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यूपी 2022: ‘न्यूज़क्लिक’ की वे प्रमुख ख़बरें जिनपर मानवाधिकार और एससी-एसटी आयोग ने लिया संज्ञान

पिछले एक-डेढ़ बरस में “न्यूज़क्लिक”  ने पूर्वांचल में दलितों, आदिवासियों, महिलाओं और पत्रकारों के साथ हुई ज़ुल्म-ज़्यादती की जितनी वारदात को प्रमुखता से उठाया है उनमें से ज़्यादातर मामलों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, उत्तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग और अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग ने जांच बैठाई और रिपोर्ट तलब की।
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उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में पुलिस और सामंतों का गठजोड़ और उनकी जुल्म-ज्यादती के शिकार दलितों, आदिवासियों, महिलाओं और पत्रकारों को न्याय दिलाने में “न्यूज़क्लिक”  की ख़बरें कारगर साबित हुई हैं। पिछले डेढ़ बरस में हुई तमाम वारदात को “न्यूज़क्लिक”  ने प्रमुखता से उठाया तो मानवाधिकार आयोग ने हस्तक्षेप किया और जुल्मियों पर सख्त एक्शन लेने के लिए सरकार व आला अफसरों को कड़ी हिदायत दी। दलित और आदिवासियों पर जुल्म-ज्यादती के कई मामले भी तक राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रडार पर हैं। 

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आकड़े इस बात को तस्दीक करते हैं कि यूपी में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से दलितों, आदिवासियों और पत्रकारों के ख़िलाफ़ अत्याचार के मामले कम होने के बजाय बेतहाशा बढ़े हैं। इन सभी मामलों में कहीं सरकार सवालों के घेरे में है तो कहीं खुद पुलिस कठघरे में खड़ी है। 

“न्यूज़क्लिक” की पड़ताल से यह बात साफ हुई है कि पूर्वांचल में जिन दलितों और आदिवासियों के साथ जुल्म-ज्यादती की वारदातें हुईं, उनमें एक बड़ा वर्ग आर्थिक रूप से कमज़ोर है। गरीबी और तंगहाली के चलते उसके लिए न्याय आज भी सपना है। कदाचित न्याय की उम्मीद में वह पुलिस स्टेशन जाता भी है तो वहां उसे न्याय कम, बेरुखी ज्यादा मिलती है।

केस नंबर-1

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

फुलवरिया की मुसहर बस्ती का हाल।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन जून 2022 को लखनऊ आए और फिर तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पैतृक गांव कानपुर के परौंख गए। दोनों कार्यक्रमों में उन्होंने बनारस की खूबियां गिनाई और बच्चों से बातचीत में कहा, "मेरा गांव काशी में है। हम आपके गांव आए हैं तो आप लोग मेरे गांव काशी जरूर आइए।" मोदी के इस बयान से भले ही समूचा देश गदगद हो गया, लेकिन “न्यूज़क्लिक”  ने हकीकत की पड़ताल की तो पता चला कि पीएम मोदी काशी के जिन गांवों को देखने के लिए लोगों को न्योता बांट रहे हैं उनमें एक गांव फुलवरिया भी है। बनारस शहर से सटे पीएम के संसदीय क्षेत्र के इस गांव में कई जिंदगियां कब्रिस्तान में रहती हैं। उनके पास न कोई ठौर-ठिकाना है और न ही छत।

कोटवां मार्ग पर फुलवरिया के वरुणापुरी कोलानी के पास स्थित कब्रिस्तान में महादलित 50 वर्षीय बिंदर मुसहर का कुनबा रहता है। इस कब्रिस्तान में कई पक्की और कई कच्ची मजारें हैं। इन्हीं मजारों के बीच रहते हैं बिंदर के चार बेटे हैं- चंदन, संजय, राजू व डाक्टर और इनकी पत्नियां तथा बच्चे। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और बिंदर के बेटे, उनकी पत्नियां और नाती-पोते भी।  इनके पास न रहने के लिए घर है, न शौचालय और न पीने का साफ पानी।

डबल इंजन की सरकार सत्ता में आई तो एक दबंग ने उन्हें उस जगह से खदेड़ दिया जहां वो लंबे समय से रहते आ रहे थे। पूरी तरह अशिक्षित बिंदर का परिवार अपने साथ हुई नाइंसाफी और जुल्म का मुकाबला नहीं कर सका। रहने के लिए ठौर-ठिकाना नसीब नहीं हुआ तो कब्रिस्तान के बीच अपनी झोपड़ी डाल ली। यह स्थिति तब है जब पीएम मोदी ने आठ बरस पहले बनारस को जापान के शहर क्योटो जैसा बनाने का वादा किया गया था।

