Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

त्रिपुरा : किसके साथ गठबंधन करेंगे तिपरा मोथा?

जैसे-जैसे राज्य में चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे तिपरा मोथा के गठबंधन करने की अफवाहें राजनीतिक घटनाक्रमों पर हावी हो रही हैं।
tripura

21 जनवरी को अगरतला शहर में एक वार्म-अप रैली हुई, जिसमें हिस्सा लेने वाली सभी  राजनीतिक पार्टियों ने पार्टी के झंडे उठाने के बजाय राष्ट्रीय झंडे लहराते हुए रैली निकाली। संबंधित पार्टियों के नेताओं इस बात निर्णय पहले ही से लिया था क्योंकि रैली का मक़सद  औपचारिक रूप से यह संकेत देना था कि वामपंथी और कांग्रेस पार्टी 16 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनाव एक साथ लड़ेंगे। रैली के नारों से भी यह स्पष्ट संकेत मिला कि वामपंथियों और कांग्रेस की प्रमुख मांग एक हिंसा मुक्त चुनाव है जिसमें मतदाता स्वतंत्र रूप से अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर सके। 

वामपंथियों और कांग्रेस की लगातार शिकायत रही है कि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार, जिसका जूनियर पार्टनर इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) है, ने कानून के शासन को राज्य में तबाह कर दिया है, और इसलिए उन्हें गंभीर संदेह है कि आने वाले चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष होंगे। यह दर्शाता है कि आयोजकों ने क्यों 'मेरा वोट, मेरा अधिकार' को रैली का प्रमुख नारा बनाया। 

जैसा कि वाम मोर्चा के संयोजक नारायण कार ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, बड़े ही कम समय में इस "वार्म-अप" रैली का आयोजन किया गया और यह राज्य की राजधानी तक ही सीमित था। भाजपा सरकार के खराब प्रदर्शन के कारण उनकी विश्वसनीयता के खतरे में पड़ने से भाजपा कार्यकर्ता चुनाव जीतने के लिए हिंसा का सहारा ले सकते हैं। कार ने कहा, "यह हमारा डर है। उन्होंने कहा कि हमने अपनी चिंताओं से राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को अवगत करा चुके हैं।”

हालांकि, यह भी एक तथ्य है कि दोनों पक्षों को मतदाताओं को यह विश्वास दिलाने के लिए जल्दी से ऐसा बहुत कुछ करना होगा ताकि लोग इस गठबंधन पर अपना भरोसा व्यक्त कर सके। यह उनके लिए महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), जो पश्चिम बंगाल के बाहर पैर जमाने की कोशिश कर रही है वह कई उम्मीदवारों को चुनाव में खड़ा करेगी, और अपनी दयनीय स्थिति को देखते हुए वह संभावित वाम-कांग्रेस गठजोड़ के खिलाफ पहले ही प्रचार करेगी क्योंकि वह यह भी प्रचार कर सकती है कि 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में वाम-कॉंग्रेस गठबंधन ने बहुत खराब प्रदर्शन किया था। 

जैसा कि पार्टी के नए अध्यक्ष पीयूष बिस्वास - पूर्व कांग्रेसी नेता और पूर्व सॉलिसिटर-जनरल - ने न्यूज़क्लिक को बताया कि टीएमसी का मुख्य प्रचार यह है कि, जब पश्चिम बंगाल के मतदाताओं ने उन्हें अस्वीकार कर दिया है तो त्रिपुरा के मतदाता उन पर भरोसा कैसे कर सकते हैं।

"अतीत में कड़वी प्रतिद्वंद्विता को देखते हुए, वे विश्वसनीय भागीदार नहीं हो सकते हैं।"

सत्ताधारी भाजपा के लिए अचानक से मुख्यमंत्री बदलना और 2018 के चुनावी घोषणापत्र में किए गए ज्यादातर वादों को पूरा न करने की नाकामी पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं के लिए अटपटी साबित हो रही है। भाजपा ने अपने घोषणापत्र में त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (टीटीएएडीसी) के अंतर्गत आने वाले इलाकों के दीर्घकालिक आर्थिक विकास के लिए बड़ी धनराशि का वादा किया था, जिसके अधिकार क्षेत्र में 20 विधानसभा सीटें आती हैं, लेकिन इसमें बहुत कम प्रगति हुई है। जमीन पर काम अब भी अनिश्चित बना हुआ है क्योंकि पैकेज के घटकों पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने में काफी समय लग गया है। आईपीएफटी के प्रवक्ता अमित देबबर्मा ने न्यूज़क्लिक को बताया कि यह आईपीएफटी के लिए एक पीड़ादायक बिंदु है।

लेकिन, देबबर्मा ने तुरंत यह भी जोड़ते हैं कि आईपीएफटी बीजेपी के साथ है। पार्टी के “कई कार्यकर्ताओं और कुछ विधायकों के दलबदल से हमारी ताकत में कुछ गिरावट आई है। हमने 2018 के चुनावों में 10 में से आठ सीटों पर जीत हासिल की थी। लेकिन, हम गठबंधन से पीछे नहीं हटेंगे और न ही उसकी कोई संभावना है।"

मतदाताओं के मिजाज को प्रभावित करने के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की क्षमता पर भारी भरोसा करते हुए भाजपा गंभीरता से चार साल पुराने क्षेत्रीय संगठन तिपरा स्वदेशी प्रगतिशील क्षेत्रीय गठबंधन, जिसे लोकप्रिय रूप से तिपरा मोथा कहा जाता है, का समर्थन हासिल करने में लगी हुई है।

