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यूपी चुनाव: लखनऊ में इस बार आसान नहीं है भाजपा की राह...

वैसे तो लखनऊ काफ़ी समय से भगवा पार्टी का गढ़ रहा है, लेकिन 2012 में सपा की लहर में उसको काफ़ी नुक़सान भी हुआ था। इस बार भी माना जा रहा है, भाजपा को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।
 Lucknow
साभार: गूगल

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिये प्रतिदिन राजनीतिक दल उम्मीदवारों की सूचियाँ जारी कर रहे हैं। राजधानी लखनऊ की सभी विधानसभा सीटों के लिए भी उम्मीदवारों की घोषणा लगभग हो चुकी है।

ऐसा लगता रहता है कि नवाबों  के शहर में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (सपा) कड़ी चुनौती दे रही है। दोनों पार्टियों ने काफ़ी समझ बूझ कर टिकट दिये हैं।

दोनों ने किसी का टिकट काटा है तो किसी की सीट बदली है। लखनऊ में छात्र नेता से लेकर मंत्री और पूर्व-मंत्री तक चुनावी मैदान में हैं। राजधानी में 5 विधानसभा सीटें हैं, उत्तर लखनऊ, मध्य लखनऊ, पूर्व लखनऊ, पश्चिम लखनऊ और लखनऊ कैंट (छावनी)।

इसके अलावा मलिहाबाद, बख्शी का तालाब, सरोजनी नगर और मोहनलालगंज सीट भी लखनऊ ज़िले में आती हैं।लखनऊ में चौथे चरण में 23 फ़रवरी को मतदान होना है।

वैसे तो लखनऊ काफ़ी समय से भगवा पार्टी का गढ़ रहा है, लेकिन 2012 में सपा की लहर में उसको काफ़ी नुक़सान भी हुआ था। इस बार भी माना जा रहा है, भाजपा को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।

लखनऊ मध्य

लखनऊ मध्य की सीट पर भी सीधा मुक़ाबला सपा और भाजपा में होता नज़र आ रहा हैं।विधानसभा चुनाव 2012 में यहाँ सपा के रविदास मल्होत्रा ने क़ब्ज़ा जमाया था। लेकिन 2017 में वह यहाँ से हार गये थे। क्यूँकि समझौता होने के बावजूद सपा और कांग्रेस दोनों ने यहाँ से उम्मीदवार उतार दिये। सेक्युलर वोटों का बँटवारा होने के फ़ायदा भाजपा को मिला और उसके उम्मीदवार ब्रजेश पाठक यहाँ से जीत गये। पाठक को भाजपा ने मंत्री भी बनाया, लेकिन इस बार उनको लखनऊ कैंट से टिकट मिला है। 

सपा ने लगातार तीसरी बार रविदास मल्होत्रा पर भरोसा जताया है। वहीं भाजपा ने पार्षद रजनीश गुप्ता को टिकट दिया है। इसके अलावा कांग्रेस ने नागरिकता संशोधन आंदोलन का चेहरा रहीं सदफ़ जाफ़र को इस सीट से टिकट दिया है।

लखनऊ पश्चिम

लखनऊ पश्चिम एक महत्वपूर्ण सीट है, जहाँ 1989 से 2007 तक लगातार भगवा पार्टी का उम्मीदवार जीता।लेकिन 2009 में भारतीय जनता पार्टी के क़द्दावर नेता और लखनऊ पश्चिम के विधायक लालजी टंडन सांसद हो गये।जिसके बाद यहाँ भाजपा कमज़ोर हो गई और 2009 उप-चुनाव में कांग्रेस के श्याम किशोर शुक्ला जीते गये। इसके बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा के रेहान नईम विजय हुए। 

विधानसभा चुनाव 2017 में यह सीट वापस भाजपा के खाते में चली गई, यहाँ से सुरेश कुमार श्रीवास्तव जीते, लेकिन उनकी 2021 में कोविड-19 से मृत्यु हो गई। सपा ने इस सीट से बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) से आये अरमान ख़ान को मैदान में उतरा है जिनका मुक़ाबला भाजपा के कायस्थ नेता अंजनी श्रीवास्तव से होगा।

लखनऊ उत्तर

लखनऊ उत्तर सीट पर भी सपा और भाजपा का मुक़ाबला होता नज़र आ रहा है। सपा के प्रो. अभिषेक मिश्रा ने इस सीट पर दो बार 2012 और 2017 में चुनाव लड़ा था। वह 2012 में चुनाव जीते और अखिलेश सरकार में मंत्री भी बने लेकिन 2017 में भाजपा के डॉ. नीरज बोरा से हार गये। सपा ने इस बार छात्र नेता पूजा शुक्ला को टिकट दिया है। लेकिन भाजपा ने डॉ. बोरा को एक बार फ़िर मैदान में उतारा है।