“न्यूज़क्लिक”  ने 04 जून 2022 को कोरा सच उजागर किया तब भी डबल इंजन की सरकार हरकत में नहीं आई। कब्रिस्तान में जिंदगी गुजारने वालों को लेकर सरकारी नुमाइंदों की चिंता तब बढ़ी जब मानवाधिकार आयोग के पास “न्यूज़क्लिक”  की रिपोर्ट पहुंची। आयोग ने 28 सितंबर 2022 को इस मामले में केस संख्या-13869 (65/2022-2023) REP दर्ज किया। उत्तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग के चेयरपरसन न्यायमूर्ति बाला कृष्ण नारायण ने प्रशासन को आड़े हाथ लेते हुए विस्तार से रिपोर्ट तलब की है।

फुलवरिया के कब्रिस्तान में रहने वाले लोगों को मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने के लिए आयोग ने 7 फरवरी 2023 तक की डेडलाइन तय की है। इससे पहले उत्तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग को मुकम्मल रिपोर्ट भेजी जानी है।

उत्तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट पर वाराणसी के अपर जिलाधिकारी (प्रोटोकाल) बच्चू सिंह ने नगर आयुक्त को पत्र भेजकर आख्या तलब की है। आयोग की दखल पर पहली मर्तबा नगर निगम के नुमाइंदे फुलवरिया कब्रिस्तान में पहुंचे और वहां रह रहे मुसहर समुदाय के लोगों को कंबल बांटा। खबर है कि इन्हें आवास मुहैया कराने के लिए प्रशासन जमीन तलाश रहा है। नगर निगम ने डूडा के माध्यम से आवास बनवाकर उन्हें छत मुहैया कराने की कार्ययोजना तैयार की है।

न्यूज़क्लिक में रिपोर्ट छपने के बाद मुसहर समुदाय के लोगों को पहली बार मिला कंबल। 

केस नंबर-2

योगीराज में न्याय: मंदिर में मत्था टेकने पर दलित युवक की पिटाई, पुलिस ने भी पीड़ित का शांतिभंग में किया चालान!

“न्यूज़क्लिक”  ने 13 सितंबर 2022 को उत्तर प्रदेश के चंदौली जिला मुख्यालय के समीपवर्ती गांव बहोरिकपुर की मुसहर बस्ती के 28 वर्षीय रामचंद्र भारती (महादलित) की पिटाई को प्रमुखता से प्रकाशित किया। आरोप था कि इस गांव के कुछ ब्राह्मणों ने उसकी सिर्फ इसलिए जमकर धुनाई कर दी, क्योंकि वह गांव के काली मंदिर में अपनी बीमार भाभी शीला देवी के लिए मन्नत मांगने चला गया। "ब्राह्मणों के लड़कों ने उसे काली मंदिर में मत्था टेकते हुए पकड़ लिया। उसे अछूत बताते हुए पहले खूब गालियां दी और जब प्रतिरोध किया तो वो गुंडों की तरह टूट पड़े। लाठी-डंडा और लात-घूसों से मारपीट की गई। पीड़ित रामचंद्र और उसका भाई राजेश भारती जब न्याय की गुहार लगाने चंदौली थाने में पहुंचे तो मनुवाद में जकड़ी पुलिस ने दोषियों पर एक्शन लेने के बजाय दोनों को निर्दोष भाइयों को ही हवालात में ठूंस दिया। इनके पहुंचने से पहले ही आरोपित, थानेदार के पास पहले से कुर्सी लगाकर बैठे थे। पुलिस ने दोनों भाइयों पर जमकर लाठियां तोड़ी और फिर दफा 151 में उनका चालान कर दिया।

मानवाधिकार जन निगरानी समिति ने 9 अक्टूबर 2022 को “न्यूज़क्लिक”  की ग्राउंड रिपोर्ट राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पास भेजी। आयोग ने इस मामले में केस संख्या-28421/24/19/2022 दर्ज करते हुए चंदौली थाना पुलिस को आड़ेहाथ लिया। इसके बाद मुसहर समुदाय के रामचंद्र वनवासी का मामला दर्ज हो सका।

हालांकि इस संगीन मामले में पुलिस ने अभी तक आरोपितों को गिरफ्तार कर जेल नहीं भेजा है।

आयोग ने दोबारा इस मामले में विस्तृत रिपोर्ट तलब की है, जिससे पुलिस और अभियुक्तों की नींद हराम हो गई है।

केस नंबर-3

यूपी बोर्डः पेपर लीक मामले में योगी सरकार के निशाने पर चौथा खंभा, अफ़सरों ने पत्रकारों के सिर पर फोड़ा ठीकरा

बलिया जिले में उत्तर प्रदेश बोर्ड की 12वीं की परीक्षा के अंग्रेजी पेपर लीक मामले में "अमर उजाला" के पत्रकार अजित कुमार ओझा, दिग्विजय सिंह और दो अन्य पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया। खेल नकल माफिया ने खेला और प्रशासन ने अपनी नाकामी का ठीकरा चौथे खंभे पर फोड़ डाला। हैरत की बात यह रही कि "अमर उजाला" अखबार प्रशासन की हुक्मअदायगी करते हुए लगातार कई दिनों तक अपने ही पत्रकारों के खिलाफ खबरें छापता रहा। “न्यूज़क्लिक”  ने समूचे मामले की पड़ताल की और अखबार समेत पुलिस-प्रशासन की नाकामी को उजागर किया। अखबार की कलई खुलनी शुरू हुई तब वह अपने पत्रकारों के पक्ष में खड़ा हुआ, लेकिन अपने साथियों को त्वरित न्याय नहीं दिला सका। 

बलिया में पत्रकारों की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ धरना।

 आंदोलन और “न्यूज़क्लिक”  की रिपोर्ट्स जब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक पहुंची तब आयोग ने इस मामले में केस संख्या-11885/24/10/2022 दर्ज किया। आयोग ने पुलिस के बजाय “न्यूज़क्लिक”  की रिपोर्ट पर यकीन किया और अफसरों से आठ हफ्ते में जवाब तलब किया। आयोग के सख्ती के बाद पुलिस और प्रशासन को घुटने टेकने पड़े। सभी पत्रकारों को बाइज्जत रिहा करना पड़ा।

केस नंबर-4

उत्तर प्रदेश: योगी के "रामराज्य" में पुलिस पर थाने में दलित औरतों और बच्चियों को निर्वस्त्र कर पीटेने का आरोप

उत्तर प्रदेश के जौनपुर की देवरिया दलित बस्ती में औरतों और बच्चियों को बदलापुर थाने में निर्ममता से पीटे जाने के मामले को जब मेन स्टीम की मीडिया ने प्रमुखता से नहीं उठाया तो “न्यूज़क्लिक”  ने 27 मार्च 2022 को विस्तृत रिपोर्ट सचित्र छापी। आरोप था कि जौनपुर जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर इस गांव में 20 मार्च को बदलापुर थाने में लड़कियों को इस कदर पीटा था कि वो कई दिनों तक ठीक से चल-फिर पाने में असमर्थ रहीं। इस दलित बस्ती में कई दिनों तक सन्नाटा और रोती-बिलख ती औरतों का करुण क्रंदन गूंजता रहा। आरोप लगा कि दबंगों के इशारे पर पुलिस वालों ने निर्दोष औरतों और बच्चियों को लॉकअप में नग्न कर बेल्ट और डंडों से बुरी तरह पीटा।

बताए गए घटनाक्रम के मुताबिक, 20 मार्च को दोपहर में बदलापुर थाने के जवान गाड़ियों से पहुंचे और नाबालिग-सुमित, पोसपाल के अलावा शशि (21), अंजलि (17), मुस्कान (16), सुमित (14),  शीला (32), कुसुम (40), ऊषा (45), आंचल (17) और किशन (12) को पकड़ लिया। सभी को गांव में सरेआम लाठी-डंडों से पीटा गया। बाद में उन्हें गाड़ियों में ठूंसकर बदलापुर थाने लाया गया। जिन दबंगों के इशारे पर पुलिस दलित बस्ती में पहुंची थी वो पहले से ही वहां मौजूद थे। पुलिस से उनकी गहरी साठगांठ थी। आरोप था औरतों और बच्चियों पर थर्ड डिग्री की पिटाई करने से पहले सीसीटीवी कैमरा बंद कराया गया। सिपाहियों ने मारपीट करते हुए सभी औरतों और बच्चों के कपड़े उतरवा दिए। फिर बेल्ट और बेंत से सभी को पीटा जाने लगा। थाने के लॉकअप में क्रूरता और बर्बरता तब तक जारी रही जब तक सभी के बदन नीले नहीं पड़ गए। औरतें और बच्चे चिंघाड़ मारकर रोते-बिलखते रहे। पुलिस वालों के पैर पकड़कर माफी भी मांगते रहे, मगर उनका दिल नहीं पसीजा। पुलिस उन्हें तब तक पीटती रही, जब तक सभी औरतें और बच्चियां बेसुध नहीं हो गईं।"