तिपरा मोथा जिसका नेतृत्व पूर्व शाही वंश के प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देब बर्मन के पास है,  ने अप्रैल 2021 में टीटीएडीसी चुनावों में जीत हासिल की थी। तब से, त्रिपुरा की राजनीति में शाही वंशज का दबदबा काफी बढ़ गया है। आखिरकार, ऐसे समय में जब त्रिपुरा में राजनीतिक विखंडन स्पष्ट होता जा रहा है, सदन के 60 सदस्यों में एक-तिहाई से अधिक पर कब्जा करना बहुत मायने रखता है।

प्रदेश के राजनीतिक हालात ने बर्मन को डार्क हॉर्स बना दिया है क्योंकि वे अपनी वृहद तिप्रालैंड राज्य की अवधारणा के प्रति समर्थन की तलाश में हैं, जिसमें संपूर्ण त्रिपुरा और उससे आगे के क्षेत्र शामिल हैं, इसलिए वे चुनाव में इस शर्त को लगाना चाहते हैं। वर्तमान में, वे  अपनी मांग के समर्थन में "लिखित समर्थन" तक खुद को सीमित कर रहे हैं। गौरतलब है कि वे मुख्य रूप से गैर-आदिवासी इलाकों में जनजातीय लोगों के छोटे प्रतिशत से समर्थन पर नजर गड़ाए हुए है, जो विधानसभा क्षेत्रों का 40 प्रतिशत या दो-तिहाई हिस्सा है।

दूसरी तरफ वामपंथी, तिपरा मोथा को अपना सहयोगी बनाना चाहते हैं। कांग्रेस उन्हें चाहती है; पार्टी के नेता पहले ही अपने पूर्व सहयोगी से मिल चुके हैं। कई वर्षों तक, शाही वंश के नेता कांग्रेस में थे। आईपीएफटी, भाजपा की सहयोगी रहेगी और वह "आदिवासियों के व्यापक हित" में तिपरा मोथा के साथ मिलकर काम करने को तैयार है।

जानकार हलकों में खबर है कि तिपरा मोथा-आईपीटीएफ विलय पहले से तय है। टीएमसी ने भी उनसे संपर्क किया है, जिसकी पुष्टि पूर्व शाही वंशज ने की है, लेकिन साथ ही कहा कि वे  ग्रेटर तिप्रालैंड राज्य के लिए लिखित समर्थन की अपनी प्राथमिक मांग से पीछे नहीं हटेंगे।

तिपरा मोथा के साथ साझेदारी में टीएमसी की दिलचस्पी की पुष्टि बिस्वास ने इस संवाददाता से भी की है। जैसा कि जानकारों ने पुष्टि की है कि, प्रमुख वक्ता के रूप में बर्मन के साथ तिपरा मोथा के बैनर तले आयोजित जनसभाओं में उत्साही भागीदारी देखी गई है। फिर भी, उन्हें संदेह है कि गठजोड़ में रुचि रखने वाला कोई राजनीतिक संगठन उनकी मांग पर लिखित आश्वासन देने का साहस कर सकता है या नहीं।

हाल के दिनों में, बर्मन ने काई बार नई दिल्ली का दौरा किया है, और राजनीतिक हलके कयास लगा रहे हैं कि क्या भाजपा और उनके बीच कुछ समझ बनेगी। यह जरूरी नहीं कि ग्रेटर टिपरालैंड के संबंध में हो; क्योंकि इस किस्म की समान मांगे जैसे कि गोरखालैंड, कोच-कामतापुर, फ्रंटियर नागालैंड, विदर्भ और हरित प्रदेश जैसी कई मांगे लंबे समय से लंबित पड़ी हैं, भाजपा इस सूची में कुछ और जोड़ना पसंद नहीं करेंगी। 

इस संदर्भ में, राजनीतिक हलकों ने 45-50 उम्मीदवारों को मैदान में उतारने के पूर्व-शाही वंशज के बार-बार दिए गए इशारे का हवाला दिया है। बीजेपी उन्हें सम्मानजनक सीटों की पेशकश करके और उन्हें उपमुख्यमंत्री का ओफ़र देकर अपनी ओर लाने की कोशिश कर सकती है। इस संभावना के बारे में राजनीतिक गलियारों में बात की जा रही है, इस तथ्य के बावजूद कि उनकी कुछ जनसभाओं में, तिपरा मोथा प्रमुख ने कुशासन और आदिवासी आबादी के आर्थिक उत्थान के लिए अधिक कुछ न करने के लिए भाजपा-प्रभुत्व वाले मंत्रालय की भर्त्सना की है।

जैसा कि गठबंधन लेकर भ्रम की स्थिति है, त्रिपुरा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बिरजीत सिन्हा ने तिपरा मोथा के साथ एक अनौपचारिक, गुप्त समझ बनाने की संभावना पर बात की है।

सिन्हा ने न्यूज़क्लिक से कहा, "यह राजनीति है, ज़रूरी नहीं कि सब कुछ हमेशा औपचारिक और खुला हो। साथ ही, चुनाव के बाद भी चीज़ें हो सकती हैं। हम सभी बीजेपी को दोबारा से सत्ता पर क़ाबिज़ होने से रोकने के लिए एकजुट हैं।"

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Tripura: Ex-royal Scion Keeping Cards Close to Chest, Alliance Scene Confusing

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest