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उत्तर प्रदेश: लॉकडाउन और समय पर बकाया भुगतान न मिलने से गन्ना किसान संकट में!

उत्तर प्रदेश में चालू पेराई सत्र 2019-20 में गन्ना किसानों का चीनी मिलों पर बकाया 12,000 करोड़ रुपये हो गया है। ऐसे में लॉकडाउन के चलते पहले से ही बेहाल किसान बकाया भुगतान न मिलने से भारी आर्थिक संकट में आ गए हैं।
 गन्ना किसान

बिजनौर। एक तरफ जहां देश में कोरोना महामारी के चलते गरीब ग्रामीणों और दिहाड़ी पर काम करने वाले दैनिक मजदूरों की आजीविका पर संकट के बादल छा गए हैं। तो वहीं दूसरी तरफ कोई भूखे पेट न रहे, इसको लेकर देश का अन्नदाता किसान आज भी रात दिन खेतों में काम कर रहा है। उधर फसलों का उचित दाम ना मिलने साथ ही गन्ने का बकाया भुगतान भी समय से ना होने के चलते किसान के सामने भारी आर्थिक संकट खड़ा हो गया है।

उत्तर प्रदेश राज्य के गन्ना किसानों की बात करें। तो प्रदेश भर में 60 लाख से अधिक गन्ना किसान हैं जिनमें करीब 75% गन्ना किसान ऐसे हैं जिनका रजिस्ट्रेशन गन्ना समितियों या चीनी मिल समितियों के द्वारा किया गया है। वर्तमान में गन्ना विकास विभाग के अन्तर्गत कुल 169 सहकारी गन्ना विकास समितियां व 28 चीनी मिल समितियां पंजीकृत हैं, जो पूरे प्रदेश में कार्यरत हैं।

सहकारी गन्ना विकास समितियों व चीनी मिल समितियों का पंजीकरण गन्ना आयुक्त / निबन्धक सहकारी गन्ना / चीनी मिल समितियां उत्तर प्रदेश द्वारा उ.प्र. सहकारी समिति अधिनियम-1965 की धारा-7 के अन्तर्गत किया जाता है। वर्तमान में प्रदेश की गन्ना समितियों में 48.84 लाख गन्ना किसान पंजीकृत है, जिनमें लगभग 33 लाख गन्ना किसान नियमित रूप से इन गन्ना समितियों के माध्यम से चीनी मिलों को गन्ने की आपूर्ति करते है।

गन्ना समितियां किसानों और चीनी मिलों के बीच समन्वय स्थापित करते हैं। जहाँ समिति सदस्य, गन्ना किसानों के द्वारा उत्पादित गन्ने की आपूर्ति सम्बन्धित चीनी मिलों को निर्धारित समयावधि में कराते हैं। तो वहीं सरकार द्वारा घोषित गन्ना मूल्य दर के अनुसार भुगतान कराने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।

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वहीं सूबे में ऐसे छोटे गन्ना किसानों की संख्या भी लगभग 18 लाख है, जिनका पंजीयन समितियों में नहीं है और जो सरकारी सट्टा न होने के कारण चीनी मिलों को अपना गन्ना नहीं बेच पाते हैं। ऐसे किसानों को अपना गन्ना शुगर केन क्रेशर या पावर कोल्हुओं को कम दामों में बेचना पड़ता है।

उत्तर प्रदेश में सहकारी और निजी क्षेत्र की चीनी मिलों की संख्या 119 के करीब है जिसमें 24 चीनी मिलें सहकारी चीनी मिलें हैं और 95 के लगभग निजी क्षेत्र की चीनी मिलें हैं, जो किसानों का गन्ना खरीदती हैं।

उत्तर प्रदेश राज्य की चीनी मिलों के गन्ना मूल्य भुगतान के सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें, तो चीनी मिलों द्वारा पिछले 5 वर्षों में एक लाख 30 हज़ार 735 करोड़ रुपये का गन्ना मूल्य भुगतान किसानों को अदा किया गया। जिसमें पेराई सत्र 2015-16 में 17 हजार 768 करोड़ रुपये का, पेराई सत्र 2016-17 में 14 हज़ार 735 करोड़ रुपये का, पेराई सत्र 2017-18 में 35 हजार 423 करोड़ रुपये का, पेराई सत्र 2018-19 में 32 हजार 874 करोड़ रुपये का और चालू पेराई सत्र 2019-20 में अभी तक 16 हज़ार 414 करोड़ रुपये का गन्ना मूल्य भुगतान किसानों को किया जा चुका हैं।

इस चालू पेराई सत्र 2019-20 में प्रदेश के गन्ना किसानों का लगभग 12 हजार करोड़ रुपये का बकाया गन्ना भुगतान चीनी मिलों पर बाकी है साथ ही गन्ना किसानों का पिछले पेराई सत्र 2018-19 का भी अभी करीब ढाई सौ करोड़ रुपया प्रदेश की कई निजी चीनी मिलों पर बकाया है।

