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UPPCL पीएफ घोटाला : क्या है डीएचएफएल और बीजेपी का कनेक्शन!

अपने पैसे की इस तरह 'लूट' देखकर बिजली विभाग के कर्मचारी बेहद दुख और गुस्से में हैं। प्रदेश के बिजली कर्मचारियों ने मंगलवार को विरोध प्रदर्शन किया और 18 नवंबर से दो दिवसीय कार्य बहिष्कार करने का फैसला किया है।
UPPCL and BJP Connection

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार एक बार फिर सुर्खियों में है। मामला उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) के कर्मचारी भविष्य निधि (पीएफ) के करीब 2,600 करोड़ रुपये के गलत तरीके से निजी संस्था डीएचएफएल (DHFL) में निवेश से जुड़ा हुआ है। जिसके चलते बीते मंगलवार, 5 नवंबर को प्रदेश के बिजली कर्मचारियों ने विरोध प्रदर्शन किया और 18 नवंबर से दो दिवसीय कार्य बहिष्कार करने का फैसला किया है।

डीएचएफएल यानी दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड, ये वही कंपनी है जिसके लिए खोजी पत्रकारिता करने वाली न्यूज़ वेबसाइट कोबरा-पोस्ट ने जनवरी, 2019 में एक स्टिंग के जरिए दावा किया था कि डीएचएफएल ने 31000 करोड़ रुपये का घोटाला किया है। कोबरा-पोस्ट का मानना था कि यह भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी क्षेत्र का घोटाला है और इसने भाजपा को अवैध तरीके से चंदा दिया है। कोबरा-पोस्ट स्टिंग के मुताबिक, हाउसिंग लोन देने वाली कंपनी डीएचएफएल ने कई सेल कंपनियों को करोड़ों रुपये का लोन दिया और फिर वही रुपया वापस उन्हीं कंपनियों के पास आ गया, जिनके मालिक डीएचएफएल के प्रमोटर हैं।

स्टोरी के मुताबिक, “यह घोटाला न केवल एनबीएफसी के नकारा कॉरपोरेट गवर्नेंस पर उंगली उठाता है बल्कि ये सार्वजनिक निकायों की लापरवाही या कहें मिलीभगत पर भी गंभीर खड़ा कर देता है। यह साफ़ तौर पर सरकारी यानी जनता के पैसे का प्राइवेट लोगों द्वारा दुरुपयोग और गैरकानूनी रूप से इस्तेमाल करने का मामला है।"

कोबरा-पोस्ट द्वारा उजागर किए गए इस कथित घोटाले का एक दिलचस्प हिस्सा ये भी था कि 2014-15 और 2016-17 के बीच तीन डेवलपर्स द्वारा 19.5 करोड़ रुपये का चंदा सत्ता पर काबिज बीजेपी को दिया गया। ये तीनों डेवलपर वधावन से जुड़े हुए हैं।

डीएचएफएल के प्रमोटरों से हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय ने भी अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के एक पूर्व सहयोगी इकबाल मिर्ची की एक कंपनी के साथ संबंधों को लेकर पूछताछ की है। अब पक्ष-विपक्ष आरोप-प्रत्यारोपों की गेंद एक-दूसरे के पाले में उछाल रहे हैं, लेकिन गंभीर सवाल ये है कि आखिर कर्मचारियों के भविष्य निधि के करोड़ों रुपये में अनियमितता का जिम्मेदार कौन है?

क्या है पूरा मामला?

बीते शनिवार 2 नंबवर को इस मामले ने उस वक्त तूल पकड़ लिया जब मुंबई स्थित विवादास्पद कंपनी डीएचएफएल में यूपी विद्युत निगम लिमिटेड (यूपीपीसीएल) के एक विवादास्पद निर्णय के तहत कथित रूप से अपने कर्मचारियों के 2,600 करोड़ रुपये के फंड के निवेश की खबर सामने आई। दरअसल मुंबई हाईकोर्ट ने डीएचएफएल द्वारा किए जाने वाले सभी भुगतानों के ऊपर रोक लगा दी है। इस कथित सौदे की जानकारी मिलते ही लखनऊ में बिजली विभाग के कर्मचारियों में हड़कंप मचा गया। जिसके बाद मंगलवार को प्रदेश भर के विद्युत कर्मचारियों ने धरना प्रदर्शन किया।

