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नए संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री को नहीं, राष्ट्रपति को करना चाहिए

"राष्ट्रपति मुर्मू को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए नए संसद भवन का उद्घाटन करने का मोदी का निर्णय न केवल बड़ा अपमान है बल्कि हमारे लोकतंत्र पर सीधा हमला भी है जिसका उसी भाषा में जवाब देने की ज़रूरत है।"
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भारत के राष्ट्रपति वरीयता में सबसे पहले स्थान पर आते हैं, और भारत के उपराष्ट्रपति के बाद प्रधानमंत्री तीसरे स्थान पर आते हैं। लेकिन 2014 के बाद पनपे नए भारत में संवैधानिक बारीकियों और प्रोटोकॉल की किसी को भी परवाह नहीं है और मोदी शासन के सभी कामों को सही ठहराने की कवायद की जा रही है।

उन्नीस विपक्षी राजनीतिक दल – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, आम आदमी पार्टी, जनता दल (यूनाइटेड), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, अखिल भारतीय मुस्लिम लीग, झारखंड मुक्ति मोर्चा, जम्मू और कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस, केरल कांग्रेस (एम), रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी मरुमलार्ची द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, विदुथलाई चिरुथिगाल काची, और राष्ट्रीय लोक दल - ने एक संयुक्त बयान जारी कर कहा है कि वे 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करेंगे।

प्रधानमंत्री पर "संसद को खोखला करने" का आरोप लगाते हुए, उन्होंने कहा कि, "राष्ट्रपति मुर्मू को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए नए संसद भवन का उद्घाटन करने का मोदी का निर्णय न केवल बड़ा अपमान है बल्कि हमारे लोकतंत्र पर सीधा हमला भी है जिसका उसी भाषा में जवाब देने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि, "यह अशोभनीय कृत्य है", जो "राष्ट्रपति के बड़े दफ़्तर का अपमान है और संविधान की साख और भावना का उल्लंघन करता है। यह समावेश की भावना को कमजोर करता है, जिसने राष्ट्र को अपनी पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति का जश्न मनाते हुए देखा है।

मोदी 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन करने वाले हैं, जो दिन हिंदू राष्ट्रवादी राजनेता, कार्यकर्ता और लेखक वी.डी. सावरकर की वर्षगांठ वाला दिन है। उन्होंने इससे पहले 10 दिसंबर, 2020 को इसका शिलान्यास किया था और भूमि पूजन समारोह किया था।

भवन के निर्माण के समय, मोदी ने इसका निरीक्षण किया था, और मीडिया ने इसे व्यापक रूप से और बड़ी प्रमुखता से कवर किया था, साथ ही मोदी ने निर्माणधीन हॉल और ढांचे/संरचना का भी सर्वेक्षण किया था।

खड़गे का आरोप- राष्ट्रपति और पूर्व राष्ट्रपति को आमतंत्रित न करना

जानकारी के मुताबिक, समारोह में भारत के राष्ट्रपति के अलावा हमारे गणतंत्र के सर्वोच्च पद पर आसीन रही प्रतिभा पाटिल और रामनाथ कोविंद को भी उद्घाटन कार्यक्रम में नहीं बुलाया गया है।

राज्यसभा में विपक्ष के नेता और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कई ट्वीट्स के माध्यम से, मोदी सरकार पर नए संसद भवन के उद्घाटन के लिए राष्ट्रपति और पूर्व राष्ट्रपति को आमंत्रित नहीं करके "बार-बार मर्यादा का अपमान" करने का आरोप लगाया है, और कहा कि राष्ट्रपति का कार्यालय "भारतीय जनता पार्टी-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सरकार के तहत प्रतीकात्मकता बन कर रह गया है"। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार द्वारा दलित और आदिवासी समुदायों से भारत का राष्ट्रपति चुनना "केवल चुनावी कारणों से किया गया काम था।"

चुनी गई तारीख सावरकर की जयंती है

उद्घाटन के लिए चुनी गई तारीख का सावरकर से जुड़ा होना विपक्षी नेताओं को रास नहीं आया; जिनमें से कई ने इस बात का जिक्र किया कि, अंडमान की सेलुलर जेल से अपनी रिहाई के लिए सावरकर ने ब्रिटिश अधिकारियों को दया याचिकाएं दी थी, इस तथ्य पर भी रोशनी डाली गई कि सावरकर भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ब्रिटिश शासन के साथ खड़े थे, और बैरिस्टर, राजनेता और पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना से पहले उन्होंने प्रस्ताव दिया था कि हिंदू और मुसलमान नामक दो अलग-अलग राष्ट्रों का गठन किया जाए जिसे बाद में दो-राष्ट्र के सिद्धांत के रूप में प्रचारित किया गया था।

