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एसकेएम के बैनर तले फिर एक बड़े आंदोलन की राह पर देश का किसान

* किसान आंदोलन की दूसरी वर्षगांठ पर लखनऊ में किसानों की महापंचायत, * कई जगहों पर किसानों को महापंचायत में आने से रोका गया।, * टैक्टर के साथ ट्विटर भी चलाना सीखे किसान: टिकैत
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अभी तो यह अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है ... किसान शहीदों का बलिदान याद करेगा हिंदुस्तान..... न झुके हैं न झुकेंगे, हम लड़ेंगे लड़ेंगे..... आवाज़ दो हम एक हैं..... सरीखे नारों की आवाजें हर आने जाने वालों के कदम रोक रही  थीं...... भाषणों का दौर लगातार जारी था। दो पल ठहर कर हर कोई इन आवाजों, भाषणों को सुनना चाहता था। 

शनिवार के दिन हर रास्ता, हर सड़क, संघर्ष और शाहदतों की  गवाही दे रहा था। रेलवे स्टेशन, बस अड्डों का नजारा कुछ और ही था। हाथों में झंडा थामें, इंकलाबी नारे लगाते हुए  उत्तर प्रदेश के कई जिलों से किसान अपनी माँगो के साथ  लखनऊ स्थित प्रदर्शन स्थल इको गार्डन पहुँचे थे।

आख़िर कौन थे ये आंदोलनकारी जो 26 नवंबर  यानी संविधान दिवस के दिन लाखों की संख्या में लखनऊ पहुँचे थे, तो इसके जवाब में हमें  दो साल पहले के उस ऐतिहासिक दिन को याद करना होगा जब  तीन विवादास्पद कृषि क़ानून लागू करने के फ़ैसले के विरोध में अपना घर परिवार, खेत-खलिहान छोड़कर, दिल्ली की सीमाओं पर जुट कर लाखों लाख किसानों ने अपना आंदोलन शुरू किया था। तब से लेकर अब तक यह किसान आंदोलन किसी न किसी रूप में जारी है।

भले अब किसानों के ट्रैक्टर ट्रॉली अपने घरों तक पहुँच गए हों, किसान लगातार अपने खेतों में दिख रहा हो, कुल मिलाकर वे अपनी दिनचर्या में व्यस्त हों लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि 26 नवंबर 2020 से शुरू हुआ किसान आंदोलन इन दो सालों के दरम्यान भी कभी ठहरा नहीं, थमा नहीं। देश के अलग अलग हिस्सों में संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के बैनर तले आंदोलन निर्बाध जारी है। यह मोर्चा देशभर के करीब साढ़े पाँच सौ किसान संगठनों से मिलकर बना है।

किसान आंदोलन के दो साल पूरे होने के मौके पर एसकेएम  के आह्वान पर 26 नवंबर को लखनऊ के इको गार्डन में किसान महापंचायत का आयोजन किया गया जिसमें उत्तर प्रदेश के लाखों किसान शामिल हुए। महापंचायत में भाग लेने के लिए किसानों के जत्थे 25 की रात से ही लखनऊ पहुँचने लगे थे।  हाथों में किसान आंदोलन का झंडा थामे महिला, पुरुष, बुजुर्ग, बच्चे, युवा हर उम्र के लोग महापंचायत का हिस्सा बनने आये थे। वे हिस्सा भी थे और किसान आंदोलन को गति देने वाली ऊर्जा भी। इन्हीं उर्जाओं की बदौलत तो एक ऐसा आंदोलन आज भी जिंदा है जिसकी हत्या करने की पुरजोर कोशिश की गई। इस ऐतिहासिक तारीख के दिन न केवल लखनऊ में बल्कि पूरे देश में संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर किसानों द्वारा राजभवन मार्च निकला गया और राज्यपाल के नाम ज्ञापन सौंपा गया।

