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उत्तर प्रदेश : असंतोष तो है लेकिन संघ के पास योगी का विकल्प नहीं

बीजेपी की प्रदेश इकाई के ट्विटर हैंडल के बैनर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  का फ़ोटो नहीं है। जबकि नरेंद्र मोदी की तस्वीर के बिना प्रदेश में सरकारी विज्ञापन भी प्रकाशित नहीं होता था।
उत्तर प्रदेश : असंतोष तो है लेकिन संघ के पास योगी का विकल्प नहीं

उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) संकट के दौर से गुज़र रही है। कोरोना काल में सरकार की अव्यवस्थाओं और पार्टी के आंतरिक मन-मुटाव से जन्मे संकट ने पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व और संघ दोनों को चिंता में डाल दिया है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कृषि कानून के ख़िलाफ़ किसानों का 6 महीने से चल रहा प्रदर्शन, हाल में हुए पंचायत चुनाव में पार्टी की हार और कोरोना की दूसरी लहर के दौरान हुई अव्यवस्थाओं, ने योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व पर सवाल खड़े कर दिये हैं।

इसके अलावा पार्टी के मंत्रियों, विधायकों और नेताओं द्वारा, प्रदेश में फैलीं अव्यवस्थाओं पर लिखे गये पत्र भी साफ़ बताते हैं कि सरकार में शामिल लोग भी के सरकार के कामकाज से संतुष्ट नहीं हैं।

इन सब के बीच विधानसभा चुनाव 2002 से ठीक 6-8 महीने पहले प्रदेश की सरकार और संगठन में बदलाव की ख़बरें, और संघ व केंद्रीय नेताओं का लखनऊ आना-जाना साफ़ बता रहा है कि पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है। कहा यह जा रहा है कि, पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व योगी का विकल्प तलाश कर रहा है।

समझा जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश में अपने क़रीबी पूर्व आईएएस अरविंद शर्मा, को सरकार में शामिल कर के, मुख्यमंत्री पर अंकुश लगाना चाहते हैं। जिसको लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नाराज़ भी हैं। हालाँकि यह सब अभी केवल अनुमान हैं, क्योंकि पार्टी के किसी नेता ने इन बातों की पुष्टि नहीं की है। वैसे इस तरह की बातों की खुलेतौर पर पुष्टि होना कभी आसान नहीं रहा।

लेकिन जो कुछ नज़र आ रहा है वह साफ़ दर्शाता है की कुछ तो ऐसा है जिसकी पर्दादारी है। मुख्यमंत्री का बदला नज़रिया भी बताता है कि उनके अंदर कुछ नाराज़गी है। हाल में ही सियासी पंडितों ने यह ध्यान दिया कि पार्टी की प्रदेश इकाई के ट्विटर हैंडल के बैनर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  का फ़ोटो नहीं है।

जबकि नरेंद्र मोदी की तस्वीर के बिना प्रदेश में सरकारी विज्ञापन भी प्रकाशित नहीं होता था। दूसरे सभी प्रदेशों के बीजेपी के ट्वीटर हैंडल पर स्थानीय नेताओं के साथ नरेंद्र मोदी की तस्वीर ज़रूर नज़र आती है। लेकिन उत्तर प्रदेश में बैनर पर केवल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या, डॉ. दिनेश शर्मा के साथ प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह की तस्वीर है।

इतना ही नहीं अभी कुछ दिन से सोशल मीडिया पर उत्तर प्रदेश बीजेपी की तरफ़ से योगी सरकार की उपलब्धियों पर जो पोस्टर सोशल मीडिया पर पोस्ट किये जा रहे है, उसमें भी नरेंद्र मोदी की तस्वीर नहीं है।

इसके अलावा प्रधानमंत्री के 2001 से क़रीबी रहे, पूर्व आईएएस अधिकारी अरविंद कुमार शर्मा को अभी तक सरकार में जगह नहीं मिल सकी है। जबकि जब वह साल के शुरू में, केंद्र सरकार के सचिव पद से इस्तीफ़ा देकर, राजनीति में आये हैं, उस समय से ही माना जा रहा था की उनको उत्तर प्रदेश सरकार में कोई अहम ज़िम्मदरी मिलेगी।

लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट था कि मोदी द्वारा भेजे गए, शर्मा जी को योगी पसंद नहीं कर रहे हैं। यही वजह बताई जाती है कि जब अरविंद शर्मा का प्रदेश में प्रवेश हुआ, तो उनसे मिलने के लिए मंत्रियों, नेताओं और नौकरशाहों की भीड़ लगी थी, लेकिन मुख्यमंत्री योगी ने उनको चार दिन तक मिलने का समय नहीं दिया।

प्रदेश में सरकार और बीजेपी के संगठन में फेरबदल को लेकर काफ़ी समय से अटकलों का बाज़ार गर्म है। सियासत के जानकार तो यहाँ तक कहते हैं कि न सिर्फ़ केंद्रीय नेतृत्व और योगी के बीच मन-मुटाव चल रहा है, बल्कि प्रदेश इकाई में सब कुछ सही नहीं है। उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या, प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और संगठन मंत्री सुनील बंसल के बीच की समीकरण भी ठीक नहीं हैं।

केंद्र में बैठे नेता और संघ के बीच कई बार दिल्ली में, योगी सरकार की गिरती साख को लेकर मीटिंग़े हो चुकी हैं। जिसमें योगी और स्वतंत्र देव शामिल नहीं हुए। जबकि सुनील बंसल इन मीटिंग में मौजूद थे। कहा यह भी जा रहा है कि मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष को इन मीटिंग में बुलाया ही नहीं गया।

संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले मई के आख़िर में लखनऊ आये और उन्होंने यहाँ चार दिन कैम्प किया। इस दौरान  की संघ के नेताओं के साथ मौजूदा सरकार की कार्यशैली और सरकार में नौकरशाही के बढ़ते हस्तक्षेप पर  मंथन कर दिया। माना जा रहा है कि, संघ में मोहन भागवत के बाद नंबर दो कहे जाने वाले होसबोले, 2022 चुनाव से पहले योगी सरकार का ज़मीनी फीडबैक लेने आये थे।

होसबोले के जाने के बाद जून की शुरू में पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राधा मोहन सिंह और महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष भी लखनऊ आये। दोनों नेताओं ने संगठन के पदाधिकारियों सहित मुख्यमंत्री योगी के साथ बंद कमरे में मीटिंग की है।

इतना सब होने के बाद भी अभी तक योगी को हटाने को लेकर सहमति नहीं बनी है। योगी की मर्ज़ी के ख़िलाफ़, मोदी के क़रीबी शर्मा को कैबिनेट में भी शामिल नहीं किया जा सका है। इसके अलावा संगठन में कोई बदलाव भी नहीं हुआ है।

अब कहा जा रहा है कि योगी के नेतृत्व में ही विधानसभा चुनाव लड़ा जायेगा। क्योंकि संघ आगामी चुनाव राम मंदिर को केंद्र में रखकर हिंदुत्व के मुद्दे पर लड़ना चाहता है। जिसके लिए मोदी के विकल्प की तरह उभर रहे योगी का कोई विकल्प संघ को नहीं मिल रहा है।

जिसने प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए तमाम असहमति की आवाज़ों को दबा दिया। सीएए विरोधियों का दमन किया और लव जिहाद जैसे अर्थहीन मुद्दे पर “अवैध धर्मांतरण कानून ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020” क़ानून बना दिया। यह सब कुछ संघ के एजेंडा के अनुरूप हैं और संघ मानता है कि, यह उसको 2022 व 2024 में लाभ देगा।

कहा जा रहा की अगर योगी को संघ का समर्थन ना होता तो किसी मुख्यमंत्री में इतना साहस नहीं है कि ट्विटर से मोदी की तस्वीर को हटा दे। सियासत के जानकार कहते हैं कि 2017 के चुनाव में 403 में से 312 सीटें जीतने के बाद संघ ने प्रदेश के सभी क़द्दावर नेताओं को नज़रअंदाज़ किया। 

