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यूपी: कोरोना कहर के बीच शासन-प्रशासन की लापरवाही और जवाबदेही!

राजधानी लखनऊ समेत यूपी के सभी बड़े शहर और गांव के दूर-दराज़ के इलाक़े भी कोरोना और प्रशासनिक लापरवाही की दोहरी मार झेल रहे हैं। भले ही मुख्यमंत्री राज्य में किसी भी चीज़ की कमी न होने का दावा कर रहे हैं लेकिन श्मशान में लगी लाशों की क़तारें कुछ और ही कहानी बयां कर रही हैं।
यूपी: कोरोना कहर के बीच शासन-प्रशासन की लापरवाही और जवाबदेही!

उत्तर प्रदेश में एक ओर कोरोना से मौत का मातम पसरा हुआ है तो वहीं दूसरी तरफ शासन-प्रशासन की लापरवाही खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। राजधानी लखनऊ में ऑक्सीजन सिलेंडर को लेकर मारामारी जारी है। लोगों को एक सिलेंडर के लिए तीन-तीन दिन तक इंतजार करना पड़ रहा है। उधर ऑक्सीजन सिलेंडर के टैंकर ऑक्सीजन प्लांट के बाहर खड़े हैं, कारण साफ है सरकार के पास ऑक्सीजन को प्लांट में भरने के लिए टेक्निकल इक्विपमेंट के साथ साथ टेक्निकल एक्सपर्ट नहीं हैं।

लखनऊ में बुधवार 5 मई को ही एक बड़ा हादसा सामने आया। यहां ऑक्सीजन सिलेंडर रिफिल करने के दौरान सिलेंडर फटने से 3 लोगों की मौत हो गई। इस घटना में कई लोग घायल हो गए। प्लांट में काम कर रहे एक कर्मचारी का हाथ ब्लास्ट के दौरान बुरी तरह जख्मी हो गया। घायलों को गोमती नगर स्थित लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

गायों की सुरक्षा के लिए हेल्प डेस्क, मास्क और थर्मल स्क्रीनिंग!, लेकिन लोगों के लिए?

बुधवार को ही कई  मीडिया रिपोर्ट्स में ये दावा किया गया कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार हर जिले में गायों की सुरक्षा के लिए हेल्प डेस्क बनाने की तैयारी में है। सरकार ने इसके लिए निर्देश भी जारी किए हैं। राज्य सरकार ने गौशालाओं को कोविड प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन करने का भी निर्देश दिया है। साथ ही, मास्क और थर्मल स्क्रीनिंग को भी अनिवार्य करने के लिए कहा है। ऐसे में जब कई अस्पतालों में ऑक्सीजन और बेड की किल्लत की खबरें सामने आ रही हैं, तब गायों के लिए हेल्प डेस्क को प्राथमिकता बनाए जाने की खबरों को लेकर लोगों ने सोशल मीडिया पर सरकार की खूब आलोचना की गई।

हालांकि कुछ समय बाद ही सरकार द्वारा ये कहा गया कि गायों के लिए ऑक्सीमीटर या थर्मल स्कैनर का उपयोग करने का ऐसा कोई आदेश नहीं है। यूपी के ACS सूचना नवनीत सहगल ने इंडिया टुडे को बताया कि  वो निर्देश गौशालाओं में कर्मचारियों के लिए थे, न कि जानवरों के लिए। कर्मचारियों में कोरोना का संक्रमण न फैले इसके लिए मास्क, थर्मल स्क्रीनिंग आदि रखने को कहा गया है।

बता दें कि यूपी में एक बार फिर कोरोना संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी है। संक्रमित मरीजों की संख्या जहां 30 हजार से नीचे थी, वहीं अब एक बार फिर नये मरीजों का आंकड़ा 30 हजार पार कर गया है। बुधवार 5 मई को कोरोना के 31,165 नए कोरोना केस सामने आए और इस दौरान 357 लोगों की मौत भी हो गयी। इसके साथ ही यूपी में कोरोना से मरने वालों की संख्या 14,151 हो गई है। प्रदेश में कोविड के 13,99,294 कुल मामले हैं, जिसमें एक्टिव मरीजों की संख्या 2,62,474 है। इससे एक दिन पहले मंगलवार 4 मई को 25,858 नए मामले सामने आए थे, जबकि 3 मई को प्रदेश में 29,192 मामले सामने आये थे।

कोरोना और प्रशासनिक लापरवाही की दोहरी मार

केवल कानपुर में बुधवार को 56 कोरोना मरीजों की मौत हो गई, जबकि सोमवार को 57 मरीज अपनी जान गवां चुके हैं। लापरवाही का आलम ये है कि कानपुर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में 34 वेंटिलेटर खराब पड़े हैं। इस अस्पताल को कोविड हॉस्पिटल में तब्दील किया गया है। यहां कोरोना मरीजों का इलाज चल रहा है, लेकिन कई मरीज अभी भी अस्पताल में बेड के लिए तरस रहे हैं।

हैलट कोविड हॉस्पिटल की अधीक्षक डॉक्टर ज्योति सक्सेना ने मीडिया से बातचीत में कहा कि हॉस्पिटल में बेड तो है, लेकिन वहां तक ऑक्सीजन का कनेक्शन नहीं है, बेड बढ़ा देंगे, लेकिन ऑक्सीजन कैसे पहुंचाएंगे? अस्पताल में 120  कोविड वेंटिलेटर है, जिसमें 34 खराब हैं। इन वेंटिलेटर को सही कराने के लिए हैलट प्रशासन लगातार चिट्ठी लिख रहा है, लेकिन अभी तक जिले का कोई जिम्मेदार अधिकारी इस पर तुरंत संज्ञान लेता हुआ नहीं दिख रहा है।

