अभूतपूर्व भारत बंद: क्या आप अब भी कहेंगे कि ये तीन राज्यों या चुनिंदा किसानों का आंदोलन है!
तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन के 10 महीने पूरे होने पर किसानों ने आज, सोमवार को 10 घंटे के लिए भारत बंद किया। भारत बंद को भारी जन समर्थन की रिपोर्टें आ रही हैं। अधिकांश स्थानों पर समाज के विभिन्न वर्गों की सहज भागीदारी देखी गई।
बंद और इसके साथ होने वाले कई कार्यक्रम के बारे में, आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, केरल, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पांडिचेरी, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल से सैकड़ों स्थानों से रिपोर्ट आई हैं।
जम्मू-कश्मीर
त्रिपुरा
उत्तर प्रदेश
पश्चिम बंगाल
अकेले पंजाब में, 500 से अधिक स्थान पर लोग बंद को समर्थन देने और किसान आंदोलन में अपनी भागीदारी व्यक्त करने के लिए एकत्र हुए। इसी तरह, बंद में कई गैर-किसान संगठनों को किसानों के साथ एकजुटता में, और अपने स्वयं के मुद्दों को भी उठाते हुए देखा गया। आज बंद के हज़ारों कार्यक्रमों में करोड़ों नागरिकों ने हिस्सा लिया।
केरल, पंजाब, हरियाणा, झारखंड और बिहार जैसे कई राज्यों में जनजीवन लगभग ठप हो गया। रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि दक्षिणी असम, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तराखंड के कई हिस्सों में यह स्थिति थी।
उत्तराखंड
तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटक, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में अनेक विरोध प्रदर्शन हुए। राजस्थान और कर्नाटक की राजधानी जयपुर और बैंगलोर में, हजारों प्रदर्शनकारी शहरों में निकाली गई विरोध रैलियों में शामिल हुए।
राजस्थान
मोदी सरकार द्वारा लागू की जा रही भाजपा-आरएसएस की नीतियों, बुनियादी स्वतंत्रता और लोकतंत्र पर अंकुश लगाने, और अधिकांश नागरिकों के जीवनयापन को खतरे में डालने से पूरे देश में गुस्सा और हताशा थी। एसकेएम ने कहा, "यह स्पष्ट है कि भारतवासी किसानों की जायज़ मांगों और कई क्षेत्रों में जनविरोधी नीतियों के विरोध में मोदी सरकार के अड़ियल, अनुचित और अहंकारी रुख से त्रस्त हो चुके हैं।"
किसान मोर्चा ने अपने बयान में कहा कि इस बंद के आह्वान को पहले की तुलना में अधिक व्यापक जनसमर्थन मिला है। लगभग सभी विपक्षी राजनीतिक दलों ने बंद को बिना शर्त समर्थन दिया, और वास्तव में साथ आने के लिए उत्सुक थे।
श्रम संगठन एक बार फिर किसानों और श्रमिकों की एकता का प्रदर्शन करते हुए किसानों के साथ थे। विभिन्न व्यापारी, व्यापारी और ट्रांसपोर्टर संघ, छात्र और युवा संगठन, महिला संगठन, टैक्सी और ऑटो यूनियन, शिक्षक और वकील संघ, पत्रकार संघ, लेखक और कलाकार, महिला संगठन और अन्य प्रगतिशील समूह इस बंद में देश के किसानों के साथ मजबूती से खड़े थे। अन्य देशों में भी प्रवासी भारतीयों द्वारा समर्थन में कार्यक्रम आयोजित किए गए।