दो साल पहले शुरू हुए इस किसान आंदोलन से आख़िर क्या हासिल हुआ, यह आंदोलन किस हद तक किसानों की आवाज़ बनने में सफल रहा, इस महाआंदोलन के बाद किसानों की कितनी समस्याओं का समाधान हो सका और सबसे महत्वपूर्ण सवाल किसानों की खुशहाली का जैसा प्रचार  सरकार करती है क्या उतनी खुशहाली उनके हिस्से में आई या यह महज एक भ्रमित प्रचार है, आदि इन सवालों के जवाब के लिए जब यह रिपोर्टर किसानों के बीच पहुँची तो इन सवालों के जवाब  देने की जिज्ञासा हर किसी के भीतर देखने को मिली।

किसानों ने बयाँ किया अपना दर्द

हरदोई से आये किसान बलवीर राजवंशी कहते हैं यह सरकार किसानों की आमदनी दुगनी करने की बात करती है, लेकिन यह होगा कैसे जब छुट्टा मवेशी खेत चर जा रहे हैं। एक तरफ किसान इन छुट्टा जानवरों से परेशान हैं, तो दूसरी तरफ डीएपी खाद की कीमतों ने भी कमर तोड़ रखी है। 1600 रुपये बोरी डीएपी खाद डाल कर किसान बुआई कर रहा है और फसल जब तैयार होती है तो उसे छुट्टा जानवर चर जा रहे हैं। वह बताते हैं कि हरदोई जिले में 83 गौशालाएं हैं लेकिन सब खाली पड़ी हैं।

गौशालाएं चल रही हैं, लेकिन सिर्फ कागजों पर। राजवंशी कहते हैं कि सरकार ने 24 घंटे बिजली देने का वादा किया था, लेकिन वह वादा भी पूरा नहीं हुआ है। पहले चीनी कोटे में मिल जाती थी, लेकिन वह भी बंद हो चुकी है।

हरदोई से ही आये एक और किसान ईश्वरदीन यादव कहते हैं कि दीपावली पर एक सिलेंडर मुफ्त देने की बात सरकार ने कही थी, लेकिन अभी तक वह मिला नहीं। बिजली बिल को आधा करने का वादा सरकार ने किया था, लेकिन यह उलटे बढ़ गया। यहां तक कि ट्यूबवेल पर भी मीटर लगा दिया गया है। किसानों को समय पर खाद भी नहीं मिल पा रही। खाद लेने के लिए उन्हें लाठियां खानी पड़ रही है। उचित मूल्य पर किसानों का धान नहीं बिक पा रहा है। इसके अलावा, सड़कों पर ट्रैक्टर की आवाजाही पर भी रोक लगा दी गयी है। इसके चलते एक जगह से दूसरी जगह आना-जाना काफी महंगा हो गया है। कुल मिलाकर किसान आज बर्बादी के कगार पर खड़ा है।

गौतम बुद्ध नगर के गांव कुरैब से आये किसान रणवीर सिंह कहते हैं जेवर एयरपोर्ट बनाने के लिए सरकार उनकी जमीन लेना चाहती है, लेकिन 2013 में बने भूमि-अधिग्रहण कानून के तहत नहीं। वह कहते हैं कि विकास कार्यों के जमीन देने से हमें गुरेज नहीं, लेकिन हमारा विस्थापन जहां सरकार करना चाहती है वह हमें मंजूर नहीं। हमें हमारे कस्बे से बहुत दूर बसाया जा रहा है, जबकि हम जेवर के पास मॉडलपुर में बसना चाहते हैं। रणवीर सिंह के मुताबिक, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि किसान जहां बसना चाहें उन्हें वहीं बसाया जाए, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। सरकार के इस दोहरे रवैये को हम समझ नहीं पा रहे। उन्होंने यह भी बताया कि रनहेरा के 90 प्रतिशत लोग और कुरैब के 70 प्रतिशत ग्रामीण विस्थापन की चपेट में आ रहे हैं।