कांग्रेस ने आरोप लगाया कि संसद भवन के उद्घाटन के लिए सावरकर की जयंती की तारीख चुनकर स्वतंत्रता सेनानियों की विरासत को ठेस पहुंचाई जा रही है।

कांग्रेस तो यहां तक कह चुकी है कि संसद भवन के उद्घाटन के लिए सावरकर की जयंती को चुनकर स्वतंत्रता सेनानियों की विरासत को सुनियोजित ढंग से ठेस पहुंचाई जा रही है।

मोदी केंद्रित कार्यक्रम

किसी भी बड़ी परियोजना का राष्ट्र को समर्पण, शिलान्यास, उसका निरीक्षण, उद्घाटन मोदी के 2014 से प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके कार्यकाल की परिभाषित तमाशा/विशेषता बन गया है।

नए संसद भवन की नींव रखने और उसके पूरा होने पर उसका उद्घाटन करने से यह आभास होता है कि वे ऐसे कार्यक्रमों में प्रमुखता से दिखाई देना चाहते हैं, और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक ऐसा रिकॉर्ड बनाना चाहते हैं कि उनका नाम और व्यक्तित्व नए भवन के निर्माण/शीर्ष विधायिका से जुड़ा रहे।

राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग होता है

भारत के राष्ट्रपति, दो सदन, राज्यसभा और लोकसभा, संविधान के अनुच्छेद 79 के अनुसार संसद का गठन करते हैं। इस अर्थ में, राष्ट्रपति शीर्ष विधायिका का हिस्सा बनता है, जो शक्तियों के पृथक्करण की योजना में, शासन की संवैधानिक संरचना में कार्यपालिका और न्यायपालिका के साथ-साथ एक अलग स्थान रखते हैं।

मोदी लोकसभा के सदस्य हैं और प्रधानमंत्री होने के कारण कार्यपालिका के प्रमुख हैं। अनुच्छेद 79 में निहित अर्थ और तर्क को नियोजित करने में कि भारत के राष्ट्रपति राज्य सभा और लोकसभा के साथ संसद का गठन करते हैं, इसलिए राष्ट्रपति मुर्मु को नए संसद भवन का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किया जाना चाहिए था।

संवैधानिक रूप से संसद का गठन करना राष्ट्रपति की ज़िम्मेदारी है, इसके अलावा, संविधान के अनुच्छेद 86 के तहत हर-एक आम चुनाव के बाद अनिवार्य रूप से संसद के दोनों सदनों के समक्ष राष्ट्रपति का संबोधन होता है और संसद के पहले सत्र की शुरुआत होती है। वे प्रत्येक वर्ष के पहले सत्र के प्रारंभ में भी अभिभाषण देते हैं। इसके अलावा, दोनों सदनों द्वारा पारित कोई भी विधेयक राष्ट्रपति की सहमति के बिना संसद का अधिनियम नहीं बनता है।

संसद के साथ राष्ट्रपति का इतना गहरा और अभिन्न रिश्ता संविधान की परिभाषित विशेषताओं में से एक है।

भारत के राष्ट्रपति वरीयता के मामले में सबसे पहले आते हैं

इससे भी अधिक, भारत के राष्ट्रपति वरीयता के मामले सबसे पहले स्थान पर आते हैं, और भारत के उपराष्ट्रपति के बाद प्रधानमंत्री तीसरे स्थान पर आते हैं।

तो ऐसा कैसे हो सकता है कि प्रधानमंत्री, जो तीसरे नंबर पर आते हैं, वे नए संसद भवन का उद्घाटन कर रहे हैं और राष्ट्रपति नंबर एक पर होने के बावजूद भी इससे बाहर हैं और उन्हें कार्यक्रम में आमंत्रित भी नहीं किया गया है?