एसकेएम ने बंद के दौरान पूर्ण शांति की अपील की थी और सभी भारतीयों से हड़ताल में शामिल होने का आग्रह किया था। और ये पूरा बंद शांन्तिपूर्ण ही रहा है। जिसे लेकर संयुक्त मोर्चा के नेता राकेश टिकैत ने देशभर में शान्तिपूर्वक बन्द को सफल बनाने के लिए किसान-मज़दूरों का धन्यवाद दिया।
राकेश टिकैत ने कहा कि तीन राज्यों का आंदोलन बताने वाले लोग आंख खोल कर देख लें कि पूरा देश किसानों के साथ खड़ा है। सरकार को किसानों की समस्या का समाधान करना चाहिए।
किसान यूनियन के मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र मलिक द्वार जारी बयान में कहा गया कि किसान 10 माह से घर छोड़कर सड़कों पर है लेकिन इस सरकार को न तो कुछ दिखाई देता है और नहीं सुनाई देता है ।
पंजाब और हरियाणा में नेशनल हाईवे, स्टेट हाईवे, लिंक रोड और रेलवे ट्रैक सुबह से ही बंद कर दिए गए थे।
खबरों के मुताबिक, पंजाब में 500 से अधिक जगहों पर विरोध प्रदर्शन शुरू होने के कारण 14 ट्रेनों को रद्द कर दिया गया। हरियाणा में जींद जिले में अकेले 25 स्थानों पर राजमार्ग अवरुद्ध कर दिए गए।
किसान तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि तथाकथित सुधार निर्णायक रूप से कृषि उत्पादन और व्यापार को बड़ी खाद्य कंपनियों और व्यापारियों को सौंप देंगे, जिससे उनकी आजीविका के साथ-साथ लगभग 200 मिलियन वाले देश में गरीब लोगो के लिए खाद्य सुरक्षा के लिए एक खतरा पैदा हो जाएगा।
हरियाणा के सोनीपत में कुछ किसान धरने पर बैठे। पंजाब के पास के पटियाला में भी, बीकेयू-उग्रहां के सदस्य भी अपना विरोध दर्ज कराने के लिए पटरियों पर बैठ गए। पंजाब के मोगा सहित कई जगहों पर पूर्ण रूप से बंद रहा। किसानों ने मोगा-फिरोजपुर और मोगा-लुधियाना राष्ट्रीय राजमार्गों को भी जाम कर दिया।
हरियाणा में सिरसा, फतेहाबाद और कुरुक्षेत्र में राजमार्गों को किसानों ने जाम किया। सुरक्षा कारणों के चलते पंडित श्रीराम शर्मा मेट्रो स्टेशन भी बंद कर दिया गया। हरियाणा स्थित यह स्टेशन ‘ग्रीन लाइन’ पर है और टिकरी बॉर्डर पर किसानों के प्रदर्शन स्थल के निकट स्थित है।
एसकेएम के देशव्यापी हड़ताल के आह्वान को कांग्रेस, वाम, राष्ट्रीय जनता दल, द्रमुक जैसे कई विपक्षी दलों का समर्थन मिला। कुछ विपक्ष के नेतृत्व वाली सरकार ने भी किसानों की मांगों का समर्थन किया, जैसे कि वामपंथी केरल सरकार, पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने भी बंद को समर्थन दिया। आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु सरकारों ने भी बंद को पूर्ण समर्थन देने की घोषणा की। बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने भी देशव्यापी हड़ताल में शामिल होने का ऐलान किया था।
दिल्ली में मज़दूर, छात्र-नौजवान और महिला संगठनों ने बंद के समर्थन में जंतर मंतर पर किया प्रदर्शन
देश की राजधानी दिल्ली में बीजेपी-आरएसएस समर्थित यूनियन को छोड़ बाकी सभी सेंट्रल ट्रेड यूनियन का शीर्ष नेतृत्व और किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक ढावले और महासचिव हनन मौल्ला भी मौजूद रहे है। इसके साथ ही महिला और छात्र भी शमिल हुए। हालाँकि दिल्ली में बंद के दौरान सार्वजनिक परिवहन और दुकानें समान्य तौर पर खुली रही। ट्रेड यूनियनों ने इस बंद का सैद्धांतिक समर्थन जरूर किया था।