इस मामले में न आरोपित पुलिस पर एक्शन तो हुई ही नहीं, बाबा के बुलडोजर के पहिए भी थम गए। तब “न्यूज़क्लिक”  की रिपोर्ट से ही दलितों में न्याय की आस जगी।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने “न्यूज़क्लिक”  की रिपोर्ट के आधार पर अपने यहां मामले को केस संख्या-9865/24/39/2022 दर्ज किया। आयोग ने इस मामले में आठ हफ्ते के अंदर समूचे मामले की रिपोर्ट तलब की। साथ ही पीड़ितों को भी जांच रिपोर्ट से अवगत कराने का निर्देश दिया।

केस नंबर-5

यूपीः मूर्ति छूने के 'अपराध' में प्रतापगढ़ में दुर्गा पंडाल में दलित की पीट-पीटकर हत्या!

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ ज़िले की पट्टी थाना क्षेत्र के उड़ैयाडीह गांव की दलित बस्ती के 50 वर्षीय जगरूप गौतम को सिर्फ इसलिए बुरी तरह पीटा गया, क्योंकि पूजा पंडाल में उसने दुर्गा मूर्ति के पैर छू लिए थे। दबंगों ने जातिसूचक शब्द बोलकर उनपर हमला बोल दिया और उन्हें मारने-पीटने लगे। जातिसूचक गालियां देते हुए उनकी पिटाई की गई। उन्हें तब तक पीटा गया, जब तक वे अधमरा नहीं हो गए। हालत गंभीर होने पर अभियुक्त उन्हें उनके घर छोड़कर फ़रार हो गए। उपचार के दौरान 2 अक्टूबर 2022 की सुबह 9 बजे उनकी मौत हो गई।

“न्यूज़क्लिक”  ने इस मामले की पड़ताल की तो पुलिस और सामंतों के गठजोड़ का नंगा सच उजागर हुआ। “न्यूज़क्लिक”  की रिपोर्ट को आधार बनाकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पास शिकायत भेजी गई जिसे केस संख्या-31899/24/59/2022 पर दर्ज किया गया।

प्रतापगढ़ के इसी इलाके में 16 जून 2019 को एक दलित युवक विनय प्रकाश सरोज उर्फ़ बबलू (33) को उसी के सुअरबाड़े में चारपाई से बांधकर ज़िंदा जला दिया गया था। वह घटना पट्टी कोतवाली के बेला रामपुर गांव में हुई थी। उड़ैयाडीह गांव की दलित बस्ती के जगरूप गौतम के मौत के मामले में पुलिस ने आठ हफ्ते में प्रतापगढ़ के पुलिस अधीक्षक से रिपोर्ट तलब की। पुलिस के जवाब से आयोय अभी संतुष्ट नहीं हुआ है।

केस नंबर-6

चार किलो चावल चुराने के इल्ज़ाम में दलित किशोर की बेरहमी से पिटाई, मौत के बाद तनाव, पुलिस के रवैये पर उठे सवाल

यूपी के बनारस में कपसेठी इलाके के सुइलरा गांव में चार किलो चावल चुराने का इल्जाम लगाकर अनुसूचित जाति के 14 साल के किशोर विजय गौतम को दबंगों ने बुरी तरह पीटा, जिससे उसकी मौत हो गई। दलित समुदाय का यह बच्चा हाथ जोड़कर दुहाई देता रहा कि वह निर्दोष है, लेकिन किसी ने उसकी एक नहीं सुनी। 6/7 जुलाई की रात हुई घटना के बाद पुलिस आई तो उसने भी सवर्णों का साथ दिया और अपनी मौजूदगी में बच्चे के परिजनों को बुलाकर उनसे चावल के पैसे की वसूली भी कराई। साथ ही माफीनामे पर अंगूठा भी लगवाया। समझौते के बाद दबंगों ने दोबारा उसी लड़के को पकड़ा और फिर जमकर पीटा, जिससे उसकी हालत बिगड़ गई। अस्पताल में भर्ती कराने के बावजूद वह जिंदा नहीं बच सका।

