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यूपी चुनाव: मोदी की ‘आएंगे तो योगी ही’ से अलग नितिन गडकरी की लाइन

अभी तय नहीं कौन आएंगे और कौन जाएंगे लेकिन ‘आएंगे तो योगी ही’ के नारों से लबरेज़ योगी और यूपी बीजेपी के समर्थकों को कहीं निराश न होना पड़ा जाए, क्योंकि नितिन गडकरी के बयान ने कई कयासों को जन्म दे दिया है।
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ज़िंदगी का खेल शतरंज से भी ख़तरनाक निकला, मैं हारा भी तो अपनों से ही।

कहीं ऐसा न हो जाए कि 10 मार्च के बाद योगी आदित्यनाथ इन्ही लाइनों को दोहराते हुए मिलें, बीजेपी के बड़े नेता और केंद्र सरकार में परिवहन मंत्री की ओर से दिए गए बयान ने न सिर्फ योगी आदित्यनाथ के समर्थकों की चिंताए बढ़ा दी हैं, बल्कि ख़ुद योगी आदित्यनाथ के माथे पर भी पसीना बढ़ने लगा है।

12 फरवरी यानी शनिवार के दिन कन्नौज में रैली के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था... ‘’आज पूरा देश जान रहा है कि यूपी में भाजपा ही आएगी। पूरा यूपी भी जान रहा है, आएंगे तो योगी ही’’। लेकिन उनकी कैबिनेट में परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने नई लाइन ली है। 15 फरवरी यानी मंगलवार को भाजपा का प्रचार करने प्रयागराज पहुंचे नितिन गडकरी ने योगी आदित्यनाथ के दोबारा मुख्यमंत्री बनने पर संशय पैदा कर दिया।

हालांकि जिस तरह का चुनाव चल रहा है उसमें तो अभी यह भी तय नहीं कि बीजेपी दोबारा सत्ता में लौटेगी या नहीं। इसलिए कौन आएंगे-कौन जाएंगे की बहस भी अभी बेमानी लगती है। लेकिन इस तरह के बयान यह भी बताते हैं कि बीजेपी में सबकुछ ठीक नहीं है।

विधायक और पार्टी तय करेगी मुख्यमंत्री’

नितिन गडकरी ने कहा कि- “अभी हम योगी जी के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहे हैं, और स्वाभाविक रूप से मुख्यमंत्री का चयन चुनकर आए विधायक और पार्टी मिलकर करेंगे। वो योगी हों या फिर कोई हो। उनका मुख्यमंत्री के तौर पर चुनाव हमारी लोकतांत्रिक परंपरा है। ये बात तो पार्टी के लेवल पर तय होती है।”

हालांकि नितिन गडकरी के इस बयान को तीन तरह से समझा जा सकता है-

सबसे पहले तो इसे एक औपचारिक बयान मानकर छोड़ा जा सकता है, क्योंकि हर नेता यही कहता है कि उसकी पार्टी में बहुत लोकतंत्र है और नेता का चुनाव तो चुने हुए विधायक ही करेंगे। आधिकारिक तौर पर भी ऐसा ही होना चाहिए। लेकिन हकीकत सब जानते हैं कि चुनाव तो आलाकमान ही करता है।

दूसरा इसे इस तरह लिया जा सकता है कि ताकि बाग़ी विधायक, नाराज़ कार्यकर्ता भी खुश रहे कि उनका या उनके नेता का भी नंबर लग सकता है। आपको मालूम ही है कि लंबे समय से 100 से ज्यादा बीजेपी विधायक योगी आदित्यनाथ के खिलाफ बग़ावती तेवर अपनाए हैं। एक बार तो खुलकर बगावत हो ही गई थी, लेकिन उसे दबा दिया गया। ऐसे में नितिन गडकरी के बयान से बाग़ी विधायकों को संतोष ज़रूर हुआ होगा कि अभी उनके नेता को भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया जा सकता है।

इसी क्रम में यह कहा जा सकता है कि इस तरह की बयानबाज़ी से नाराज वोटर को भी मनाया जाता है। ये सभी कहते हैं कि ठाकुर समाज से आने वाले योगी आदित्यनाथ के राज में दलित, पिछड़ों और यहां तक कि ब्राह्मणों की भी सुनवाई नहीं हुई। शायद यही वजह है कि ऐन चुनाव के समय पिछड़े समाज के कई कद्दावर नेता बीजेपी छोड़कर चले गए।

अब ऐसे बयान सबका समर्थन साधने और मरहम लगाने के काम आते हैं। ताकि नेता के साथ जनता को भी मनाया जा सके।