जंतर मंतर पर प्रदर्शन के नेतृत्व कर रहे मज़दूर नेता और सीटू के दिल्ली राज्य महासचिव अनुराग सक्सेना ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि आज का बंद मोदी सरकार के एकतरफ मज़दूर और किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ है। मोदी सरकार न तो किसानों से बात कर रही है और न ही मज़दूरों से बात कर रही है। इसलिए हमें सड़कों पर उतरकर अपना विरोध जताना पड़ रहा है।
जनवादी महिला समिति दिल्ली की सचिव मैमुना मौल्ला ने कहा इस प्रदर्शन में महिलाए आई क्योंकि अगर ये कानून आए तो उनको मिलने वाला सरकारी राशन खत्म हो जाएगा।
तेलंगाना: कांग्रेस, वामपंथी, तेदेपा विरोध में शामिल
वहीं, तेलंगाना में कांग्रेस, वाम दलों, तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) और अन्य ने राज्य के विभिन्न स्थानों पर प्रदर्शन किए। विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं ने बसों का संचालन बाधित करने के लिए राज्य में विभिन्न स्थानों पर बस अड्डों के बाहर प्रदर्शन किए।
केन्द्र की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार और तेलंगाना की तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) सरकार के खिलाफ नारेबाजी की गई।
वनपर्थी, नलगोंडा, नागरकुरनूल, आदिलाबाद, राजन्ना-सिरसिला, विकराबाद और अन्य जिलों में विरोध प्रदर्शन हुए।
विपक्षी कार्यकर्ताओं ने तीन कृषि कानूनों, सार्वजनिक उपक्रमों को "बेचने" और ईंधन की बढ़ती कीमतों पर एनडीए सरकार की आलोचना की।
ओडिशा: बाजार बंद, सार्वजनिक परिवहन बंद
ओडिशा में भी सार्वजनिक परिवहन सड़कों से नदारद दिखा, जिससे राज्य में जनजीवन प्रभावित हुआ। कांग्रेस और वाम दलों के सदस्यों सहित बंद समर्थकों ने बारिश के बीच राज्य भर में महत्वपूर्ण चौराहों पर धरना दिया।
भुवनेश्वर, बालासोर, राउरकेला, संबलपुर, बरगढ़, बोलांगीर, रायगढ़ा और सुबर्णपुर सहित अन्य जगहों पर सड़कें अवरुद्ध कर दी गईं।
प्रदर्शनकारियों ने भुवनेश्वर स्टेशन पर रेलवे लाइनों को भी अवरुद्ध कर दिया, जिससे राज्य की राजधानी में ट्रेन सेवाएं प्रभावित हुईं। राज्य भर के सरकारी कार्यालयों में उपस्थिति कम देखी गई।
बंद के मद्देनजर ओडिशा राज्य सड़क परिवहन निगम ने सुबह छह बजे से दोपहर तीन बजे तक बस सेवा स्थगित कर दी। निजी बसें भी सड़कों से नदारद रहीं।
तालाबंदी के बाद फिर से खुलने वाले शैक्षणिक संस्थान बंद के कारण बंद रहे।
हालांकि बाजार बंद थे, लेकिन फार्मेसियों और दूध की दुकानों सहित आवश्यक वस्तुओं की बिक्री करने वाली दुकानें अप्रभावित रहीं।
कई ट्रेड यूनियन और बैंक कर्मचारी संघ ने भी 10 घंटे के बंद का समर्थन किया।
नवनीमन कृषक संगठन के राज्य संयोजक अक्षय कुमार ने कहा कि देश भर के किसान नाराज हैं क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं दिया।
संगठन के एक अन्य नेता शेषदेव नंदा ने कहा, "आज का बंद प्रतीकात्मक है। जब तक पीएम मोदी तीन कृषि कानूनों को वापस नहीं लेते, तब इसे और तेज किया जाएगा।"