दबंगों की कथित पिटाई से किशोर की मौत के मामले में हंगामे के बाद कपसेठी थाना पुलिस ने संगीन धाराओं में मामला तो दर्ज कर लिया, लेकिन आरोपितों के खिलाफ सख्त एक्शन लेने में हीलाहवाली करती रही। सभी अभियुक्त ठाकुर जाति थे, जिन्हें पुलिस बचा रही थी।

आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले इस बच्चे की मौत के बाद दलित हितों के लिए काम करने वाली संस्था पीवीसीएचआर ने “न्यूज़क्लिक”  की रिपोर्ट के आधार पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पास शिकायत भेजी। इस मामले में आयोग ने केस संख्या-23877/2472-2022 दर्ज किया। आयोग के असिस्टेंट रजिस्ट्रार (ला) देवेंद्र कुंद्रा ने 20 दिसंबर 2022 को बनारस के ग्रामीण पुलिस अधीक्षक को पत्र भेजकर करेंट स्टेटस रिपोर्ट तलब किया है। साथ ही चार हफ्ते में किशोर विजय राम गौतम के मामले में विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।

युवती की हत्या के मामले में बयान दर्ज करते डीएम

केस नंबर-7

चंदौली: कोतवाल पर युवती का क़त्ल कर सुसाइड केस बनाने का आरोप

यूपी के चंदौली जिले में पुलिस का अमानवीय चेहरा उस समय सामने आया जब सैयदराजा थाने के कोतवाल उदय प्रताप सिंह हमराहियों के साथ जिलाबदर किए गए कन्हैया यादव को पकड़ने के बहाने अचानक मनराजपुर गांव में पहुंचे। घटना की शाम कन्हैया की दो युवा बेटियां निशा और गुंजा खाना बनाने की तैयारी कर रही थीं। आरोप है कि घर का दरवाजा तोड़कर पुलिस अंदर घुसी। कोतवाल की नजरें निशा को ढूंढ रही थीं। वह उसकी तरफ बढ़ा तो दोनों बहनों ने घर से बाहर ढकेलने का प्रयास किया, जिससे कोतवाल उदय प्रताप सिंह अपना आपा खो बैठे और उन पर लाठियां तोड़नी शुरू कर दीं।

आरोप है कि सैयदराजा के कोतवाल उदय प्रताप सिंह की पिटाई से निशा की गर्दन एक तरफ लुढ़क गई और उनकी धड़कन भी बंद हो गई। बताया गया कि पुलिस निशा को साड़ी के फंदे पर लटाककर फरार हो गई। 

“न्यूज़क्लिक” ने इस मामले की विस्तृत रिपोर्ट छापी तो यह मामला भी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक पहुंचा। आयोग ने इस मामले में भी पुलिस प्रशासन से रिपोर्ट तलब की है। फिलहाल इस मामले की जांच सीबीसीआईडी कर रही है।

केस नंबर-8

सोनभद्र नरसंहार कांड: नहीं हुआ न्याय, नहीं मिला हक़, आदिवासियों के मन पर आज भी अनगिन घाव

सोनभद्र के उभ्भा गांव में हुए नरसंहार की की दूसरी बरसी पर “न्यूज़क्लिक”  ने फालोअप स्टोरी छापी। इससे पहले दो साल गुजर जाने के बाद भी प्रशासन ने अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम के तहत पीड़ित आदिवासियों को क्षतिपूर्ति का भुगतान नहीं किया था। “न्यूज़क्लिक”  की रिपोर्ट के छपने के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने नए सिरे से मामले को दर्ज किया। केस संख्या-20432/24/55/2019 के तहत दर्ज मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निर्देश पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रियंका गांधी की ओर से बांटे गए मुआवजे से अलग क्षतिपूर्ति का भुगतान किया गया। “न्यूज़क्लिक”  की रिपोर्ट छपने के बाद मृतक परिवारों को करीब चार-चार लाख और घायलों को दो-दो लाख रुपये दिए गए। आयोग ने निर्देश दिया कि बाकी 50 फीसदी धन का भगुतान भी जिला प्रशासन जल्द करे।

