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कोविड-19 संकट की चपेट में मध्यप्रदेश के ग्रामीण इलाक़े, परीक्षण में गिरावट

चिकित्सा सुविधाओं की क़िल्लत से लेकर ग़लत इलाज के चलते होने वाली मौतों और टीकाकरण अभियान के दौरान परामर्श की कमी से मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाक़े उन चुनौतियों से जूझ रहे हैं, जिन्हें राज्य प्रशासन संभाल पाने में असमर्थ नज़र आ रहा है।
कोविड-19 संकट की चपेट में मध्यप्रदेश के ग्रामीण इलाक़े, परीक्षण में गिरावट

जैसे-जैसे भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे कोरोना वायरस की चपेट में भारत के ग्रामीण इलाक़े के आने को लेकर चिंता बढ़ती जा रही है। अलग-अलग रिपोर्टों के मुताबिक़, 24 में से 13 राज्यों में जहां के ज़िलों को शहरी और ग्रामीण इलाक़ों वाले ज़िलों में विभाजित किया जा सकता है, बड़े शहरों के मुक़ाबले गांवों और छोटे शहरों में ज़्यादा मामले थे और शेष 11 ज़िलों के ग्रामीण इलाक़ों में कोविड-19 के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं। ऐसे राज्यों में मध्य प्रदेश (एमपी) भी एक राज्य है, जहां कुछ हफ़्ते पहले यह वायरस ग्रामीण आबादी तक पहुंच गया है।

24 दिनों के अवधि के बाद सोमवार को मध्यप्रदेश में एक दिन में 9, 715, यानी 10, 000 से कुछ ही कम नये मामले दर्ज किये गये। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए रीवा ज़िले के रामजीत सिंह ने बताया, “भिंड के अस्पताल ठसाठस भरे हुए हैं और इन अस्पतालों में मेडिकल ऑक्सीज़न का गंभीर संकट है। काग़ज़ों पर सरकार का कहना है कि बेड, ऑक्सीज़न आदि की उपलब्धता में कोई कमी नहीं है। लेकिन, हक़ीक़त में हमारे पास कुछ भी नहीं है। शहरी क्षेत्रों में तो कोविड परीक्षण किये जा रहे हैं, लेकिन ग्रामीण इलाक़ों में ऐसा नहीं हो रहा है। गांवों की तक़रीबन 60 फ़ीसदी आबादी सर्दी, खांसी और बुखार से पीड़ित है। उनमें से बहुत सारे लोग ख़ुद ही आइसोलेशन में हैं और अपने आप ठीक हो रहे हैं। हर गांव में तक़रीबन तीन से चार लोगों ने कोविड-19 के कारण दम तोड़ दिया है।”

मध्यप्रदेश के मुरैना के एक छात्र कार्यकर्ता, राजवीर धाकड़ ने बताया कि उनके इलाक़े में परीक्षण रोक दी गयी है।धाकड़ कहते हैं, “इससे पहले अगर कोई पोज़िटिव पाया जाता था, तो जो कोई भी उनके संपर्क में आता था, कोविड-19 परीक्षण उसका भी किया जाता था। अब उन्हें सिर्फ घर में आइसोलेट होने की सलाह दी जा रही है। एंटीजन टेस्ट तो हो रहे हैं, लेकिन आरटी-पीसीआर टेस्ट रोक दिये गये हैं। यही वजह है कि रिपोर्ट किये जाने वाले मामलों की संख्या में कमी देखी जा रही है।"

मध्यप्रदेश अप्रैल से ही मेडिकल ऑक्सीज़न की भारी क़िल्लत का सामना कर रहा है। 17 अप्रैल को शहडोल मेडिकल अस्पताल में ऑक्सीज़न की कथित क़िल्लत के चलते 12 कोविड-19 मरीज़ों की मौत हो गयी थी। हालांकि, शहडोल मेडिकल कॉलेज के डीन, डॉ.मिलिंद शिरालकर ने मीडिया को बताया था कि ये मौतें मेडिकल ऑक्सीज़न की क़िल्लत के चलते हुई थीं, लेकिन, इन दावों को चिकित्सा शिक्षा मंत्री, विश्वास सारंग और शहडोल के अतिरिक्त ज़िला मजिस्ट्रेट (एडीएम) अर्पित वर्मा ने खारिज कर दिया था।