दरअसल गौतमबुद्धनगर जिले के जेवर में नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट बन रहा है। इसको लेकर क्षेत्र के कई गांवों के किसानों की जमीन ली जा रही है। पहले चरण का काम पूरा हो चुका है अब दूसरे चरण का काम चल रहा है। इस चरण में प्रभावित होने वाले किसानों का आरोप है कि उनका  विस्थापन काफी दूर किया जा रहा है। इसकी वजह से उनको विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।

तो वहीं अमरोहा जिले के रेहरा गांव से आयी मोहनिया कहती हैं कि अपनी फसल को बचाने के लिए किसानों को हर मौसम में खेतों में सोना पड़ रहा है। मौसम की मार से कई किसानों की तो जान चली जा रही है। उनकी मौतों पर ध्यान देने वाला कोई नहीं। वह कहती हैं कि उनके इलाके में कोई गौशाला तक नहीं ।

मुजफ्फरपुर से आयी मेहरुन्निशा कहती हैं, वह सरकार को यह बताने इस पंचायत में आयी हैं कि आसमान छूती महंगाई किसानों को मार रही है। आपने उज्ज्वला योजना के तहत गैस सिलेंडर तो दे दिया है, लेकिन इस महंगाई में गरीब आदमी उसे कहां से भरवायेगा? गन्ने का उचित दाम भी समय पर नहीं मिल पा रहा है। इसलिए आज की युवा पीढ़ी को खेती-किसानी में कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा और वह इससे दूर भाग रही है।

सुल्तानपुर जिले के किसान राम सूरत  आरोप लगाते हुए कहते हैं  दरअसल सरकार ने जितनी भी गौशालाएं बनायी हैं, वे ‘हत्याशालाएं’ हैं। वहां मवेशियों के लिए ढंग से न चारे का इंतजाम है न पानी का। ऐसे में मवेशी मर रहे हैं। अरहर, चना, मटर की फसलें नीलगाय और सांड़ बर्बाद कर रहे हैं। मगर सरकार ने कंटीली तार लगाने पर पाबंदी लगा दी है। अगर कोई इस तरह की तार लगाता है तो उस पर मुकदमा हो जाता है। 30 रुपये में केवल दो किलो भूसा मिलता है, ऐसे में किसान मवेशियों को कैसे पालेगा? छुट्टा सांड़ और नीलगाय गांव में घुसकर पालतू मवेशियों पर हमला कर रहे हैं।

बुलंदशहर से आये किसान हाजी एसके चौहान किसानों की बेबसी को बयाँ करते हुए कहते हैं, जानवर, जीव-जंतु, इन्सान समेत पूरे संसार को किसान पाल रहा है, लेकिन वह खुद को नहीं पाल पा रहा है। उसे अपनी खेती-बाड़ी बचाने के लिए सरकार पर उतरना पड़ रहा है। जब किसान खेत छोड़कर सड़कों पर रहेगा, तो फसलें कौन उपजायेगा? सरकार जनता को केवल हिंदू-मुसलिम मुद्दों पर उलझा कर रखना चाहती है, ताकि वे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जैसे बुनियादी मुद्दों पर सरकार से सवाल कर सके। आज बेरोजगारी की सबसे ज्यादा मार किसान का बेटा झेल रहा है। उसे न तो नौकरी मिल पा रही है और न ही वह खेती में अपना भविष्य देख पा रहा है।

एटा जिले से आये किसान अमित प्रताप किसान आंदोलन को किसानों की  एक बड़ी ताकत बताते हैं। वे  कहते हैं कि दो साल पहले हुए विशाल किसान आंदोलन ने न केवल बड़े, बल्कि छोटे और मझोले किसानों को भी अपनी बात रखने की ताकत दी। इस महापंचायत में भी बड़े से लेकर छोटे तक, हर तरह के किसान शामिल हैं। वह कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि आज की नौजवान पीढ़ी खेती-किसानी नहीं करना चाहती, लेकिन जब 1500 की एक कट्टा (बोरी) खाद डालकर 1600 का गेहूं पैदा हो रहा हो, तो भला कौन खेती करना चाहेगा?