राष्ट्रपति कोविंद को 2019 में राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के उद्घाटन के लिए आमंत्रित नहीं किया गया था।

2014 के बाद बने नए भारत में संवैधानिक बारीकियों और प्रोटोकॉल की किसी को भी परवाह नहीं है और इस बात पर ज़ोर दिया जा रहा है कि मोदी शासन के सभी काम सही हैं। आखिरकार, 25 फरवरी, 2019 को जब प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का उद्घाटन किया था तो ऐसा कर मोदी ने संविधान के अनुच्छेद 53 के तहत रक्षा बलों के सर्वोच्च कमांडर, भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के प्रति संवैधानिक अनिवार्यता और प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया था। उन्हे पूरी तरह से उस ऐतिहासिक कार्यक्रम से बाहर रखा गया था।

कई सेवानिवृत्त उच्च पदस्थ रक्षा अधिकारियों, जिनमें से कुछ मोदी शासन के समर्थक हैं, ने सार्वजनिक रूप से अपनी निराशा व्यक्त की थी कि रक्षा बलों के सर्वोच्च कमांडर, रक्षा बलों की गौरवशाली विरासत, जो युद्ध और शांति के समय में देश की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए शहादत देते हैं, और उनके शहीदों और बलिदानों का प्रतिनिधित्व करने वाले सुप्रीम कमांडर को कार्यक्रम में आमंत्रित भी नहीं किया गया था।

जब मोदी शासन ने 2019 में ऐतिहासिक राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के उद्घाटन में भारत के राष्ट्रपति जो कि सेना के सर्वोच्च कमांडर होते हैं उन्हें नहीं बुलाया, तो हम संसद का हिस्सा रहे राष्ट्रपति से क्यों उम्मीद कर सकते हैं? इस महीने के अंत में उन्हीं प्रधानमंत्री द्वारा नए संसद भवन के उद्घाटन के अवसर पर वे क्यों मौजूद रहे?

विपक्षी दलों का स्टैंड

इससे पहले कि 19 विपक्षी दलों ने उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने का फैसला करते, उनमें से कुछ दलों के नेता, जैसे कि कांग्रेस के राहुल गांधी, राष्ट्रीय जनता दल के प्रो. मनोज के. झा, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के डी. राजा और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के असदुद्दीन ओवैसी ने गुहार लगाई थी कि प्रधानमंत्री मोदी के बजाय, भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को नए संसद भवन का उद्घाटन करना चाहिए।

इन नेताओं द्वारा दिए गए सभी बयानों में से राजा के बयान सबसे ज्यादा तीखे हैं। एक ट्वीट में, उन्होंने टिप्पणी की, "जब मोदी जी की बात आती है तो खुद की छवि और कैमरों का जुनून शालीनता और मानदंडों को तोड़ देता है।" उन्होंने यह भी बताया कि "प्रधानमंत्री राज्य के कार्यकारी अंग का नेतृत्व करते हैं जबकि संसद एक विधायी अंग है।"

राष्ट्रपति गिरी ने संसद भवन एनेक्सी की नींव रखी थी, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसका उद्घाटन किया था

लोकसभा सचिवालय प्रकाशन पार्लियामेंट हाउस एस्टेट, जिसे 2019 में प्रकाशित किया गया था, इससे हमें जानकारी मिलती है कि भारत के राष्ट्रपति वी.वी. गिरि ने 3 अगस्त, 1970 को संसद भवन के एनेक्सी की नींव रखी थी। पांच साल बाद 24 अक्टूबर, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसका उद्घाटन करने का सम्मान हासिल किया था।

यह हमारे इतिहास की एक बेहतरीन मिसाल है, जो नेताओं के व्यापक दृष्टिकोण को स्पष्ट रूप से सामने लाता है और कहता है कि दोनों कार्यों में खुद को शामिल न करें, एक शिलान्यास और दूसरा उद्घाटन करे। यदि प्रधानमंत्री गांधी ने एनेक्सी भवन की नींव रखने की अपनी इच्छा व्यक्त की होती, तो संभवतः कोई भी भारत के राष्ट्रपति को छोड़कर उस अवसर को उपयुक्त बनाने के रास्ते में आने की हिम्मत नहीं करता।

उक्त मिसाल को कायम रखते हुए, प्रधानमंत्री मोदी, जिन्हें 2020 में नए संसद भवन की नींव रखने का सौभाग्य मिला था, तो इसके उद्घाटन के लिए आयोजित किए जा रहे कार्यक्रम पर अपनी सहमति नहीं देनी चाहिए थी। उन्हें लोकसभा अध्यक्ष के माध्यम से राष्ट्रपति मुर्मू से इसका उद्घाटन करने को कहना चाहिए था। इसके लिए बुनियादी शिष्टाचार, परिपक्वता और राजकीय कौशल के उच्च मानदंड की जरूरत होती है। दुख की बात है कि जिस तरह से चीजें आगे बढ़ रही हैं, इन आदर्शों को बेरहमी से कुचला जा रहा है।