धाकड़ इसी तरह की एक और घटना का ज़िक़्र करते हुए कहते हैं कि मुरैना में "लापरवाही" से ऑक्सीज़न की आपूर्ति में कमी होने के चलते कुछ दिन पहले छह लोगों की जानें चली गयी थीं।

मध्यप्रदेश के अन्य इलाक़ों की स्थिति भी अलग नहीं है। भोपाल से अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) के अखिल भारतीय संयुक्त सचिव, बादल सरोज कहते हैं, “स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गयी है।हम ऑक्सीज़न, वेंटिलेटर, दवाओं और अन्य चिकित्सा सुविधाओं की कमी देख रहे हैं। यहां तक कि सरकार की तरफ़ से पैरासिटामोल, एंटासिड, एंटीबायोटिक्स और जिंक फ़ॉस्फ़ेट, विटामिन सी और विटामिन डी के सप्लीमेंट जैसी दवायें भी वितरित नहीं की जा रही हैं। सब कुछ निजी अस्पतालों के हवाले छोड़ दिया गया है।”

सरोज और सिंह दोनों का कहना है कि स्थिति पर क़ाबू पाने के लिए डॉक्टरों की कोई विशेष टीम गांवों में नहीं भेजी गयी है। ज़्यादातर मामलों में कोविड-19 से निपटने का कार्य आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और आशा कार्यकर्ताओं को सौंपा गया है। राज्य प्रशासन ग्रामीण भारत में जागरूकता अभियान चलाने में भी नाकाम रहा है। आंगनबाडी कार्यकर्ताओं और पंचायतों की अगुवाई में जागरूकता पैदा करने का प्रयास भी बेहद सीमित मात्रा में किया जा रहा है।

मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाक़े में टीकाकरण अभियान ढीला-ढाला और अप्रभावी रहा है। गांव के लोगों में टीकों को लेकर काफी हद तक उत्साह नहीं रहा है और वे टीकों को शंका की निगाह से भी देखते रहे हैं। सिंह कहते हैं, “गांवों में टीकों को लेकर कोई जागरूकता नहीं है और कोई इस पर ध्यान भी नहीं दे रहा है। सरकार इस स्थिति से इसलिए ख़ुश है क्योंकि उनके पास टीकों की कमी है।”

रीवा के एक छात्र कार्यकर्ता अजय तिवारी ने बताया कि पहले अभियान के दौरान भी मध्यप्रदेश के गांवों में टीकाकरण कराने वालों की संख्या बहुत ही कम थी। वह कहते हैं, “1, 000 लोगों में से सिर्फ़ 30 लोगों ने ही वैक्सीन का पहला शॉट लिया है। इन 30 में से महज़ चार से पांच लोगों ने ही अपना दूसरा शॉट लिया होगा।" ऐसा इसलिए भी है क्योंकि मध्यप्रदेश के ग्रामीण इलाक़ों में बहुत कम टीकाकरण केंद्र स्थापित किये गये हैं। यह अनुपात इतना कम है कि औसतन 50 से ज़्यादा गांवों पर बस एक टीकाकरण केंद्र है।

22 अप्रैल को यह बताया गया था कि मध्यप्रदेश के तीन गांवों- बैगर, पन्नाली और मालगांव में चलाये गये लगातार दो शिविरों में शून्य टीकाकरण दर्ज किया गया था। बैगर गांव का दौरा करने वाली टीम ने गांव में मरीज़ों का इलाज कर रहे एक झोलाछाप डॉक्टर को उसके घर से ही ढूंढ निकाला। मध्यप्रदेश के ग्रामीण इलाक़ों में झोलाछाप डॉक्टरों की दुकान चलाने की घटना बहुत आम है।