तमिलनाडु: किसान निकायों ने किया विरोध प्रदर्शन
किसान संगठनों और वाम दलों ने सोमवार को तमिलनाडु के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन किया। विरोध प्रदर्शन में, सीपीआई और सीपीआई (एम) के राज्य सचिवों, आर मुथारासन और के बालकृष्णन, विदुथलाई चिरुथाईगल काची प्रमुख थोल थिरुमावलवन और सत्तारूढ़ डीएमके से संबद्ध लेबर प्रोग्रेसिव फेडरेशन के पदाधिकारियों ने भी भाग लिया।
कन्याकुमारी सहित राज्य के अन्य हिस्सों में भी इसी तरह का विरोध प्रदर्शन किया गया जिसमें सत्तारूढ़ द्रमुक और कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारियों ने भाग लिया। सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) उन ट्रेड यूनियनों में शामिल था, जिन्होंने विरोध प्रदर्शनों में सक्रिय रूप से भाग लिया।
तमिलनाडु के कावेरी डेल्टा ज़ोन के कई क्षेत्रों जैसे तिरुवरूर और तिरुथुराईपुंडी में दुकानें और प्रतिष्ठान बंद रहे।
केरल: एलडीएफ-यूडीएफ ने किया किसानों की हड़ताल का समर्थन
केरल में सत्तारूढ़ एलडीएफ और विपक्षी कांग्रेस नीत यूडीएफ द्वारा समर्थित देशव्यापी 'भारत बंद' का आह्वान करने वाले प्रदर्शनकारी किसानों के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए सोमवार सुबह से हड़ताल शुरू हो गई।
सार्वजनिक परिवहन, विशेष रूप से केएसआरटीसी बस सेवाएं, प्रभावित हुईं क्योंकि राज्य के लगभग सभी ट्रेड यूनियन हड़ताल में भाग ले रहे थे, और जिन लोगों को यात्रा करनी थी, उन्होंने परिवहन के निजी साधनों का विकल्प चुना, जबकि अन्य घर पर रहे।
भाजपा ने हड़ताल को "जनविरोधी" करार दिया था, लेकिन पार्टी के राज्य महासचिव जॉर्ज कुरियन ने कहा कि हालांकि उनसे जुड़े ट्रेड यूनियन हड़ताल का समर्थन नहीं कर रहे हैं, लेकिन वे खुले तौर पर इसका विरोध भी नहीं कर रहे हैं।
बिहार: किसान व ट्रेड यूनियन संगठनों के भारत बंद का राज्य में व्यापक असर
किसान संगठनों के संयुक्त आह्वान पर आज भारत बंद का राजधानी पटना में भी व्यापक असर रहा। किसानों के बंद के समर्थन में ट्रेड यूनियन संगठन व महागठबंधन के दल भी सड़क पर उतरे। टैंपो यूनियनों ने भी बंद का समर्थन किया। इसके साथ किसान और छात्र संगठनों ने भी बंद में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
राजधानी पटना में बुद्ध स्मृति पार्क से भाकपा-माले, सीपीआई, सीपीएम, फारवर्ड ब्लॉक, आरएसपी, राजद व कांग्रेस का प्रभावशाली मार्च आरंभ हुआ। यह मार्च भी फ्रेजर रोड होते हुए डाकबंगला चौराहा पहुंचा और किसान व ट्रेड यूनियन संगठनों के साथ एकाकार हो गया। मार्च के दौरान आइसा के नेतृत्व में छात्र-युवाओं का भी बड़ा जत्था सड़क पर उतरा।
प्रदर्शनकारियों ने लगभग दो घंटे तक डाकबंगला चौराहे को जाम रखा और इस बीच लगातार मोदी सरकार की तानाशाही के खिलाफ नारे लगाते रहे। छात्र-युवाओं का जत्था क्रांतिकारी गीतों के जरिए अपने आक्रोश को अभिव्यक्त करता रहा।