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गौरतलब है कि इस मामले को सियासी रंग लेते भी देर नहीं लगी और शनिवार दोपहर को ही कांग्रेस की यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी ने ट्वीट कर योगी सरकार को सवालों के कठघरें में खड़ा कर पूछा, 'किसका हित साधने के लिए कर्मचारियों की दो हजार करोड़ से भी ऊपर की गाढ़ी कमाई इस तरह कंपनी में लगा दी गई, कर्मचारियों के भविष्य से खिलवाड़ क्या जायज है ?

इसके बाद समाजवादी पार्टी और बाजेपी भी मैदान में कूद पड़ी। एक ओर जहां पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश ने इस घोटाले के चलते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का इस्तीफा मांग लिया तो वहीं प्रदेश के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने आरोपों की सुईं पूर्व सपा सरकार की ओर ही घुमा दी। उन्होंन कहा कि डीएचएफएल में निवेश का फैसला अखिलेश सरकार के समय में ही 21 अप्रैल 2014 को हुआ था।

अखिलेश यादव ने भी इस पर पटलवार करते हुए प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि सपा के शासनकाल में कर्मचारियों की भविष्य निधि का एक भी पैसा डीएचएफएल में निवेश नहीं किया गया। अखिलेश ने आरोप लगाया कि बीजेपी ने डीएचएफएल से करीब 20 करोड़ रुपये का चंदा लिया है। ऐसे में ऊर्जा मंत्री बताएं कि ये रिश्ता क्या कहलाता है?

इसी बीच कांग्रेस के यूपी चीफ अजय कुमार लल्लू ने बुधवार, 6 नवंबर को राज्य के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा पर हमला बोलते हुए सवाल किया कि आखिर बीजेपी को सबसे ज्यादा व्यक्तिगत चंदा देने वाले वधावन की निजी कंपनी डीएचएफएल को ही नियमों को ताक पर रखते हुए कर्मचारियों की जीवन की पूंजी क्यों सौंपी गई?

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अजय कुमार ने आगे कहा कि पीएफ की राशि डीएचएफएल में निवेश करने का मुद्दा केवल भ्रष्टाचार ही नहीं, बल्कि देश की सुरक्षा से भी जुड़ा है। ऊर्जा मंत्री को बताना चाहिए कि वह सितंबर-अक्टूबर 2017 में दुबई क्यों गए थे और किससे मिले थे?
इस मामले की जांच होनी चाहिए की उनके वहां जाने का क्या प्रयोजन था और उनकी वहां किन लोगों से मुलाकात हुई थी। यह दौरा उसी समय किया गया जब डीएचएफएल का पैसा सनब्लिंक को जा रहा था। ऊर्जा मंत्री 10 दिनों की इस आधिकारिक यात्रा के उद्देश्य बताएं।

उत्तर प्रदेश विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा कि ट्रस्ट के माध्यम से कर्मचारियों के जीपीएफ व सीपीएफ की धनरशि गैरकानूनी ढंग से अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक की सूची में न आने वाले डीएचएफएल में निवेश की गई जिसकी जिम्मेदारी पावर कार्पोरेशन व ट्रस्ट के चेयरमैन की होती है। डीएचएफएल में निवेश ट्रस्ट द्वारा लागू गाइडलाइन्स का उल्लंघन है। इनमें किया गया निवेश नियम विरूद्ध व असुरक्षित है। डीएचएफएल में निवेश करना ही गलत था, जबकि एफडी में रकम लगाना तो और भी असुरक्षित था, जिसके लिए चेयरमैन पर कार्रवाई किया जाना जरूरी है।