अपर्याप्त संसाधनों के अलावा गावों के लोगों के बीच जागरूकता की कमी और व्यापक ग़लत सूचना के चलते मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाक़ों में संकट गहरा गया है। सोशल मीडिया पर ग़लत सूचना और दहशत के मारे राज्य भर के गांवों के लोग परीक्षण या इलाज के लिए अस्पताल जाने से डरते हैं।

पिछले कुछ हफ़्तों में अस्पतालों और टीकाकरण को लेकर उनकी घबराहट इसलिए बढ़ गयी है क्योंकि मध्यप्रदेश के अलग-अलग हिस्सों से तक़रीबन उन 15 लोगों की मौत की ख़बरें आयीं हैं, जिन्हें टीका लगाया गया था। सिंह ने बताया कि इस तरह के दो मामले साकरबत गांव से दो सुमेदा गांव से और तीन रीवा के कुल्लू गांव से सामने आये हैं। राज्य के अन्य इलाक़ों से भी इसी तरह की मौतों की सूचना मिली है।

बादल सरोज ने बताया कि ये मौतें केंद्रों पर लोगों को टीके लगाने वाले कर्मचारियों की तरफ़ से परामर्श की कमी के चलते हुई हैं। सरोज आगे बताते हैं, “यहां तक कि जब मैं और मेरी पत्नी अपने शॉट्स के लिए गये थे, तब भी उन्होंने हमें वैक्सीन के बाद के असर और वैक्सीन लेने के बाद हमें क्या करना चाहिए, इसके बारे में कोई सलाह नहीं दी थी। उन्होंने टीकाकरण केंद्रों पर कोई दवा और सप्लीमेंट भी वितरित नहीं किया है। इस बेरुख़ी की वजह से लोग अपनी जान गवां रहे हैं।

पिछले कुछ हफ़्तो में डॉक्टरों की तरफ़ से हो रहे ग़लत इलाज के चलते भी कोविड-19 से हो रही मौतों की सूचना मिली है। ऐसे कई मामले सामने आये हैं, जहां टाइफ़ॉइड रोगियों का इलाज कोविड-19 रोगियों की तरह किया गया है। जुगल राठौर ने न्यूज़क्लिक को बताया कि अनूपपुर ज़िले के उनके गांव, जैठारी से ऐसे तीन मामले सामने आये हैं।

लोगों की परेशानियों को बढ़ाने वाले अन्य कारकों पर टिप्पणी करते हुए सरोज ने आरोप लगाया, “ज़ाहिर तौर पर ध्वस्त हो चुकी स्वास्थ्य व्यवस्था के अलावा, इस बार राशन प्रणाली (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) भी चरमरा हुई है, जिस के चलते 60%-70% लोगों को खाद्यान्न नहीं मिल पा रहा है। वे मई के महीने में बाजरा (मोती बाजरा) बांट रहे हैं, जबकि गर्मी के मौसम में लोग बाजरा खाने से परहेज़ करते हैं। प्रशासन लोगों को अतिरिक्त अनाज (चावल या गेहूं) उपलब्ध कराने के बजाय बाजरा बांट रहा है। उन्होंने पिछले लॉकडाउन में कम से कम खाद्यान्न का वितरण तो किया था। इस बार तो उन्होंने लोगों को उनके हाल पर मरने के लिए छोड़ दिया है।”

(टिप्पणीकार लेखिका होने के साथ-साथ न्यूज़क्लिक के जुड़ी रिसर्च एसोसिएट भी हैं। इनके विचार निजी हैं। उनसे ट्विटर @ShinzaniJain पर संपर्क किया जा सकता है।)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Testing Drops as COVID-19 Crisis Grips Rural Madhya Pradesh

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