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यूपी: आलू-प्याज की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने में नाकाम योगी सरकार

उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा आलू उत्पादक राज्य है और वहां के कोल्ड स्टोरेज में 30.56 लाख टन आलू जमा है। इसके बावजूद प्रदेश में आलू की कीमतें बढ़ रही हैं।
यूपी

कोरोना महामारी के बीच तेजी से नौकरियां जा रही हैं, रोजगार छिन रहे हैं और लोगों की आय घट रही है। वहीं दूसरी ओर आम लोगों को आलू, प्याज और दाल जैसी मूलभूत वस्तुओं की बढ़ी कीमतों का सामना करना पड़ रहा है। देश के विभिन्न राज्यों में आलू और प्याज की बेतहाशा कीमतें बढ़ने से आम लोगों और आलू किसानों में महंगे बीज को लेकर समस्याएं साफ तौर से देखी जा सकती हैं।

उत्तर प्रदेश जो कि आलू उत्पादन में सबसे आगे है और वहां के कोल्ड स्टोरेज में 30.56 लाख टन आलू जमा है, इसके बावजूद प्रदेश में आलू की कीमतें बढ़ रही हैं। कृषि जानकार और मंडी के छोटे आढ़तियों का मानना है कि इस साल आलू-प्याज की बढ़ी कीमतों के पीछे जमाखोरी मुख्य कारण है।

वहीं हाल ही में कृषि सुधार के नाम पर लाए गए आवश्‍यक वस्‍तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 में अनाज, दलहन, तिलहन के साथ ही प्‍याज और आलू जैसी वस्‍तुओं को आवश्‍यक वस्‍तुओं की सूची से हटा दिया गया है। जिससे जमाखोरों पर सरकार का सीधा अंकुश खत्म हो जाता है।

मुट्ठीभर जमाखोरों का बाजार पर नियंत्रण

केंद्र सरकार द्वारा तीन नए कानून कृषि सुधार और आम जनता व किसान को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से बनाये गए हैं लेकिन वर्तमान समय में बढ़ रही आलू-प्याज की कीमतों से जनसमान्य सबसे अधिक परेशान नजर आता है।

यदि हम सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें तो हमें पता चलता है कि सितम्बर माह में एशिया की सबसे बड़ी प्याज की लासलगांव मंडी में 38.84 फीसदी प्याज की ज्यादा आवक हुई है और पूरे महाराष्ट्र में 53.17 फीसदी प्याज की आवक हुई है यानी महाराष्ट्र की मंडियों में लगभग 19.23 लाख कुंतल प्याज अधिक आया है, फिर भी कीमतें बढ़ रही हैं।

वहीं वर्तमान समय में उपभोक्ताओं को बाजार से पचास से साठ रुपये प्रति किलो आलू खरीदना पड़ रहा है। जबकि उद्यान निदेशालय के रिकॉर्ड के मुताबिक उत्तर प्रदेश के कोल्ड स्टोरेज में 30.56 लाख टन आलू जमा है। आलू की बोवाई में अनुमानित 8 लाख टन आलू, बीज के रूप में इस्तेमाल हो सकता है लेकिन इसके बावजूद कोल्ड स्टोरेज में 22 लाख मीट्रिक टन आलू उपलब्ध है। इसी को देखते हो प्रदेश सरकार ने यह निर्देश दिया है कि 31 अक्टूबर तक सभी कोल्ड स्टोरेज को खाली कर दिया जाय लेकिन बाजार में आलू-प्याज की कीमत पर इसका न के बराबर असर है।

प्रदेश के कोल्ड स्टोरेज में आलू की इतनी अधिक मात्रा में उपलब्धता के बावजूद आलू-प्याज की कीमतें क्यों बढ़ रही हैं? इसके जवाब में कृषि नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा बताते हैं कि "अब तो लोगों को समझना आसान हो जाएगा क्योंकि सरकार खुद ही जमाखोरी लीगलाइज कर दी है। जब सरकार आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम के अंतर्गत व्यापारियों की स्टॉक लिमिट खत्म कर दी है और साथ में उन्हें यह भी अधिकार दे देती है कि वे अपने स्टॉक के बारे में रिपोर्ट नहीं करेंगे तो ऐसा ही होगा।"

