्कि तिनसुकिया जिले के उपायुक्त के कार्यालय की है। हमने ग्रीन ट्रिब्यूनल के अंतरिम आदेशों के मुताबिक आग पर काबू पाने से पहले ही मुआवजे के रूप में 102.59 करोड़ रूपये की राशि जारी कर दी थी।”

तिनसुकिया जिला प्रशासन के मुताबिक, पिछले साल अक्टूबर में दुर्घटना के कारण घरों को हुए नुकसान के बारे में वास्तविक सर्वेक्षण पूरा किया जा चुका था। ये रिकार्ड्स फिलहाल नेशनल इन्फार्मेटिक्स सेंटर की मदद से डिजिटाइज किया जा रहा है। अभी तक, प्रशासन द्वारा चिन्हित किये गए 612 परिवारों में से 12 परिवारों को 25-25 लाख रूपये की मुआवजा राशि चुकता कर दी गई है, जिनके घर आग में पूरी तरह से ख़ाक हो चुके थे। इसके अलावा 161 परिवारों को, जिनके घरों को कम क्षति पहुंची थी उन्हें 15-15 सौंपें गए हैं। चिन्हित किये गए बाकी परिवारों में से प्रत्येक को 10-10 लाख रूपये का भुगतान किया जा चुका है। लेकिन मुआवजे का दावा कर रहे लोगों की संख्या इसकी तुलना में कई गुना अधिक है। ऐसे में जब किसी भी नए सर्वेक्षण के आयोजित किये जाने की संभावना नहीं है, पीड़ित परिवारों के पास एकमात्र विकल्प प्रशासन द्वारा मुआवजे के लिए पात्र परिवारों की सूची को चुनौती देने का ही बचता है।

तिनसुकिया के उपायुक्त पवार नरसिंग संभाजी ने न्यूज़क्लिक को बताया “वैसे भी एक बार आंकड़ों के डिजिटलीकरण का काम पूरा हो जाने के बाद, प्रशासन ग्रीन ट्रिब्यूनल और राज्य सरकार को मुआवजा प्राप्त कर चुके परिवारों की सूची सौंप देगी। इसके बाद, हम आगे मुआवजे के भुगतान के सन्दर्भ में प्राप्त होने वाले आदेशों के अनुसार कार्य करेंगे। हमने तो उन लोगों को भी निःशुल्क क़ानूनी सहायता उपलब्ध कराने की पेशकश की है जो अधिक मुआवजे के लिए हकदार होने के नाते उच्च न्यायालय में अपील करना चाहते हैं। अभी तक हुई कई दौर की त्रिपक्षीय बैठकों में यह सहमति बनी है कि ओआईएल को अपने संचालन और गतिविधियों को जारी रखने की अनुमति दी जाएगी, जबकि इसके साथ ही साथ मुआवजे की बकाया रकम का निपटान भी किया जायेगा। जो कोई भी कानून और व्यवस्था को बाधित करने की कोशिश करेगा, जैसा कि 24 जुलाई को घटित हुआ, उसके साथ सख्ती से निपटा जायेगा।”

जैसा कि पिछले एक साल में किये गये कई अध्ययनों में उल्लेख किया गया है, बाघजन तेल कुएं की दुर्घटना में आपदा का पैमाना अभूतपूर्व था। इससे स्थानीय आबादी के जीवन और आजीविका को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा है, जो कि मुआवजे के लिए चुने गये परिवारों की संख्या से कहीं अधिक है। आठ सदस्यीय एनजीटी एक्सपर्ट पैनल ने, जिसकी अध्यक्षता गुवाहाटी उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बी.पी. काटाकेय कर रहे थे, ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में इसका ल्लेख किया था:

“अंतरिम रूप में, कमेटी का भी सर्वसम्मति से विचार है कि बाघजान-5 कुएं में हुए विस्फोट और उसके बाद के विस्फोटों ने सार्वजनिक स्वामित्व वाले दोनों संसाधनों, मगुरी-मोटापुंग वेटलैंड, डीएसएनपी [डिब्रू सैखोवा नेशनल पार्क], के साथ-साथ पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र में जल निकायों, वायु, वन्यजीवों और इसके आस-पास के प्राकृतिक संसाधनों को व्यापक स्तर पर नुकसान पहुंचा है। इसके अतिरिक्त, इसने प्रभावित गाँवों में जीवित बचे लोगों की निजी स्वामित्व वाली सम्पत्ति को अपूरणीय शारीरिक क्षति और नुकसान पहुंचाया है।”

मत्स्य जीववैज्ञानिक डॉ रंजीता बानिया के नेतृत्व में एक टीम द्वारा संचालित किये गए एक और अध्ययन में स्थानीय लोगों को हुए नुकसान का ठीक-ठीक पहचान करने के लिए एक व्यापक सर्वेक्षण की जरूरत पर जोर दिया गया है।