राष्ट्रपति नारायणन को 2002 में नए संसद पुस्तकालय भवन का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किया गया था

राजा की तीखी प्रतिक्रिया मोदी के नए संसद भवन की नींव रखने से लेकर उसके उद्घाटन तक की पूरी पटकथा को समेटे हुए है। वास्तव में, यह शालीनता और मानदंडों को रौंदती है। कोई भी यह कह सकता है कि यह पिछले उदाहरणों को भी मात देता है जिन्हें ऐसे मामलों पर निर्णय लेते समय पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया था।

वर्ष 2002 में, भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर. नारायणन को, तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष बाला योगी ने संसदीय ज्ञानपीठ नामक नवनिर्मित संसद पुस्तकालय भवन का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किया था। जरूरी व्यस्तताओं के कारण, नारायणन उद्घाटन की तारीख और समय नहीं दे सके। लोकसभा सचिवालय ने राष्ट्रपति की तारीख के अनुसार इंतज़ार करना बेहतर समझा।

संसदीय ज्ञानपीठ का उद्घाटन करने के लिए भारत के राष्ट्रपति को आमंत्रित करने और ऐसा करने के लिए उनकी सुविधा अनुसार तारीख का इंतजार करना, यहां मिसाल मई 2002 में लोकसभा सचिवालय ने स्थापित की थी, जिससे लोक सभा के वर्तमान अध्यक्ष ओम बिड़ला को संसद के नए भवन के उद्घाटन से जुड़े मामलों पर निर्णय लेने के लिए मार्गदर्शन लेना चाहिए था।

आखिरकार, 7 मई, 2002 को राष्ट्रपति नारायणन ने इसका उद्घाटन किया और मुझे इसमें भाग लेने का सौभाग्य मिला था। संसदीय ज्ञानपीठ का उद्घाटन करने के लिए भारत के राष्ट्रपति को आमंत्रित करने और यहां तक कि ऐसा करने के लिए उनके समय का इंतज़ार करना लोकसभा सचिवालय द्वारा स्थापित मिसाल थी जिससे नई संसद के उद्घाटन से जुड़े मामलों पर निर्णय लेने के लिए लोकसभा के वर्तमान अध्यक्ष ओम बिरला को मार्गदर्शन लेना चाहिए था।

लेकिन अफसोस! राजा के शब्दों में, "जब मोदी जी की बात आती है तो खुद की छवि और कैमरों का जुनून शालीनता और मानदंडों पर हावी हो जाता है।"

उद्घाटन में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और पूर्व राष्ट्रपति को शामिल किया जाए

लोकसभा अध्यक्ष के लिए सबसे अच्छा तरीका यह होता कि वे विपक्ष और सत्तारूढ़ दल दोनों के नेताओं से परामर्श करते, सर्वसम्मति से उद्घाटन समारोह आयोजित करने की तारीख चुनते, और भारत के राष्ट्रपति, भारत के उपराष्ट्रपति जैसे गणमान्य व्यक्तियों, उपराष्ट्रपति जो राज्यसभा के पदेन अध्यक्ष भी हैं, प्रधानमंत्री और पूर्व राष्ट्रपति भी को आमंत्रित करते। उस समारोह में राष्ट्रपति से नए संसद भवन के उद्घाटन का अनुरोध किया जाना चाहिए था और उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष को बोलने के लिए आमंत्रित किया जाना चाहिए था।

यदि शीर्ष विधायिका के नए भवन का उद्घाटन इस दृष्टिकोण के साथ किया जाता तो यह हमारे समावेशी आदर्शों का जश्न मनाना होता और राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष की भागीदारी के साथ संसद के सेंट्रल हॉल में अतीत में आयोजित महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के अनुरूप होता, जो आने वाली पीढ़ी के लिए एक बेमिसाल उदाहरण बनता।

लेखक, भारत के राष्ट्रपति दिवंगत केआर नारायणन के प्रेस सचिव थे।

मूल रुप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :

The President, Not The Prime Minister, Should Be Inaugurating The New Parliament Building

सौजन्य: द लीफ़लेट 

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