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उत्तर प्रदेश: मूर्तिकार भी संकट में, जीविका के लिए कर रहे जद्दोजहद

मूर्तिकारों के अनुसार पिछले वर्ष की तुलना में व्यवसाय में 90 फीसदी की गिरावट आई है। इसके चलते कई मूर्तिकार परिवार पालने के लिए मज़दूरी करने को मजबूर हैं।
मूर्तिकार भी संकट में

“दशहरा व दीपावली में देवी दुर्गा व लक्ष्मी की मूर्तियों से प्रतिवर्ष हमारी अच्छी कमाई हो जाती थी। इस बार कोरोना से उपजे हालात ने हमें गहरे संकट में डाल दिया है। लॉकडाउन के कारण हमें समय से मिट्टी नहीं मिली महीनों परेशान होने के बाद प्रशासन से 3 दिनों के लिए अनुमति मिली तो पैसों के अभाव में मैं उस समय मिट्टी नहीं गिरवा सका। अब मिट्टी मिलना और भी मुश्किल हो गया है, जहाँ से मैं मिट्टी लाता था वहाँ बाढ़ आई हुई है। पिछले वर्ष मैंने 15 मूर्तियां बनाकर 70 हजार रुपये की आय की थी, मिट्टी नहीं मिलने के कारण इस बार एक भी नहीं बना सका।” गोरखपुर में बक्शीपुर के कुम्हार टोला निवासी शिल्पकार संतोष प्रजापति लॉकडाउन का खुद पर पड़े प्रभाव का ब्यौरा इन शब्दों में देते हैं। संतोष मिट्टी के बर्तन और मूर्तियां बनाते हैं।

मूर्तियों का निर्माण करने वाले शिल्पकार दशहरे तक मूर्तियों की बिक्री कर सकें इसके लिए वह मार्च महीने से ही तैयारियां शुरू कर देते हैं। मूर्ति निर्माण के लिए मिट्टी, पुआल, बांस की जरूरत पड़ती है जिनका मूर्तिकार मार्च महीने में ही भंडारण शुरू कर देते हैं। 22 मार्च को ही लॉकडाउन हो जाने के कारण इस बार मूर्तिकारों को मिट्टी लेने में भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा।

मूर्तिकार अवधेश प्रजापति बताते हैं “लॉकडाउन के दौरान मिट्टी गिराने के लिए प्रशासन से अनुमति हेतु महीनों हम डीएम कार्यालय का चक्कर लगाते रहे। मुख्यमंत्री को भी पत्र लिखा। फिर डीएम के निर्देश पर हम लोगों ने एसडीएम से मुलाकात की, तब जाकर प्रशासन से मिट्टी गिराने की अनुमति मिली, वह भी केवल 3 दिनों के लिए। जो इन 3 दिनों में पैसे का इंतजाम नहीं कर सके उन्हें मिट्टी नहीं मिल सकी।”

कुम्हार टोले में कुम्हार परिवार के 200 परिवार रहते हैं जो चार पीढ़ियों से इस पेशे से जुड़े हुए हैं। लॉकडाउन के दौरान इनके व्यवसाय पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है। मिट्टी के बर्तनों की बिक्री लगभग बंद हो चुकी है और मूर्तियों के ग्राहकों में भारी कमी देखने को मिल रही है।

नतीजा संतोष की तरह कई मूर्तिकार परिवार पालने के लिए मजदूरी करने को मजबूर हैं। मूर्तिकारों के अनुसार पिछले वर्ष की तुलना में व्यवसाय में 90 फीसदी की गिरावट आई है। दशहरा के नजदीक आने के साथ-साथ इस क्षेत्र में दिहाड़ी मजदूरों की बड़ी आबादी शिफ्ट हो जाती है।