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वहीं सूबे की चीनी मिलें किसानों के बकाया गन्ना भुगतान पर कुंडली मारकर बैठ गई हैं। उत्तर भारत का शुगर बाउल कहे जाने वाले अकेले पश्चिम उत्तर प्रदेश के ही गन्ना किसानों का लगभग 7 हज़ार करोड़ रुपये का गन्ना मूल्य भुगतान चीनी मिलों पर बकाया है।
 
मेरठ जनपद के किसान नेता राजकुमार सांगवान बताते हैं कि मेरठ कमिश्नरी के अंतर्गत आने वाली चीनी मिलों पर किसानों का करीब 2650 करोड़ रुपया बकाया है, जिसमें अकेले मेरठ जनपद के किसानों का ही 1150 करोड़ रुपये के लगभग भुगतान बाक़ी है, जिसे अदा करने में चीनी मिलें आना कानी कर रही हैं।

भुगतान समय से ना होने के कारण किसान के सामने घोर आर्थिक मुसीबत खड़ी हो गई है। बल्कि अब तो किसानों को पर्चियां भी नहीं मिल रही हैं, तमाम चीनी मिलों ने बंदी का नोटिस चस्पा कर दिया हैं। 02 से 10 मई तक चीनी मिलें बंद हो रही हैं, वही अभी भी किसानों का गन्ना खेतों में खड़ा है। चीनी मिलें मनमानी कर रही हैं मिल बंद होने की अवधि कम रह गई है और किसानों की पर्चियां भी ज्यादा बची है।

मिलों का कहना है कि जब तक किसान की पहली पर्ची खत्म नहीं होगी तब तक दूसरी प्रति नहीं दी जाएगी। उधर गन्ना समितियां भ्रष्टाचार में लिप्त है किसानों पर दबाव बनाकर अवैध वसूली करने का काम कर रही है।

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वहीं लॉकडाउन की आड़ में किसी प्रशासनिक अधिकारी की कोई मंशा या गंभीरता किसान के प्रति नहीं दिखाई देती है। सरकार का रवैया भी किसानों के प्रति उदासीन नज़र आता है और उसमें बदहाल हुए किसान की मदद के लिए कोई इच्छाशक्ति ही नही दिखाई देती है।

सहारनपुर कमिश्नरी के डिप्टी केन कमिश्नर दिनेश्वर मिश्रा का कहना है कि उनकी डिवीजन में 17 चीनी मिलें हैं, जो सहारनपुर, मुजफ्फरनगर और शामली जनपद में स्थित हैं। सभी चीनी मिलें ठीक प्रकार से गन्ना पेराई कर रही हैं। क्षेत्रीय गन्ना किसानों का करीब 2 हज़ार करोड़ रुपये का गन्ना मूल्य भुगतान चीनी मिलों पर बकाया है। पिछले साल की अपेक्षा पेराई सत्र 2019-20 में करीब 60 लाख क्विंटल गन्ने से ज्यादा की पेराई अभी तक हो चुकी है। पिछले साल की अपेक्षा इस बार 100 लाख क्विंटल से अधिक गन्ने की पेराई होगी। इस बार क्षेत्र में गन्ने का उत्पादन और रकबा भी अधिक है, अभी भी उनके क्षेत्र में किसानों का लगभग 200 लाख क्विंटल गन्ना बचा है। बचे गन्ने की पेराई अभी और होनी है जब तक किसानों का गन्ना खत्म नहीं हो जाता है तब तक उनके क्षेत्र की मिलें गन्ना पेराई करेंगी।

मुजफ्फरनगर जनपद के किसान धर्मेन्द्र सिंह ने बताया कि उनके जिले में किसानों के 800 करोड़ रुपये चीनी मिलों पर बकाया है। गन्ने का भुगतान समय से नही होने से किसान के सामने नक़दी का संकट खड़ा होता जा रहा है। किसान की गेंहू की फ़सल तैयार है। किसानों को गेंहू को काटना और गहाना है जिस के लिए पैसे की जरूरत है, लॉकडाउन से सब कुछ ठप्प पड़ गया है। चीनी मिलें भुगतान नही कर रही हैं। ऊपर से गन्ना अभी खेतों में खड़ा है, चीनी का उठान नही होने से मिलों ने पेराई कम कर दी है। किसानों का अभी भी करीब 20 प्रतिशत गन्ना बचा हुआ है। खेत खाली ना होने के कारण गन्ने की बुआई प्रभावित हो रही है। इसके बावजूद भी वो दिन रात खेतों में इसलिए काम कर रहा है कि कोई देश में भूखा ना रहे, लेकिन सरकार नही सुनती है।

