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कोरोना काल: कठिन प्रश्नों के सरल जवाब

कोरोना कहाँ जा कर रुकेगा, यह आज का यक्ष प्रश्न है। यह एक कठिन प्रश्न है। पर उत्तर बहुत ही आसान है। जहाँ सरकार चाहेगी, कोरोना को वहीं रुकना पड़ेगा। 
कोरोना काल: कठिन प्रश्नों के सरल जवाब
Image courtesy : NDTV

कोरोना कहर ढा रहा है। चार लाख नये मरीज हर रोज तक हो गये हैं। अगर सरकार चाहेगी तो उसको चार लाख से आगे बढ़ने देगी और अगर चाहेगी तो उसे यहीं पर रोक देगी। पहली लहर के समय में भी सरकार ने कोरोना के मरीजों को एक लाख से नीचे ही रोके रखा था और इस बार भी सरकार जब चाहे कोरोना के मरीजों को बढऩे से रोक सकती है। यह सरकार के बायें हाथ का खेल है।

अभी सरकार अपने दायें हाथ से काम कर रही है इसलिए कोरोना के मरीज बढ़ते जा रहे हैं। मतलब यह है कि सरकार अभी कोरोना के टैस्ट कर रही है। ऐसा नहीं है कि ये टेस्ट आसानी से हो रहे हों या फिर सब के हो रहे हों पर हो तो रहे ही हैं न। चाहे हर एक के न हो पा रहे हों, मुश्किल से हो रहे हों, तीन तीन, चार चार दिन में लम्बी लम्बी लाइनों में लग कर हो रहे हों और फिर परिणाम भी पांच सात दिन में आ रहा हो। पर सब कुछ हो तो रहा है न। जिस देश में किसी भी परीक्षा का परिणाम आता ही नहीं हो और आता भी हो तो महीनों सालों में आता हो वहां कोरोना परीक्षण का परिणाम चार पांच दिन में या फिर अधिक से अधिक हफ्ते भर में आ जाता है, सुखद आश्चर्य ही है। और उससे भी बड़ा आश्चर्य यह है कि किसी भी कोरोना परीक्षण के रिजल्ट पर न तो सरकार ने और न ही किसी रोगी ने न्यायालय में जा कर परिणाम की घोषणा पर रोक लगाने की मांग की है ।

कोरोना कहाँ जा कर रुकेगा, यह आज का यक्ष प्रश्न है। यह एक कठिन प्रश्न है। पर उत्तर बहुत ही आसान है। जहाँ सरकार चाहेगी, कोरोना को वहीं रुकना पड़ेगा। पिछली लहर में भी ऐसा ही हुआ था। मरीज जब छियानवे-सत्तानवें हजार पहुंचे तो सरकार को लगा कि अब कोरोना को रुकना ही चाहिये। एक लाख पार नहीं होना चाहिये। तो सरकार ने टेस्ट कम कर दिए, बंद कर दिए। तो सरकार जब चाहेगी, इस बार भी कोरोना की लहर को इसी तरह रोक सकती है। यह है, कठिन प्रश्न का सरल उत्तर। कुछ राज्यों ने यह सरल उत्तर देना शुरू भी कर दिया है।

एक और कठिन, यक्ष प्रश्न हमारे सामने मूँह बाये खड़ा है। वह है, प्राणवायु अर्थात आक्सीजन की कमी का। हजारों लोग आक्सीजन की कमी से दम तोड़ रहे हैं। इसमें सरकार जी की कोई गलती नहीं है। वायुमंडल में तो आक्सीजन वही बीस-इक्कीस प्रतिशत ही है। सरकार जी ने तो वायुमंडल की आक्सीजन में कोई कमी की नहीं है। वह तो सारी की सारी गलती मरीज और उसके फेफड़ों की है। उसके फेफड़े ही अब अधिक आक्सीजन मांगने लगे हैं तो बताईये इसमें सरकार जी क्या करे।

सरकार इस कठिन प्रश्न के कठिन उत्तर में उलझी है। विदेशों से आक्सीजन मंगा रही है। ट्रेनों में, टेंकरों में आक्सीजन इधर से उधर और उधर से इधर भेज रही है। आक्सीजन बनाने के प्लांट लगाने का प्लान बना रही है। लेकिन हमारे पास इस कठिन प्रश्न का सरल उत्तर उपलब्ध है। 