उल्लेखनीय है कि 17 जुलाई 2019 को लगभग चार करोड़ रुपये की 112 बीघे जमीन के लिए आदिवासियों पर अंधाधुंध फायरिंग की गई। आरोप तत्कालीन ग्राम प्रधान यज्ञदत्त भूर्तिया और उसके समर्थकों पर था। इस घटना में 11 लोगों की मौत हो गई और 25 अन्य घायल हो गए। इस मामले के तूल पकड़ने के बाद दर्जन भर से ज्यादा अधिकारियों पर कार्रवाई हुई। उस समय के डीएम और एसपी हटा दिए गए। इस मामले में प्रमुख सचिव राजस्व रेणुका कुमार की जांच रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने घोरावल के तत्कालीन उप-जिलाधिकारी घोरावल ए मणिकंडन के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के आदेश दिए। साथ ही इलाकाई पुलिस क्षेत्राधिकारी के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई की संस्तुति की गई। शुरुआत में जोश दिखाने के बाद भाजपा सरकार खामोश बैठ गई। रेणुका कुमार की संस्तुतियों को योगी सरकार ने फाइलों में दबा दिया है।

केस नंबर-9

ग्राउंड रिपोर्ट : बीड़ी पीने वालों से भी ज़्यादा तेंदूपत्ता तोड़ने वाले आदिवासियों का मज़दूरी न मिलने से घुट रहा दम!

उत्तर प्रदेश के चंदौली, मिर्जापुर और सोनभद्र जिले में तेंदू (डाइसोपाररस चोमेंटोसा) पत्ते की तोड़ाई और संग्रहण का कार्य करने वाले हजारों आदिवासी और दलित परिवारों को मजदूरी का भुगतान न होने पर “न्यूज़क्लिक”  ने प्रमुखता से रिपोर्ट छापी तो राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से वन निगम से रिपोर्ट तलब की। 

“न्यूज़क्लिक”  की रिपोर्ट और आयोग की सख्ती के चलते कोल, खरवार, भुइया,  गोंड, ओरांव या धांगर, पनिका, धरकार, घसिया और बैगा जाति के आदिवासियों को उनकी मजदूरी का भुगतान कर दिया गया। हालांकि कुछ आदिवासियों के बकाये का भुगतान अभी तक नहीं हो सका है।

केस नंबर-10

EXCLUSIVE : बनारस के इकलौते अंध विद्यालय की कक्षाएं बंद करने के पीछे आख़िर क्या है असली कहानी?

बनारस में दृष्टिबाधित छात्रों के लिए स्थापित श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालय की 9वीं से 12वीं तक की कक्षाओं को बंद करने के पर “न्यूज़क्लिक”  ने एक एक्सक्लूसिव रिपोर्ट छापी। इस मामले की शिकायत पीवीसीएचआर की ओर से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पास भेजी गई। इस मामले में आयोग ने प्रशासन से जांच रिपोर्ट मांगी और निर्देश दिया कि किसी बच्चे का भविष्य बर्बाद न होने पाए। साथ ही इस संस्था का उपयोग किसी अन्य प्रयोजन में न किया जाए।

श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालय की स्थापना हनुमान प्रसाद जी पोद्दार (भाई जी) के नाम पर की गई थी। ये ऐसे शख्स थे जिन्होंने अपना जीवन समाजसेवा और उत्कृष्ट मानवतावाद के लिए समर्पित कर दिया था। हनुमान प्रसाद पोद्दार का जन्म शिलांग में 17 सितम्बर, 1892 को हुआ था। देश की आजादी के लिए वे जेल गए और साल 1914 में महामना मदन मोहन मालवीय के संपर्क में आए तो बनारस में बीएचयू की स्थापना के लिए देश भर से धन जुटाया। गोरखपुर में गीता प्रेस की स्थापना की, जिससे लोगों को कम मूल्य पर धार्मिक पुस्तकें मिलती रही हैं। इस संस्था में फिलहाल बनारस शहर के कई धन्ना सेठ ट्रस्टी बन गए। आरोप है कि इस संस्था में कुछ ऐसे लोग भी हैं शहर की विवादित जमीनें कब्जाने के लिए चर्चित रहे हैं।

केस नंबर–11

यूपी के चंदौली में 50 दिन से धरने पर बैठा है एक पत्रकार, लेकिन कोई सुनवाई नहीं

यूपी के चंदौली जिले के सकलडीहा बाजार ताजपुर निवासी पत्रकार 27 वर्षीय विजय विश्वकर्मा को जनपक्षीय पत्रकारिता करने और दमन के खिलाफ लिखने पर कथित तौर पर उन्हें फर्जी मामले में फंसाया गया और उन्हें जेल भेजा गया। इस मामले में प्रशासन की ओर से धारा 151, 107, 116 और एससी-एसटी एक्ट के तहत कार्रवाई कराई गई। यही नहीं, पुलिस ने सिर्फ 12 दिन के अंदर ही समूचे मामले में चार्जशीट भी पेश कर दी। पत्रकार विजय विश्वकर्मा के अनुसार उनका एक ही कसूर था कि उन्होंने सच कहा और सच ही लिखा।

