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ट्रंप और मोदी : फ़्रेंड्स विदाउट बेनेफ़िट्स

ट्रंप ने व्यापार, नीति या इमिग्रेशन के मामले में भारत के प्रति बिल्कुल भी मिलाप करने वाला रुख नहीं दिखाया हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि ओबामा और मोदी भी तो 'दोस्त' थे।
Modi Trump

डोनाल्ड ट्रंप के महाभियोग के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाला "क्विड प्रो क्वो" वाक्यांश आम बोलचाल बन गया है। इसका शाब्दिक मतलब है, "कुछ बदले कुछ"। [क्वो, क्विड का कारक एकवचन रूप है। ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी के अनुसार, जब क्विड प्रो क्वो को आजकल संज्ञा के रूप में उपयोग किया जाता है, तो इसका अर्थ बिल्कुल वही है जैसा हम सोचते हैं: "किसी चीज़ के बदले में कुछ देने की क्रिया या सिद्धांत  "विशेष रूप से" किसी ख़ास सौदे के हिस्से के रूप में विनिमय करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।"

हमारे बीच मौजूद व्याकरण के कद्रदान यह जानने के लिए अपना सिर खुजा रहे होंगे कि क्या मोदी और ट्रंप का रिश्ता "क्विड प्रो क्वो" यानि केछ लेन-देन का है? ज़रुरी नहीं। आइए इसकी जांच करें।

ट्रंप से पहले, मोदी ओबामा के भी 'दोस्त' थे

2014 में जब मोदी पहली बार भारत के प्रधानमंत्री चुने गए, तो वे अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा थे जिन्होंने मोदी के वीजा प्रतिबंध को उलट दिया था और संयुक्त राज्य अमेरिका में उनका रेड कार्पेट स्वागत किया गया था। अचानक, मोदी का गुजरात का रिकॉर्ड- जिसके कारण उन पर 2005 में प्रतिबंध लगाया गया था, वह अब बहुत ज़्यादा विवादास्पद नहीं रहा था और उन्हें संयुक्त राज्य कांग्रेस के एक संयुक्त सत्र को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया था, जिसे उन्होंने जून 2016 में संबोधित किया था।

ओबामा अंततः मोदी से मिलने के लिए दो बार भारत आए, वे दो साल में दो बार भारत का दौरा करने वाले एकमात्र अमेरिकी राष्ट्रपति बने, जिसमें एक बार वे गणतंत्र दिवस की परेड के मुख्य अतिथि भी रहे थे।

मोदी को अपने रिकॉर्ड को साफ़ करने के लिए क्या करना पड़ा? उस समय की रिपोर्टों के अनुसार, मोदी ने ओबामा को आश्वासन दिया था कि वह भारत की अर्थव्यवस्था को और उदार बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, 2014 में अपनी व्हाइट हाउस यात्रा के दौरान, मोदी ने "लालफीताशाही को हटाने, बुनियादी ढांचे को विकसित करने और कंपनियों को भारत में व्यापार करना आसान बनाने" के अपने वादे को भी दोहराया था।

बाजार समर्थक नीतियों की दिशा में एक विचारोत्तेजक कदम मुस्लिम विरोधी हिंसा के विश्वासघाती रिकॉर्ड को ख़त्म करने के लिए लिया गया था। बदले में, ओबामा ने वैश्विक आर्थिक और सुरक्षा अलाइन्स में मोदी को एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में पुनर्निर्मित करने का काम किया। 2015 में, व्हाइट हाउस के सहयोगियों ने पोलिटिको को बताया कि वे इस बात से चिंतित नहीं थे कि ओबामा के मोदी के गले लगाने से वैसे ही हालत पैदा होंगे जैसे कि तत्कालीन मिस्र के राष्ट्रपति मोहम्मद मोर्सी के साथ हुए थे, जिसे ओबामा प्रशासन ने तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप एर्दोगन को गर्मजोशी से गले लगाया था, और जिन्हें ओबामा ने सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों और पत्रकारों पर नकेल कसने का काम करने के लिए एक तरह से सम्मानित किया था और एक मॉडल नेता के रूप में,माना था।

जून 2016 के एक लेख में न्यूयॉर्क टाइम्स ने ओबामा और मोदी के बारे में बताया कि, "दोनों के पास एक सार्वजनिक गर्मजोशी या समर्थन है और आपसी केमिस्ट्री है, जैसा कि भारतीय समाचार मीडिया इसका वर्णन करना पसंद करता है"- और लिखा कि यह इस सप्ताह दिखेगा जब मोदी दो साल में दूसरी बार व्हाइट हाउस का दौरा करेंगे।

इस दौरान और बाद की बैठकों में, भारत को ओबामा से आश्वासन मिला कि अमेरिकी कंपनियां असैन्य परमाणु प्रौद्योगिकी के मामले में भारत को आपूर्ति करेंगी और इमिग्रेशन के नियमों में ढील देगी और एच1बी वीजा धारकों की पत्नियों या पति को संयुक्त राज्य में कानूनी रूप से काम करने की अनुमति देगी और बदले में, मोदी ने ओबामा को आश्वासन दिया कि वे जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे और भारत के कार्बन उत्सर्जन को कम करेंगे। ऐसा लगा कि दोनों के बीच की केमिस्ट्री दोनों देशों के लिए ठोस परिणाम उत्पन्न करेगी।