राजधानी लखनऊ समेत कानपुर यूपी के सभी बड़े शहर कोरोना और प्रशासनिक लापरवाही की दोहरी मार झेल रहे हैं। भले ही मुख्यमंत्री राज्य में किसी भी चीज की कमी न होने का दावा कर रहे हैं लेकिन श्मशान में लगी लाशों की ढ़ेर कुछ और ही कहानी बयां कर रही है। शहरी इलाकों को छोड़ गांवों में भी कोरोना अपने पैर पसार चुका है। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में 10 से ज्यादा जिले हैं। इन जिलों की ज्यादातर आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। सरकारी आंकड़े पूर्वांचल के कुछ जिलों में कोरोना के नए मामलों में कमी के दावे जरूर कर रहे हैं, लेकिन कई जानकारों और स्थानीय लोगों का मानना है कि ऐसा जांच कम होने की वजह से भी हो सकता है।

वाराणसी के सामाजिक कार्यकर्ता अभिषेक सिंह कहते हैं, "प्रशासन पर्याप्त संख्या में जांच ही नहीं कर रहा। पंचायत चुनाव के कारण हर गांव के घर-घर में लोग बीमार हैं। कई तो खुद अस्पताल की हालत देखकर वहां नहीं जाना चाहते और कई जो हिम्मत कर के चले भी जाते हैं तो पता चलता है कि जांच किट ही खत्म हो गई है। अगर महीने भर का रिकॉर्ड उठाकर देख लिया जाए तो पता चलेगा कि जब-जब जांच ज्यादा हुई है, नए मामले बढ़े हैं, शायद यही कारण है कि अब सरकार जांच को धीरे-धीरे कम करने पर लगी है।”

बलिया में घटा कोरोना का जांच, 6500 के बजाए 2300 पर पहुंचा

पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी का हाल तो सबको पता है लेकिन बनारस से लगभग 160 किमी दूर जिला बलिया की रिपोर्ट देखें तो इस महीने के शुरुआती चार दिनों में जांच की संख्या आधी हो गयी। जिला प्रशासन के हेल्थ बुलेटिन के अनुसार जिले में 1 मई को 6572 सैंपल लिए गए और 326 पॉजिटिव मरीज मिले। इसके अगले दिन 2 मई को जांच की संख्या 2008 पर आ गई और इस दिन कुल 283 नए मामले मिले। जिले में 3 और 4 मई को 2189 और 2315 सैम्पल लिए गए और इस दौरान 43 और 489 पॉजिटिव मामले मिले।

कम जांच के सवाल पर न्यूज़क्लिक ने बलिया के सीएमओ डॉ राजेंद्र प्रसाद से बात करने की कोशिश की, लेकिन कई बार फोन करने के बावजूद  हमारा संपर्क नहीं हो पाया। जैसे ही जानकारी मिलेगी खबर अपडेट की जाएगी। वैसे जिले में लगे लॉक डाउन का कोई खास असर नहीं दिख रहा। प्रशासन के सामने ही कोरोना नियमों की जमकर धज्जियां उड़ रही है।

महामारी में जनता ढूंढ रही अपने जनप्रतिनिधि को

वैसे कोरोना काल में बलिया के जनप्रतिनिधि सांसद विरेंद्र सिंह भी अपने लोगों के मदद के लिए दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रहे हैं। सोशल मीडिया पर उनके लापता होने का पोस्टर वायरल हो रहा है। इस पोस्टर में बीजेपी के चुनाव चिन्ह को उलटा दिखाया गया है साथ ही बलियावासियों की तरफ से कहा गया है कि कोरोना काल के बाद से सांसद गायब हैं, जहां कहीं भी दिखने पर सूचित करने की बात भी कही गई है।

बलिया की तरह ही पूर्वांचल में मिर्जापुर, जौनपुर, मऊ, भदोही समेत तमाम इलाकों में टेस्ट की संख्या घटने की खबरें सामने आ रही हैं। ऐसे में प्रदेश सरकार का गांव-गांव में कोविड टेस्टिंग अभियान के तहत दस लाख से अधिक एंटीजन टेस्ट करने का लक्ष्य क्या तस्वीर बदल पाता है इस पर जानकार असमंजस में पड़े हैं।

कोरोना रोकथाम की जिम्मेदारी और बढ़ते मामलों की जवाबदेही

वाराणसी में कोरोना पीड़ितों और उनके परिजनों की मदद में लगे सामाजिक कार्यकर्ता विकास सिंह बताते हैं कि जिलों में जांच की संख्या बढ़ाना एक अच्छा कदम है लेकिन सारी बात क्रियान्वयन पर आकर रुक जाती है। पंचायत चुनाव में प्रचार से लेकर वोटिंग फिर मतगणना गांवों में कोरोना फैलने का प्रमुख कारण है लेकिन जिला अस्पतालों की इस वक्त जो तस्वीर है वो सरकारी दावों से बिल्कुल उलट है।

विकास के मुताबिक ऑक्सीजन सिलेंडर से लेकर अस्पताल में एक मामूली बेड, यहां तक की एंबुलेंस के लिए भी लोगों को संघर्ष करना पड़ रहा है। और  ये सब सरकार और प्रशासन को अच्छी तरह से पता है लेकिन सब कुछ जान-बूझ कर अनदेखा किया जा रहा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की फटकार भी सरकार शायद भूल गई है लेकिन ये कड़वी सच्चाई है कि कोरोना रोकथाम की जिम्मेदारी और बढ़ते मामलों की जवाबदेही दोनों ही सरकार की है।

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