केशव प्रसाद मौर्य जिनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया था, उनको उप मुख्यमंत्री बनाया गया। मनोज सिन्हा का नाम पेश कर के वापस ले लिया। राजनाथ सिंह और (दिवंगत) लाल जी टण्डन जैसे क़द्दावर नेताओं के नाम पर विचार तक नहीं किया गया था।

सीधे योगी को लाया गया जबकि वह पहले पार्टी के विरोधी भी रहे थे,और उन्होंने बीजेपी चुनाव जिताने में कोई ख़ास भूमिका भी नहीं निभाई थी। लेकिन क्योंकि संघ को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ मोदी जैसे एक हिंदुत्व के पोस्टर बॉय की ज़रूरत थी। इसी लिए भगवा वस्त्र धारी, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने में माहिर योगी को मुख्यमंत्री बनाया गया।

प्रदेश की राजनीति पर नज़र रखने वाले मानते हैं कि बीजेपी के पास, इस समय 2022 के लिए हिन्दुत्व से बड़ा कोई एजेंडा नहीं है। राजनीतिक विश्लेषक सिद्धार्थ कलहँस कहते हैं कि प्रदेश का चुनाव हिन्दुत्व पर होगा। जिसके लिए संघ के पास प्रदेश स्तर पर योगी से बड़ा कोई चेहरा नहीं है।

लेकिन योगी के काम करने के तरीक़े से पार्टी के भीतर और जनता के बीच जो असंतोष पैदा हुआ है, उसका विकल्प तलाश किया जा रहा है। सिद्धार्थ कलहँस कहते हैं कि संघ को यह भी एहसास है की, योगी के सत्ता में रहते जितना नुक़सान हो रहा है, उस से ज़्यादा अधिक नुक़सान सत्ता से बाहर रहने पर पार्टी पहुँचाएँगे। 

कुछ राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि योगी के कार्यकाल में संगठन कमज़ोर हुआ है और जनता में बीजेपी के प्रति नाराज़गी बढ़ी है। प्रो. रमेश दीक्षित कहते हैं कि चुनाव जितना क़रीब आएगा, उतना यह असंतोष बढ़ता जायेगा। जनता नदियों में नावों की जगह बहती लाशों को भूल नहीं सकती है।

लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीतिक शास्त्र के अध्यापक रह चुके प्रो. दीक्षित कहते हैं कि बीजेपी के सामने दोहरी चुनौती है, एक तरफ़ पार्टी के क़द्दावर नेता जिनको नज़रअंदाज़ किया गया और दूसरे जनता, जो कोविड-19 की दूसरी लहर में मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाओं का ना मिलना। प्रो. रमेश दीक्षित कहते हैं कि योगी भी मौजूदा हालात से दबाव में आये हैं, यही करण है कि, आजकल किसी पर एनएसए लगाने, ठोक दो या बदला लिया जायेगा, जैसे बयान नहीं आ रहे हैं।

वहीं कई दशक से प्रदेश की राजनीति पर नज़र रखने वाले मानते हैं की योगी स्वयं को मोदी के बराबर का नेता समझने लगे हैं। वरिष्ठ पत्रकार गोविंदपंत राजू मानते हैं कि योगी को स्वयं को मोदी के बराबर समझना या प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का हक़दार समझना, उनकी एक भूल है। वह कहते हैं जो भी इस उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री बनता है, उसको लगता है, अगला प्रधानमंत्री वही होगा। 

हालाँकि गोविंदपंत राजू जो अपनी राजनीतिक समझ के लिए जाने जाते हैं, मानते हैं कि बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व भी बंगाल चुनाव के बाद कमज़ोर हुआ है। वरना किसी को रखने या हटाने में मोदी या संघ को इतना विचार नहीं करना पड़ता है, उत्तराखंड में नेतृत्व की मिसाल सामने है।

मुख्यमंत्री के आज आये बयान जिसमें उन्होंने कहा है कि प्रदेश के मंत्रिमंडल में फेरबदल केवल मीडिया की अटकलबाज़ी है, पर वह कहते हैं “कहीं तो आग है, जो धुआँ उठ रहा है।”

आइए तस्वीरों के जरिये इस फ़र्क़ को महसूस करते हैं-

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