बाहरी किसानों से नहीं हो रही प्याज की खरीद

संसद में तीन कृषि बिल पास कराते हुए केंद्र सरकार का दावा था कि इससे किसानों को एक प्रमुख लाभ यह होने वाला है कि किसान कहीं भी जाकर अपनी फसल मन माफिक कीमत पर बेच सकते हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश सीमा से सटे मध्य प्रदेश के रीवा जिले के किसान इलाहाबाद की मुंडेरा सब्जी मंडी में प्याज से लदी गाड़ियां हफ्तों से लेकर खड़े हैं लेकिन उनके प्याज का कोई खरीददार नहीं है।

रीवा जिले के किसान जगन्नाथ सिंह (43) ने एक एकड़ में प्याज लगाया है। वे इस बार की पैदावार से खुश हैं लेकिन प्याज न बिकने से दुखी नजर आते हैं। जगन्नाथ इलाहाबाद की मुंडेरा मंडी में सात दिन से सौ बोरी प्याज लेकर पड़े हैं लेकिन उनकी प्याज का कोई खरीददार नहीं है।

जगन्नाथ सिंह बताते हैं कि सतना, रीवा में प्याज की उतनी बिक्री नहीं है, इंदौर जाना पड़ेगा। वहां तक जाने में प्याज से अधिक गाड़ी का भाड़ा लग जाएगा। पचास रुपये किलो सुनकर इलाहाबाद की मंडी में आया लेकिन सात दिन से मंडी में पड़े रहने के बाद भी प्याज बिक नहीं रहा है।

किसान विधेयक को लेकर हो रहे विरोधों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि "नए प्रावधानों के मुताबिक़ किसान अपनी फ़सल किसी भी बाज़ार में अपनी मनचाही कीमत पर बेच सकेगा। इससे किसानों को अपनी उपज बेचने के अधिक अवसर मिलेंगे" मोदी ने इसे "आज़ादी के बाद किसानों को किसानी में एक नई आज़ादी" देने वाला विधेयक बताया था।

रीवा जिले के किसान जगदीश पटेल (55) ने चार एकड़ में प्याज लगाया है। 400 बोरी की पैदावार हुई है। जगदीश पटेल बताते हैं कि वे एक महीने पहले 125 बोरी प्याज लेकर आया था, जिसमें 16 हजार रुपये खुदाई में लगे थे और 14 हजार रुपये में प्याज बिका था। जगदीश पटेल बताते हैं कि 100 बोरी से अधिक प्याज लेकर आए हैं, छह दिन से मंडी में बैठने के बाद भी कोई खरीददार नहीं है।

मुंडेरा मंडी के आढ़ती सौरभ कुमार इसका मुख्य कारण बड़े व्यापारियों की राजनीति मानते हैं। सौरभ बताते हैं कि किसान अपनी फसल मंडी में तभी बेच सकते हैं जब आढ़ती चाहेंगे। लेकिन मंडी के बड़े व्यापारियों/आढ़तियों का प्याज कोल्ड स्टोरेज में बड़ी मात्रा में उपलब्ध है। वे चाहेंगे पहले उनका डम्प माल बिके।

आलू-प्याज किसानों का लाभ बिचौलियों का

एक तरफ जहां आम उपभोक्ता आलू-प्याज की बढ़ी कीमतों का सामना कर रहे हैं वहीं आलू किसानों को भी महंगे दामों पर आलू बीज खरीदना पड़ रहा है। केंद्रीय खाद्य मंत्री पीयूष गोयल ने डिजिटल कांफ्रेंस में जानकारी दी है कि निजी व्यापारियों ने 7 हजार टन प्याज का आयात किया है, जबकि 25 हजार टन प्याज दिवाली से पहले आ जाएगा।

गोयल के मुताबिक सरकारी संस्था नैफेड भी प्याज का आयात कर रही है। इसके अलावा भूटान से 30 हजार टन आलू भी मंगाया है। उनका कहना है कि स्थानीय बाजार में जल्द इसकी आपूर्ति कर कीमतों को नीचे लाने का प्रयास किया जाएगा।

सरकार द्वारा बाहर से प्याज मंगाने के संदर्भ में किसान नेता योगेंद्र यादव कहते हैं कि दिक्कत यही है कि किसान को जब-जब बेहतर दाम मिल सकते हैं तब सरकार हस्तक्षेप करके उसके दाम गिरवाती है। लेकिन जब किसान के दाम गिरेंगे, जैसे पिछले साल प्याज एक रुपये किलो बिका तब सरकार कुछ नहीं करती। सभी सरकारें बैठी रहती हैं। आलू-प्याज का अलग मामला है लेकिन इससे सरकार की जो नीति है उसका पाखण्ड जाहिर होता है।