समिति के नेता नारायण सिंह ने कहा कि सामान्य भविष्य निधि (जीपीएफ) की 2631.20 करोड़ रुपये की धनराशि दीवान हाउसिंग फाइनेंस कारपोरेशन लिमिटेड में निवेशित की गई, जिसमें से 1185.5 करोड़ रुपये ट्रस्ट कार्यालय को प्राप्त हो चुका है और 1445.7 करोड़ रुपये की प्राप्ति अभी भी लंबित है। इसी प्रकार कर्मचारियों की अंशदायी भविष्य निधि (सीपीएफ) की 1491.50 करोड़ रुपये की धनराशि दीवान हाउसिंग फाइनेंस कारपोरेशन लिमिटेड में निवेशित की गई, जिसमें से 669.30 करोड़ रुपये ट्रस्ट कार्यालय को प्राप्त हो चुका है एवं 822.20 करोड़ प्राप्त होना अभी लम्बित है। इस प्रकार 2267.90 करोड़ रुपये (मूलधन) दीवान हाउसिंग फाइनेंस कारपोरेशन लिमिटेड से प्राप्त किया जाना लंबित है।

उन्होंने कहा कि हमारी मांग है कि मामले की निष्पक्ष जांच हो। कर्मचारियों के जीपीएफ व सीपीएफ भुगतान को ईपीएफओ में हस्तान्तरित करने के बजाय ट्रस्ट की कार्यप्रणाली पारदर्शी बनायी जाये और इसकी नियमित बैठक कर उसके कार्यवृत्त सार्वजनिक किये जायें। साथ ही डीएचएफएल कम्पनी में निवेश के जिम्मेदार पावर कारपोरेशन के चेयरमैन व प्रबन्ध निदेशक को तत्काल हटाया जाये।

यूपीपीसीएल में अभियंता पद पर कार्यरत अखिलेश सिंह ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए निगम प्रबंधन के कार्य प्रणाली की मंशा पर सवाल उठाते हुए पूछा कि भला कैसे गलत ढंग से कर्मचारियों के खून-पसीने की करोड़ों की धनराशि निजी कंपनी को सौंप दी गई।

उन्होंने आगे कहा कि अगर मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती है, तो सभी सामूहिक रूप से आंदोलन को बाध्य होंगे।

बहराइच बिजली कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सुशील कुमार गोस्वामी ने कहा कि जनपद में मौजूदा समय में 575 संविदाकर्मी कार्य कर रहें हैं। लेकिन कर्मचारियों का ईपीएफ संबंधी रिकार्ड विभाग द्वारा उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है। कई बार पत्र सौंपने के बावजूद भी इस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। यह ईपीएफ का रिकॉर्ड उपलब्ध न कराना भी एक बड़े घोटाले को दर्शाता है।

बलिया जनपद के अधिशासी अभियंता प्रमोद कुमार ने न्यू़ज़क्लिक से बातचीत में कहा कि हमारी प्रदेश सरकार से मांग है कि इस घोटाले में लिप्त सभी व्यक्तियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाए और कटौती की गई धनराशि को वापस कर कर्मचारियों के पक्ष में सुरक्षित करें। साथ ही कर्मचारियों से की गई कटौती तत्काल वापस कराया जाना सुनिश्चित कराया जाए।

बता दें कि भविष्य निधि घोटाले पर मचे हंगामे के बीच पावर कारपोरेशन प्रबंधन ने मंगलवार, 5 नवंबर को कर्मचारियों के इस मद में जमा करीब 15.5 करोड़ रुपये जारी किए। पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष आलोक कुमार ने मीडिया को बताया कि कुल 179 कार्मिकों को जीपीएफ से 14.5 करोड़ और सीपीएफ फंड से एडवांस के तौर पर एक करोड़ रुपये जारी किए गए हैैं।

मंगलवार देर शाम इस मामले में पुलिस ने यूपी-पीसीएल के दो अफसरों निदेशक वित्त सुधांशु त्रिवेदी और महाप्रबंधक कॉमर्शियल पीके गुप्ता को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है। इसके अलावा यूपी-पीसीएल के पूर्व एमडी एपी मिश्र को भी गिरफ्तार किया है। इस मामले की जांच यूपी पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) कर रही है। योगी सरकार ने मामले में सीबीआई जांच की सिफारिश भी की है।

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