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हिमाचल प्रदेश का मज़दूर आंदोलन शहादत की अनोखी मिसाल है

हिमाचल प्रदेश  के मजदूर आंदोलन की शान है चमेरा के मजदूरों का ऐतिहासिक संघर्ष। यह आंदोलन भारतीय ट्रेड यूनियन केंद्र (सीटू) व हिमाचल प्रदेश किसान सभा के नेतृत्व में करीब दस महीने तक चला।
हिमाचल प्रदेश का मज़दूर आंदोलन शहादत की अनोखी मिसाल है

11 जून 2006 सुबह लगभग छः बजे पौ फट रही थी और हमें एक बेहद बुरी खबर मिली। खबर मिली कि निर्माणाधीन चमेरा चरण-3 पनबिजली परियोजना में मजदूरों को संगठित करने के कार्य में लगे सीटू के चम्बा जिलाध्यक्ष साथी बाबू राम, दान सिंह भंडारी व विजय सिंह को हिन्दोस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी के गुंडों व बाउंसरों ने पिछले कल, 10 जून 2006 को, रात के अंधेरे में लगभग आठ बजे मौत के घाट उतार दिया है व उनकी लाशों को रावी नदी में फेंक दिया है। साथी बाबू राम चम्बा, विजय सिंह सिरमौर व दान सिंह भंडारी नेपाल से ताल्लुक रखते थे। ये सभी युवा साथी थे। साथी बाबू राम एक कुशल संगठनकर्ता थे। वह मजदूर आंदोलन में आने से पहले छात्र संगठन एसएफआई के एक अच्छे कार्यकर्ता में बतौर सुपरवाइजर कार्यरत थे वरहे थे। वह वर्ष 2002 में 310 मेगावाट की चमेरा चरण-2 पनबिजली परियोजना एक हज़ार मजदूरों की यूनियन के महासचिव थे। उन्होंने चमेरा चरण-2 परियोजना में उस क्रूर जेपी कम्पनी का भी सामना किया था जोकि अपने उद्योगों व परियोजनाओं में यूनियन का निर्माण ही नहीं होने देती थी व मजदूरों का भारी दमन करती थी। उनकी नेतृत्वकारी क्षमता के कारण ही चमेरा चरण-2 परियोजना में जेपी कम्पनी ने उन पर झूठे आरोप लगा कर उनको नौकरी से बर्खास्त कर दिया था। इसके बाद वर्ष 2004 में साथी बाबू राम ने सीटू में कुल्वक्ति कार्यकर्ता के रूप में कार्य करना शुरू किया व वह सीटू के जिलाध्यक्ष बने। 

शहीद बाबू राम

सीटू राज्य पदाधिकारियों की शिमला में बैठक के कारण सीटू के नेतृत्वकारी साथी 10 जून 2006 को प्रदेश कार्यालय में ही ठहरे हुए थे। इस पूरे घटनाक्रम की खबर उन्हें 11 जून को सुबह 6 बजे लगी। यह भयानक मंज़र था। हर कोई हक्का-बक्का व गुस्से में था। समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। तुरन्त ही सीटू व हिमाचल किसान सभा के राज्य नेतृत्व ने शिमला से चमेरा की ओर कूच किया व वहां पहुंचकर मजदूरों व स्थानीय किसानों को एकजुट करके आंदोलन की कमान संभाल ली। दस महीने तक चले इस आंदोलन का नेतृत्व डॉ कश्मीर ठाकुर, डॉ ओंकार शाद, राकेश सिंघा, प्रेम गौतम, विजेंद्र मेहरा, रविन्द्र कुमार, जगत राम, सुदेश ठाकुर, राजेश शर्मा, लखनपाल शर्मा, अशोक कटोच, संतोष वर्मा, पवन ठाकुर व सुनील कुमार सहित अन्य मजदूर-किसान नेताओं ने किया।