यशपाल सिंह डीसीओ बिजनौर का कहना है कि जनपद में अभी भी करीब एक करोड़ क्विंटल गन्ना किसानों के खेतों में खड़ा है। जनपद की चीनी मिलों ने चालू पेराई सत्र में अब तक 1752 करोड़ रुपये का बकाया गन्ना भुगतान किसानों को कर दिया है। वहीं किसानों का अभी भी 1035 करोड़ रुपये का गन्ना मूल्य भुगतान चीनी मिलों पर बकाया है। उनके क्षेत्र में चीनी मिलें 10 मई तक चलेंगी, अभी करीब एक करोड़ क्विंटल गन्ने की पेराई करने के बाद ही मिलें बन्द होगीं। साथ ही जिस मिल क्षेत्र में गन्ना अधिक होगा उस क्षेत्र की मिलें मई के आखिर तक चलाने को कह दिया गया है।

बिजनौर के किसान राजेंद्र राजपूत का कहना है कि सरकार ने हाल ही में गैर यूरिया उर्वरकों पर सब्सिडी घटा दी है जिससे किसान की खेती की लागत और बढ़ गई है किसान पहले से ही कर्ज में दबा है ऐसे में सरकार द्वारा उर्वरकों पर सब्सिडी घटाए जाने से किसान पर आर्थिक बोझ और बढ़ेगा। गन्ना किसान इस समय गंभीर परेशानी के दौर से गुजर रहा है। एक तरफ तो चीनी मिलों ने गन्ना पेराई कम कर दी है। दूसरी तरफ किसान को गन्ना छीलने के लिए मजदूर उपलब्ध नहीं है। जो मजदूर अभी तक गन्ने के काम में व्यस्त थे वो सब अब गेंहू की कटाई में लग गए हैं। जिससे वो अपने खाने के लिए साल भर का अनाज इकठ्ठा कर लेते हैं। सरकार को चाहिए की गरीब किसानों को तत्काल मदद मुहैया कराएं, वहीं गन्ना किसानों का जो गन्ना मूल्य भुगतान चीनी मिलों पर बकाया है उसमें से आधे से ज़्यादा भुगतान तुरन्त किसानों को दिलाये। साथ ही किसानों को राहत के लिए आर्थिक पैकेज की घोषणा करे। अगर किसान बचेगा, तो देश बचेगा।

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उधर अब सरकार उत्तर प्रदेश राज्य के सभी गन्ना किसानों को एक क्विंटल चीनी प्रति माह की दर से जून 2020 तक उपलब्ध कराएगी, सरकार का कहना है कि इच्छुक गन्ना किसान शुगर मिलों से प्रति माह एक क्विंटल चीनी ले सकेंगे। यानी प्रदेश सरकार तीन माह तक, सूबे के गन्ना किसानों को तीन क्विंटल चीनी बकाया गन्ना भुगतान के बदले शुगर मिलों से वितरित कराएगी। साथ ही किसानों को दी जाने वाली चीनी का वितरण, चीनी मिलों को निर्धारित किये गए मासिक कोटे के आधार पर होगा।

राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सरदार वी एम सिंह का कहना है कि सरकार और चीनी मिलें मिलकर किसानों के साथ छल कर रही हैं। वो किसान को गन्ने के बकाया भुगतान के बदले चीनी का बोरा देने को कह रही है। आज किसान को नक़दी की जरूरत है, जब चीनी को सरकार और मिलें नही बेच पा रही हैं। तो ऐसे में किसान इस चीनी को कहां बेचेगा, जबकि लॉकडाउन के चलते सभी कुछ बन्द है। सरकार की मंशा किसानों के प्रति संवेदनशील नहीं दिखाई देती है, वह असहाय बनी गन्ना किसान को बर्बाद होते देख रही है। किसान कर्ज़ के जाल में फंसता जा रहा है, गन्ने का भुगतान समय से ना होने के कारण किसान घोर संकट में आ चुका है।

वो आगे कहते हैं कि आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए किसानों को अपना गन्ना केन क्रेशरों या पॉवर कोल्हुओं को बेचना पड़ रहा है। केन क्रेशर या पावर कोल्हुओं पर गन्ने का उचित दाम नही मिल पाता है, लेकिन मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसे की आवश्यकता पड़ती है, तो उन्हें अपने गन्ने की फ़सल को औने पौने दामों में इनको मजबूरी में बेचना पड़ता है। जिसके चलते फ़सल के वाज़िब दाम मिलना तो दूर फ़सल को पैदा करने में खर्च हुई लागत भी पूरी नहीं पड़ती, जिसके चलते गन्ना किसान और बदहाल स्थिति में होता जा रहा है। अगर समय रहते सरकार ने गन्ना किसान के लिए कुछ ठोस कदम या नीति नहीं बनाई, तो वह दिन दूर नहीं की गन्ना किसान कर्ज़ के बोझ तले दबा होगा। सरकार को नाबार्ड जैसी योजनाओं को ईमानदारी से लागू करना होगा, किसान को फसल की खरीद की गारंटी भी सरकार को सुनिश्चित करनी होगी। अगर किसान यूं ही एमएसपी से कम रेट पर अपनी फसलें बेचता रहा, तो वह दिन दूर नही जब खेती से किसान हतोत्साहित होगा। और इसका खामियाजा कहीं ना कहीं देश को भी उठाना होगा।

(अजीत सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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