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बीते साल का सूत्र वाक्य: 'आपदा में अवसर'

पूरे विश्व में बीता साल कोरोना के साल के रूप में ही जाना जायेगा पर भारत में 'अवसर' के रूप में याद किया जायेगा। पूरे विश्व में सिर्फ़ हमारा देश ही ऐसा रहा जिसने 'आपदा को अवसर' मान कर भुनाया। 
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2020 बीत गया और 2021 आ गया। 2020 बहुत ही कठिनाई में बीता। आपदा में बीता। कोरोना ने पूरे विश्व में कहर ढा दिया। पूरे विश्व में बीता साल कोरोना के साल के रूप में ही जाना जायेगा पर भारत में 'अवसर' के रूप में याद किया जायेगा। पूरे विश्व में सिर्फ हमारा देश ही ऐसा रहा जिसने 'आपदा को अवसर' मान कर भुनाया। 

कोरोना फैलना शुरू ही हुआ था कि सरकार जी ने 'आपदा में अवसर' का लाभ उठाना शुरू कर दिया। लोगों से भी कहना शुरू कर दिया कि 'आपदा में अवसर' ढूंढें। अब लोग तो आपदा में आपदा (बीमारी) से बचने में लगे थे, अपनी जान बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। वे अवसर कहाँ से ढूंढते। वे तो नौकरी बचा रहे थे, खाने की लाइनों में लगे थे, अवसर कहाँ तलाशते। लोग तो घर पहुँचने के लिए पैदल चल रहे थे, लाठियाँ खा रहे थे, रास्ते में मर रहे थे, अवसर कहाँ से पहचानते।

लोगों के लिए तो अवसर यही था कि मालिक चाहे आधी तनख्वाह दे दे पर नौकरी से न निकाले। खाने को मिल जाये भले ही आधा पेट मिले या दिन में एक बार मिले। बिना हाथ पैर टूटे, सही सलामत घर गाँव पहुँच जायें, रास्ते में ही न गुजर जायें। अवसर यह भी था कि गाँव जाने के लिए रेल मिल जाये और सरकार बिना खाने के, बिना पानी के डेढ़ दिन का सफर चार दिन में पूरा करा बस गाँव पहुँचा दे। जिस जनता को जान बचाने की पड़ी थी, वह अवसर कहाँ से ढूंढती और उसे अवसर कहाँ से मिलता। 

लेकिन सरकार जी का तो आह्वान था, आदेश था 'आपदा में अवसर' ढूंढने का। बेचारी जनता तो आज्ञा का पालन कर नहीं पा रही थी। तो सरकार ने ही सरकार जी की आज्ञा का पालन करना शुरू दिया। इस तरह से वर्ष 2020 रहा सरकार द्वारा 'आपदा में अवसर' भुनाने का वर्ष। 

इधर वर्ष 2020 शुरू हुआ, कोरोना के रुप में आपदा ने देश में पदार्पण किया, सरकार ने उसे अवसर बना लाभ उठाना शुरू कर दिया। 'नमस्ते ट्रम्प' का आयोजन तो किया ही, उत्तर पूर्व दिल्ली में अवसर ढूंढ, दंगा मैनेज करा अहिंसक और शांतिपूर्वक ढंग से चलने वाले सीएए और एनआरसी विरोधी आंदोलनों को भी कुचल दिया। और जो बचे-खुचे आंदोलन था उसे लॉकडाउन से खत्म किया। यह तो 'आपदा को अवसर' बनाने की  शुरुआत भर थी। इसके बाद और भी कई ऐसे मौके आये जब सरकार ने 'आपदा में अवसर' ढूंढ निकाला।

देश में कोरोना की आपदा पधार चुकी थी। उसके स्वागत में जनता कर्फ्यू लग चुका था और थाली ताली भी बज चुके थे। सरकार जी को छोड़ कर अन्य किसी को नहीं पता था कि दो ही दिन बाद लॉकडाउन लगने वाला है। यहाँ भी 'कर्मठ' सरकार ने 'अवसर' हाथ से नहीं निकलने दिया। बीच में ही तख्तापलट कर मध्य प्रदेश में पक्ष को विपक्ष और विपक्ष को पक्ष बना दिया।

'अवसर' हाथ में आये और पैसा न बनाया जाए, यह तो नौसिखिएपन की निशानी होती। तो सरकार जी ने आपदा के प्रबंधन के लिए अलग से 'पीएम केयर्स फंड' बना लिया। इस फंड में सरकार जी को किसी को भी यह न बताने की सुविधा है कि सरकार जी ने कहां और कितना खर्च किया। जनता पर किया या फिर बस जनता के नाम पर ही किया। आपदा पर कुछ खर्च किया भी या फिर कुछ भी खर्च नहीं किया। 

सरकार ने' आपदा को अवसर' बनाते हुए न जाने कितने आंदोलनकारियों को, चाहे वे डॉक्टर रहे हों या छात्र, गिरफ्तार कर लिया। जो भी सरकार के विरोध में था उसे देशद्रोही मान लिया। वैसे इसका आपदा से कोई लेना-देना नहीं है। देश में मोदी और प्रदेश में योगी का विरोध करने पर देशद्रोह की धारायें तो अपने आप में ही लग जाती हैं। अगर अल्पसंख्यक हों तो और भी कड़ी लग जाती हैं। 

सरकार ने 'आपदा में अवसर' का लाभ तो बहुत उठाया पर मास्टर स्ट्रोक अभी बाकी था। सरकार में 'इन्वेस्ट' करने वालों का सरकार पर दवाब बढ़ रहा था। उन्होंने सरकार जी को चेता दिया था कि अब बस और सब्र नहीं होता है, आखिर सब्र की भी कीमत होती है। सरकार जी को 'फाइनेंसर्स' को कीमत चुकानी ही थी। 'आपदा को अवसर' बनाया गया। कृषि कानूनों पर अध्यादेश लाया गया। बाद में इन कानूनों को संसद में भी बिना बहस, चीख चिल्ला कर पास करवाया गया। आपदा में अवसर बना, सारा देश 'फाइनेंसर' कारोबारियों के पास गिरवी रख दिया। 

अब कृषि कानूनों के विरोध में किसान दिल्ली की सीमाओं पर जमे हैं। पूस की इस कंपकंपाती ठंड में डटे हैं। और अब तो बारिश भी शुरू हो गई है। लेकिन सरकार को कोई जल्दी नहीं है। वह तो बंद कमरों में हीटर पर हाथ सेंक रही है। वह आंदोलन को कुचलने के लिए अवसर तलाश रही है। आपदा अभी खत्म नहीं हुई है। आपदा अभी जारी है। 

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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