शहीद विजय सिंह

चमेरा में तीन मजदूर नेताओं की हत्या शासक वर्ग का मजदूर वर्ग पर एक संगठित वर्गीय हमला था ताकि मजदूरों में यह संदेश चला जाए कि जो भी अपनी मांगों को लेकर लामबन्द होगा व लाल झंडे को बुलन्द करेगा, उसका यही हश्र होगा। शासक वर्ग यह समझने में असमर्थ था कि वह जिस मजदूर वर्ग को खत्म करने चला है, उसकी स्वयं की कब्र खोदने के लिए ही तो पूंजीवाद की कोख से उस मजदूर वर्ग का जन्म हुआ है।

शहीद दान सिंह भंडारी

यह पूंजीवादी शासक वर्ग का मजदूर वर्ग पर हिमाचल प्रदेश में कोई पहला हमला न था। इन वर्गीय हमलों की शुरुआत इस से ठीक अठारह वर्ष पूर्व 16 फरवरी 1988 में सोलन जिला के औद्योगिक क्षेत्र परवाणू में हो चुकी थी। प्लास्टिक, लोहे व स्टील का कार्य करने वाली काली माँ प्लास्टिक कम्पनी में कार्यरत लगभग नब्बे मजदूरों ने श्रम कानूनों को लागू करने के लिए आंदोलन छेड़ रखा था। मजदूर श्रम कानूनों को लागू करने के लिए कम्पनी गेट के बाहर धरने पर बैठे हुए थे कि तभी कम्पनी के प्रबंधन ने मजदूर आन्दोलन को कुचलने के लिए एक ट्रक मजदूरों पर चढ़ा दिया जिसमें बिहार से सम्बंध रखने वाले 28 वर्षीय साथी शिव शंकर मौके पर ही शहीद हो गए। 

बात यहीं न रुकी। हिमाचल प्रदेश के ट्रेड यूनियन आंदोलन की पाठशाला कहे जाने वाली नाथपा झाकड़ी पनबिजली परियोजना में उत्तराखंड से सम्बंध रखने वाले साथी देवदत्त को शासक वर्ग ने शहीद कर दिया। साथी देवदत्त भूतपूर्व सैनिक थे व रिटायरमेंट के बाद परियोजना में कार्यरत थे। श्रम कानूनों को लागू करने के लिए चल रही हड़ताल के दौरान ही 25 जून 1999 को इटली की कम्पनी इम्परिजिलो व भारत की कम्पनी हिन्दोस्तान कन्सट्रक्शन कम्पनी के गठजोड़ से बनी नाथपा झाकड़ी जॉइंट वेंचर के प्रबन्धन ने हड़ताल को तोड़ने के लिए मुंबई से मंगवाए निजी सुरक्षा कर्मियों के ज़रिए मजदूरों पर गोलियां बरसा दीं जिसमें साथी देवदत्त शहीद हो गए। आंदोलन के दौरान सीटू प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंघा व एनजेजेवी वर्करज़ यूनियन के भूतपूर्व महासचिव बिहारी सेवगी सहित चौदह मजदूर नेताओं को जेल में डाल दिया गया। इसमें साथी राकेश सिंघा छः दिनों तक जेल में रहे व बाकी सभी 65 दिनों तक जेल में रहे। यह आंदोलन मजदूर-किसान एकता का एक प्रमुख केंद्र बिंदु बना।

इसके बाद अगला हमला शासक वर्ग ने कुल्लू जिला के सैंज में 700 मेगावाट की निर्माणाधीन पार्वती पनबिजली परियोजना चरण-2 के संघर्षरत मज़दूरों पर किया। नवगठित यूनियन के अध्यक्ष अशोक कुमार पर कम्पनी के गुंडों ने कातिलाना हमला किया ताकि मजदूर डर कर यूनियन निर्माण का कार्य छोड़ दें व कम्पनी के शोषण के आगे घुटने टेक दें। इस हमले के फलस्वरूप झारखंड से सम्बंध रखने वाले 27 वर्षीय अशोक कुमार 22 जून 2003 को शहीद हो गए। 