गोरखपुर मियाँ बाजार, चौरहिया गोला, ईस्माइलपुर, रहमतनगर, खोखरटोला, घासीकटरा, जाफरा बाजार, तिवारीपुर, सूरजकुंड, माधोपुर, हुमायूंपुर, जगरनाथपुर, अल्हदादपुर, रायगंज, शाहमारूफ, बर्फखाना, शेखपुर, बसंतपुर, हाँसूपुर, नौसड़, गुलरहरियां, बिछिया में हजारों की संख्या में मूर्तियां बनाईं जाती हैं। काम कम होने से शिल्पकारों के अलावा बड़ी संख्या में इसमें काम करने वाले मजदूरों के रोजगार पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है।

पूर्ण रूप से लागू लॉकडाउन के दौरान मूर्तिकार अपनी जमा पूँजी का बड़ा हिस्सा पहले ही खा चुके थे। मिट्टी, पुआल आदि के लिए कई लोगों को कर्ज लेना पड़ा। मूर्तिकारों ने पिछले वर्ष की तुलना में आधी मूर्तियां बनाने का लक्ष्य लेकर निर्माण शुरू किया तो पुलिस का उत्पीड़न शुरू हो गया। पुलिसकर्मियों पर कई मूर्तिकारों का उत्पीड़न करने के आरोप लगे। कई लोगों ने बताया कि कुछ मूर्तिकारों का चालान भी हो चुका है लेकिन कोई नाम बताने को तैयार नहीं।

अजय कुमार प्रजापति के मुताबिक “22 अगस्त की रात में दो पुलिसकर्मी रात में 12 बजे घर आएं और मां से मूर्तियों को लेकर पूछताछ करने लगे। अगले दिन दोपहर में आए मुझसे पूछा किसके कहने पर तुमने मूर्तियां बनाई हैं? मैंने बताया मेरे ग्राहक हैं तो उन्होंने पता पूछा और धमकी दी तुम्हारे ऊपर मुकदमा दर्ज कर दूंगा।” इसके बाद मैंने मूर्तियों को बनाने का काम बंद कर दिया था।

पुलिसकर्मियों द्वारा मूर्तिकारों को धमकी देने का सिलसिला जारी रहा। 4 सितंबर की शाम को 6 बजे दो पुलिसकर्मी कुम्हार टोले में पहुंचे और सभी मूर्तिकारों को बक्शीपुर पुलिस चौकी पर बुलाकर ले गए जहाँ इन्हें पिर धमकाया गया।

अवधेश प्रजापति के मुताबिक चौकी इंचार्ज ने कहा, “किससे पूछकर तुम लोग मूर्तियां बना रहे हो। बनाओगे तुम और झेलना हमें पड़ेगा। अब यदि तुम लोगों ने मूर्तियां बनाईं तो किसी केस में अंदर कर दूँगा, कोर्ट कचहरी का चक्कर लगाते रह जाओगे।” इसके बाद मूर्तिकारों ने काम को पूरी तरह से बंद कर दिया था।

5 सितंबर को बीआरडी मेडिकल कालेज में 300 बेड के कोविड अस्पताल का उद्घाटन करने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर में थे। 15-20 मूर्तिकारों ने ज्ञापन के जरिए उन्हें अपनी व्यथा से अवगत कराने के लिए गोरखनाथ मंदिर पहुंचें, लेकिन भारी भीड़ के कारण मुलाकात नहीं हो सकी। एक लेटर बाक्स में मूर्तिकारों ने ज्ञापन डाल दिया था, जिसके बारे में वहां के कर्मचारियों ने बताया था कि प्रत्येक 8 घंटे में यह खुलता है, उसके बाद संबंधित व्यक्ति आवेदनों का संज्ञान लेते हैं। लेकिन एक सप्ताह बाद भी कुछ नहीं हुआ।

एक सप्ताह बाद 10 सितंबर को स्थानीय अखबार में इस संबंध में खबर प्रकाशित हुई जिसमें डीएम के. बिजेन्द्र पांडियन ने स्पष्ट किया “दशहरा को लेकर कोई गाइड लाइन जारी नहीं हुई है। लेकिन मूर्ति बनाने पर कोई रोक नहीं लगाई गई है।” इसके बाद मूर्तिकारों ने काम तो शुरू कर दिया है लेकिन गाइड लाइन के अभाव अनिश्चतता का माहौल हावी है।