माना जा रहा है कि नगरिकता संशोधन क़ानून के विरुद्ध घंटाघर पर आंदोलन में शामिल पूजा को मुस्लिम समाज का समर्थन हासिल है। इसके अलावा उनको अपने “ब्राह्मण” समाज से भी मदद मिल सकती है। विधानसभा चुनाव 2012 में इस सीट पर ब्राह्मण समाज का झुकाव सपा की तरफ़ देखा गया था।

लखनऊ (कैंट) छावनी

लखनऊ (कैंट) छावनी सीट की चर्चा इस चुनाव में सबसे ज़्यादा रही है। इस सीट पर भाजपा के कई क़द्दावर नेताओं की नज़र थी। अपर्णा यादव ने सपा को इसी सीट से टिकट न मिलने के कारण छोड़ा था। पार्टी सूत्र बताते हैं कि उप-मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा, रीता बहुगुणा जोशी के बेटे-मयंक जोशी और मौजूदा विधायक सुरेश चंद्रा तिवारी समेत कई बड़े नाम इस सीट टिकट की दौड़ में थे।

कैंट सीट से भाजपा ने क़ानून मंत्री ब्रजेश पाठक को टिकट दिया है। माना जाता है यह भाजपा की सुरक्षित सीट है। पाठक पिछला चुनाव लखनऊ मध्य से लड़े थे। लेकिन 2012 में कैंट सीट से कांग्रेस के टिकट पर डॉ. रीता बहुगुणा जोशी जीती थीं। इस बार सपा ने यहाँ से 3 बार के सभासद राजू गांधी को टिकट दिया है।

लखनऊ पूर्व 

लखनऊ पूर्व सीट पर पिछले 30 वर्षों (1991) से सत्तारूढ़ भाजपा का क़ब्ज़ा है। जब  2012 में सपा की ज़बर्दस्त लहर के दौरान लखनऊ शहर के पांच सीटों में महज़ यहीं से बीजेपी प्रत्याशी जीता था। जबकि बाक़ी चार सीटों पर भगवा पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था।

भाजपा ने निवर्तमान विधायक और योगी सरकार के मंत्री आशुतोष टंडन पर भरोसा जताया है।वहीं मुख्य विपक्षी दल सपा ने पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनुराग भदौरिया को टिकट दिया है।

मलिहाबाद सीट

मलिहाबाद सीट, मोहनलालगंज (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) की पांच विधानसभा क्षेत्रों में आती है।यह एक नई सीट है जहां से 2012 में सपा के इंदल कुमार रावत विधायक चुने गये थे। मलिहाबाद में मौजूदा विधायक और केंद्रीय मंत्री मंत्री कौशल किशोर की पत्नी जय देवी पर भाजपा ने दोबारा भरोसा दिखाया है। 

वहीं विधानसभा क्षेत्र से सपा के पूर्व विधायक इंदल कुमार रावत ने टिकट न मिलने से नाराज होकर पार्टी से इस्तीफा दे दिया। हालाँकि कांग्रेस ने उनको अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है। मलिहाबाद विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी ने सोनू कनौजिया को टिकट दिया है।

बख्शी का तालाब

बख्शी का तालाब  राजधानी लखनऊ की एक तहसील है और यह विधानसभा सीट 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थी। बख्शी का तालाब में 2012 पहली बार  चुनाव हुए थे। उस समय 2012 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से समाजवादी पार्टी (सपा) के उम्मीदवार गोमती यादव को जीत मिली थी। यादव ने बीएसपी के नकुल दुबे को हराया था।

लेकिन 2017 का जनादेश भाजपा के अविनाश त्रिवेदी के पक्ष में आया। मौजूदा चुनाव में सपा ने एक फ़िर गोमती यादव की को टिकट दिया। वहीं भाजपा ने इस बार योगेश शुक्ला को टिकट दिया है। 