टैक्टर के साथ ट्विटर भी चलाना सीखे किसान

महापंचायत में शामिल होने आये किसान नेता राकेश टिकैत ने  किसानों से टैक्टर के साथ साथ ट्विटर पर भी अपनी पकड़ मजबूत करने का आह्वान किया। उन्होंने आज के डिजिटल दौर में ट्विटर की  महत्ता बताते हुए हर किसी को उस प्लेटफॉर्म को भी इस्तेमाल करने का आग्रह किया।

टिकैत ने कहा कि आजादी की लड़ाई 90 वर्ष तक चली थी वह तो इस से भी खतरनाक दौर था लेकिन यदि किसान नहीं चेते तो वही दौर आ जाएगा क्योंकि इस समय अघोषित इमरजेंसी है कलम और कैमरे पर बंदूक का पहरा है। सोशल मीडिया पर सरकार का शिकंजा है। इसलिए हमारे लोग भी बड़ी संख्या में डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अपनी उपस्थिति दर्ज करें।

किसानों को ठग रही सरकार

उन्होंने बताया कि ललितपुर, झांसी, सीतापुर, बाराबंकी, फिरोजाबाद, फर्रूखाबाद, रामपुर समेत कई जगहों पर किसानों को इस महापंचायत में आने से रोका गया। जहां-जहां किसानों को रोका गया है, अब वे वहीं तीन दिन तक अपनी पंचायत करेंगे। वह कहते हैं कि आज जो मांगपत्र सरकार को सौंपा गया है, वह मांगपत्र नहीं बल्कि किसानों का हकपत्र है। उन्होंने कहा कि दिल्ली में बैठी सरकार सभी राज्यों में राजनीतिक जोड़-तोड़ करने में लगी है। उसे किसानों, नौजवानों की आवाज सुनने की फुरसत कहां है? वह कहते हैं कि विकास परियोजनाओं के लिए यह सरकार किसानों की जमीन तो पूरे हक से ले रही है, लेकिन न तो उचित मुआवजा दे रही है और न ही उचित पुनर्वास कर रही है। जहां किसान अपनी जमीन नहीं देना चाहता, वहां जबरदस्ती छीनी जा रही है। 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन कर उसे मॉडल एक्ट बना दिया गया है। अब अधिग्रहण पूरी ताकत जिलाधिकारी को सौंप दी गयी है। वह किसी के लिए भी जमीन अधिग्रहण की इजाजत दे सकता है।

टिकैत कहते हैं कि इस सरकार ने 2047 तक विकास का जो मॉडल तैयार किया है, उस मॉडल के तहत किसान अपनी जमीनें खो देगा। उनके मुताबिक, किसानों को फसलों का उचित दाम नहीं मिल पा रहा, एमएसपी यह सरकार देना नहीं चाहती, खाद-बीज, बिजली-पानी महंगे हो गये, ट्रैक्टर के परिचालन पर भी रोक लगा दी गयी, छुट्टा मवेशियों से बचाव के लिए किसान कंटीली तार नहीं लगा सकता, ट्यूबवेल पर भी मीटर लगा दिया गया, सरकार गन्ने का भुगतान किसानों को समय पर नहीं कर रही,  गन्ने के भुगतान की झूठी रिपोर्ट अधिकारी प्रदेश सरकार तक पहुँचा रहे हैं जबकि झूठी रिपोर्ट देने वाले अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही, गन्ना किसान को सरकार डिजिटल भुगतान से जोड़ने में रुचि नहीं दिखा रही।

उन्होंने  कहा कि वर्ष 2005 में बिहार में मंडी खत्म करके वहां के किसान को बर्बाद कर दिया और वहां के किसान मात्र 800 रुपये प्रति कुंतल धान बेच रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के किसानों को बर्बाद कर दिया। सेब के किसान बुरी तरह से परेशान हैं। उन्होंने कहा कि चाहे जेवर एयरपोर्ट हो, आजमगढ़ हो या लखनऊ के किसानों की जमीनों का अधिग्रहण किया जा रहा है और पैसा नहीं दिया जा रहा है। कुल मिलाकर यह सरकार केवल किसानों को ठगने का का काम कर रही