कोरोना वायरस के तेजी से फैलते संक्रमण के कारण सार्वजनिक आयोजन या तो प्रतिबंध लगे हैं या उसमें लोगों की भागीदारी को बेहद सीमित कर दिया गया है। नियम का उल्लंघन करने वालों पर कार्रवाई भी की जा रही है।

मूर्तियों की स्थापना से लेकर विसर्जन तक के आयोजन सार्वजनिक होते हैं और बड़ी संख्या में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। मूर्तिकार डर रहे हैं कि यदि शासन की सख्त गाइड लाइन आ गई तो बनी हुई मूर्तियां भी बिक नहीं पाएंगीं। जिससे काफी नुकसान होने की आशंका है।

मूर्तिकारों के अलावा मूर्ति में इस्तेमाल होने अन्य वस्तुओं की बिक्री करने वाले दुकानदारों पर भी इसका विपरीत प्रभाव पड़ा है। गोरखपुर के घंटाघर, नखासचौक, उर्दू बाजार और पांडेहाता में करीब 35-40 दुकानदार मूर्तिकारों को मूर्ति के निर्माण में इस्तेमाल होने वाला खड़िया, रंग, ब्रश, कपड़े, बाल, मुकुट, मूर्ति के श्रृंगार का सामान, कपड़े, हथियार आदि की बिक्री करते हैं। मूर्तियों का निर्माण नहीं होने के कारण इनका व्यवसाय भी प्रभावित हुआ है।

दुकानदार शिवशक्ति गुप्ता बताते हैं “पिछले वर्ष मैंने मूर्तिकारों को करीब 1 हजार बोरी खड़िया की बिक्री की थी। कोरोना से उपजे हालात के कारण मैंने केवल 500 बोरी ही खड़िया मंगाया है। उसमें से अभी तक मात्र 40 बोरी खड़िया की बिक्री हुई है। अब दशहरा के त्योहार में केवल एक महीना ही बाकी है ऐसे में बिक्री की बहुत उम्मीद नहीं बची है।”

बेरोजगारी की समस्या से देश के नौजवान पहले से ही परेशान हैं लॉकडाउन से पहले ही नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस के अनुसार देश में पिछले 45 वर्षों में सर्वाधिक बेरोजगारी थी। लॉकडाउन लागू होने के बाद हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के मुताबिक जुलाई में करीब 48 और अगस्त में 33 लाख लोगों की नौकरी जा चुकी है। जुलाई के मुकाबले देश में बेरोजगारी की दर 8.35 प्रतिशत हो चुकी है। नोटबंदी के लागू होने के बाद से ही कैश पर निर्भर असंगठित क्षेत्र की हालत लगातार बिगड़ रही है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़ों ने अनुसार 2019 में आत्महत्या करने वालों में सबसे बड़ी संख्या दिहाड़ी मजदूरों की थी। 2019 में 1,39,123 लोगों ने आत्महत्या की जिसमें पुरुषों की संख्या 97,613 है। इनमें से 29,092 लोग दिहाड़ी मजदूर थे, जो कुल आत्महत्या करने वालों का 23.4 फीसदी है। एनसीआरबी के आँकड़ों के अनुसार ही 2019 में स्वयं का व्यवसाय करने वाले 16,098 लोगों ने आत्महत्या की थी।

रोजगार न मिलने के कारण आत्महत्या करने वालों की संख्या में भी तेजी से इजाफा हो रहा है। 2019 में कुल 11,599 बेरोजगारों ने आत्महत्या की थी। यह आंकड़े सरकार की नीतियों पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं। दशहरा व दीपावली के त्योहार के दौरान बड़ी संख्या में असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को रोजगार के अवसर मिलते हैं। मौजूदा हालत बता रहे हैं आने वाला समय उनके लिए चुनौतीपूर्ण होगा।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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