ट्रंप के साथ बात “अलग” है

मई 2019 में इंडिया टीवी के रजत शर्मा को दिए गए एक साक्षात्कार में मोदी ने राष्ट्रपति ओबामा और ट्रंप दोनों के बारे में बड़े लाड़ से बात की, लेकिन उनका संदेश स्पष्ट था। जबकि उन्होंने ओबामा के साथ मधुर संबंध का आनंद उठाया, ट्रंप के मामले में मोदी ने कहा, यह कुछ "अलग" था। ट्रंप ने उन्हें अपने परिवार से मिलवाया, उन्हें व्हाइट हाउस का निजी दौरा करवाया और विशेष रूप से चौंकाने वाली टिप्पणी में, मोदी ने दावा किया कि ट्रंप उन्हें संयुक्त राज्य के इतिहास (अब्राहम लिंकन के राष्ट्रपति होने और अमेरिकी गृह युद्ध) के खास समय के बारे में बताया, वह भी बिना किसी संदर्भ के। चौड़ी आंखों कर मोदी ने शर्मा से कहा, "उन्होंने अपनी याददाश्त के जरिए सारी बातें बताई।" जबकि अमेरिकी इतिहासकारों ने ट्रंप द्वारा झूठ का इस्तेमाल करना - या ऐतिहासिक तथ्यों के गलत तरीके से पेश करने के लिए ट्रंप को लताड़ा था। 

जबकि ट्रंप, सितंबर 2019 में ह्यूस्टन में "हाउड़ी मोदी" रैली में विशेष रूप से उड़ान भरकर गए और  मोदी की ओर इशारा करते हुए ट्रंप ने अपने भाषण में अपनी प्राथमिकताओं को स्पष्ट किया और इमिग्रेशन के मामले में अपने कठोर रुख को स्पष्ट किया। {संयुक्त राज्य में भारतीय अवैध प्रवासी का स्थान चौथा या सबसे बड़ा समूह है, उनमें कई अस्थायी गैर-अप्रवासी वीजा वाले हैं या दूसरी सबसे बड़ी कानूनी अप्रवासी आबादी वाले है]।

बावजूद सबके, ट्रंप ने एच1बी वीजा संकट में कोई रियायत नहीं दी, जिसने बड़ी संख्या में भारतीय निवासियों को प्रभावित किया था। यह ट्रंप सरकार है जिसने अप्रवासी परिवार और छात्र वीजा को हासिल करना कठिन बना दिया है। फिर भी मोदी 2020 के चुनावों के लिए ट्रंप का समर्थन करने के लिए काफी उत्सुक दिखे और उन्होंने ट्रंप के भाषण के बाद "अबकी बार, ट्रंप सरकार" के नारे लगा दिए। 

हाल की ख़बरों पर नज़र डालें तो ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान कई तरह के व्यापार सौदे होने की संभावना बताई गई है हालांकि आधिकारिक तौर पर कुछ भी घोषित नहीं किया गया है। भारत में 2.6 बिलियन डॉलर की लागत से 24 सीहॉक हेलीकॉप्टर खरीदने की बातचीत चल रही है; यह 17 बिलियन डॉलर के सैन्य हार्डवेयर के शीर्ष ऑर्डर पर है, जिसे भारत 2017 से खरीदने के लिए सहमत है। मोदी ने चिकन लेग्स, टर्की, ब्लूबेरी और चेरी सहित विभिन्न कृषि उत्पादों पर टैरिफ में कटौती करने की पेशकश की है, और भारत में कुछ डेरी उत्पाद के बाज़ार में व्यापार देने की अनुमति देने की भी पेशकश करने की सूचना है वह भी 5 प्रतिशत टैरिफ़ के साथ [भारत, जो दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है, ने 80 मिलियन ग्रामीण परिवारों की आजीविका की रक्षा के लिए डेयरी आयात को प्रतिबंधित किया हुआ है]।

मोदी की सरकार ने हार्ले-डेविडसन द्वारा बनाई गई बहुत बड़ी मोटरसाइकिलों पर अपने 50 प्रतिशत  टैरिफ को कम करने की पेशकश की है, एक ऐसा टैरिफ जो ट्रंप के लिए एक ख़ास अड़चन थी, और जिसके लिए उसने भारत को "टैरिफ किंग" करार दिया था।

ट्रंप ने भारत की अपनी यात्रा के बारे में ट्वीट तो किया है लेकिन यह नहीं बताया कि इस दौरान वे क्या करने वाले हैं।

मोदी की वैचारिक लफ्फाजी को एक तरफ कर दें तो वास्तव में ‘आपसी लेन-देन के कोई संकेत नहीं है। ऐसा लगता है कि राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप के कार्यकाल के दौरान - हालाँकि, मोदी जी ने खुद को ट्रंप के ख़ुशामदीद के रूप में प्रस्तुत किया है – लेकिन ट्रंप ने भारत के प्रति व्यापार, नीति या इमिग्रेशन में बिल्कुल भी सहमति नहीं जताई है। जबकि वे सार्वजनिक रूप से मोदी के बारे में बात करते हैं और मोदी के गृह राज्य गुजरात में एक रैली में भाग लेने की तैयारी में हैं, लेकिन उनके रुख से द्विपक्षीय सहयोग का कोई सबूत नहीं मिलता है।

ऐसा लगता है कि मोदी किसी ऐसे व्यक्ति को भारत की सार्वजनिक संपदा और किसान की आजीविका की पेशकश कर रहे हैं, जिसे वह अपना क़रीबी दोस्त मानते हैं- लेकिन लगता है भारत के लिए यह दोस्ती ग़ैर-किफ़ायती है।

लेखक कम्यूनिकेशन स्टडीज़ विभाग, न्यूयॉर्क स्टेट यूनिवर्सिटी, प्लैट्सबर्ग में पढ़ाती हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Trump and Modi, Friends Without Benefits

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