सरकार इसमें भी बहुत कुछ कर सकती है। माना कि डाक्टर लोग मेडिकल कॉलेज में पढे़ हैं और नर्सें नर्सिंग स्कूल में। इंजीनियर इंजीनियरिंग काॅलेजों में और अधिकतर अधिकारी अच्छे विश्वविद्यालयों में पढे़ हैं। पर हमारे सारे के सारे मंत्री तो अखिल भारतीय वाट्सएप विश्वविद्यालय में पढ़े हैं, आज भी पढ़ रहे हैं। इसी यूनिवर्सिटी की वजह से आज हम जानते हैं कि नेहरू मुसलमान था और कितना निकम्मा था। और अब तो डाक्टर, इंजीनियर, अधिकारी सभी अपनी डिग्री ले, नौकरी पा इसी अखिल भारतीय वाट्सएप विश्वविद्यालय के छात्र बने हुए हैं। 

यही अखिल भारतीय वाट्सएप विश्वविद्यालय हमें आक्सीजन की कमी जैसे कठिन प्रश्न का सरल और टिकाऊ उत्तर देता है। यह वाट्सएप यूनिवर्सिटी हमें पढ़ाती है कि गाय ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो सांस निकालते हुए भी आक्सीजन छोड़ता है। यह वाट्सएप यूनिवर्सिटी अपनी सारी खोजों को अमरीकी संस्थान नासा द्वारा कन्फर्म किया गया बताती है। तो हम सब अखिल भारतीय वाट्सएप विश्वविद्यालय के प्रबुद्ध छात्र जानते हैं कि गाय ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो सांसो में आक्सीजन लेता है और आक्सीजन ही छोड़ता है। और इसी में छुपा है आक्सीजन की कमी से निपटने का उपाय।

देश में गाय का हमेशा से ही बहुत महत्व रहा है। यह महत्व पिछले कुछ वर्षों में और बढ़ गया है। इस कोरोना काल में तो वह और अधिक बढ़ना चाहिए। कोरोना के मरीजों में आक्सीजन की कमी को देखते हुए सरकार को यह करना चाहिए कि एकांत वास में रह रहे हर कोरोना के मरीज के कमरे में मरीज के साथ एक एक गौमाता को बंद कर देना चाहिए। जिन मरीजों की आक्सीजन कम हो रही है, या फिर जो अस्पतालों के जनरल वार्ड में भर्ती हैं, उनके बिस्तर के पास दो दो गौमाता बांध दी जानी चाहियें। आईसीयू में भर्ती मरीज के चारों ओर गौमाता हों और जो मरीज वेंटिलेटर पर हों, उनके चारों ओर तो गौमाता का पूरा का पूरा झुंड हो। मरीजों को भी गाय जी से मिलने वाली आक्सीजन के अतिरिक्त गौमूत्र सेवन और गोबर लेपन का लाभ भी मिलेगा। फिर देखना, हमारे कोरोना के मरीज कितना जल्दी ठीक होते हैं। पूरा विश्व हमारे विज्ञान का, हमारी अखिल भारतीय वाट्सएप यूनिवर्सिटी का कायल हो जायेगा। वैसे अच्छा तो यह होगा कि गौशालाओं को ही अस्पतालों में ही तब्दील कर दिया जाये। बस मरीज की खटिया गौशाला में बिछानी होगी और मरीज को आक्सीजन, गौमूत्र और गोबर, सब एक साथ ही मिल जायेंगे। 

यह गौमाता वाला प्रयोग तब तक जारी रहना चाहिए जब तक हमारे बहुमुखी प्रतिभा वाले, वैज्ञानिक प्रधानमंत्री जी पानी में से आक्सीजन को हवा में उड़ाने या फिर वायुमंडल में मौजूद कार्बनडाइआकसाइड में से कार्बन को धूल चटाने के तरीके की खोज नहीं कर लेते हैं।

क्षमा याचना: लेखक क्षमा प्रार्थी है उन सभी से जिनकी भावना मनुष्य की मृत्यु की बजाय गाय के लिए आहत होती है और उन सभी से भी जो वैज्ञानिक सोच की बजाय अंध विश्वास में अधिक विश्वास रखते हैं। क्योंकि इस व्यंग्य से ऐसे सभी लोगों की भावनाएं आहत हो सकती हैं। 

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं)

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