टीम ने अपनी रिपोर्ट में जिक्र किया है “एकाएक झटके, तेल के सतह और घुलित ऑक्सीजन के स्तर में बदलाव से भारी संख्या में मछलियों की मौत हुई है। अधिकांश मछुआरे जो औसतन न्यूनतम 2,000/- रूपये प्रतिदिन के हिसाब से कमाई कर लेते थे को अपने मुख्य व्यवसाय को 3 महीने तक के लिए बंद कर देना पड़ा। इससे खुलासा होता है कि स्थानीय मछुआरा समुदाय को उनकी आजीविका में कितना बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है और उन्हें इसे तब तक भुगतना होगा जब तक मगुरी-मोटापुंग बील की बहाली का काम पूरा नहीं हो जाता...जो कि बीजीआर 5 से नोतूनगाँव की ओर पहले पूल के अवरुद्ध होने कारण बंद है, वहीँ बाघजन गाँव जलजमाव की स्थिति से जूझ रहा है, जिसके कारण उनकी बाकी की फसलें भी बर्बाद हो रही हैं। इसके अलावा दिघालतरंग टी एस्टेट, बाघजन बील लाइन, गुइजन घाट और अन्य क्षेत्रों के सभी घटों को भी सर्वेक्षण में शामिल करने की आवश्यकता है ताकि अग्नि विस्फोट की घटना से होने वाले कुल नुकसान का आकलन किया जा सके।”

बाघजन में रहने वाली अधिकांश आबादी की आजीविका आंतरिक रूप से स्थानीय पारिस्थितिकी पर निर्भर है। धान की खेती के अलावा, इस क्षेत्र में आजीविका के अन्य स्रोतों में सुपारी की खेती, छोटे चाय बागान, मछली पकड़ना और पशुपालन, जिसमें मवेशी और बत्तख पालन शामिल है। 

बोरनानी कक्कड़, जिन्होंने ग्रीन ट्रिब्यूनल में याचिका दायर की थी, उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया “जब तक क्षेत्र की पारिस्थिकी बहाल नहीं हो जाती, तब तक स्थानीय आबादी को यह सब वापस हासिल नहीं होने जा रहा है। और आज तक, पर्यावरण की बहाली की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है। विस्फोट और आग से निकलने वाली गैसों के जहरीले रिसाव ने स्थानीय कृषि योग्य भूमि एवं वनस्पतियों को प्रभावित किया है। मागुरी-मोटापुंग वेटलैंड सहित भूमिगत जल एवं अन्य जल निकाय के स्रोत तेल के रिसाव के कारण प्रदूषित हो गए हैं। जानवरों पर इसके प्रभाव की कल्पना करें।”

कक्कड़ ने आगे बताया “स्थनीय लोगों और वन्यजीवों पर पड़ने वाले स्वास्थ्य प्रभावों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। तेल के कुएं में आग पकड़ने के बाद करीब छह महीने तक लगातार पूरे क्षेत्र को अपनी चपेट में लेने वाले और बहरा कर देने वाले शोर ने कई लोगों की सुनने की क्षमता को नुकसान पहुँचाया और यहां तक कि अन्य बीमारियों की शिकायतें भी प्राप्त हुई हैं।”

इस सबके बावजूद, लगता नहीं कि पर्यावरण की बहाली के मुद्दे पर जल्द ही कोई कार्यवाई की जाने वाली है। ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा 15 फरवरी, 2021 को अपने अंतिम फैसले को जारी करते समय स्थानीय पारिस्थितिकी को हुए नुकसान का आकलन करने एवं डिब्रू सैखोवा राष्ट्रीय पार्क और मगुरी-मोटापुंग वेटलैंड की बहाली के उद्देश्य से एक दस सदस्यीय कमेटी का गठन किया था। हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय ने इस तथ्य पर आपत्ति जताई है कि ओआईएल, सार्वजनिक क्षेत्र का निगम के प्रबंध निदेशक, जिनके खुद का आचरण बाघजन दुर्घटना में सवालों के घेरे में है, उनको भी इस कमेटी में शामिल किया गया है। इसलिए, 1 जुलाई को जारी किये गए एक आदेश में शीर्षस्थ न्यायालय ने ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश के संचालन पर रोक लगा दी थी।

इसी बीच, असम सरकार ने बाघजन में हुए हादसे से पारिस्थितिकी को हुए नुकसान की जांच रिपोर्ट तैयार की है। पारिस्थितिकी एवं अर्थव्यवस्था: बाघजन विस्फोट से सबक, शीर्षक वाली रिपोर्ट को राज्य के अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक और मुख्य वन्यजीव वार्डन, एम. के. यादव द्वारा तैयार किया गया है, जिसमें दुर्घटना से 25,000 करोड़ रूपये के नुकसान का अनुमान लगाया गया है। रिपोर्ट में आगे दावा किया गया है कि इस दुर्घटना से क्षेत्र में लगभग 55% जैव विविधता नष्ट हो चुकी है। हालाँकि जून 2021 में इस रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया जा चुका था, जिसे असम सरकार को सौंपा जा चुका है, लेकिन इस पर अभी कोई कार्यवाई नहीं की गई है।

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

Tension Simmers in Baghjan with Compensation not Settled a Year after Oil-Well Blowout

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