इन तीन पहलुओं के बावजूद ‘’आएंगे तो योगी ही’’ से इतर नितिन गडकरी की लाइन ने जहां योगी समर्थकों की चिंता बढ़ा दी है, तो विपक्ष ने भी हमलावर होते देर नहीं लगाई।

योगीजी सिर्फ पोस्टर बॉय हैं- कांग्रेस

अयोध्या ज़िले में कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश यादव से जब हमने सवाल किया कि क्या सिर्फ योगी आदित्यनाथ का इस्तेमाल किया जा रहा है? इस पर अखिलेश बोले कि ‘’योगी जी को आगे चलकर सिर्फ मठ में रहना है, क्योंकि भाजपा सिर्फ उन्हें मुख्यमंत्री पद का लॉलीपॉप दे रही है। अखिलेश ने कहा कि योगी आदित्यनाथ यूपी चुनाव में भाजपा के लिए सिर्फ पोस्टर बॉय हैं, इससे ज्यादा कुछ नहीं, वो सिर्फ मुंह से ठांय-ठांय करते हैं। अखिलेश ने आगे कहा- भाजपा की मुख्यमंत्री वाली चर्चा इसलिए भी दिखावा है क्योंकि उन्हें खुद पता है वो पूरी तरह से साफ हो रहे हैं, जनता उनके पिछले पांच सालों के काम से ऊब चुकी है, कुछ काम-धाम नहीं कराया है, आज सड़क में गड्ढे नहीं बल्कि गड्ढे में सड़क है। विकास के वादे सिर्फ पोस्टरों, बैनरों और इश्तिहारों तक सीमित हैं। अब प्रदेश में परिवर्तन की बयार बह रही है।‘’   

भाजपा पहले अपना कन्फ्यूज़न दूर करे- सपा

कांग्रेस के बाद समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अब्दुल हफीज़ गांधी ने भी न्यूज़क्लिक से बात की... उन्होंने कहा, भारतीय जनता पार्टी हमेशा कन्फ्यूज़न पैदा करती है, उन्हें पहले ये तय कर लेना चाहिए कि योगी के नेतृत्व में लड़ना है या नहीं। अब्दुल हफीज़ ने कहा कि पिछले पांच सालों में कुछ काम तो किए नहीं है, यही डर उनकी पार्टी को सता रहा है। वहीं जब हमने अब्दुल हफीज़ गांधी से सवाल किया कि 2017 के वक्त केशव प्रसाद मौर्य अध्यक्ष थे, उन्हे मुख्यमंत्री बनाए जाने की चर्चा थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस पर उन्होंने कहा केशव मौर्य प्रयागराज से ही आते हैं, नितिन गडकरी ने भी प्रयागराज में ही ये बयान दिया है, जिसके बाद मतलब साफ है कि उन्हें आगे क्यों नहीं किया जा रहा है।

"भाजपा में नेतृत्व की कमी नहीं"

हालांकि ब्राह्मण संरक्षण सेवा फाउंडेशन के अध्यक्ष बिन्दुसार पांडे से जब न्यूज़ क्लिक ने बात की, तो वे उनका समर्थन करते नज़र आए, बिन्दुसार पांडे ने कहा "भारतीय जनता पार्टी में नेतृत्व की कमी नहीं है, भारतीय जनता पार्टी का प्रत्येक कार्यकर्ता योगी और अनेकों नेताओ की कार्यशैली की क्षमता रखता है, माननीय नितिन गडकरी जी बहुत वरिष्ठ और अनुभवी नेता हैं, वे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं, यूपी चुनाव पर उनका यह बयान कार्यकर्ताओं और प्रदेश की जनता के लिए बड़ा संदेश है।"

"गडकरी नहीं चाहते योगी बनें सीएम"

जबकि भारतीय समाज कल्याण सेवा समिति के अध्यक्ष रजनीश दीक्षित ने इस बयान को आपसी विवाद करार दिया है, उन्होंने कहा "केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी जी का बयान भाजपा में आपसी विवाद को दर्शाता है भाजपा के कई नेता चाहते हैं की योगी मुख्य्मंत्री न बनें।"

कौन होगा अगला मुख्यमंत्री?

उत्तर प्रदेश में इस बार कड़ी टक्कर हैं, ऐसे में प्रधानमंत्री और परिवहन मंत्री के अलग-अलग बयानों ने संशय तो पैदा कर ही दिया है, जिसके बाद लोगों के मन में सवाल उठना लाज़मी है कि भाजपा जीती तो मुख्यमंत्री कौन होगा?

