Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

तिरछी नज़र: सरकार जी तो हार कर भी जीतते हैं

दिल्ली में चुनाव गंवाया हो, हिमाचल में गंवाया हो, उपचुनावों में भी बहुत सफलता नहीं मिली हो परन्तु गुजरात में तो अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की है ना। तो बात उसी की तो होनी चाहिए।
cartoon
कार्टून, सतीश आचार्य के ट्विटर हैंडल से साभार

चुनाव के परिणाम आ गए हैं। चुनाव हुए थे तो परिणाम आने ही थे। दिल्ली वालों को तो परिणाम जल्दी ही पता चल गए, वोट चार को डाली और सात को परिणाम हाजिर। ऐसा ही कुछ गुजरात के लोगों के साथ हुआ। कुछ ने एक को तो कुछ ने पांच को वोट डाली और आठ तारीख को परिणाम घोषित। लेकिन हिमाचल के लोगों को लम्बा इंतजार करना पड़ा। महीने भर इंतजार किया उन्होंने। उन्होंने नवंबर के दूसरे हफ्ते में वोट डाले, गुजरात के लोगों से लगभग महीने भर पहले, पर परिणाम आया आठ दिसंबर को ही। गुजरात के लोगों के साथ ही। ऐसे ही हिमाचल पिछड़ा नहीं माना जाता है और गुजरात अग्रणी।

लेकिन भई, असलियत में रिजल्ट तो गुजरात के ही आए। ऐसे आए कि मन प्रसन्न हो गया। रिकार्ड तोड़ सफलता। ऐसी सफलता कि किसी को कभी भी नहीं मिली। सिक्किम में मिली हो तो मिली हो, दिल्ली में मिली हो तो मिली हो, पर गुजरात में तो कभी नहीं मिली। दिल्ली में चुनाव गंवाया हो, हिमाचल में गंवाया हो, उपचुनावों में भी बहुत सफलता नहीं मिली हो परन्तु गुजरात में तो अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की है ना। तो बात उसी की तो होनी चाहिए। बात तो सफलता की ही होनी चाहिए। बात बस सरकार जी की सफलता की होनी चाहिए।

सरकार जी ने पूरा दम लगा कर प्रचार किया गुजरात में। दिल्ली में बेचारे कर नहीं पाए। करते भी कैसे। चार को दिल्ली में वोटिंग और पांच को गुजरात में। एक जान और कितना चुनाव प्रचार। अपनी पसंद का चुनाव आयुक्त बनाने का भी क्या लाभ अगर चुनाव प्रचार भी ढंग से न कर पाओ। ठीक है, कई प्रदेशों के मुख्यमंत्री, बहुत सारे केन्द्रीय मंत्री, दिल्ली में चुनाव प्रचार में लगे रहे। पर सरकार जी तो नहीं थे ना। सरकार जी ने प्रचार किया होता तो दिल्ली भी जीत जाते। सरकार जी की बात ही अलग है। वैसे हिमाचल में चुनाव प्रचार किया था। पर धिक्कार है हिमाचल के लोगों को। सरकार जी के चुनाव प्रचार के बावजूद बीजेपी को नहीं जिताया। अरे भाई, सरकार जी के चुनाव प्रचार की लाज ही रख लेते।

अपनी पसंद के चुनाव आयोग से ध्यान आया कि चुनाव आयोग इतना तो ध्यान करता ही है ना कि राज्य को लेकर सारी लोकप्रिय घोषणाएं हो जाएं, सारे सरकारी पैकेज घोषित हो जाएं, सरकार जी की सारी सरकारी जन सभाएं हो जाएं तभी चुनावों की घोषणा की जाए। चुनाव संहिता भी तभी लागू की जाए। और चुनाव आयोग यह भी ध्यान रखता है कि चुनाव संहिता विरोधियों के लिए ही हो, सरकार जी के लिए न हो। सरकार जी तो वोट के दिन भी रोड शो करें सकते हैं। चुनाव के दिन भी उनके गुफा में ध्यान को टीवी चैनल प्रसारित कर सकते हैं। चुनाव आयोग तो अपना ही है ना।

गुफा में ध्यान से ध्यान आया कि भला कैमरे के सामने भी कोई ध्यान लगा सकता है। कैमरामैनों का शोर और उसमें ध्यान? कैमरे के सामने तो बस ध्यान की शूटिंग ही हो सकती है, ध्यान की बस एक्टिंग ही हो सकती है। वैसे सरकार जी को सारे काम कैमरे के सामने करने की आदत है। अगर कैमरा न हो तो वे अपनी मां से मिलने भी न जाएं। 

मेरी एक बुरी आदत है। बात कुछ और कर रहा होता हूं और करने कुछ और लग जाता हूं। अब चुनाव की बात करते करते कैमरे की बात करने लगा। वैसे सरकार जी की बात कैमरे के बिना हो ही नहीं सकती है। सरकार जी की बात करेंगे तो कैमरा अपने आप ही आ जाएगा। कैमरा है तो सरकार जी हैं और सरकार जी हैं तो कैमरा है। कैमरे ने अपनी सार्थकता सरकार जी के आने के बाद ही सिद्ध की है।

वैसे तो सही ढंग से देखा जाए तो जीत सरकार जी की ही हुई है। सरकार जी को ही जीत हासिल हुई है। सरकार जी की बात की ही जीत हुई है। हिमाचल में तो नहीं, पर दिल्ली में तो सरकार जी के सिद्धांत को ही विजय प्राप्त हुई है। सरकार जी बात डबल इंजन की सरकार की करते हैं और गुजरात में और दिल्ली में उसी की जीत हुई। डबल इंजन के सिद्धांत की बस हिमाचल में जीत नहीं हुई है।

गुजरात वालों ने सरकार जी की बात को ठीक से समझा है। अगर डबल इंजन की सरकार नहीं हो तो सरकार जी का कोप झेलना पड़ता है। उन्होंने अपने यहां नहीं, पर और राज्यों में तो देखा ही है कि डबल इंजन की सरकार न हो तो ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स आदि का प्रकोप झेलना पड़ता है, इन सबके छापे पड़ते रहते हैं। गुजराती ठहरे व्यापारी आदमी। कौन इन सबके झमेले में पड़े। उन्होंने तो स्वयं देखा है, उनके राज्य में इतनी ड्रग्स पकड़ी जाती हैं, पर कभी नारकोटिक्स वालों तक ने छापेमारी नहीं की। नकली नोट भी बरामद होते हैं पर कोई छापा नहीं पड़ता। तो उन्होंने तो डबल इंजन की सरकार ही प्राथमिकता दी।

गलती तो दिल्ली वालों से हुई। वे डबल इंजन की सरकार का गलत मतलब समझ बैठे। पिछले आठ से अधिक वर्षों से वे एक तरह की डबल इंजन की सरकार झेल रहे थे। एक ऐसी डबल इंजन की सरकार जहां केन्द्र और निगम एक हों। एक ही दल के हों। चुनी उन्होंने अब भी डबल इंजन की सरकार ही है। ऐसी डबल इंजन की सरकार जहां राज्य और निगम एक दल के हों। तो जीत तो सरकार जी के सिद्धांत की ही हुई है। जीत तो सरकार जी के डबल इंजन की ही हुई है।

तो बीजेपी भले ही 1-2 से हारी हो पर सरकार जी तो 2-1 से जीते हैं। सरकार जी का डबल इंजन का सिद्धांत 2-1 से जीता है। हम तो सरकार जी की हार में भी जीत ढूंढते हैं और सरकार जी हार कर भी जीतते हैं।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest