तिरछी नज़र : अवसर डाल डाल तो आपदाएं भी पात पात
जब से हमारे प्रधानमंत्री जी ने इस कोरोना की आपदा को अवसर में बदलने का आह्वान किया है, मैं अभिभूत हूँ। कैसी प्रतिभा है। ऐसा आह्वान तो कोई पहुँचा हुआ फकीर ही दे सकता है या फिर अत्यंत प्रतिभावान व्यक्ति। आपदा में, कठिनाई भूल जायें और आपदा को ही अवसर बनाने में लग जायें। वाह, क्या बात है।
जैसे ही कोरोना ने दुनिया और देश में पैर पसारे, मोदी जी के आह्वान से पहले ही कई लोग इसे अवसर बनाने में जुट गये थे। कालाबाजारियों ने अनाज और दलहन का स्टॉक जमा करना शुरू कर दिया था। जरूरी चीजों के दाम, खपत कम होने के बावजूद बढ़ने लगे थे। वैसे ऐसा पहली बार नहीं हो रहा था। हमारे देश में तो यह लगभग प्रथा जैसी ही है कि जैसे ही कोई आपदा आती है, कुछ लोग उसका लाभ उठाने में लग जाते हैं। आपदा में लाभ उठाने की इसी प्रवृत्ति को ही मोदी जी ने "अवसर में बदलना" कहा है।
कैसी या किसी की भी आपदा को अवसर में बदलने के बारे में हमारे यहाँ के लोगों को पहले से ही पता है। इस बारे में गाँव देहात के लोगों तक को सदियों से पता है। किसी की मजबूरी में उसको बढ़ी दर पर कर्ज देना या फिर जमीन दबा लेना, यह सब साहूकारों को, जमींदारों को सदियों से ही आता था और आज भी आता है। और उन्हें सिर्फ आपदा ही नहीं, किसी की खुशी को भी अपने लिए अवसर बनाना आता है। बेटी के ब्याह के अवसर पर भी अक्सर जमीन लिख ली जाती है।
अब बाढ़ आये या सूखा पड़े, देश के नेताओं, अफसरों और व्यापारियों को आपदा में अवसर ढूँढना आता ही है। बाढ़ में सैकड़ों हजारों के घर डूब जाते हैं पर कुछ नेता और अफसर सिर्फ हवाई दौरे से संतुष्ट न हो अपने लिए कोठियाँ भी बनवा लेते हैं। सूखा पड़ने पर अगर बहुतों के गहने बिकते हैं तो कुछ के नये बनते भी हैं। यह सब आपदा में अवसर ढूँढने के ही प्रमाण हैं।
अब इस कोरोना आपदा में भी, हजारों लोगों द्वारा गरीब मजदूरों की सहायता करने के साथ साथ ऐसी कहानियाँ भी सुनाई पड़ ही गयीं कि कैसे ट्रक, बस या टैक्सी वालों ने मजदूरों की गाढ़ी कमाई से हजारों कमाए। जिन्होंने प्रधानमंत्री जी के भाषण के बाद कमाए, उन्होंने प्रधानमंत्री जी के भाषण पर सुनते ही पालन कर लिया और जो पहले से ही कमा रहे थे उन्हें भी अंदाजा था कि यह व्यापारी और क्या भाषण दे सकता है। और भाषण के अलावा दे भी क्या सकता है।
गुजरात के एक व्यापारी को आपदा में अवसर और लोकल के लिए वोकल का सिद्धाँत इतना भाया कि उसने एम्बु बैग आधारित मशीन को अपनी कम्पनी द्वारा लोकली बना वेंटिलेटर बता कर बेच दिया। गुजरात सरकार ने भी लोकल के लिए वोकल होते हुए, अहमदाबाद सिविल अस्पताल के लिए वे नायाब वेंटिलेटर खरीद भी लिये। बताते हैं कि अहमदाबाद सिविल अस्पताल में उच्च मृत्यु दर का कारण वही वेंटिलेटर हैं। उस व्यापारी की, जिसकी वेंटिलेटर बनाने की एकमात्र योग्यता यह थी कि वह सत्तारूढ़ दल के नजदीक था, मंशा गलत नहीं थी। वह तो मृत्यु दर बढ़ा, आपदा को और बड़ा बना अवसरों को बढा़ना चाहता था।
प्रधानमंत्री जी का "आपदा में अवसर" का सिद्धाँत प्रकृति को भी इतना भाया कि उसने आपदाओं की लाइन ही लगा दी। कोरोना संकट तो चल ही रहा है कि पूर्वी तट पर अम्फान तूफान भेज दिया। इधर वह समाप्त हुआ भी नहीं था कि मुम्बई के पास के इलाके में निसर्ग भेज दिया। राजस्थान और आसपास टिड्डियों का हमला हो गया और अब तो यह प्रयागराज तक पहुँच चुकी हैं। इधर दिल्ली में भी छोटे छोटे भूकंप आते ही जा रहे हैं। डर है कि बड़ा न जाने कब आ जाये और अवसर पैदा कर जाये। पर हे प्रकृति मैया, अपना प्रकोप बंद करो। ये जो प्रधानमंत्री लोग होते हैं न, आपदा में अवसर देशवासियों के लिए नहीं, अपने और अपने लोगों के लिए ही बनाते हैं।
प्रधानमंत्री जी अभी तक भी "आपदा में अवसर" अलापे जा रहे हैं। मुझे लगता है कि वे इसीलिए कोरोना आपदा के प्रबंधन में भी ढील ढाल दिखा रहे हैं जिससे कि वे इस आपदा द्वारा दिये गए सुअवसर को ढंग से भुना सकें। आपदा तो कुछ जान माल की हानि के बाद समाप्त हो ही जायेगी लेकिन आखिरकार चुनाव तो जीतने के लिए ही बने हैं। तो आपदा में अवसर का लाभ उठाते हुए ही वर्चुअल चुनाव प्रचार शुरू कर दिया गया है। राज्यसभा चुनाव में भी अधिकतम सीटें जीतने का प्रबंधन भी साथ ही चल रहा है।
जब आप आपदा में अवसर बना रहे हैं तो आपदाएँ भी समाप्त होने का नाम नहीं ले रही हैं। कोरोना तो बढ़ता जा ही रहा है, कम होने का नाम ही नहीं रहा है। और इधर बाकी आपदाएँ भी पीछा नहीं छोड़ रही हैं। लो अब तिनसुकिया में गैस और तेल के कुएं में आग लग गई है। और ढूँढों आपदा में अवसर। अवसर डाल डाल तो आपदाएँ भी पात पात।
(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
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