कौशाम्बी के आलू किसान उमेश कुमार (35) ने ढाई बीघे से अधिक आलू की खेती की है। उन्होंने बताया कि वे 3200 रुपये कुंतल आलू बीज खरीदकर खेत में लगाए हैं। लेकिन किसान के खेत में आलू होते ही मिट्टी के भाव बिकेगा। उमेश बताते हैं कि इस बार आलू की खेती में लागत बहुत लग गई है, लागत भी निकलेगी इसका भी कुछ पता नहीं है। खेती में यही है कि कभउ लहि जात है कभउ बहि जात है।

अभी आलू इतना महंगा है क्या इसका लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है? इसपर उमेश कुमार कहते हैं कि इसमें आढ़तिया (बिचौलिया) कमाता है। कोल्ड स्टोरेज में पैसा बहुत लग जाता है हमारी इतनी औकात नहीं होती है कि हम स्टोर में पैसा लगाएं। वे आगे कहते हैं कि जो खरीद-खरीद डम्प किये हैं उन्हीं को लाभ मिल रहा है। जब किसानों के खेत में आलू हो जाएगा तो माटी के भाव बिकेगा।

इलाहाबाद मुंडेरा मंडी के आढ़ती अनिल कुमार बताते हैं कि जब लोकल में आलू हो जाता है तो व्यापारी सस्ते दामों में खरीदकर अप्रैल-मई में कोल्ड स्टोर में जमा कर देते हैं और जून से निकालकर अच्छी कीमत में बेचने लगते हैं। वे आगे कहते हैं जब व्यापारी माल बाहर नहीं निकालते तब महंगाई बढ़ जाती है।

कौशाम्बी के ही एक अन्य किसान विनीत कुमार को 2400 रुपये प्रति कुंतल के भाव से आलू बीज खरीदना पड़ा है। लेकिन उन्हें लगता है दिसम्बर के अंत तक जब उनके खेत में आलू हो जाएगा तो आलू 8 या 7 रुपये किलो बिकेगा।

विनीत बताते हैं कि बड़े-बड़े डीलर कोल्ड स्टोर में आलू रोक लेते हैं इसलिए इस समय आलू महंगा बिकता है। कोल्ड स्टोर में महीने के हिसाब से 200 रुपया प्रति कुंतल लगता है, हमारी इतनी पावर नहीं है कि कोल्ड स्टोर में डम्प कर सकें। अगली खेती के लिए पैसे की जरूरत पड़ती है इसलिए समय में ही आलू निकालना पड़ता है।

मुंडेरा मंडी में इलाहाबाद शहर से आलू खरीदने आए श्लोक द्विवेदी पूजा-पाठ कराने का काम करते हैं वे महंगाई को लेकर सरकार से खासा नाराज नजर आते हैं। श्लोक कहते हैं कि जिस तरह से महंगाई बढ़ रही है हम जैसे रोज खाने कमाने वालों के लिए बहुत मुश्किल भरा है, सरकार को इस दिशा में जरूरी कदम उठाना चाहिए।

योगेंद्र यादव मानते हैं कि आलू-प्याज के दाम बढ़ने का लाभ बिचौलियों को मिल रहा है। लेकिन वे इसे राष्ट्रीय संकट के रूप में देखने के पक्षधर नहीं हैं। वे कहते हैं कि दिक्कत यही है कि इसका लाभ सिर्फ बिचौलियों को मिल रहा है और यह सारा मामला बिचौलियों के लिए किया जा रहा है। लेकिन हर बार आलू-प्याज के दाम पर इतना राष्ट्रीय बहस खड़ी करना शायद ठीक नहीं है। यदि हम देखें, पिछले पन्द्रह-बीस साल में आलू-प्याज का दाम अन्य वस्तुओं की अपेक्षा कितना बढ़ा है? सच बात है कि सब्जी और फल के दाम नहीं बढ़ रहे हैं। और यह बहुत बड़ा संकट है इसका मतलब है कि दूसरी चीजों की तुलना में किसान जो पैदा करता है उसका दाम नहीं बढ़ रहा है।

योगेंद्र यादव कहते हैं कि "हमेशा हम केवल इस दृष्टि से देखते हैं कि दाम क्यों बढ़ रहा है, हम क्यों नहीं सोचते कुछ चीजों के दाम क्यों नहीं बढ़ते?"

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं

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