सरोजनी नगर

सरोजनी नगर सीट पर भाजपा टिकट को लेकर पार्टी के दो नेताओं मंत्री स्वाति सिंह और उनके पति दयाशंकर सिंह के बीच ही घमासान चल रहा था। पार्टी ने पूर्व पुलिस अधिकारी राजेश्वर सिंह को सरोजनी नगर सीट से प्रत्याशी बनाकर दोनों की दावेदारी को भी बिना किसी नाराज़गी के ख़त्म कर दिया। बता दें कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के संयुक्त निदेशक रहे राजेश्वर सिंह की वीआरएस मंजूरी के 24 घंटे के अंदर ही भाजपा ने लखनऊ के सरोजनी नगर से टिकट दे दिया। राजेश्वर सिंह के सामने सपा ने अखिलेश हुकूमत के मंत्री प्रो. अभिषेक मिश्रा को उतारा है। प्रो. अभिषेक 2017 में लखनऊ उत्तर से सपा के प्रत्याशी थे। 

मोहनलालगंज सीट

मोहनलालगंज विधानसभा सीट की गिनती अनुसूचित जाति के मतदाताओं की बहुलता वाली सीटों में होती है। एक अनुमान के मुताबिक यहां सबसे ज्यादा अनुसूचित जाति के मतदाता हैं। यहाँ कुर्मी, यादव और कश्यप मतदाता सीट का चुनाव परिणाम निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाते हैं।

इस सीट से 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा के उम्मीदवार अंबरीश सिंह पुष्कर को जीत मिली थी। जिन्होंने बसपा के राम बहादुर को हराया दिया था। मोहनलालगंज विधानसभा सीट से कभी भी भाजपा का  उम्मीदवार जीत नहीं सका है। भाजपा ने यहाँ से अमरेश कुमार को टिकट दिया है।सपा ने पुष्कर को एक बार फ़िर मैदान में उतरा है।

लखनऊ के मुद्दे

मौजूदा वक़्त में महंगाई, रोज़गार, और ख़राब सड़कों की समस्या को लेकर जनता में नाराज़गी है। युवाओं में “हिन्दुत्व” से ज़्यादा रोज़गार पर चर्चा हो रही है।

युवाओं के बीच घटते रोज़गार को लेकर चिंता है। जबकि सरकार का दावा है कि उसने 4.5 लाख नौकरियाँ दी हैं। हालाँकि भाजपा से सपा में आये स्वामी प्रसाद मौर्य का कहना है कि इतने बड़े प्रदेश में 4.5 लाख नौकरियों का कोई अर्थ नहीं है।

स्वास्थ्य व्यवस्था पर भी सवाल उठ रहे हैं। कोविड की दूसरी लहर के दौरान मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर स्वयं क़ानून मंत्री ब्रजेश पाठक ने भी सवाल उठाए थे।

ग्रामीण इलाक़ों में आवारा पशु और खाद की समस्या चर्चा पर हो रही है। इसके अलावा एमएसपी और गन्ने क़ीमतों पर भी पूरे अवध इलाक़े में चर्चा चल रही है।

लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों में प्रतियोगी परीक्षाओं के पर्चे लीक होने से भी ग़ुस्सा है। इसके अलावा छात्र आरआरबी-एनटीपीसी के नतीजों में गड़बड़ी, और छात्रों पर प्रयागराज में हुए पुलिस दमन से भी नाराज़ हैं।

राजधानी की सड़क पर गड्ढे और रोज़ लगने वाला जाम भी चुनाव का मुद्दा है। जीएसटी, नोट बंदी और कोविड-19 की तालाबंदी ने लखनऊ के प्रसिद्ध “चिकन” कारोबार को ठप कर दिया है।जिनसे बड़ी संख्या में बेरोज़गार हुए लोग रोज़गार से बड़ा चुनावी मुद्दा किसी चीज़ को नहीं मानते हैं। नौकरी मांगने के लिए भी प्रदर्शन करने वालों हुए लाठचार्ज से लोगों में ग़ुस्सा है। 

लखनऊ के मतदाता कहते हैं कि भाजपा या कोई भी पार्टी हो, अगर  चुनाव में धार्मिक मुद्दे बढ़ेंगे तो यह जनता के लिए काफी नुक़सान दायक है। मतदाता मानते हैं कि कोई भी सरकार सत्ता में आये लेकिन उसका प्रथम उद्देशय यही होना चाहिए कि वह जनता के हितों के लिए काम करे न कि हिन्दु-मुस्लिम की राजनीति की जाये। 

प्रदेश में 69000 शिक्षक भर्ती का मुद्दा भी लोगों के ज़ेहन में अभी ज़िंदा है। वहीं ग्रामीण लोगों का कहना है कि पिछले दो साल से शिक्षा व्यवस्था चरमरा गई है। वही बच्चे पढ़ाई कर पा रहे हैं, जिनके पास लैपटॉप और मोबाइल है। गरीब बच्चे शिक्षा से दूर हो रहे हैं। 

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