“न्यूज़क्लिक”  की रिपोर्ट के आधार पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 12 अगस्त 2021 को केस संख्या 20734/24/19/2021 दर्ज किया। इस पत्रकार को न्याय दिलाने के लिए जनवादी संगठनों ने लंबे समय तक आंदोलन किया। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में यह मामला अभी चल रहा है।

कुछ और मामले

पूर्वांचल के मुसहर टोलों में ‘पैकेज्ड फूड्स’ बन रहा कुपोषण का कारण 

“न्यूज़क्लिक”  में हाल ही में प्रकाशित खबर “पूर्वांचल के मुसहर टोलों में ‘पैकेज्ड फूड्स’ बन रहा कुपोषण का कारण” को बदायूं की सांसद संघमित्रा मौर्य ने बेहद गंभीरता से लिया है। संघमित्रा संसदीय स्थायी समिति के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग की सदस्य हैं। उन्होंने “न्यूज़क्लिक”  की रिपोर्ट को अपने पत्र के साथ नत्थी करते हुए 24 दिसंबर 2022 को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मंसुख मंडविया को खत भेजा है। सांसद संघमित्रा ने पत्र में कहा है कि हमें मजबूत फ्रंट ऑफ पैकेज लेबलिंग (एफओपीएल) की जरूरत है, क्योंकि इसका सीधा संबंध जीवन और स्वास्थ्य के अधिकार से है। भारत में बड़ी-बड़ी कंपनियों में तैयार खाद्य पैकेज गलत सूचनाओं से भरे हुए हैं, इसलिए एक कड़ी चेतावनी लेबल जरूरत है। हर बच्चे को यह जानने का हक है कि वो जिस पैकेज्ड फूड को खा रहे हैं उसमें है क्या?

NHRC को ‘न्यूज़क्लिक’ पर यक़ीन

पिछले डेढ़ बरस में “न्यूज़क्लिक”  ने पूर्वांचल में दलितों, आदिवासियों, महिलाओं और पत्रकारों के साथ हुई जुल्म-ज्यादती की जितनी वारदातों को प्रमुखता से उठाया है उनमें से ज्यादातर मामलों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, उत्तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग और अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग ने जांच बैठाई और रिपोर्ट तलब की। खास बात यह है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पूर्वांचल के जितने मामलों को अपने यहां दर्ज कर पुलिस और प्रशासन पर सख्ती बरती है, उनमें ज्यादातर मामले “न्यूज़क्लिक”  में प्रकाशित रिपोर्ट के आधार पर पंजीकृत किए गए हैं। इस रिपोर्ट में सिर्फ उन्हीं मामलों को रेखांकित किया गया है जो काफी संवेदनशील और चर्चित थे। बीते एक साल पर नजर डाली जाए तो तथाकथित ‘मेन स्ट्रीम’ मीडिया में छपी शायद ही किसी ख़बर पर मानवाधिकार आयोग में मामला पंजीकृत हुआ होगा।

पिछले दो सालों में दलितों, आदिवासियों और पत्रकारों पर हुई घटनाओं का विश्लेषण किया जाए तो यूपी में जुल्म-ज्यादती का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है। दरअसल, वंचित तबके के खिलाफ सामंती सोच वाले लोग इसलिए ज़्यादा हमलावर हो रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि आज़ादी के समय जो उनके पास था वो ‘ग़ुलामों’ के पास चला गया। आज़ादी के बाद कई दशकों तक ठाकुरों ने ब्राह्मणों का पक्ष लिया। आज भी उच्च जातीय मत को प्रायः एक गुट में माना जाता है। थानों पर जाति विशेष के दारोगाओं की तैनाती इस बात को प्रमाणिक करती है कि जो इल्ज़ाम पहले अखिलेश सरकार पर चस्पा हुआ करता था, वही अब योगी सरकार पर भी चस्पा होने लगा है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े भी इस बात को तस्दीक कर रहे हैं कि प्रदेश में दलितों के ख़िलाफ़ अत्याचार के मामले कम होने के बजाय बढ़े हैं। यह स्थिति तब है जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दावा दावा करते हैं कि औरतों के लिए यूपी सबसे सुरिक्षत प्रदेश है।

एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2021 में देश भर में दलितों के खिलाफ 50,744 मामले दर्ज हुए थे। इसमें 13,146 मामले सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही सामने आए थे। जबकि साल 2020 में देश भर में 50,202 मामलों में 12,714 मामले यूपी में थे। वहीं साल 2019 में 45,876 मामलों में 11,829 मामले यूपी में दर्ज हुए थे। साल 2020 से 2021 में दलितों के खिलाफ 423 व साल 2019 की अपेक्षा 1317 मामले अधिक सामने आए हैं। एनसीआरबी की ताजा रिपोर्ट कहती है कि साल 2021 में दलित महिलाओं के साथ यौन शोषण के 671 मामले दर्ज हुए, उनमें सबसे अधिक यूपी के 176 मामले हैं, जबकि साल 2020 में 132 मामले दर्ज हुए थे। साल 2021 में 198 दलितों की हत्या हुई है और साल 2020 में 214 हत्याएं हुई थीं। हत्या के मामले में भी यूपी पहले पायदान पर है।

मीडिया से गायब वंचित तबका

दलित और आदिवासियों के लिए मानवाधिकार आयोग में लगातार पैरवी करने वाले मानवाधिकार जननिगरानी समिति (पीवीसीएचआर) के संयोजक डॉ. लेनिन रघुवंशी कहते हैं, "सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि प्रामाणिकता के साथ मेन स्ट्रीम की मीडिया में ऐसी खबरें नहीं आ रही हैं जिससे मानवाधिकार आयोग उसे गंभीरता से ले। दलित, आदिवासी और महिलाओं पर अपराधों के संबंध में मुकदमा चलाने और दंड देने से लेकर पीड़ितों को राहत एवं पुनर्वास देने का प्रावधान किया है। इसके बावजूद इस समुदाय का एक बड़ा तबका आज भी आर्थिक रूप से कमज़ोर है, जिसे न्याय पाना हमेशा से मुश्किल रहा है। उत्पीड़न निरोधक क़ानून के लागू न होने के चलते अत्याचार बढ़ रहे हैं। एक वजह और भी वजह है कि ऊपरी अदालतों तक गांव के शोषित दलित की पहुंच न हो पाना। इसका लाभ भी शोषण करने वालों को मिलाता रहा है।"

"मानवाधिकारों के हनन के मामले सिर्फ सामाजिक रूप से ही नहीं, आर्थिक कारणों से भी हैं। ईट-भट्ठों से लेकर घर तक, न्यूनतम मज़दूरी के सवाल से लेकर समाज में रहने तक, कुएं के पानी से लेकर पाठशाला में बैठने तक, अपने घर में शादी के मौके पर गाजे-बाजे तक जैसे कई उदाहरण हैं जो समझाते हैं कि आज भी दलितों को सामाजिक अधिकार नहीं मिल रहे हैं। दलित और आदिवासी महिलाओं को बाहर से लेकर घर की चाहरदीवारी तक हिंसा और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। अगर वो पानी भरने जाए, गांव से दूर या नदी, तालाब की ओर तो उसे घेरा जाता है, वो शौच के लिए जाए तो बड़ी जाति के लड़के उनके अकेलेपन का लाभ उठाकर शोषण अथवा उन्हें अपमानित करते हैं। खाना पकाने के ईधन को जुटाने में भी उन्हें इन्हीं स्थितियों से उन्हें गुज़रना पड़ता है, क्योंकि बड़ी जाति के लोगों के पास ज़मीन है, बाग हैं, खेत हैं, गाय हैं। भूमिहीन दलित परिवारों की महिलाओं को तो उन्हीं पर निर्भर रहना पड़ता है।"

डॉ. लेनिन यह कहते हैं, " हमारी पुलिस व्यवस्था दलित समाज के साथ जिस तरह का बर्ताव करती है वह चिंता की बात है। पुलिसकर्मियों में दलितों के प्रति जो सहानुभूति होनी चाहिए, वो नहीं है। पहले तो दलितों के उत्पीड़न के मामले में प्राथमिकी ही दर्ज नहीं की जाती और अगर हो भी गई तो चार्जशीट नहीं भरी जाती है। इस दिशा में एक मज़बूत जनआंदोलन की जरूरत है। चिंता की एक और बड़ी वजह हाल के दिनों खड़ी हुई है चौथे खंभी के आजादी की। मौजूदा समय में जो भी पत्रकार और एक्टिविस्ट दलितों, महिलाओं, आदिवासियों के अलाव जनहित के मुद्दे को गंभीरता से उठा रहे हैं उन्हें डराया जा रहा है अथवा झूठे व फर्जी मामलों में फंसाकर जेल भेजा जा रहा है।"

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