किसान एक बड़े आंदोलन के लिए तैयार रहे

वे कहते हैं दिल्ली में बैठी सरकार ने यह ठान लिया है कि न तो किसानों की बात सुननी है और न ही इनसे कोई बात करनी है। यही हाल उत्तर प्रदेश सरकार का भी है। लेकिन अगर किसान अपनी मांगों को लेकर आंदोलन करता है तो उस पर केस कर दिया जाता है, आखिर किसान करे तो क्या करे। तो ऐसी सूरत में एक बार फिर किसानों का एक बड़ा संघर्ष होगा। वे महापंचायत में ऐलान करते हैं कि आने वाली 26  जनवरी को ट्रैक्टर आंदोलन होगा जिसके लिए सब किसान तैयार रहे। उन्होंने लखनऊ में हुए इस महापंचायत के बाद जगह जगह जिला मुख्यालयों पर आंदोलन करने की बात कही।

टिकैत कहते हैं यदि किसान अपनी लडाई जीतना चाहता है तो अपने आंदोलन को तेज करे,  गाँव गाँव मजबूत कमेटियाँ बनाये, संयुक्त किसान मोर्चे के कार्यकर्मों को लागू करें। उन्होंने अफसोस ज़ाहिर करते हुए कहा कि लखीमपुर खीरी में खुले आम किसानों पर गाड़ी चढ़ा गई लेकिन आज भी अजय टेनी को उसके पद से हटाया नहीं गया।

विपक्ष पर साधा निशाना

उन्होंने विपक्ष पर भी निशाना साधते हुए कहा कि सरकार की गलत नीतियों और मनमानी के खिलाफ़ विपक्ष भी मजबूती से अपनी लड़ाई नहीं लड़ रहा।  विपक्ष के रवैये सवाल उठाते हुए  टिकैत ने कहा कि जनता वोट नही देती, फिर भी इनकी सरकार बनती है, क्योंकि विपक्ष आंदोलन नही करता. उन्होंने कहा कि विपक्ष जमीनी मुद्दों पर सड़क पर नहीं दिख रहा  लेकिन किसान ने जो लडाई शुरू की है वे रुकनी नहीं चाहिए चाहे विपक्ष का साथ मिले न मिले।

उन्होंने कहा कि इस आंदोलन की बागडोर इस देश के मजदूर किसानों के हाथ में रहेगी जो मजबूती से आगे बढ़ता रहेगा। कुर्बानी भी देनी पड़े तो हम तैयार है लेकिन जीतेगा तो अंत में मजदूर, किसान।

किसान आंदोलन का दूसरे चरण में प्रवेश: हन्नान मौल्ला

अखिल भारतीय किसान सभा ( AIKS, जो कि संयुक्त किसान मोर्चा का एक धड़ा है) के राष्ट्रीय महासचिव हन्नान मौल्ला ने देश की सरकार को गद्दारों और झूठों की सरकार का आरोप लगाते हुए कहा कि इस सरकार ने किसानों के हित में जो माँगे पूरी करने का वादा आंदोलन के एक साल बाद किया था उसे अभी तक पूरा नहीं किया गया। वे कहते हैं  26 नवंबर 2020 को जब तीन काले कृषि कानूनों के खिलाफ़ देश का लाखों किसान दिल्ली में एकजुट हुआ था तो उसी दिन देश के दस ट्रेड यूनियनों ने भी मजदूर विरोधी चार लेबर कानूनों के खिलाफ़ भारत बंद का आह्वान किया था। हन्नान कहते हैं भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब मजदूर, किसानों ने एक साथ सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ़ मोर्चा खोला।