शहीद शिव शंकर

हिमाचल प्रदेश में मजदूरों की बढ़ती ताकत को देखते हुए शासक वर्ग अब हमले करने से रुकने वाला नहीं था क्योंकि उसे अच्छी तरह मालूम पड़ चुका था कि मजदूरों का लाल झंडा अब हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों की ओर बढ़ चुका था। लाल झंडा शहर, उपनगर व गांव तक अपनी पहुंच बना रहा था तथा वह शासक वर्ग के शोषण के खिलाफ आवाज़ बुलंद कर रहा था। इस तरह हिमाचल प्रदेश में लाल झंडे की बुनियाद खड़ा करने में छः साथियों को शहादत देनी पड़ी। सैंकड़ों मजदूरों को जेलों में असंख्य दिनों तक रहना पड़ा। हज़ारों मजदूरों पर अनगिनत मुकद्दमे लाद दिए गए। मजदूरों को शासक वर्ग से लड़ते हुए शिमला के होटल उद्योग में नौ महीनों तक भूखे-प्यासे रहना पड़ा परन्तु लाल झंडे के नेतृत्व में मजदूर बिना रुके, बिना झुके अडिग रहे। लाल झंडे के सिपाहियों पर दमन, शोषण, ज़ुल्म व अत्याचार की तपिश हिमाचल प्रदेश के मजदूरों ने शिमला के होटल उद्योग, परवाणू, बद्दी बरोटीवाला, पौंटा साहिब, नाथपा झाकड़ी से होते हुए पार्वती, चमेरा, लारजी, कौल डैम, सावड़ा कुड्डू, आईआईटी कमांद मंडी, कड़छम वांगतू, शौंगठोंग, जेपी सीमेंट प्लांट, चमेरा तक में झेली है। सीटू का लाल झंडा हिमाचल प्रदेश में शहादतों का पर्याय है। 

शासक वर्ग के अगले हमले का शिकार मंडी जिला के कमांद में सीपीडब्ल्यूडी के अधीन कार्यरत सुप्रीम कम्पनी द्वारा निर्माणाधीन आईआईटी के छः सौ मजदूर बने। श्रम कानूनों, वेतन व ईपीएफ की मांग को लेकर आंदोलनरत मजदूरों पर सुप्रीम कम्पनी के गुंडों ने 20 जून 2015 को गोलियां चला दीं जिसमें साथी सुंदर लाल, वीरू, गुम्मत राम व रमेश कुमार गम्भीर रूप से घायल हो गए। शासक वर्ग ने आंदोलन को दबाने के लिए एक और हथकंडा अपनाया व घटनास्थल से कई किलोमीटर दूर अपने घरों में मौजूद सीटू जिला महासचिव मंडी राजेश शर्मा व जिला उपाध्यक्ष परस राम सहित 16 लोगों को गिरफ्तार कर लिया व पन्द्रह महीने तक उन्हें जेल में रखा। इनमें से दो महिलाएं भी थीं जिन्हें तीन महीने तक जेल की सलाखों के पीछे रखा गया। 

इतनी कुर्बानियों के बावजूद भी परन्तु यह लाल झंडा न कभी रुका और न ही कभी झुका। हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों को चीरकर बनाई गई पनबिजली परियोजनाओं की लंबी-लम्बी सुरंगों तक यह झंडा पहुंच गया। चम्बा जिला के चमेरा चरण-3 का इतिहास कोई अपवाद न था। भरमौर के धरवाला, चूड़ी व खड़ामुख की जनता भविष्य में इस बात की तस्दीक करेगी कि इन पहाड़ियों में लुटेरे शासकों के खिलाफ सीटू के लाल झंडे ने मालिकों के खिलाफ ऐतिहासिक लड़ाई लड़ी है। चमेरा चरण-3 पनबिजली परियोजना 231 मेगावाट की थी। इसका पावर हाउस धरवाला के चूड़ी में था व डैम साइट खड़ामुख में थी। इस परियोजना को नाथपा झाकड़ी में खूनी खेल को अमलीजामा पहना कर देवदत्त की शहादत कर चुकी हिन्दोस्तान कन्सट्रक्शन कम्पनी ही बना रही थी। नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन(एनएचपीसी) लिमिटेड ने निर्माण कार्य इस कम्पनी को दे रखा था। परियोजना में लगभग तीन सौ मजदूर कार्यरत थे। कम्पनी श्रम कानूनों की अवहेलना कर रही थी। मजदूरों को तीन महीने से वेतन नहीं मिला था। इस बात के खिलाफ मजदूर लामबंद होने लगे। उन्होंने यूनियन निर्माण का कार्य शुरू किया। इसके तहत डैम साइट के मजदूरों ने 10 जून 2006 को शाम छः बजे एक बैठक की। मजदूरों ने दिन में अपनी मांगों के समर्थन में काम बन्द करके प्रदर्शन किया था। बैठक खत्म करने के बाद जब सीटू जिलाध्यक्ष बाबू राम, दान सिंह भंडारी, विजय सिंह व प्रमोद कुमार वापिस लौट रहे थे तो रात के अंधेरे में घात लगाकर बैठे कम्पनी के गुंडों ने उन पर जानलेवा हमला किया। प्रमोद कुमार किसी तरह जान बचाकर भाग निकलने में सफल हो गए परन्तु अन्य तीन को कम्पनी के गुंडों ने मौत के घाट उतार दिया। तत्पश्चात इन तीनों की लाशों को ढकोग में रावी नदी में फेंक दिया गया।