जहां कांग्रेस की ओर से योगी आदित्यनाथ को सिर्फ पोस्टर बॉय कहा जा रहा है तो समाजवादी पार्टी ने कहा है कि भाजपा को साफ करना चाहिए का इनकी पार्टी में मुख्यमंत्री का चेहरा कौन है? वैसे पिछले पांच सालों में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच की रार अक्सर देखने को मिलती रही है। वहीं दूसरी बात यह कि प्रयागराज की धरती से नितिन गडकरी का बयान और ज्यादा सियासी गर्मी बढ़ाता है।

केशव मौर्य कर दिए गए थे साइडलाइन

ऐसे में हम आपको याद दिलाते हैं साल 2017 के चुनावों की कहानी... जब भाजपा ने केशव प्रसाद मौर्य की अध्यक्षता में बंपर जीत दर्ज की लेकिन उन्हें साइडलाइन कर दिया गया था। अचानक गोरखपुर से सांसद योगी आदित्यनाथ की एंट्री हुई और उनके नाम पर मुहर लग गई। हालांकि पार्टी ने डैमेज कंट्रोल का नाम देकर मौर्य को डिप्टी सीएम बना दिया गया। हालांकि केशव प्रसाद मौर्य ने 2017 में पिछड़ने के बाद अब तक हार नहीं मानी है यही कारण है कि 2022 में ‘’मुख्यमंत्री कौन होगा?’’ जैसे सवाल पर वो हमेशा दो टूक जवाब देते हैं।

कट्टर हिंदू की छवि में जुटे मौर्य

क्योंकि विकास से कोसो दूर रहकर भारतीय जनता पार्टी हमेशा कट्टर हिंदू के तौर पर ही चुनाव लड़ती रही है। यही कारण है कि केशव प्रसाद मौर्य ‘’अब मथुरा की बारी है’’,  ‘’लुंगी और जालीदार टोपी वाले’’ जैसे बयानों से पार्टी के अंदर अपनी छवि फायर ब्रांड हिंदू नेता वाली छवि गढ़ की स्थिति मजबूत करने में लगे हुए हैं।

योगी से एक कदम आगे केपी मौर्य

केशव प्रसाद मौर्य हमेशा योगी आदित्यनाथ से एक कदम आगे रहने की कोशिश करते हैं, कभी योगी के विरोधी विधायक राधा मोहन दास के घर जाकर भोजन करते हैं तो कभी बिपिन रावत के साथ क्रैश हुए हेलीकॉप्टर में मौजूद रहे आगरा के विंग कमांडर पृथ्वीराज चौहान के पिता से मुलाकात करते हैं। जबकि यही काम मुख्यमंत्री योगी एक दिन बाद करते हैं।

पीएम से केपी मौर्य की मुलाकात

नितिन गडकरी की लाइन इस बात से और पुख्ता हो जाती है, कि पिछले दिनों केशव प्रसाद मौर्य को खुद प्रधानमंत्री ने मुलाकात के लिए दिल्ली बुलाया था। मुलाकात की तस्वीरें ख़ुद केशव प्रसाद मौर्य ने अपने ट्विटर हैंडल से ट्वीट की थीं। हालांकि हमेशा मुस्कुराते रहने वाले प्रधानमंत्री इन तस्वीरों में एकदम सीरियस लग रहे थे। अब क्या बात हुआ क्या नहीं, अगर भाजपा जीत जाती है तो 10 मार्च को ये भी साफ हो जाएगा।

कहीं ब्राह्मणों के नेता एके शर्मा तो विकल्प नहीं?

आपको याद होगा कि साल 2017 में भाजपा ने जहां पिछड़ों को साधने के लिए केशव प्रसाद मौर्य को डिप्टी सीएम बनाया था, तो ब्राह्मणों को खुश रखने के लिए दिनेश शर्मा भी उप मुख्यमंत्री बनाए गए थे। और फिर पिछले पांच सालों में जिस तरह ब्राह्मणों ने भाजपा पर सिर्फ ठाकुरों को आगे रखना का आरोप लगाया है, वो भी इनके लिए चिंता का विषय है। इसी कड़ी को अगर बलिया से पूर्व बीजेपी सांसद हरिनारायण राजभर के बयान से जोड़ें तो पता चलता है कि मुख्यमंत्री की रेस में एके शर्मा भी बने हुए हैं। राजभर ने भरी सभा में बयान दिया था कि ‘’हम अपने बचे हुए जीवन में एके शर्मा को मुख्यमंत्री बनाने के लिए काम करेंगे’’। जो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था। अब अगर ऐसा होता है तो साफ तौर पर भाजपा ठाकुरों और रूठे हुए ब्राह्मणों को 2024 के लिए अपनी ओर करना चाहेगी।

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