उन्होंने कहा कि एक साल लगातार जब किसान हर मौसम की मार झेलते हुए अपने आंदोलन में डटा रहा तो आखिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को झुकना पड़ा और उन्हें तीन कृषि कानून वापस लेने पड़े लेकिन हमारी लड़ाई अभी यहीं खत्म नहीं होती बल्कि इस सरकार ने जो किसानों को छलने का काम किया है, उसे देखते हुए अब तो लड़ाई और तेज करने की जरूरत है। उनके मुताबिक अब आगे की लड़ाइयों में राजधानियाँ घेरी जायेंगी। उन्होंने बताया कि आज (26 नवंबर) देश के 25 राज्यों में लाखों किसान आंदोलन कर रहे हैं जो संयुक्त किसान मोर्चे के दूसरे बड़े आंदोलन की शुरुआत है। अब यहाँ से किसानों का आंदोलन अपने दूसरे चरण में प्रवेश कर चुका है। 

उन्होंने बताया कि आगामी 8 दिसंबर  को संयुक्त किसान मोर्चा की एक अहम बैठक होगी जिसमें किसान आंदोलन की पूरी रूप रेखा तैयार की जायेगी।

किसानों की बड़ी मांगें....

1.  एयरपोर्ट, सड़क परियोजना या आवासीय योजना के लिए जबरन भूमि अधिग्रहण न किया जाए।

2. खेतों में बाड़, कंटीले तार या अन्य तरीके से घेरेबंदी पर रोक न लगाई जाए। ट्रैक्टर ट्राली के अलग-अलग इस्तेमाल पर पाबंदी न लगाई जाए।

3. गन्ने का बकाया भुगतान किसानों को पर्ची मिलने के एक महीने के भीतर ही किया जाए। गन्ना बकाया भुगतान में देरी पर ब्याज किसानों को मिले। गन्ने का समर्थन मूल्य 500 रुपये प्रति क्विंटल किया जाए।

4. किसानों को सिंचाई और अन्य कृषि कार्यों के लिए बिजली आपूर्ति की गारंटी दी जाए। बिजली संशोधन बिल के जरिये किसानों की कम लागत पर विद्युत आपूर्ति को रोकने का प्रयास न हो।

5. उत्तर प्रदेश में 2017 में हुई किसान कर्ज माफी के बाद बड़ी राहत किसानों को नहीं मिली है। यूपी खासकर पूर्वांचल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों को भारी बारिश से हुए नुकसान को देखते हुए किसान कर्ज माफी योजना का लाभ बिना किसी शर्तों के दिया जाए।

6. किसान आंदोलन के दौरान किसानों, किसान नेताओं पर दर्ज मुकदमों की पूरी तरह से वापसी हो। एफआईआर के कारण तमाम युवाओं का भविष्य बर्बाद होने से बचाया जाए।

7. व्यापारियों, कर्मचारियों की तरह किसान पेंशन की व्यवस्था सरकार करे। ताकि बुजुर्ग किसानों को बुढ़ापे में आर्थिक समस्याओं का सामना न करना पड़े।

8. किसानों की सबसे बड़ी मांग एमएसपी गारंटी की है, जो किसान आंदोलन के दौरान से ही चली आ रही है। फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी की मांग किसानों की है।

9. किसानों ने आवारा पशुओं को लेकर भी अपनी आवाज उठाई है। उनके लिए काजी हाउस, गौशाला की पर्याप्त व्यवस्था करने की मांग की गई है।

10. किसानों ने डीएपी और अन्य रासायनिक खाद किल्लत की समस्या भी उठाई है। उनका कहना है कि खाद केंद्रों पर लंबी लाइनों से जूझना पड़ रहा है और पर्याप्त उर्वरक उन्हें नहीं मिल पा रहा है। तो इस समस्या का शीघ्र निवारण किया जाए।

11. किसान आंदोलन में शहीद हुए किसानों के परिवारों को उचित मुआवजे का भुगतान और उनके पुनर्वास की व्यवस्था की जाए और शहीद किसानों के लिए सिंधु मोर्चा पर स्मारक बनाने के लिए भूमि आवंटित की जाए।

किसान महापंचायत में लखीमपुर खीरी के शहीद पत्रकार रमन कश्यप के भाई पवन कश्यप भी शामिल थे जिन्हें संयुक्त किसान मोर्चा की सदस्यता ग्रहण करवाई गई।

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