शहीद अशोक कुमार

चमेरा चरण-3 के दस महीने के संघर्ष में सीटू के प्रदेश महासचिव डॉ कश्मीर ठाकुर व राज्य सचिव विजेंद्र मेहरा की गिरफ्तारी हुई व उन्हें कई दिनों तक जेल की सलाखों के पीछे रखा गया। भरमौर थाना के अंतर्गत पुलिस चौकी गेहरा में रात के अंधयारे में डॉ कश्मीर ठाकुर को जान से मारने की कोशिश व निर्मम पिटाई आदि सब चमेरा आंदोलन ने देखा है। सीटू नेतृत्व के इस दमन के ज़रिए शासक वर्ग द्वारा चमेरा आंदोलन का दमन करने की भरपूर कोशिश की गई। पुलिस व प्रशासन जैसी सारी संस्थाएं शासक वर्ग के हथियार हैं, यह भी चमेरा आंदोलन ने दिखलाया। पुलिस के ज़्यादातर अधिकारी एचसीसी कम्पनी के एजेंट साबित हुए व तीन मजदूर नेताओं के हत्यारों को बचाने के लिए जी जान लगा दिया। तीन मजदूर नेताओं की हत्या के पूरे मुकद्दमे को ही बुरी तरह कमज़ोर कर दिया गया। मजदूरों को न्याय देने के बजाए मजदूरों व उनके नेताओं पर कई झूठे मुकद्दमे लाद दिए गए। मजदूर नेता डॉ कश्मीर ठाकुर की पुलिस हिरासत में निर्मम पिटाई के ज़रिए हत्या तक के प्रयास हुए। इस बात पर बाद में चम्बा के सत्र न्यायाधीश व मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने दो अलग-अलग मुकद्दमों में पुलिस के पांच अधिकारियों को 25 लाख रुपये का ज़ुर्माना लगाया व एक साल कारावास की सज़ा सुनाई। 

वर्ग संघर्ष क्या होता है? कैसे पूंजीपति वर्ग मजदूरों के आंदोलन को दबाने के लिए उनकी हत्या सहित कई तरह के हथकंडे अपनाते हैं? श्रम और पूंजी का क्या टकराव है? यह सब हम जैसे ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं व वहां पर कार्यरत मजदूर वर्ग ने चमेरा चरण-3 के संघर्ष में सीखा। हिमाचल प्रदेश के ट्रेड यूनियन आन्दोलन के इतिहास में चमेरा चरण-3 का इतिहास हमेशा स्वर्णिम अक्षरों में अंकित रहेगा। यह आंदोलन मजदूर वर्ग को हमेशा याद दिलाएगा कि वर्ग संघर्ष ही समाज के संचालन की कुंजी है। पूंजीवाद में श्रम और पूंजी लड़ाई तय है व यह भी तय है कि इस लड़ाई में अंतिम जीत सर्वहारा वर्ग की ही होगी व पूंजीवाद का देर-सवेर खत्म होना तय है।

(लेखक विजेंद्र मेहरा मज़दूर आंदोलन के नेता हैं और अभी वो  हिमाचल सीटू के राज्याध्यक्ष हैं)

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