डाकबंगला पर सभी दलों के नेताओं ने बिहार में प्रभावशाली भारत बंद की चर्चा की और अपने वक्तव्य रखे। लगभग दो घंटे तक सभा चलने के बाद मोदी सरकार के खिलाफ निर्णायक लड़ाई जारी रखने के आह्वान के साथ सभा खत्म हुई।
इसके आलावा कैमूर पूर्णिया ,बेतिया , मुजफ्फरपुर-हाजीपुर , दरभंगा , समस्तीपुर , कटिहार , बक्सर,मधुबनी, नवादा , जमुई, सारण सुपौल सहित कई अन्य जिलों में बंद के समर्थन में रेल रोको और सड़क जाम किया गया।
मध्यप्रदेश में किसानो का बंद का असर
अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव और मध्य प्रदेश के किसान नेता बादल सरोज ने राज्य में बंद की जानकारी साझा की। उन्होंने बताया कि केंद्रीय कृषि मंत्री के तीनो जिलों में सबसे ज्यादा असर रहा।
किसानों के भारत बंद आह्वान पर मध्यप्रदेश में हुआ बंद प्रभावी रहा। किसानों के आंदोलन के दस महीने पूरे हो जाने की जिम्मेदार मोदी सरकार के कृषिमंत्री के संसदीय क्षेत्र के दोनों जिलों मुरैना तथा शयीपुर में बंद अभूतपूर्व था। उनके गृह जिले ग्वालियर में भी बंद सौ फीसद रहा।
भोपाल में करौंद मंडी की सभा में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के साथ मध्यप्रदेश किसान सभा के उपाध्यक्ष जसविंदर सिंह सहित अनेक किसान नेताओं ने सभा भी की। ऐसी 150 से ज्यादा प्रतिरोध सभाएं आज पूरे प्रदेश में हुईं।
दोपहर दो बजे तक मिली खबरों के अनुसार मुरैना, श्योपुर, ग्वालियर, के अलावा विदिशा, सतना, रीवा, विदिशा, धार जिले में मनावर, राजगढ़, सीधी, सिंगरौली में बंद का व्यापक असर था।
जबलपुर, सिवनी, बालाघाट, अनूपपुर, शहडोल, इंदौर, रतलाम सहित 26 अन्य जिलों में किसानों ने तथा उनका समर्थन कर रही राजनीतिक पार्टियों ने जलूस निकाले तथा कई स्थानों पर जाम भी लगाए।
प्रदेश के सभी औद्योगिक केंद्रों तथा कोयला खदानों में श्रमिक संगठनो ने इस बंद के समर्थन में जलूस, प्रदर्शन और सभाएं की हैं। संयुक्त किसान मोर्चा तथा अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय ने इस बंद की कामयाबी के लिए किसानो तथा उनके सहयोगी संगठनो का आभार व्यक्त किया है।
सफल रहा 'छत्तीसगढ़ बंद' : किसान आंदोलन ने जनता का माना आभार
किसान विरोधी तीनों कानूनों और मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताओं के खिलाफ संयुक्त किसान मोर्चा और केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा आहूत भारत बंद को ऐतिहासिक बताते हुए और छत्तीसगढ़ में इसे सफल बनाने के लिए छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन से जुड़े सभी घटक संगठनों और छत्तीसगढ़ किसान सभा तथा आदिवासी एकता महासभा ने आम जनता का आभार व्यक्त किया है और कहा है कि मोदी सरकार की कॉर्पोरेटपरस्ती के खिलाफ उनका संघर्ष तब तक जारी रहेगा, जब तक कि ये कानून वापस नहीं लिए जाते और देश को बेचने वाली नीतियों को त्यागा नहीं जाता। उन्होंने कहा है कि इस देशव्यापी बंद में 40 करोड़ लोगों की प्रत्यक्ष हिस्सेदारी ने यह साबित कर दिया है कि भारतीय लोकतंत्र को मटियामेट करने की संघी गिरोह की साजिश कभी कामयाब नहीं होगी।
छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के संयोजक सुदेश टीकम और छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते ने बताया कि प्रदेश में बंद का व्यापक प्रभाव रहा तथा बस्तर से लेकर सरगुजा तक मजदूर, किसान और आम जनता के दूसरे तबके सड़कों पर उतरे। कहीं धरने दिए गए, कहीं प्रदर्शन हुए और सरकार के पुतले जलाए गए, तो कहीं चक्का जाम हुआ और राष्ट्रपति/प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपे गए।
मीडिया के लिए आज हुए आंदोलन की तस्वीरें और वीडियो जारी करते हुए किसान सभा नेता संजय पराते ने बताया कि अभी तक प्राप्त जानकारी के अनुसार राजनांदगांव, दुर्ग, रायपुर, गरियाबंद, धमतरी, कांकेर, बस्तर, बीजापुर, बिलासपुर, कोरबा, जांजगीर, रायगढ़, सरगुजा, सूरजपुर, कोरिया और मरवाही सहित 20 से ज्यादा जिलों में प्रत्यक्ष कार्यवाही हुई और बांकीमोंगरा-बिलासपुर मार्ग, अंबिकापुर-रायगढ़ मार्ग, सूरजपुर-बनारस मार्ग और बलरामपुर-रांची मार्ग में सैकड़ों आदिवासियों ने सड़कों पर धरना देकर चक्का जाम कर दिया। इस चक्का जाम में सीटू सहित अन्य मजदूर संगठनों के कार्यकर्ताओं ने भी बड़े पैमाने पर हिस्सा लिया और मोदी सरकार की मजदूर-किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद की।
किसान नेताओं ने बताया कि कई स्थानों पर हुई सभाओं को वहां के स्थानीय नेताओं ने संबोधित किया और किसान विरोधी कानूनों की वापसी के साथ ही सभी किसानों व कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की वैधानिक गांरटी का कानून बनाने की मांग की। उन्होंने कहा कि देशव्यापी कृषि संकट से उबरने और किसान आत्महत्याओं को रोकने का एकमात्र रास्ता यही है कि उनकी उपज का लाभकारी मूल्य मिले, जिससे उनकी खरीदने की ताकत भी बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था भी मंदी से उबरेगी। इस आंदोलन के दौरान किसान नेताओं ने मनरेगा, वनाधिकार कानून, विस्थापन और पुनर्वास, आदिवासियों के राज्य प्रायोजित दमन और 5वी अनुसूची और पेसा कानून जैसे मुद्दों को भी उठाया।
कर्नाटक में शुरुआती कुछ घंटों में जनजीवन कुछ खास प्रभावित नहीं हुआ, सामान्य रूप से कामकाज हुआ तथा यातायात सेवाएं सामान्य रूप से उपलब्ध रहीं। हालांकि विरोध प्रदर्शनों और प्रमुख राष्ट्रीय एवं राज्य राजमार्गों पर किसानों द्वारा रास्ता रोकने के प्रयासों के कारण राज्य के कई हिस्सों, खासकर बेंगलुरु में वाहनों की आवाजाही बाधित हुई।
गुवाहाटी में ‘सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया’ के कार्यकर्ताओं ने विरोध मार्च निकाला। अस्पताल, दवा की दुकानें, राहत एवं बचाव कार्य सहित सभी आपातकालीन प्रतिष्ठानों, आवश्यक सेवाओं और किसी परेशानी का सामना कर रहे लोगों को हड़ताल से छूट दी गई है।
राजस्थान में, किसानों के 'भारत बंद' का असर राजधानी जयपुर,कृषि बहुल गंगानगर और हनुमानगढ़ सहित अनेक जिलों में दिखा जहां प्रमुख मंडिया तथा बाजार बंद रहे। किसानों ने प्रमुख मार्गों पर चक्काजाम किया और सभाएं की।
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